Atonement - 18 in Hindi Adventure Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्रायश्चित - भाग- 18

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प्रायश्चित - भाग- 18

धीरे धीरे दिन, महीने, साल यूं ही गुजरते रहे । बच्चे बड़े हो गए लेकिन शिवानी के मन की कड़वाहट दूर नहीं हुई। उन दोनों के बीच फासले समय के साथ और बढ़ते गए।
जितना दिनेश, शिवानी के पास आने व उसे समझाने की कोशिश करता , उतनी ही शिवानी की तरफ से दूरियां और बढ़ जाती। धीरे-धीरे उसने भी इसे अपने जीवन की नियति मान, हालात से समझौता कर लिया था।
दोनों ही पति पत्नी मानसिक पीड़ा से गुजर रहे थे । दिनेश तो ऑफिस जाने के बाद कुछ समय के लिए अपना दुख भूल भी जाता लेकिन शिवानी इस तनाव के कारण वह बीमार रहने लगी थी। बी पी की समस्या इतनी बढ़ गई थी कि अक्सर वह बेहोश हो जाती ।
आज शोरूम में किरण को देखने के बाद भी तो उसके साथ यही हुआ।
पूरी रात अतीत के दुखद पन्नों को पढ़ते हुए ही गुजर गई। पूरी रात जगने के कारण सुबह शिवानी की आंख ही ना खुल पाई।
शिवानी को सोता हुआ देख दिनेश ने भी उसे जगाना ठीक ना समझा। उसने खुद ही बच्चों को लंच बना कर स्कूल भेज दिया।
जब वह ऑफिस जाने की तैयारी कर रहा था, तब शिवानी उठकर बाहर आई। उसका चेहरा देखते ही दिनेश सब समझ गया ।
"तबीयत कैसी है अब तुम्हारी!" दिनेश ने पूछा।
"ठीक है!"
"चाय बना दूं क्या, तुम्हारे लिए!"
"नहीं, मैं खुद बना लूंगी। आप ऑफिस के लिए निकलिए। देर हो जाएगी वरना।"
"आर यू श्योर! अगर तबीयत सही नहीं है तो मैं छुट्टी कर लेता हूं। डॉक्टर के पास ले चलूंगा तुम्हें!"
"नहीं ऐसा कुछ नहीं है। हल्का सा सर दर्द है बस। मैं नाश्ता करने के बाद टेबलेट ले लूंगी!" कह शिवानी किचन में चली गई।

उसका जवाब सुन, दिनेश अपना बैग उठाकर ऑफिस के लिए निकल गया।
अचानक 3:00 बजे उसके पास रिया का फोन आया।
"हां बेटा बोलो, क्या बात है!"
"पापा आप जल्दी से घर आ जाओ। मम्मी की तबीयत ज्यादा ही खराब है!
उन्हें बार-बार चक्कर आ रहे हैं। साथ ही उल्टियां भी!" रिया घबराते हुए बोली।
"रिया तुम घबराओ नहीं । अपना और मम्मी का ध्यान रखो। मैं कुछ ही देर में पहुंचता हूं।" कह कुछ देर बाद ही
दिनेश ऑफिस से निकल गया।
घर पहुंच कर देखा तो शिवानी निढाल सी बिस्तर पर लेटी हुई थी।
उसने किसी तरह से शिवानी को गाड़ी में बिठाया और हॉस्पिटल लेकर गया।
चेकअप करने के बाद डॉक्टर ने वही कहा जो हर बार कहते थे। " मिस्टर दिनेश, हम पहले भी आपको कह चुके हैं ये मैंटली स्ट्रेस ज्यादा ले रही है। क्या आप इन्हें समय नहीं देते। हमने आपको पहले भी बताया था कि इतना मैंटली प्रेशर इनके हार्ट के लिए सही नहीं है। ऐसा ना हो आगे कोई ज्यादा बड़ी समस्या हो जाए। इसलिए आप इन्हें ज्यादा से ज्यादा खुश रखने की कोशिश कीजिए। इनके सामने कोई भी ऐसी बात ना करें जो इन्हें मानसिक तनाव दे।" दिनेश ने चुपचाप हामी में सिर हिला दिया। कहता भी क्या!
घर आकर शिवानी को दवाई देते हुए दिनेश ने कहा "शिवानी यह क्या बचपना है। अरे अपना नहीं बच्चों का तो सोचो! क्यों अपने आप को और मुझे सजा दे रही हो।"

