The Author Neerja Pandey Follow Current Read पिशाच..! - 4 - कुएं की आत्मा️..।। By Neerja Pandey Hindi Horror Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books ભાગવત રહસ્ય - 118 ભાગવત રહસ્ય-૧૧૮ શિવજી સમાધિમાંથી જાગ્યા-પૂછે છે-દેવી,આજે બ... ગામડા નો શિયાળો કેમ છો મિત્રો મજા માં ને , હું લય ને આવી છું નવી વાર્તા કે ગ... પ્રેમતૃષ્ણા - ભાગ 9 અહી અરવિંદ ભાઈ અને પ્રિન્સિપાલ સર પોતાની વાતો કરી રહ્યા .અવન... શંકા ના વમળો ની વચ્ચે - 6 ઉત્તરાયણ પતાવીને પાછી પોતાના ઘરે આવેલી સોનાલી હળવી ફ... નિતુ - પ્રકરણ 52 નિતુ : ૫૨ (ધ ગેમ ઇજ ઓન)નિતુ અને કરુણા બંને મળેલા છે કે નહિ એ... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Novel by Neerja Pandey in Hindi Horror Stories Total Episodes : 12 Share पिशाच..! - 4 - कुएं की आत्मा️..।। (21) 5.3k 13.9k "शापित किताब! इसका क्या मतलब हो सकता है।" भैरवी ने खुद से कहा। लेकिन बहुत देर सोचने के बाद भी भैरवी को नहीं पता चल सका की इस डायरी में क्या है। उसने सोचा की कोई उसके साथ मजाक करने के लिए उसे डरा रहा है। यही सोचते हुए वो घर के काम करने में लग गई। वो दिन बिना किसी घटना के बीता रात में भैरवी सोने गई तो उसे नींद नहीं आई। काफी देर तक जागने के बाद भी भैरवी को नींद नहीं आई तो वो उस किताब को लेकर बैठ गई। पता नही भैरवी को क्या सूझा लेकिन उसने उस किताब को अपनी डायरी बनाने का फैसला कर लिया। पेन लेकर उसने उस डायरी पर अपना नाम लिखा। जैसे ही उसने लिखा "मेरा नाम भैरवी है।" उस डायरी में लाल स्याही से अपने आप ही कुछ शब्द लिखने लगे। आश्चर्य और डर के कारण भैरवी के हाथ से डायरी छूट गई। उसने डायरी उठाते हुए पढ़ा की उस डायरी पर क्या लिखा है। उसपर लिखा था "भैरवी अगर तुम चाहती हो की घोष अंकल की आत्मा को शांति मिले तो तुम्हें मेरी बात माननी होगी। तभी उनकी आत्मा को शांति मिलेगी।" भैरवी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था पर उसने आगे लिखा "पर तुम हो कौन और तुम घोष अंकल को कैसे जानते हो?"किताब ने आगे लिखा "यह सब बात बाद में जानना अगर तुम उनकी आत्मा को शांति प्रदान करना चाहती हो तो जैसा मैं कहता हूं वैसा तुम करो और अगर वैसा नही किया तो उनकी आत्मा तुम्हारा पीछा कभी नहीं छोड़ेगी।"भैरवी ने आगे लिखा "ठीक है मैं तुम्हारी सारी बातें मानूंगी पर प्लीज मुझे उनकी आत्मा से बचा लो।" डायरी ने लिखा "ठीक है अब उनकी आत्मा तुम्हें नहीं सताएगी।" भैरवी ने लिखा "मुझे करना क्या होगा?"किताब ने लिखा "घोष की मदद करने से पहले तुम्हें उसकी कहानी जाननी होगी और तुम जैसे जैसे काम करती जाएगी मैं तुम्हें उनके बारे में बातें बताऊंगा मैं तुम्हें उसके पाप बताऊंगा और तुम्हें उनका प्रायश्चित करना होगा। तो यह कहानी है जब घोष ग्यारह साल का था। तुम जिस घोष को जानती हो यह घोष उससे बिल्कुल अलग था। तुम्हारा घोष जहां मिलनसार, अच्छे मिजाज का आदमी था वहीं ये घोष एकदम शांत, शर्मीला और गुस्सैल किस्म का था। वो किसी से बात नहीं करता था और किसी के मामले में दखल नहीं देता था। लेकिन अगर कोई उसके मामले में दखल देता था तो वो उससे अपना बदला जरूर लेता था। एक बार घोष एक कुएं के किनारे बैठा हुआ अपने ख्यालों में मस्त था। तभी वहीं से उसका सहपाठी विनोद गुजरा। उन दोनों की बिल्कुल नहीं बनती थी।विनोद ने उसे बैठा हुआ देख उसका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। घोष ने भी जवाब दे दिया। फिर ये बातों की लड़ाई जल्दी ही हाथापाई में बदल गई। गलती में घोष ने विनोद को कुएं में ढकेल दिया। उसके बाद वो डर के मारे वहां से भाग गया। अगर वो वहां से भागने की बजाय किसी बड़े को बुला कर उसकी मदद करता तो शायद विनोद बच सकता था। लेकिन उसने इस बात के बारे में किसी को नही बताया। तो तुम्हारा पहला काम है तुम उस कुएं में जाकर उस बच्चे की आत्मा की शांति के लिए पूजा करवाओ जिससे उसकी उस कुएं में भटक रही आत्मा को शांति मिले।भैरवी ने लिखा "ये कुआं है कहां?"