अक्सर औरत को जीवन में मजबूर हो कर हालात से समझौता करना पड़ता है , कभी ख़ुशी से तो कभी मजबूरी से ….
कहानी - मैं कब गलत थी ?
वह एक दिवाली की रात थी . तरला अपने चाचा के घर आयी हुई थी . तरला की सगाई संजय से हो चुकी थी . दो महीने बाद संजय से उसकी शादी होने वाली थी . वहां उसके चाचा , चाची , और चचेरे भाई नवीन के अतिरिक्त उसकी चचेरी बहन मालती और जीजा नागेश भी थे . उसकी बहन मालती उससे मात्र तीन साल ही बड़ी थी , दोनों में खूब पटती थी , वह उसे अपनी सखी मानती थी . मालती की शादी हुए अभी तीन साल ही हुए थे और वह दो बच्चों की माँ बन चुकी थी . उसका पहला बच्चा अभी सात महीने का ही था तब वह दूसरे के प्रसव के लिए मैके आयी थी . तरला को मालती और उसके बच्चे से मिलने की बड़ी इच्छा थी . नागेश भी आया हुआ था . तरला अपने घर से लक्ष्मी पूजा के बाद चाचा प्रदीप के घर आ गयी . उसने रात में चाचा के यहाँ रुकने की अनुमति ले ली थी .
तरला के दादाजी का पटना के न्यू मार्किट में एक चश्मे की दुकान थी . उनका बिजनेस अच्छा चल रहा था . उनके दोनों बच्चे उन्हीं के साथ बिजनेस देखा करते थे .बाद में दादाजी ने जीवन काल में ही बँटवारा कर दिया था . उनके पटना शहर में दो मकान थे , दोनों अलग मोहल्ले में थे . दोनों बेटों को एक एक मकान लिख दिया
था . दुकान का बँटवारा होने लगा तो छोटे बेटे प्रदीप ने दुकान अपने बड़े भाई तरला के पिता सुदीप को देने की कही . चश्में के बिजनेस में अब उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी . इसके बदले में उन्होंने रकम नगद में ले ली और लेडीज कपड़ों और श्रृंगार सामग्री की अलग दुकान खोल ली . प्रदीप का बिजनेस अच्छा चल पड़ा था .
सुदीप के चश्मे की दूकान भी कुछ वर्ष तक ठीक ठाक चली . पर उनकी पत्नी के घुटनों में वर्षों से काफी तकलीफ थी , उनका चलना फिरना भी करीब बंद था . उनके दोनों घुटने बदलने पड़े थे . इसके कुछ ही दिन बाद हार्ट अटैक के बाद खुद सुदीप की बाई पास सर्जरी करनी पड़ी थी . इन सब के चलते उन पर कुछ कर्ज हो गया था . चश्मे का बिजनेस भी काफी मंदा चल रहा था . तरला का एक बड़ा भाई मोहित ही दुकान देखता था , उसकी शादी हो गयी थी और उसे भी एक बेटा था . मोहित भी इस दुकान में दिलचस्पी नहीं ले रहा था .
सुदीप ने चश्मे की दुकान बेच दी . उससे जो राशि मिली उसका ज्यादतर भाग कर्ज चुकाने में खर्च हो गया . सुदीप की बीमारी और घर के अन्य खर्च , मोहित और उसके परिवार का खर्च चलाना नामुमकिन हो गया था . ऐसे मौके पर छोटे भाई प्रदीप ने बड़े भाई को काफी रकम उधार देते हुए कहा था “ आप अपनी सुविधा से किश्तों में बिना किसी सूद के लौटा सकते हैं . “
मोहित बेटे से घर गिरवी रखवा कर सुदीप ने उसे बैंक से लोन लेने को कहा और कुछ पैसे प्रदीप भाई से उधार लिए . सब मिला कर नया बिजनेस शुरू किया . इस बिजनेस में मोहित को भी दिलचस्पी थी और बिजनेस ठीक चलने लगा. बैंक की किश्त चुकाने और घर के खर्च के बाद भी थोड़ी बचत हो रही थी .
उस रात दिवाली के अवसर पर तरला चाचा के घर सब के साथ मिल कर पटाखे छोड़ने और मालती बहन से गपशप में व्यस्त थी . बाहर पटाकों का शोरगुल था .सारा आकाश आतिशबाजी की रंग बिरंगी रोशनी से रह रह कर जगमगा उठता था . कहीं रॉकेट छोड़े जा रहे थे तो कहीं बम फोड़े जा रहे थे . नीचे धरती दिया बत्ती , बिजली के रंगीन बल्बों से शोभायमान थी .
