Kaisa ye ishq hai - 70 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (70)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (70)

शान के अंदर जाने और दरवाजा बंद करने के बाद चित्रा मुस्कुराते हुए बोली,मुझे स्टोर रूम में कोई समस्या नही प्रशांत जी मह्त्वपूर्ण ये है कि आप किसी अपने की निगरानी में है।खुशी में चित्रा शान की बेरुखी को नोटिस ही नही कर पाई है।वो मुस्कुराते हुए वहां से स्टोर रूम की ओर चली जाती है एवं झाड़ झंखाड़ हटा कर वो स्थल स्वच्छ कर अपने रहने योग्य बना लेती है।

वहीं कमरे में मौजूद शान खुद से बड़बड़ाते हुए कहते है, ताईजी आपकी इंटेंशन मैं समझ रहा हूँ,आप जो कर रही है मेरे भले के लिए ही कर रही है।आपको भी मेरे विश्वास पर यकीन नही है लेकिन एक दिन ऐसा अवश्य आयेगा जिससे आपको मेरे अटल विश्वास पर यकीन होगा।मुझे पता है मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ मेरी पगली अवश्य आयेगी।आपको जो सही लगा ताईजी वो अपने किया है।मुझे आपसे कोई शिकायत नही है।शिकायते है तो उससे है जिसने मुझसे वादा किया और उसे तोड़ कर चली गयी।उसे कोई तकलीफ थी तो मुझसे बात करती, मुझसे बोल कर तो देखती एक बार लेकिन ...खैर अब मेरे कुछ बोलने का कोई औचित्य नही।

कुछ देर बाद शान खाने के लिए बाहर निकलते है और अपने कुक को खाना निकालने के लिए कहते है।शान की आवाज सुन चित्रा और त्रिशा दोनो वहीं चली आती है।ये देख शान ने कोई प्रतिक्रिया नही दी बस त्रिशा को अपने पास बुलाकर उससे बाते करए हुए खाना खिलाने लगते हैं।शान अब त्रिशा के साथ सहज होने लगते है।अब वो उसके साथ खेलते उससे बातें करते और उसके साथ घूमने भी जाते।वहीं टिया ने चित्रा और शान के रिलेशनशिप को समझने और जानने के लिए एक व्यक्ति को हायर कर दिया है जो अक्सर कोई न कोई बहाना लेकर शान या चित्रा के आसपास रह दोनो के बारे में इंफॉर्मेशन कलेल्ट करने लगता हैं।

मसूरी में दिन गुजरने के साथ साथ अर्पिता अपना कार्य पूरी लगन और ईमानदारी से करने लगती है।युव्वि पूर्वी और अर्पिता तीनो मिलकर एक दूसरे का पूरा ध्यान रखते हैं।शान चित्रा से नाम मात्र की ही बाते करते हैं।वहीं त्रिशा के साथ वो हमेशा की तरफ सहज होते हैं।

टिया के द्वारा अपॉइंट किया हुआ जासूस टिया को बताता है,आप ने जिनके लिए मुझे हायर किया है वो जैसा बिहेव सबके सामने करते है।वैसा ही घर के अंदर भी रखते हैं।उसमे कोई बदलाव नही है।

टिया बोली घर के अंदर की बातें तुम्हे कैसे पता?क्या तुम घर में गये थे खुद देखा तुमने?

जी नही!किसी के घर पर यूँ ही बिन बात जाना ये मेरी ड्यूटी नही है।मेरी ड्यूटी है जिसका काम हाथ लिया है उसकी निजता भंग किये बिन उसके बारे में सारी आवश्यक जानकारी पता लगाना।वही मैंने किया है।मैंने अपना कार्य पूरी ईमानदारी से ही किया है आपको अगर शक है तो मेरी बची हुई फीस दीजिये एवं किसी और को अपॉइंट कर लीजिये।

टिया बोली :- ओके ठीक है फिर! आप की छुट्टी कर दी जाती है आप अब अपने दूसरे कार्य कर सकते हैं।बाकी आपके अग्रीमेंट के क्लॉज के अकॉर्डिंग ये बात जानबूझ कर कहीं नही पहुंचनी चाहिए।कि टिया कुमार ने आपको यहां किसी कार्य से नियुक्त किया।