किताब ने लिखा "ज्यादा दूर नहीं है बस यहां से तीन घंटे की दूरी पर एक गांव है लक्ष्मणगढ़ नाम का। वहीं पर घोष का बचपन बीता है। वहां पर जाके किसी से भी पूछना की कुएं की आत्मा कहां कहां पर भटकती है तो वो जिस कुएं पर ले जाएं वहां पर जाकर उसकी शांति की पूजा करवा देना और जब वहां की आत्मा उग्र हो जाए तो उसे कह देना की घोष को अपनी गलती पर बहुत पछतावा होता था। उसके बाद वो शांत हो जाएगा और पूजा संपन्न हो जाएगी।"भैरवी ने किताब को एक जगह रखकर खुद से कहा "पता नही किस मुसीबत में पड़ गई? अब पता नहीं ये कुएं की आत्मा कैसी होगी?" यही सब सोचते सोचते पता नही कब उसकी नींद लग गई। वो जब सुबह उठी तो उसे कल रात की घटना एक सपने जैसी लगने लगी लेकिन जब उसकी नजर उस किताब पर पड़ी तो उसे हकीकत का अहसास हुआ। वो तुरंत उठकर अपनी तैयारी करने में जुट गई। उसके बाद उसने अलवर से लक्ष्मणगढ़ के लिए एक कार बुक की और अपने घरेलू पंडित को लेकर वहां के लिए रवाना हो गई। निकलते समय सुनीता ने पूछा की कहां जा रही हो तो भैरवी ने कहा की ऐसे ही मन बहलाने के लिए कहीं घूमने जा रही हूं। उसने सोचा की अभी सुनीता को परेशान करना ठीक नहीं होगा क्योंकि उसके बेटे की तबियत खराब है। लक्ष्मणगढ़ पहुंच कर उसने लोगों से पूछ कर उस कुएं तक पहुंच गई जहां पर विनोद की आत्मा भटक रही थी। सब लोगों ने उसे उस कुएं से दूर रहने की चेतावनी दी। कुएं पर पहुंचते ही पंडित जी ने पूजा की तैयारी शुरू कर दी। पूजा आरंभ होते ही कुएं से अजीब अजीब सी आवाजें आनी लगीं लेकिन पंडित जी पूजा करते गए। कुछ समय बाद कुएं से काली आकृतियां निकलने लगीं। यह सब देखकर भैरवी बुरी तरह दर गई थी। विनोद की आत्मा चिल्ला रही थी "मैं तुम लोगों को नही छोडूंगा। मेरी आत्मा को तब तक शांति नहीं मिलेगी जब तक मैं उस अभिजीत घोष से अपनी मौत का बदला नहीं ले लूंगा मुझे शांति नहीं मिलेगी।" भैरवी ने कहा "उन्हें तुम्हारी मौत का बहुत पछतावा था।"विनोद ने कहा "मैं ये बात तब तक नहीं मानूंगा जब तक वो खुद नही कह देता।"अब तक भैरवी के पर्स में जहां डायरी रखी थी वहां कम्पन हो रहा था। भैरवी ने कहा "लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है। वो अब मर चुके हैं।"विनोद की आवाज जो अब तक बहुत ही कर्कश थी थोड़ी मंद सी हो गई "क्या कहा? अभिजीत मार चुका है? ये कब हुआ?"अब तक वो डायरी जिसमें बहुत तेज कम्पन हो रहा था, एकदम से शांत हो गई और उसके पर्स में से बहुत तेज रोशनी निकलने लगी।भैरवी ने डर के मारे अपना पर्स फेंक दिया जिसमें से शापित किताब गिर गई और भैरवी ने देखा की रोशनी उस किताब से आ रही थी। उस किताब की रोशनी एक आकार लेने लगी और थोड़ी देर बाद वो रोशनी घोष अंकल के आकार में आ गई। उनके चेहरे पर अजीब सा पछतावा था।अब भैरवी के समझ में सारी बात आई। घोष अंकल ने उसके बिस्तर के नीचे उल्टा पैर नही ये किताब रखी थी और अभिजीत जरूर घोष अंकल का ही नाम होगा। उसे उनका पूरा नाम नही पता था। वो बस उन्हें घोष अंकल ही बुलाती थी।घोष अंकल को देखकर काली आकृति भी एक बूढ़े आदमी का आकार लेने लगी। घोष ने विनोद को देखकर कहा "विनोद अब तो मैं यहां आ गया हूं अब तो तुम मुझे माफ कर दोगे।"विनोद ने कहा "तुम मुझे बचा सकते थे। मैं इस इंतजार में घंटों बैठा रहा की तुम किसी को लेकर आओगे लेकिन तुम नहीं आए। मैंने माना की तुमने मुझे गलती से गिरा दिया था लेकिन तुमने मुझे बचाने की कोशिश काहे नहीं की?"घोष ने कहा "मुझे डर था कि तुम सबसे मेरी शिकायत कर दोगे और मुझे बहुत मार पड़ेगी और मुझे ये भी लगा की इतनी ऊंचाई से गिरकर तुम्हारी मृत्यु हो गई होगी। प्लीज मुझे माफ कर दो।" घोष अंकल की आवाज में पछतावा साफ सुना जा सकता था।शायद यही पछतावा विनोद ने भी सुन लिया क्योंकि उसने मुस्कुराते हुए कहा "चलो अब किया भी क्या जा सकता है? मैंने तुम्हें माफ किया।"अब तक उनकी बातों के बीच पंडित जी शांति से अपने मंत्र पढ़े जा रहे थे। उन्होंने खूब तेज आवाज में "स्वाहा" कह कर हवन में आहुति दी और घोष और विनोद दोनो खूब तेज रोशनी में समा कर हमेशा के लिए गायब हो गए। ‹ Previous Chapterपिशाच..! - 3 - शापित किताब › Next Chapter पिशाच..! - 5 - जोंबी का रहस्य.. Download Our App