Woman means sorrow in Hindi Women Focused by राजनारायण बोहरे books and stories PDF | औरत यानि दुःख गठरिया

Featured Books
  • ચતુર

    आकारसदृशप्रज्ञः प्रज्ञयासदृशागमः | आगमैः सदृशारम्भ आरम्भसदृश...

  • ભારતીય સિનેમાનાં અમૂલ્ય રત્ન - 5

    આશા પારેખઃ બોલિવૂડની જ્યુબિલી ગર્લ તો નૂતન અભિનયની મહારાણી૧૯...

  • રાણીની હવેલી - 6

    તે દિવસે મારી જિંદગીમાં પ્રથમ વાર મેં કંઈક આવું વિચિત્ર અને...

  • ચોરોનો ખજાનો - 71

                   જીવડું અને જંગ           રિચાર્ડ અને તેની સાથ...

  • ખજાનો - 88

    "આ બધી સમસ્યાઓનો ઉકેલ તો અંગ્રેજોએ આપણા જહાજ સાથે જ બાળી નાં...

Categories
Share

औरत यानि दुःख गठरिया

लघुकथा - दुख का विस्तार
राजनारायण बोहरे
"चलो जी अब हम सब किचन से बाहर चलती हैं, अब उपमा आ गयी वे ही नये नये तरह के व्यंजन बनायेंगी। " उपमा को देखते ही उसकी जेठानी और देवरानी किचेन में बाहर होने लगी तो सास ने रोका "अरे , वो शहर से अभी तो यहां पहुंची है, दो घड़ी आराम कर लेने दो, उसे चाय वाय तो पिलाओ, फिर वह भी किचने में ही तुम लोगों के साथ रहेगी।"
ऐसा सदा ही होता था। जब भी घर की सब स्त्रीयां इकट्ठा होती, उपमा सबकी जलन का केन्द्र होती। जेठानी देवरानी एक ही बात कहती है कि उपमा नौकरी करने की वजह से सबसे सुखी है, जो घर की कैद से सुबह सात बजे छूटती है, तो सांझ तीन बजे ही लौटती है । हम तो हमेशा घर के कोल्हू में जुते रहते हैं। क्या रात और क्या दिन ?
उपमा मुस्काती हुई सबकी बातें सुनती रहती है।
वह सास के पास बैठ कर घड़ी भर को सांस ही ले पायी थी कि चाय का कप सामने रख कर देवरानी बोली- "दूर रहती हो तो सास की लाड़ली हो । लेकिन अब आ गयी हो तो सब आप ही सम्हालोगी जीजी ।"
"सम्हाल लूंगी री , काहे चिन्ता करती है,"उपमा ने मुस्करा कर देवरानी को जवाब दिया –" वहां शहर में तो नौकरी और घर का काम दोनों मोर्चे सम्हालना पड़ता है यहां नौकरी से तो मुक्ति है, रह गया किचेन का काम तो, बहना औरत को इस मुये किचेन के काम से कहीं मुक्ति न है, असली कोल्हू तो यही बदा है हम औरतों की किस्मत में, सो अस या बस करना ही है ।"
"अरे दैया जीजी, तो क्या कोई महराजिन नहीं लगा रखी क्या रोटी पानी को ? दो जगह के काम में तो बहुत सुबह से संजा तक बहुत थक जाती होगी ?"
उपमा मुस्करायी- "बर्तन भांडे़ मांजने को तो सबके घर में बाइयें काम करती हैं, लेकिन रोटी पानी तो हर मर्द को अपनी पत्नी का ही अच्छा लगे है, सो मुश्किल है कि सौ घर में से एक घर में महाराजिन लगती है । तुम लोगों को लगता है कि काम वाली औरते खुश रहती, लेकिन तुम नही जानती हो कि वे तुमसे ज्यादा दुखी हैं। तुम्हारे तो केवल एक ससुराल वाले ही ऐंठते है, हमारे ऊपर तो दो-दो ससुराल रहती हैं, यहां की ससुराल के अलावा हमारे जितने भी अफसर हैं, वे सब के सब ससुरालियों से ज्यादा नखरे दिखाते और ऐंठते हैं , सो वहां भी हम कोल्हू की तरह जुती रहती है और घर लौट कर भी वही किस्सा होता है।"
अपने दर्द को अब तक दबाती रही उपमा ने इस बार देवरानी के बहाने से सबको बताया तो क्षण भर में ही वह सबकी सहानुभूति का केंद्र बन गयी , लग रहा था कि उपमा ने यह बात कहके अपने दुख का विस्तार कर दिया है, जिसके कुंहासे न केवल सास बल्कि देवरानी जेठानी भी डूब ने लगी थी। घण्टे भर में ही उसे पता लग गया कि जेठानी और देवरानी भी बहन हो सकती हैं, दोनों ने उसे हथेलियों पर रखा । उसे बड़ा दुख हुआ कि अब तक उसने अपना दर्द इन लोगों से साझा क्यों न किया ।