जी बिल्कुल।उस व्यक्ति ने कहा और वहां से चला जाता है।उसके जाने के बाद टिया मुस्कुराई और मन ही मन सोची ये तो बहुत अच्छी खबर है मेरे लिए।अब मुझे इन नये मेहमान से कोई खतरा नही है।अब तो मैं मिस्टर अजय के सामने अपने प्यार का इजहार अवश्य कर दूंगी और फिर वो भी कहेंगे फिर हमारी एक नयी दुनिया बनेगी जिसमे मैं और अजय दोनो एक साथ होंगे।हाय ...कितना मजा आयेगा न लाइफ में सब कुछ कितना सुन्दर होगा।इतना अट्रैक्टिव और चार्मिंग पर्सनैलिटी मेरा लाइफ पार्टनर होगा तो मेरी दोस्त भी जल भुन जायेगी।कहते कहते टिया के मन में गुदगुदी होने लगती है।
सो मिस टिया नेक कार्य में देरी कैसी।चलो उठो और आगे बढ़ो वैसे भी अब से मिस्टर अजय तेरे हैं।और अपने को अपना बनाने में कैसी देरी।टिया अपनी अल्हड़ता में शान के प्रति आकर्षण को प्रेम समझ लेती है।वो अपने मार्ग यानी पढ़ाई से भटक जाती है और अजय के बारे में सोचने लगती है।अजय को सामने देखते ही वो अब मुंह बनाने के स्थान पर मुस्कुराने लगती है।अजय को लेकर उसका नजरिया पूर्ण तरीके से बदल जाता है।

शान हमेशा की तरह सबसे बीच होकर भी सबसे अलग रहते है वो टिया पर उतना ही समय देते जितना संगीत जगत में उसके विकास के लिए आवश्यक होता है।टिया शान का ध्यान खुद पर आकर्षित करने के लिए हर सम्भव कोशिश करती है।इसी कोशिश में वो एक दिन शान से बोली -

मिस्टर अजय!

टिया के आवाज देने पर शान ने उसकी ओर देखा।
टिया बोली :- आपको आये इतने दिन हो गये है अकैडमी में,लेकिन अभी तक आपने एक वार भी कोई टूर नही कराया।

शान ने उसे देखा एवं क्लासरूम में होने के कारण नरमी बरतते हुए उससे बोले, इस बारे में मिस्टर अभिनव ने मुझसे कुछ नही कहा।आप उनसे बात कीजिये।कहते हुए वो बाकी छात्रों पर अपना ध्यान देने लगते हैं।

टिया को थोड़ा बुरा लगा।वो मन ही मन सोची यहां मैं कितने प्यार से मुस्कुराते हुए बात कर रही हूँ और ये मिस्टर अकड़ू अपनी अकड़ ही नही छोड़ रहे हैं।लेकिन मैं हार नही मानूँगी आपको तो अपना बना कर ही रहूंगी,पाना तो मुझे आपको ही है मिस्टर अकड़ू इसके लिए चाहे कितना भी समय लगे और मुझे कुछ भी करना पड़े।मन सी मन सोचते हुए टिया मुस्कुराई।

मसूरी में अर्पिता पूर्वी की बच्ची को सम्हालने के साथ साथ स्वयम का भी ध्यान रखती है।गर्भावस्था के छ वे महीने को वो जी रही है।इस अनोखे एवं सुखद एहसास के हर क्षण को वो मुस्कुराते हुए महसूस कर रही है।जीवन में कठिनाइया आती है लेकिन अपने प्रेम और समर्पण की शक्ति से वो उन्हें पार करती जाती है।इन दिनों वो अपनी हर छोटी से छोटी बात का ध्यान रखती और शान से जुड़ी यादें वो शाम को चांद देखते हुए दोहराना अपनी रूटीन में शामिल कर लेती है।

पत्नी से मां बनने तक के सफर में हो रहे अमूल्य एहसासों को वो एक डायरी में संजो कर रखने लगती है।जिसे वो शान की अर्पिता का एक नया सफर!नाम से लिखती है।

अपने हर कर्म में वो अपना अस्तित्व शान से ही जोड़ कर रखती अपनी बातें, अपनी यादें यहां तक कि अपनी पहचान बिना शान के उसे गंवारा ही नही।अलग रहते हुए भी अर्पिता की हर सांस में एक ही नाम शामिल है।जिसे वो कभी किसी को जताती नही है लेकिन डायरी और एकांत में एक ही नाम शख्सियत उसे याद रहती है शान।