प्रदीप चाचा , उनका बेटा नवीन और उसके जीजा नागेश बैठ कर फ्लश खेल रहे थे और साथ में शराब का दौर भी चल रहा था . उनका कहना था कि दिवाली के मौके पर इतना तो बनता ही है . रात के लगभग दस बज रहे थे . प्रदीप उठ कर अपने बेड रूम में चले गए , उन्हें दवा खा कर जल्दी सोने की आदत थी . इधर ताश तो बंद हो गया था , नवीन और नागेश दोनों पेग के बाद पेग शराब पिए जा रहे थे . मध्यरात्रि हो चली थी . जीजा साला दोनों लड़खड़ाने लगे थे . अब दोनों ने कहा “ बस बहुत हुआ , चलो भाई अब सोया जाए . “
नवीन अपने बेड रूम में जा कर बिस्तर पर औंधे मुंह जा गिरा . इधर तरला अपनी मालती दीदी के रूम से सटे रूम में अलग बेड पर सोयी थी . मालती अपने दोनों बच्चों के साथ एक बड़े पलंग पर सोयी थी . नागेश नशे में चूर लड़खड़ाते क़दमों से तरला के बेड रूम में चला गया . लाइट ऑफ था , वह तरला के बेड पर जा पड़ा . फिर उसे अपनी और खींच कर बाँहों में जकड लिया . तरला जितनी दुबली पतली , उसके उलटे नागेश भारी भरकम तगड़े शरीर वाला व्यक्ति था .
तरला बोली “ मैं हूँ जीजू , आपके मुंह से शराब की बू आ रही है . दीदी बगल वाले कमरे में है . “
पर जीजा की पकड़ और मजबूत होती गयी . तरला बोलती रही “ जीजू , आप होश में नहीं हैं , यह ठीक नहीं
है . “
पर जीजू को होश कहाँ था , उसने अपनी वासना पूरी होने के बाद ही तरला को अपनी बलिष्ठ भुजाओं के पाश से आजाद होने का मौका दिया . तरला बिलकुल किंकर्तव्यविमूढ़ थी . उसने अपने को सहज किया फिर किसी तरह मालती के बेड पर गयी . उसने मालती को हिला कर उठाना चाहा तो वह बेखबर सो रही थी . बाहर अभी भी रह रह कर पटाखे छूट रहे थे . तरला के दिल ओ दिमाग में अलग हलचल थी . “ सोने दो , सुबह में बातें करना . “ बोल कर मालती करवट बदल कर सो गयी .
तरला रात भर सो नहीं पायी . रह रह कर सुबक रही थी . मालती सुबह उठी तो उसने पूछा “ तुम्हारी आँखें क्यों लाल हैं ? रात ठीक से सोई नहीं क्या ? मुझे तो बच्चे दिन भर इतना थका देते हैं कि सोयी तो फिर होश नहीं रहा . वो तो आज दोनों में से किसी बच्चे ने रात में तंग नहीं किया था इसलिए बहुत दिनों पर रात में चैन से सो पायी . “
नागेश भी वहीँ था , वह बोला “ देर रात तक पटाखों की शोर से इसकी नींद ख़राब हो गयी थी . मैंने इसे तुम्हारे पास भेज दिया और खुद इसके रूम में सोने चला गया . अभी भी खुमारी के चलते मेरा सर भारी है . “
मालती बाथ रूम गयी . तब नागेश तरला के पास आया . उसे देखते ही तरला की आँखों से आंसूं गिरने
लगे . वह बोला “ तुम बुरा न मानो , मैंने गलत किया है . मुझे होश नहीं था . इस हादसे को भूल जाओ . किसी से कुछ चर्चा करने की जरुरत नहीं है . “
तरला मन ही मन सोच रही थी कि लगता है नागेश के लिए यह कोई मामूली बात है . कितनी आसानी से उसने कह दिया भूल जाओ . पर मैं भूलने वाली नहीं हूँ . आपको माफ़ करने वाली नहीं हूँ . वह चुपचाप अपने घर लौट आयी .
कुछ देर बाद संजय उससे मिलने आया तो वह उसके सामने अचानक फूट फूट कर रोने लगी . संजय को कुछ समझ नहीं आ रहा था . किसी तरह उसे शांत कर कारण पूछा तो वह बुरी तरह टूट गयी . तरला ने संजय को सारी बात विस्तार से बतायी .