"मैं किसी को सजा नहीं दे रही और बच्चों के बारे में सोच कर ही तो अब तक यहां हूं वरना!!!! " कहते उसका गला भर आया। बात बढ़ती देख, दिनेश उठकर वहां से चला गया।

रिया भी अपने मम्मी पापा के बीच में चल रहे तनाव को महसूस करने लगी थी। कई बार उसने अपनी मम्मी से इस बारे में पूछने की कोशिश भी की
"मम्मी, आप पापा से हरदम इतनी कटी कटी क्यों रहती हो! क्यों पापा से कभी हंसकर बात नहीं करती। "
लेकिन शिवानी उसे हर बार यह कहते हुए टाल देती " बेटा ऐसा तो कुछ नहीं। "
अपनी मम्मी का हर बार यही जवाब सुनकर रिया चुप हो जाती थी लेकिन उसको इतना तो समझ आ ही गया था कि कोई ना कोई बात तो है जो मम्मी मुझे बता नहीं रही। लेकिन जिद भी तो नहीं कर सकती थी। पता था मम्मी की तबीयत कुछ भी ज्यादा कहने सुनने से बिगड़ जाती है और पापा तो बेचारे वैसे ही घर ऑफिस में पिसते रहते हैं।

जब भी वह अपने किसी फ्रेंड के घर जाती। वहां पर उसके मम्मी पापा को खूब हंसते बोलते और घर में हंसी खुशी का माहौल देख, उसका भी बड़ा मन करता है कि काश मेरे मम्मी पापा भी इसी तरह से एक दूसरे से खुल कर बात करें।
शिवानी और दिनेश के बीच में चल रहे तनाव की घुटन अब रिया को भी बेचैन करने लगी थी। वह बेचारी अक्सर चुप ही रहती। हां रियान इन सब से अनजान अपनी ही दुनिया में मस्त था। भाई-बहन की नोकझोंक और शरारतें ही उस घर में जीवंतता का माहौल बनाए हुए थी।

जबसे शिवानी ने किरण को देखा था। तब से उसके घाव फिर से ताजा हो गये थे और रह रह कर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित कर रहे थे।
यह तो दिनेश भी महसूस कर रहा था कि किरण को देखने के बाद शिवानी कुछ ज्यादा ही परेशान है और अब तो हर 10- 15 दिन में उसकी तबीयत बिगड़ने लगी थी।
शिवानी और किरण की भेंट हुई लगभग 3 महीने गुजर गए थे और इन दिन महीनों में शिवानी तीन बार ही हॉस्पिटल जा चुकी थी।
आज भी उसे सुबह से ही बीपी लो होने के कारण चक्कर आ रहे थे। बच्चों को स्कूल भेजने के बाद दिनेश जिद कर कर उसे हॉस्पिटल लेकर गया।
अभी डॉक्टर के आने में समय था। शिवानी इंतजार कर रही थी। तभी दिनेश का फोन आ गया और वह फोन सुनने के लिए वहां से उठकर चला गया।
अचानक से शिवानी के नजर हॉस्पिटल में अंदर आती हुई किरण पर पड़ी। उसके साथ एक महिला और थी।
पहले तो उसे यह अपना वहम लगा । लेकिन वह दोनों जब कुछ पास आए तो ध्यान से देखने पर वह निश्चित हो गई। हां वह तो किरण ही थी। बहुत ही कमजोर लग रही थी आज वह ।
उन्हें उस ओर ही आता देखकर शिवानी थोड़ी बेचैन हो गई लेकिन उस ओर ना आकर, वह दोनों दूसरी ओर मुड़ गई ।