शान! आपको पता है हमारे बेबी ने हमारे अंदर गतिविधियां करना शुरू कर दी है।अब हम हमारे अंदर एक नये जीवन की हलचल स्पष्ट महसूस कर पा रहे हैं।हमें ऐसा लग रहा है जैसे ईश्वर के दिये इस वरदान के जरिये हम ईश्वर की जीवन देने की प्रणाली को स्पष्ट समझ पा रहे है।हर क्षण एक सुखद अनुभूति।एक नया एहसास!इसके हमारे जीवन में आने से हममें एक नयी प्रीत जन्म लेने लगी है।हमारे जीवन में एक नये सिरे से प्रेम की दस्तक होने लगी है।हमे इसके प्रति इतना प्रेम का अनुभव हो रहा है जिसे शब्दो में बयां करने के लिए शब्द ही नही मिल पा रहे हैं।हम क्या कहे कैसे कहे शान ये क्या अनुभव है कैसा एहसास है बस एहसास ही है।एक सुखद सुन्दर कल्पना से परे...!इसका नाम इसकी पहचान हमने सोच ली है प्रीत!ये हमारे रिश्ते को मजबूत रखने वाली वो कड़ी है जिसका आधार प्रेम है प्रीत है।तो कैसे न हम इसका नाम प्रीत रखे।पसंद आया न आपको नाम..!अवश्य पसंद आया होगा।

अब ये न सोचना प्रीत नाम पुरुषत्व को दर्शा रहा है।हमे स्त्रीत्व दर्शाता हुआ कोई नाम सोचना चाहिए?तो इस बारे में हम अपने हृदय की बात स्पष्ट कर रहे है, शान हमारे हृदय से एक ही आवाज आती है हमे प्रीत नाम ही रखना है क्योंकि ये हमारे प्रेम का अंश एवं ठाकुर जी का आशीष है।उनके हम पर प्रेम का आशीष है।अब प्रेम तो हमारे परिवार में पहले से ही है प्रेम का ही अन्य नाम है प्रीत..!तो ये होंगे हमारे परिवार का नया सदस्य प्रीत मिश्रा।
आज के लिए बस इतना ही कहना है शान।बहुत देर हो गयी है बैठे बैठे।एक नन्ही सी राजकुमारी बुला रही है तो हम उससे मिलकर थोड़ा घूम कर आते है।कहते हुए अर्पिता मुस्कुराई अपनी डायरी बंद की ।उसने बन्द पड़ा ड्राअर खोला एवं डायरी उसमे रख कर बाहर चली आती है।एवं बाहर बालकनी में झूले में रो रही नन्ही सी राजकुमारी से बाते करते हुए उसे शांत कराने लगती है।कुछ ही क्षणों में वो शांत होकर सो जाती है जिसे देख वो वहीं उसके पास बैठ कर प्रीत से बाते करने लगती है।पूर्वी और युव्वि कार्य से वापस आ जाते है।पूर्वी अर्पिता को मुस्कुराकर बाते करते हुए देखती है तो युव्वि से कहती है

न जाने कैसा ये इश्क़ है युवराज जो एक दूसरे से जुदा होकर भी एक दूसरे को जोड़े हुए है।इक्कीसवी सदी में प्रेम के ऐसे रूप की मुझसे कल्पना भी नही की जा सकती।कोई किसी से इतनी मुहब्बत कैसे कर सकता है युवी।और अगर प्रेम है तो इतनी दूरी कैसे सह सकता है।मैंने अर्पिता मैम को कभी रोते हुए नही देखा इतनी कठिनाई आई है लेकिन आंखों से आंसू नही आये और होठों से मुस्कुराहट कभी गयी नही है।इन्हें देख कर लग रहा है कि इश्क़ साथ रहने का नाम नही है।शारीरिक आकर्षण से परे है ये इश्क़।इश्क़ वो नही है युवी जो मैं अब तक समझती हूँ युव्वि।इश्क़ क्या है ये मुझे मैम को देखकर समझ आ रहा है। पूर्वी ने युवराज से कहा।

