Pishach - 5 in Hindi Horror Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पिशाच..! - 5 - जोंबी का रहस्य..

Featured Books
Categories
Share

पिशाच..! - 5 - जोंबी का रहस्य..

नरेश को आज पहली तनख्वाह मिली थी। वो बड़े ही उत्साह से अपने घर की ओर चल पड़ा। वो चाहता था की कितनी जल्दी घर पहुंच जाए और अपनी पहली तनख्वाह अपनी मां के हाथों में रख दे।
उसकी मां ने बहुत मेहनत करके आज उसे इस मुकाम तक पहुंचाया था। तीन साल की उम्र में उसके पिता का स्वर्गवास हो गया था। तब से उसकी मां ने जगह जगह काम करके उसे पाला पोसा था। उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया था। आज उसी मां की मेहनत का फल उसे मिला था।
वो एक सूनसान रास्ते से होते हुए होते हुए अपने घर की ओर तेज कदमों से बढ़ रहा था।
तभी उसे रास्ते में उसके चाचा मिल गए। वो अकेले नहीं थे उनके साथ पांच लोग और थे। नरेश के चाचा बहुत मतलबी किस्म के इंसान थे। उन्होंने कभी भी नरेश की मां की सहायता नही की थी जबकि नरेश की मां ने उनके हर बुरे समय में हर प्रकार से उनकी मदद की थी। नरेश भी उन्हें बहुत मानता था। लेकिन वो हमेशा नरेश को डांटते रहते थे।
नरेश जाकर अपने चाचा का आशिर्वाद लेता है और उनसे कहता है "चाचा जी आज आपके आशिर्वाद की बदौलत मुझे आज मेरी पहली तनख्वाह मिली है।"
जिन चाचा जी का अभी तक उसको देख कर मुंह बना हुआ था अब वो एकदम लाल हो गया था। चाचा जी ने सोचा ‘इसके वंश को खत्म करने के लिए मैंने इसके बाप को तो मार दिया था। लेकिन इसे और इसकी मां को जिंदा छोड़के मैंने बड़ी गलती कर दी। मैने सोचा था की इसकी मां इसे पाल नही पाएगी और इसी दुख में खुद भी मर जाएगी लेकिन मैं गलत था। क्यों न आज ही मैं इसे इसके बाप के पास पहुंचा दूं।’
तभी नरेश ने कहा "अरे चाचाजी! क्या सोच रहे हैं? अच्छा मैं चलता हूं मां इंतजार कर रही होगी।" यह कहते हुए जैसे नरेश मुड़ा उसके चाचा ने ने उसपर पीछे से हमला कर दिया।
चाचा ने साथ रहे अपने साथी रामू को इशारा किया । चाचा का इशारा पा कर रामू और श्यामू ने अपने गले से गमछा निकाल कर फुर्ती से एक ने नरेश का मुंह ढक दिया,दूसरे ने गले में डाल दिया अपना गमछा नरेश के। इस अप्रत्याशित हमले से नरेश को कुछ भी समझने और संभलने का मौका नही मिला। उसके लड़खड़ाते ही तीसरे और चौथे व्यक्ति ने नरेश को जमीन पर गिरा दिया। उसके गिरते ही चाचा ने अपनी कमर में खोसा रामपुरी चाकू निकाल लिया और नरेश के सीने पर ताबड़ तोड़ वार करने लगा। चाकू सीने में घुसते ही नरेश की चीखों से वो बियावन जंगल गूजने लगा। चीख निकलते ही श्यामू ने जोर से उसका मुंह दबा दिया। अब सिर्फ नरेश तड़प सकता था चाचा के वारों से ।
चाचा अपनी सारी नफरत को निकाल लेना चाहता था। रामू ने चाचा को रोकते हुए कहा ,"अब बस करो ... काम होगया । क्या अब उसे छलनी कर डालोगे! "
चाचा वीभत्सता से हंसते हुए बोला,अभी तो मुझे इसकी वो आंखे वो जबान चाहिए जिनसे वो दया की आशा लिए मुझे देखता था और चाचा कहता था।
बेहद खौफनाक था वो पल चाचा ने उसी चाकू से नरेश के बेजान शरीर से उसकी आंखे निकाल ली और फिर जबान काट दी।
वही पास में उन पांचों ने मिल कर गड्ढा खोदा और नरेश की लाश को दफन कर दिया।
बिंदास भाव से वो पांचों राक्षस अपने घर की ओर चल दिए जैसे कुछ हुआ हीं ना हो।
रास्ते में नरेश का घर पड़ा। उसकी मां बाहर ही खड़ी थी।
"क्यों भौजी नरेश का इंतजार हो रहा है?"