संजय अत्यंत क्रोधित हो कर बोला “ मैं उस कमीने को छोड़ने वाला नहीं हूँ . उसे अभी पुलिस के हवाले करता
हूँ . “
“ मैंने अभी मम्मी को नहीं बताया है . मैंने सोचा कि पहले तुमसे बात कर लूँ . “
तरला ने अपनी माँ को भी दिवाली की रात की घटना बतायी . माँ ने पति सुदीप से बात की . फिर माँ ने तरला से कहा “ बेटे , जो हुआ वह बहुत बुरा हुआ . पर बात आगे बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है . टी वी एवं अखबारों में बढ़ा चढ़ा कर ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर इसे उछालेंगे . सबकी बदनामी होगी अलग से . इसे एक बुरा सपना समझ कर भूल जा. “
“ और वह नीच नागेश आराम से रहे . उसे सजा क्यों नहीं मिले ? संजय उसे नहीं छोड़ेगा . “
“ बेटे , तुम समझने की कोशिश करो . केस मुकदमा में सालों लग जायेंगे . कोर्ट में छीछालेदर होगी सभी की , ख़ास कर तुम्हारी . इसके अलावा तुम्हारे चाचा के बहुत एहसान हैं हम पर . अभी भी हम उनके कर्जदार हैं . कहीं ऐसा न हो वे हमें तंग करें . “
संजय के जाने के बाद तरला भी सोच में पड़ गयी . उसने संजय से फोन कर कहा “ मेरे घर वाले एफ . आई . आर . करने को मना कर रहे हैं . मैं क्या करूँ , मुझे समझ में नहीं आ रहा है . “
“ तुम्हें शादी मुझसे करनी है या नहीं , साफ़ साफ़ बोलो ? “
“ यह क्या बकवास है ? “
“ अगर फिर तुम्हें जीवन मेरे साथ बिताना है तो मैं अपने जीवनसाथी की अस्मत लूटने वाले को कतई माफ़ नहीं कर सकता हूँ , सारी दुनिया चाहे जो भी समझे . मैं थाने में फोन कर चुका हूँ . तुम्हें लेकर थाने जाना है . तुमको अपना स्टेटमेंट देना है , तुम तैयार रहो , मैं बस पहुँचने ही वाला हूँ . “
तरला और संजय दोनों थोड़ी देर में पुलिस स्टेशन में थे . तरला ने अपना बयान दर्ज कराया .
थाना इन चार्ज ने कहा “ मैडम का मेडिकल टेस्ट करना होगा . आज तो छुट्टी का दिन है , थोड़ा टाइम लगेगा . कुछ देर में मैं सिविल सर्जन से बात कर इंतजाम करता हूँ . आप वारदात के समय के कपड़े जमा करा दें . “
“ उन्हें तो मैं धो चुकी हूँ . “
“ कोई बात नहीं है , कपड़े रहने से क्राइम साबित करना बहुत आसान होता . मैंने आपके अपराधी को गिरफ्तार करने के लिए दारोगा को प्रदीप के घर भेज दिया है . “
इधर दारोगा नागेश को गिरफ्तार करने उस के घर पहुँच चुका था . पूरे घर में हड़कंप मचा था . प्रदीप अपने बड़े भाई सुदीप को फोन पर डाँट रहा था “ देखा आपकी बेटी ने क्या गुल खिलाया है ? मेरी बेटी मालती अलग रो रो कर कह रही है कि अब वह अपने पति से तलाक ले लेगी उसके साथ नहीं रह सकती है . “
“ मुझे जब बात पता चली तो हमने तरला को बहुत समझाया था और मना भी किया था . पर उसका भावी पति संजय नहीं माना . “ सुदीप बोले
“ वो सब मैं नहीं जानता . मैं तुम्हारा घर , बिजनेस सब कुर्की करा दूंगा . यहाँ तक कि किसी धर्मशाले वाले भी तुमलोगों को शरण नहीं देंगे . अपनी खैरियत चाहते हो तो बेटी को समझाओ और केस वापस लेने को कहो , वरना भुगतने के लिए तैयार रहना . “
दारोगा ने नागेश को अरेस्ट कर थाने के हवालात में बंद कर दिया . थोड़ी देर में सुदीप , प्रदीप और परिवार के अन्य लोग भी थाने पहुँच गए . सभी मिलकर एक साथ तरला को बुरा भला कह रहे थे .