जिसे देख युव्वि बोला!ये मुझे भी नही पता इश्क़ क्या है?हां इश्क़ के कई रूप मैंने देखे और अनुभव किये है।लेकिन प्रेम का ऐसा रूप मैं पहली बार अनुभव कर रहा हूँ।अपने प्रेम से अलग होकर भी इतनी शांति इतना प्रेम है इनके अंदर अगर कोई कुछ समय इनके साथ व्यतीत करे तो मुझे ऐसा लगता है वो खुद में बदलाव अनुभव करने लगेगा।जैसे इस समय हम कर रहे हैं।हम्म ये बात तो है पूर्वी ने कहा और दोनो अर्पिता को देख मुस्कुराने लगते हैं।पूर्वी कुछ सोचते हुए बोली युवी आपको नही लगता हमे इस प्रश्न का जवाब मैम से पूछना चाहिये कैसा ये इश्क़ है...?
युवी बोला हम्म वैसे जानने का मन तो मेरा भी है अब तुम्हारे मन में ख्याल आ ही गया है तो तुम पूछ ही लो जाकर।पूर्वी बोली अगर तुम्हे भी जानना है तो मैं ही अकेली क्यों तुम भी साथ चलो दोनो मिलकर पूछते हैं।पूर्वी ने कहा तो युवराज बोला फंस दिया तुमने मुझे।अब जब तुमने कहा है तो चलो चलकर पूछते हैं।दोनो अर्पिता के पास पहुंचे और एक दूसरे से पूछने का इशारा करने लगते हैं।अर्पिता ने दोनो को फुसफुसा कर इशारे करते हुए देखा तो बोली जो भी पूछना है पूछ सकते हो ..

अर्पिता के कहने पर दोनो ने छोटी सी स्माइल की और अर्पिता के पास बैठते हुए युवराज बोला अर्पिता जी हम ये जानना चाहते है कि कैसा ये इश्क़ है जो मीलो के फासले होने पर भी बढ़ता ही जाता है कभी कम नही होता।

अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली हमें उनकी हर अदा से इश्क़ है फिर चाहे वो उनका हौले से मुस्कुराना हो,या फिर उनका हमारे बिन कहे समझ जाना।हमें पसंद है नीला रंग क्यूंकि वो रंग शान को बेहद पसंद है। हमें पसंद है यूंही चांदनी रात में बैठ कर निहारते हुए चांद से बातें करना क्यूंकि ये हमें शान ने सिखाया है।पसंद है हमें आइना देख हौले से मुस्कुराना जो हमे हर बार उनके हमारे पास होने का एहसास दिलाता है,बेहद भाती है हमें ये हरी भरी वादियां जहां हमने कुछ अनमोल लम्हे साथ बिताए है क्या बताएं हम पूर्वी बस "ऐसा ही ये इश्क़ है"।

पूर्वी और युवी ने एक दूसरे की ओर मुस्कुराते हुए देखा और धीमे से बोले हम्म ऐसा ही ये इश्क़ है..!

शिमला में अपने कमरे में मौजूद शान हमेशा की तरह तैयार होकर अपनी क्लास के लिए निकलते हैं जहां टिया अकैडमी के दरवाजे पर शान का इंतजार कर रही होती है।शान को आता देख वो मन ही मन खुश होते हुए सोचती है आज तो मैं अपने मन की सारी बातें आपको बता दूंगी मिस्टर अजय।फिर आप जो सोचे वो सोचे।वैसे भी मैं आज के समय की लड़की हूँ यहां कौन पहले दिल की बाते जुबां पर लाये इस बात से क्या फर्क पड़ता है।इम्पोर्टेन्ट ये है कि दिल की बात कहने में देर नही करनी चाहिए।सोचते हुए टिया आगे बढ़ी और अजय को रोकते हुए बोली,मुझे आपसे कुछ बात करनी है।

शान चलते हुए ही बोले क्लास रूम में कहना।
टिया :- ये बाते क्लास की नही है पर्सनल है।

तो पर्सनल बात अपने पिता, या दोस्त से कहो।मुझसे नही।शान ने बेरुखी से कहा और आगे बढ़।

शान की बात सुन टिया ने अपनी आँखे बंद की और वहीं से तेज आवाज में बोली आई लव यू मिस्टर अजय!उसके ये शब्द मालिनी एवं पीछे से आते हुए मिस्टर अभिनव भी सुन लेते हैं।टिया की बात सुन शान के बढ़ते कदम रुक जाते है और वो बिन मुड़े वहीं से कहते हैं,अपने कीमती समय को मुझ पर वेस्ट करने से बेहतर है पढ़ाई पर लगाओ कुछ बन कर दिखाओ फिर इस बारे में सोचना।अभी बचपने में समय बर्बाद मत करो।

टिया बोली :- तो आप कहना चाहते हो कि अभी मुझमें समझ नही है।ये प्यार नही मेरा बचपना है।