"हां" कह कर उन्होंने दूसरी ओर मुंह घुमा लिया। वो अपने इस आस्तीन के साप को अच्छे से जानती थी। पर वो इस परिस्थिति में नही थी की उसका किसी भी तरह से विरोध कर पातीं।
ऊंचे स्वर में हंसते हुए आगे बढ़ गया। "ठीक है भौजी करो करो इंतजार।"
नरेश की मां काफी देर से उसका इंतजार कर रही थी। अब उसे चिंता होने लगी थी। ‘नरेश अब तक आ जाता था आया क्यों नहीं’ यही सोचते हुए मां नरेश के इंतजार में दरवाजे पर खड़ी रहती है। इस तरह आंखो ही आखों में पूरी रात बीत जाती है। पर नरेश नही आता। ये घड़ियां लंबी होती जाती है। दो दिन बीत गए लेकिन अब तक नरेश नही आता है तो उसकी मां पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने जाती है। पुलिस रिपोर्ट लिख कर उसकी खोज शुरू तो करती है लेकिन वो नही मिलता है।
वहीं नरेश की मौत के अगले दिन एक महात्मा वहां से जा रहे थे। उन्होंने देखा की जहां पर नरेश की लाश गाड़ी गई थी वहां की मिट्टी ताज़ी है। हल्का सा आगे जाने पर उन्हें इंसानी आंख और जबान दिखाई दी। यह बहुत सिद्ध महात्मा थे। उन्हें तुरंत पता लग गया की यहां पर क्या हुआ है। उन्हें इस अन्याय को देख कर इतना दुख हुआ की उन्होंने अपनी तंत्र शक्ति की मदद से नरेश की लाश को एक ज़ोंबी में तब्दील कर दिया थोड़ी ही देर में मिट्टी चीरते हुए एक हरा हाथ बाहर निकलता है। थोड़ी देर में ज़ोंबी पूरी तरीके से बाहर आ गया। उसकी शक्ल बहुत भयावह थी। उसके चेहरे से दोनो आंखें गायब थीं उसकी जुबान कटी हुई थी फिर भी वो देख और बोल सकता था। उसने महात्मा की ओर मुड़कर उनके ऊपर हमला करने की सोची लेकिन महात्मा ने उसके मन की बात जान ली और बोले "ठहरो! मुझे पता है कि तुम इस प्रकार के व्यक्ति नहीं हो। मुझे तुम्हारे साथ हुई हैवानियत पर दया आ गई थी इसीलिए मैंने तुम्हे ऐसा रूप दिया है की तुम अपने चाचा और उसके आदमियों से अपना बदला ले सको। लेकिन अंदर से तुम अब ही नरेश ही हो। होश में आओ वरना मैने जैसे तुम्हे ये रूप दिया है वैसे ही तुमसे यह सब छीन भी सकता हूं।"
अब तक नरेश ने अपने नए शरीर पर काबू पा लिया था उसने कहा "लेकिन मैं अपना बदला लूंगा कैसे मुझे देखकर तो कोई भी दूर से ही भाग जाएगा और मैं अकेले उन पांचों को कैसे संभाल पाऊंगा?"