“ मैं कहाँ गलत थी ? मेरी इज्जत लुट गयी और आप सभी अपने स्वार्थ के चलते मुझे मुंह बंद करने को बोल रहे हैं . “
चाचा ने उसे डांटते हुए कहा “ अगर तुम्हारे साथ कुछ गलत हुआ भी है तब क्या केस करने से तुम्हारी इज्जत तुम्हें वापस मिल जाएगी ? बल्कि तुम्हारे माँ , बाप , भाई और भाभी सभी फुटपाथ पर आ जायेंगे , सो तुम समझ लो . मांगने पर भीख भी नहीं मिलेगी तुमलोगों को . “
दोनों परिवार के बड़े लोगों ने पुलिस से बात की तो थानेदार बोला “ अभी मामला थाने में ही है . केस डायरी कर कोर्ट में चला जायेगा तो हमारे हाथ से निकल जायेगा . आपलोग कुछ ले दे कर मामला रफा दफा कर दें और हम लोगों का भी ख्याल रखना होगा . बात समझ रहे हैं न ? अब सब कुछ आप की अपनी बेटी पर है . अगर वह FIR विथड्रा कर ले तभी मैं कुछ कर सकता हूँ . वरना कल आरोपी को कोर्ट में पेश कर दूंगा . “
तरला के पिता , चाचा और भाई सभी संजय और तरला को समझाने लगे . मालती भी आ गयी . वह बहन तरला से बोली “ मैं तुम पर कोई दबाव नहीं दूंगी , तुम्हारा मन जो कहे करना . मेरा मन तो इनके प्रति घृणा से भर गया है . अगर मेरे छोटे बच्चे न होते तो निश्चय इनसे तलाक ले लेती . अगर तुम इन्हें माफ़ भी कर देती हो तो मुझे अपने बच्चों की खातिर मजबूरन भले इनके साथ रहना पड़े , फिर भी एक छत के नीचे रह कर भी इनसे आज के बाद मेरा कोई रिश्ता नहीं रहेगा . “
संजय और तरला दोनों सकते में थे .उधर थानेदार भी गरज कर बोला “ आपलोग जल्द ही कोई फैसला ले कर यहाँ से भीड़ हटाएँ . बड़े साहब कभी भी औचक इंस्पेक्शन में आ सकते हैं . “
तरला के माता पिता रोते हुए बोले “ बेटी जल्दी कर . तेरे चाचा हमें बर्बाद कर देंगे . तू तो अपने ससुराल जा कर चैन से रह लेगी . “
ठीक उसी समय तरला के पिता सुदीप के सीने में जोर का दर्द हुआ , वे पसीना से लतपथ हो रहे थे और छाती पकड़ कर जमीन पर लगभग बेहोश गिर पड़े . मोहित और प्रदीप उन्हें अस्पताल ले आये . ICU में एडमिट किया गया . हार्ट अटैक था . डॉक्टर बोला “ थोड़ी और देर होती तो इनका बचना असंभव था . खैर अब ये खतरे से बाहर हैं , पर थोड़ा भी तनाव इनकी जान ले सकता है . आगे आपलोगों को काफी सावधान रहना होगा “
संजय और तरला दोनों भी वहीँ थे . माँ ने हाथ जोड़ते हुए कहा “ बेटी , मुझ पर दया कर . मेरा सुहाग मेरे जीते जी बना रहे , बस और क्या कहूं . तुमसे मेरी विनती है . आगे तुम्हारी मर्जी . “
तरला संजय का मुँह देखने लगी . वह बोला “ मैं तुम्हारी और तुम्हारे परिवार की परेशानी समझ सकता हूँ . मेरी ओर से तुम अपना फैसला लेने के लिए आज़ाद हो , तुम्हारे फैसले में मैं तुम्हारा साथ दूंगा . “ फिर दोनों ने आपस में कुछ बात की .
इसके बाद संजय ने प्रदीप चाचा और उनके बेटे नवीन से अलग से बात की . चाचा केस वापस लेने के बदले में भाई के सारे कर्ज माफ़ करने को तैयार हो गए .
तरला ने अपना केस वापस ले लिया . उसने संजय से पूछा “ मैं कब गलत थी , केस करने में या विथड्रा करने में ? . “
“ तुम तब भी गलत नहीं थी और अब भी गलत नहीं हो . पर तुम्हारे पीहर वाले लोग जरूर गलत थे , तुम्हारे माता पिता , चाचा भाई सभी गलत थे सिवा तुम्हारी मालती दीदी के . ज़िन्दगी में अक्सर समझौते करने पड़ते हैं , कभी ख़ुशी से कभी मजबूरी में . “
सभी लोगों ने तरला और संजय को ढ़ेर सारी दुआएं दीं . कुछ आँखें नम थीं तो कुछ में ख़ुशी की लहर थी .
समाप्त
नोट - यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है .
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