शान 'बिल्कुल'!कहते हुए अपनी क्लास की ओर बढ़ जाते है।वहीं टिया उन्हें यूँ जाते हुए देख कहती है मैं आपको अवश्य साबित करूँगी कि ये बचपना नही है प्यार है।अब मैं आपके सामने कुछ बनकर ही लौटूंगी और तब आपको अपना बनाकर ही रहूंगी।कहते हुए वो वहीं से पीछे लौट आती है।अभिनव को पीछे देख वो उनसे बोली डैड मुझे इंडिया की सबसे अच्छी प्रोफेशनल संगीत अकैडमी में दाखिला लेना है आप मेरी मदद कीजिये।

उसकी बात सुन अभिनव मन ही मन सोचते हुए बोले, जिद में ही सही तुमने पढ़ने का निश्चय तो किया और टिया से बोले बिल्कुल टिया मैं आज ही तुम्हारा दाखिला करा देता हूँ तुम चलो मेरे साथ।
ओके डैड टिया ने कहा और अभिनव के साथ कुछ बनने के लिए वहां से चली जाती है।शोभा जी चित्रा के जरिये शान के बारे में पूछती रहती है।जहां चित्रा उन्हें आवश्यक जानकारीयां देती रहती है।

शिमला में शान त्रिशा की जिद पर चित्रा को साथ लेकर बर्फ की वादियो में घूमने गये है।जहां बर्फ को देख त्रिशा शान की गोद से उतर कर नीचे दौड़ती हुई कहती है चाचू !हमे पकड़ कर दिखाइये चाचू।जिसे देख शान की स्मृतियां ताजा हो आई और वो त्रिशा से बोले नही एंजेल हम कुछ और खेल खेलते है ये पकड़म पकड़ाई नही ठीक है।मुझे नही खेलना है।

त्रिशा बोली नही चाचू हमे यही खेलना है कहते हुए वहीं दौड़ने लगती है।

प्रशांत की मनःस्थिति समझ चित्रा त्रिशा से बोली त्रिशा गुड़िया!ये गेम तो हम घर पर भी खेलते हैं क्यों न आज एक नया गेम खेले!क्या कहती हो खेलोगी मेरे साथ..!

नही मम्मा!हमे यही खेलना है।त्रिशा ने जिद करते हुए कहा जिसे देख चित्रा उसे डांटते हुए बोली, ये क्या तरीका है त्रिशा,क्यों जिद कर रही है आप?अच्छे बच्चे जिद नही करते हैं।समझाया था न आपको कि चाचू ने जिद नही करनी है फिर भी...!

चित्रा को डाँटता देख शान त्रिशा के पास गये और उससे बोले!त्रिशा अभी आप छोटे हो आपको मम्मा की हर बात माननी चाहिए।लेकिन आप बात न मान कर जिद कर रहे हो।अगर मम्मा से जिद करोगे तो चाचू फिर आपको मम्मा की डांट से नही बचाएंगे।

ऐसा क्या चाचू!फिर तो बहुत डांट पड़ेगी लगभग छ वर्ष की त्रिशा ने सोचते हुए कहा जिसे देख शान उसके पास बैठते हुए बोले हम्म डांट तो पड़ेगी।तो बताओ क्या करना है डांट खानी है या मम्मा की बात माननी है।

मम्मा की बात माननी है चाचू!त्रिशा ने कहा।गुड तो फिर जाओ मम्मा के पास! चाचू अभी कुछ देर में आते है शान ने कहा और वहां से आगे बर्फ पर चले जाते हैं।एवं कुछ देर घूम फिर कर वहां से त्रिशा के पास वापस चले आते हैं।

चित्रा :- तो कल फिर आप मसूरी जा रहे हैं।
शान :- हम्म!

चित्रा :- कब तक यूँ वहां जाया करेंगे अब तो चार वर्ष हो गये है अर्पिता को आना होता तो अब तक आ जाती प्रशांत!
उसकी बात सुन शान बोले :- त्रिशा के पास होने का इतना फायदा मत उठाओ।जानती हो तुम्हे जवाब देना मैं जरूरी नही समझता।

क्यों नही समझते शान?क्या एक दोस्त की तरह मेरा इतना भी हक नही।चित्रा ने कहा!