महात्मा ने कहा "मैंने सिर्फ तुम्हे ये शरीर ही नही कई और शक्तियां भी दी हैं। तुम अपनी इच्छानुसार अपना रूप बदल सकते हो और तुम्हारी शक्तियां भी कई गुना बढ़ गई हैं।"
नरेश ने महात्मा को प्रणाम किया और वहां से जाने ही वाला था की उसे महात्मा की आवाज आई "लेकिन ये बात याद रखना की अपना काम खत्म करने के बाद तुम एक घंटे तक ही जीवित रह सकते हो इसके बाद तुम अपने आप वापस आ जाओगे।"
नरेश ने "ठीक है" में सर हिलाकर अपने बदले की रणनीति बनाने लगा।
प्लान के हिसाब से नरेश पहले अपना ही रूप लेकर रामू के घर पहुंच गया। वहां पहुंच कर उसने देखा की रामू अपने घर में अकेले है और सो रहा है। नरेश ने बगल में रक्खा रामू का गमछा उठायाऔर उससे उसका गला घोंटने लगा । रामू जो अभी अभी ही सोया था; गले पर दबाव पड़ने से पूरी ताकत लगा कर उठ बैठा। सामने नरेश को देख उसकी घिग्घी बंध गई। वो दोनो हाथ जोड़ कर उखड़ते स्वर में माफी मांगने लगा।
नरेश दहाड़ते हुए स्वर में बोला, "मै उस दिन अपनी मां की बरसों की तपस्या का फल स्वरूप अपनी पहली तनख्वाह मां के हाथ में रखने के लिए कितनी खुशी से घर जा रहा था। क्या ... बिगाड़ा था मैंने तुम सबका ? जो इतनी निर्दयता से तुम पांचों ने मिल कर मुझे मार डाला।
मेरी मां की आंखों में जीवन भर के लिए आंसू भर दिया तुम राक्षसो ने मिल कर। अब मुझसे रहम की भीख मांगते हो! "
टूटे स्वर में रामू बोला, "मैंने कुछ नही किया । मैने तो बस तुम्हारे चाचा की कही बात मानी। तुम्हारा कातिल तो वो है मुझे छोड़ दो।" कह कर रामू बिलखने लगा।
नरेश गुर्राते हुए बोला, "मरेगा तो चाचा भी पर पहले तुमने ही मुझे अपने गमछे से गिराया था। इस कारण पहले तू मर। इतना कह कर नरेश अट्टहास करता हुआ रामू के गले पर दबाव बढ़ाने लगा। तड़पता हुआ रामू कुछ ही देर में निष्प्राण हो कर जमीन पर गिर पड़ा।
नरेश उसके गिरते ही अपना शरीर छोड़ कर रामू के शरीर में प्रवेश कर गया और उठ कर दूसरे कमरे में सो रहे श्यामू का दरवाजा खटखटाने लगा। श्यामू इतनी रात गए रामू के बुलाने से चौक कर उठा और बाहर आकर रामू से इतनी रात गए जगाने का कारण पूछने लगा।
रामू का रूप धरे नरेश ने कहा शाह जी (नरेश के चाचा को सभी इसी नाम से बुलाते थे) ने तुरंत ही बुला भेजा है ।
"क्या हो गया जो इतनी रात गए शाह जी ने बुला भेजा है!" कहते हुए जल्दी से गले में गमछा और हाथ में लाठी ले कर दोनो चल पड़े। रास्ते में रामू ने नरेश की हत्या में शामिल बाकी के दोनो लोगों को भी बुला लिया और साथ ले कर शाह जी के घर पहुंच गया।
उन सब को इतनी रात गए देख कर चाचा चौक गया की तुम सब यहां इतनी रात गए कैसे आए । तुरंत ही आगे बढ़ कर रामू ने कहा , "आप का ही संदेशा तो मिला की बुलाया है तभी तो हम सब आए है।" किसी को संदेह न हो इस कारण तुरंत झूठ बोल दिया।