उनके जाने के बाद उसे कुछ राहत महसूस हुई। फोन सुनकर जब दिनेश आया तो शिवानी के चेहरे की बेचैनी देखकर वह बोला "क्या बात है शिवानी! तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो!"
शिवानी कुछ जवाब देती उससे पहले ही नर्स ने शिवानी के नाम की आवाज लगाई और वह दोनों अंदर डॉक्टर के पास चले गए।
चेकअप कराने के बाद दिनेश ने उससे कहा "शिवानी तुम कुछ देर बैठो। मैं जरा तुम्हारी दवाइयां ले आऊं और थोड़ा बिल का भी काम है मुझे।"
कहकर दिनेश चला गया।
शिवानी बैठने के लिए खाली कुर्सी तलाश ही रही थी कि तभी उसकी नजर किरण के साथ आई, उस महिला पर पड़ी। उसे देख शिवानी को कुछ-कुछ उसमें किरण की झलक नजर आई।
पहले तो वह वहां से जाने लगी। फिर कुछ सोच कर वह उस महिला के पास ही आकर बैठ गई।
उस महिला ने भी मुस्कुराते हुए उसे बैठने के लिए जगह दे दी।
थोड़ी देर की चुप्पी के बाद वह महिला शिवानी से बोली "आप अपने आप को दिखाने आए हो क्या दीदी!"
शिवानी ने हां में गर्दन हिला दी।
"क्या बीमारी है आपको!"

"बस कुछ खास नहीं! हॉस्पिटल आओ तो डॉक्टर ना होते हुए भी कितनी ही बीमारियां गिना देता है!" इस बार शिवानी कुछ मुस्कुराते हुए बोली।
शिवानी अपनी उत्सुकता को रोक ना पाई और उससे बोली "तुम यहां कैसे क्या अपने लिए!!!!"
"नहीं नहीं दीदी मैं तो ठीक हूं!"
"फिर!"
"अपनी बड़ी बहन को लेकर आती हूं यहां! मैं हर 15 दिन बाद!"
"हर 15 दिन बाद! क्यों! ऐसी क्या बीमारी है उन्हें!"
"कैंसर है दीदी उन्हें! वह भी लास्ट स्टेज का!" कहते हुए उस महिला की आंखें भर आईं।
"ओहो! संभालो तुम अपने आपको!" शिवानी ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।
" ऐसे हिम्मत मत हारो। भगवान सब सही करेंगे! "

"भगवान पर तो मुझे कभी विश्वास नहीं रहा दीदी। इतनी अच्छी मेरी बड़ी बहन। जिसने कभी भूले से भी किसी का दिल ना दुखाया हो। उसे किस जन्म की सजा दे रहा है वह। सारी जिंदगी हमारे ऊपर खर्च कर दी उसने। सुख का 1 दिन ना देखा! नहीं मानती मैं ऐसे भगवान को!
ऐसी बीमारी दे दी। दर्द से तड़पती रहती है हर वक्त!" वह अपने आंसू पोंछते हुए बोले।
तुम्हें क्या पता, उसने दूसरों के साथ कितना बुरा किया है! उसके दिए घाव किसी कैंसर से कम नहीं। हम भी तो उसके दिए जख्मों की टीस दिन रात सह रहे हैं। भगवान ने सही उसे उसके पापों की सजा दी है।' किरण के बारे में जानकर शिवानी मन ही मन बुदबुदाई। फिर किसी तरह से अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए बोली
"धैर्य रखो। सब सही हो जाएगा। वैसे कहां रहते हो तुम।"
"यही पास में जो दुर्गा विहार कॉलोनी है ना दीदी ,वहीं रहते हैं हम! "
सामने से दिनेश को आते हुए देखकर शिवानी उठते हुए बोली "मैं तुम्हारी बहन के लिए भगवान से प्रार्थना करूंगी। तुम भी हिम्मत रखो। "
क्रमशः
सरोज ✍️