शान नही चित्रा आपके लिए प्रशांत।एवं सारी बाते मैंने पहले ही स्पष्ट कर दी थी दोबारा कहना मेरी आदत नही।इस रिश्ते से उम्मीद लगाना व्यर्थ है चित्रा।हमारा रिश्ता सिर्फ कागजो पर है वास्तविकता नही।

शान की बात सुन चित्रा खामोश हो जाती है कुछ देर खामोश रहने के बाद बोली सॉरी!गलती हो गयी प्रशांत जी।

चलो चलकर गाड़ी में बैठो त्रिशा को सर्दी लग रही है घर निकलना चाहिए।शान ने कहा और त्रिशा को साथ ले वहां से गाड़ी की ओर चले आते है।

मसूरी में

शान!समय भी कितना विचित्र है न!देखो कितनी जल्दी गुजर जाता है।पता ही नही चलता है कि कहां से आया और कहां से निकल गया।हमारा प्रीत आज तीन वर्ष छ महीने के हो गये है।इनकी शरारते कम नही है।सारे गुण तो ये आपके ही चुरा कर आये है शान।आपको पता है शान इन पर ठाकुर जी का विशेष आशीष है इनके पैर में पद्म का निशान बना हुआ है।वैसे इस बारे में शंका तो हमे पहले भी तनिक नही थी लेकिन पहले नन्हा सा था तो रेखाएं इतनी स्पष्ट नही थी।आज जब इन्हें हम नहला रहे थे तब हमने स्पष्ट देखा और समझा।इनकी शरारते हम अपने फोन में सहेज कर रखते है।जब भी मन उदास होता है तो इन्ही शरारतो को देखते है मन प्रसन्नता से भर आता है।अभी इतना ही कहेंगे बाकी बाद में बताते है आप को। हम देख कर आते है हमारी जान है कहां कौन सी शरारत करने में जुटे पड़े हैं..अर्पिता ने डायरी रखी उठी और चुपके चुपके दबे पाँव अंदर कमरे की ओर आती है।

कमरे में एक नजर चारो ओर डालती है और कमरे की खिड़की पर जाकर उसकी नजरे ठहर जाती है।जहां छोटा सा प्रीत युवराज के बालो में हाथ घुमाने पर कहता है अंकल ये एछे एछे बाल क्यों कलते हो।मेली तलह किया कलो,एछे कहते हुए प्रीत ने अपना सर हिला कर सारे बाल बिखेर लिए।जिसे देख छोटी युविका बोली प्रीत!आपने फिर छे बाल बिखेल लिए अब तो बड़ी मां आपको पक्का डाँटेगी।चलो चल कर छुप जाते हैं।युविका की बात सुन प्रीत ने अपने माथे को खुजाया और बोला !मां नही डाँटेगी..!मैं उससे पहले ही छुप जाऊंगा फिल वो ढूंढ ही नही पाएंगी!कहते हुए वो हंसने लगता है।उसकी मासूम निश्छल हंसी कमरे में गूंज जाती है।

युवराज ने अर्पिता की ओर देखते हुए धीरे से बोला प्रीत!आपकी मम्मा पीछे आ गयी हैं!भागो नही तो आपकी और मेरी दोनो की खैर नही।ओ नो दीदी भागो, प्रीत ने युविका से कहा और दोनो कमरे में दौड़ने लगते है।ये देख अर्पिता हंसते हुए बोली,बस बस अब नही दौड़ो! मम्मा नही डाँटेगी चलो आओ पहले बाल ठीक करो!फिर आपको मिल्क शेक मिलेगा उसे फिनिश करना होगा।फिर मम्मा प्रीत और युविका तीनो मिल कर काउंटिंग वाला गेम खेलेंगे।चलो आओ अब!मिल्क छेक मम्मा!मीठा वाला !प्रीत ने अर्पिता के पास आते हुए कहा।

हम्म मीठा वाला।अर्पिता ने कहा और प्रीत के पास घुटनो पर बैठ उसके बाल सेट करते हुए कहती है बालो को बिखेरने का ये तरीका किसने सिखाया आपको प्रीत बताइये हमे?
ये नही... पता.. मम्मा प्रीत ने हाथ घुमाते हुए कहा।अर्पिता उठी और प्रीत एवं युविका दोनो का हाथ पकड़ कर कमरे से बाहर चली आती है।बाहर आकर दोनो को हॉल में पड़े सोफे पर बैठा देती है और कहती है आप दोनो यहीं सोफे पर बैठो हम मीठा मीठा मिल्क शेक लेकर आते हैं।ठीक है और अभी चुपचाप बैठना फिर से बाल मत बिखेर लेना।