चाचा जो शराब और जुए का शौकीन था। बोला जब तुम सब आ ही गए हो तो चलो एक एक बाजी पत्ते खेल ले। कह कर नौकर को आवाज देने लगा की पैग बनाए और पत्ते ले आए। रामू ने उन्हे रोकते हुए कहा, "शाह जी रहने दो किसी को मत जगाओ मैं जी सारी तैयारी कर लेता हूं । सब तो जानता हूं कहा रक्खा है।" कह कर पत्ते फेटने को शाह जी को दे दिया और खुद सब की गिलास में शराब देने लगा।
सभी जब कुछ नशे में हो गए। रामू का चेहरा नरेश के चेहरे में परिवर्तित होने लगा। ये देख सभी ने समझा नशा हो रहा है इस कारण नरेश दिख रहा है। वो अपनी आंखे मलने लगे। फिर भी वही दिखा तो एक दूसरे से पूछने लगे ।
एक सा जवाब होने पर सभी का नशा हिरन होने लगा। वो अपनी जगह से उठने लगे। नरेश ने लपक कर सारे दरवाजे और खिड़की बंद कर दी।
अब वो एक जोंबी के रूप में सभी को दिख रहा था। उसकी हरी हरी आंखे किसी ड्रेगन ही आंखो की भांति जल रही थी। पहले उसने श्यामू को उसको गमछे से गला घोट कर मारा फिर जिन दोनो ने उसके पैर पकड़े थे उनको पैर से उठा कर इतनी जोर से जमीन पर पटक की उनके शरीर से मांस जगह जगह फैल गया।
अब बारी चाचा की थी । चाचा बार बार गिड़गिड़ा रहा था "बेटा नरेश मुझसे गलती हो गई मुझे छोड़ दो । मुझे माफ कर दो। विभत्स हंसी हंसता हुआ नरेश उसके सीने पर सवार हो गया। पहले चाचा की आंखों में अपनी दोनो उंगलियां डाल कर आंखे फोड़ दी । चाचा दर्द से चीत्कार कर उठा। फिर अपने नुकीले नाखूनों से जबान खीच ली।
अब वो चाचा के छाती को अपने बलशाली हाथो से मुक्के मार कर फाड़ दिया रक्त का दरिया सा बह उठा।
अब नरेश की आत्मा को कुछ शांति मिल रही थी । उसका काम पूरा हो चुका था।
उसे अपने मरने से ज्यादा दुख अपनी मां के अकेले पान का था। थके कदमों से वो अपने घर की ओर चल पड़ा। अभी कुछ वक्त था उसके पास। अपने घर के पास आकर वो मां के गले लगने को व्याकुल हो गया। आधी रात के बाद दरवाजे पर हुई आहट से उसकी मां को रात दिन बेटे के इंतजार में घड़ियां गिन रही थी। बाहर आ गई। दरवाजे पर नरेश को देख वो जोर जोर से रोने लगी।
नरेश दौड़ कर मां के गले लग गया। मां बेटे अब अलग होना भी चाहते थे पर नरेश के पास समय कम था। उसे वापस जाना था। मां के साथ अंदर आकर वो अपने गायब होने की सारी दुखद कहानी मां को बताई।
फिर खुद के जोंबी बनने चाचा से बदला लेने की पूरी दास्तान बताई।
वो रोते हुए बोला ,"मां उस दिन मैं बहुत भूखा था। ये सोच कर कुछ नही खाया था की देर हो जायेगी। घर पहुंच कर मैं तुम्हारे हाथों से ही खाऊंगा। मां मैं बहुत भूखा हूं मुझे खाना खिला दो।"
"हां बेटा हां .. मै अभी तुझे खाना खिलाती हूं अपने हाथों से। " कह कर मां ने जल्दी से चूल्हा जला कर नरेश के पसंद का खाना बनाया और उसे अपने पास बिठा कर अपने हाथों से खियाया। दोनो के ही आंखो से आंसू बह रहे थे।
अब नरेश का वक्त समाप्त हो चुका था। वो मां का पैर छू उसे रोता छोड़ वापस अपनी राह पर चल पड़ा।




आगे क्या हुआ जानने के लिए अगला भाग पढ़े ..🙏🙏
☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️☠️