ओके मम्मा!प्रीत ने युविका की ओर देखते हुए कहा।

युवराज भी बाहर आ जाता है और वहीं एक ओर बैठ जाता है।

अर्पिता के जाने के बाद प्रीत सोफे पर खड़ा हुआ हो ताली बजाते हुए कूदने लगता है।साथ ही काउंटिंग भी करने लगता है।

अर्पिता मिल्क शेक ले आती है तो दोनो उसे फिनिश कर देते है।कुछ ही देर में बाहर से पूर्वी भी चली आती है।उसके चेहरे पर थोड़ी परेशानी के भाव होते है जिसे अर्पिता और युवराज दोनो ही देख लेते हैं।

प्रीत युविका आप दोनो अपने रूम में जाकर खेलिये हम कुछ देर में आते हैं।अर्पिता ने दोनो से कहा।

ओके मम्मा,ठीक है बड़ी मां कह प्रीत और युविका वहां से अंदर चले जाते हैं।
उनके कमरे में जाने के बाद अर्पिता ने पूर्वी की ओर देखा और उसके पास जाकर सोफे पर बैठते हुए बोली क्या बात है पूर्वी अंकल आंटी ठीक तो हैं।

नही दी!मम्मीजी पापाजी बिल्कुल ठीक नही है।उनके घुटनो में बहुत दर्द रहता है,चलने फिरने में भी परेशानी है।जिद करके हम दोनो उनके पास भी आते जाते रहते हैं लेकिन पापाजी का हृदय नही पिघल रहा।अब बढ़ती उम्र का असर उन पर होने लगा है।अब आप ही उनसे कुछ कहिये न आप एक बार उनसे मिलिए उन्हें समझाइये हमे भरोसा है वो।आपकी बात अवश्य मानेंगे।

नही पूर्वी!हमे इस बात का कतई अनुभव नही है।सच कहे तो हम स्वयम इसमे नही पड़ना चाहते क्योंकि हमे पता है घर के बड़े अगर एक बार अपने बेटे की पत्नी के बारे में कोई राय बना लेते है तो लड़कियों के लिए उन्हें बदलना लगभग नामुमकिन ही होता है।भले ही आप अपनी जगह सही हो लेकिन फिर भी अस्वीकार्य की मोहर बहुओ के माथे पर ही लगा दी जाती है।

दी आप ऐसा कैसे कह रही है।आप तो हमेशा से ही रिश्तो को लेकर सकारात्मक विचार रखती आई है।आपने ही तो हमसे कहा था कि हमे युवी के मां पापा को मनाने की कोशिश करती रहनी चाहिए और आज आप कह रही है कि वो ...।

अर्पिता के हृदय में शीला जी की बातें घूम जाती है और वो अभी कही हुई बाते बोल जाती है।लेकिन जब पूर्वी के शब्द उसके कानो में पड़ते है तब वास्तविकता का बोध होने पर वो बोली, नही नही।पूर्वी वो हमारे कहने का अर्थ है कि हमे इन सब में कुछ नही कहना रिश्तो की डोर को मजबूत करो लेकिन स्वयम पर भी विश्वास रखो कि आप कर पाओगे।

दी आप आज कैसी बातें कर रही है परेशान हो क्या हुआ बताइये मुझे?पूर्वी ने पूछा तो अर्पिता मन ही मन सोचते हुए बोली हम क्या कहे पूर्वी!एक यही तो रिश्ता है जिसमे हम असफल साबित हुए जिसकी कसक हमारे मन में हमेशा रहती है और आज गलती से हमारी यही कमजोरी हम आपके सामने बता गये नही इसे हमे यहीं खत्म करना होगा नही तो हमारे अतीत की छाया हमारे वर्तमान पर पड़ ही जायेगी।

दी क्या हुआ आप चुप हो गयी क्या सोच रही है आप।पूर्वी ने सोच में डूबी अर्पिता से पूछा।जिसे सुन अर्पिता बात बदलते हुए बोली सोच रहे है कि अंकल आंटी को मनाने की शुरुआत कैसे करे।

क्या सच में दी आप मेरी मदद करेंगी।
अर्पिता :- अब जब आपको लग रहा है कि अब दी की मदद लेनी चाहिए तो अवश्य कोशिश करेंगे।अब तक हमारे कहने पर आप और युवी स्वयम ही कोशिश कर रहे थे।आपके कहने पर आपके मन की शांति के लिए हम एक बार उनसे अवश्य मिलेंगे तो बताओ कहां मिलना है।

घर पर दी।कल आप मेरे और युवी के साथ चलना ठीक है।

ठीक है पूर्वी कल चलेंगे।लेकिन अभी प्रीत और युविका की पढ़ाई का समय हो गया है हम उन्हें कुछ नया सिखाकर आते हैं।अर्पिता ने कहा और बच्चो के पास उनकी छोटी सी दुनिया में पहुंच जाती है।

कमरे के दरवाजे पर जाकर देखती है तो प्रीत और युविका दोनो को उनकी स्टडी टेबल के पीछे बैठ कर फुसफुसाते हुए देख मुस्कुराते हुए बोली, प्रीत कहां छुप कर नयी शैतानी की योजना बन रही है।देखे तो युविका और प्रीत मिलकर क्या कर रहे हैं।

वैसे दोनो है कहां?प्रीत आवाज दीजिये कहां है आप।प्रीत क्या आप कमरे में दरवाजे के पीछे हैं।

प्रीत :- नही मम्मा!और अपने छोटे छोटे हाथ मुंह पर रख हंसने लगता है।
अर्पिता अंजान बनने का अभिनय करते हुए बोली -

हमारे पास एक चॉकलेट है।दो प्यारे से नन्हे मुन्हे बच्चे है।और कमरे में तीन ही छुपने की जगह दरवाजा कबर्ड और और स्टडी टेबल...कहते हुए वो स्टडी टेबल के पास छिपे प्रीत को पकड़ कर उठा लेती है और युविका का हाथ थाम बाहर ले आती है।

पकड़ लिया..!हम जीत गये प्रीत!तो अब आपको हमारी बात माननी पड़ेगी और काउंटिंग सुनाने के साथ साथ लिखनी भी पड़ेगी।फिर हम आपको आज सरगम सुनाएंगे।अर्पिता प्रीत से बोली।

ओके मम्मा!प्रीत ने कहा और दौड़ते हुए अपनी कॉपी पेंसिल लेकर अर्पिता की गोद में बैठ गया और एक दो तीन बोलते हुए लिखने लगता है।युविका आप क्यों खड़ी है आप पीछे रह जायेगी आप भी जल्दी से लिखना शुरू कीजिये।ओके बड़ी मां युवीका ने कहा और कॉपी लेकर लिखने लगती है।

सांझ ढल आती है और और आसमान में पूनम का चाँद आ जाता है।शान घर आकर अपने कमरे की खिड़की के सामने खड़े हैं।चित्रा वहीं दरवाजे के पास रुक शान को देखते हुए बोली

चित्रा :शान!शाम ढली नही कि आप फिर से खिड़की के सहारे आकर खड़े हो गए।तकलीफ होती है मुझे आपको यूँ किसी के लिए तड़पता देखकर!क्यों नही समझते आप?

शान (थोड़ा चिढ़ते हुए बोले) : चित्रा पहले आप दो बातें स्पष्ट समझ लीजिये।शान सिर्फ अर्पिता के लिए है।और दूसरा आप मेरी जिंदगी हिस्सा हैं जिंदगी नहीं है सो प्लीज!
चित्रा : शुक्र है आपने ये माना कि मैं भी आपकी जिंदगी का हिस्सा हूँ।
शान : हां।उसने पहली बार मुझसे कुछ मांगा था और दूसरा परिस्थितियां ऐसी बन गयी तो मैं मना नही कर पाया।

चित्रा बोली:एक वो जो यहां न होकर भी यहीं है और एक आप है जो इतने समय बाद भी उसी के इंतजार में बैठे है कैसा ये इश्क़ है?
शान: बस ऐसा ही ये इश्क़ है चित्रा और कितनी बार कहूँ मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।कदर करता हूँ तुम्हारी भावनाओ की इसीलिए ज्यादा कुछ नही कहता।लेकिन वास्तविकता क्या है इसका ज्ञान तुम्हे भी है।अब जाओ कहीं ऐसा न हो तुम्हे खोजते हुए त्रिशा यहां चली आये...।

चित्रा वहां से चली जाती है।उसके जाने के बाद शान बोले सॉरी चित्रा लेकिन मैं अपनी ओर से ऐसी कोई उम्मीद तुम्हे नही दे सकता जो कभी पूरी न हो सके।मेरा पहला और अंतिम प्रेम अर्पिता ही है जो कभी न कभी वापस आयेगी।मुझे यकीन है वो मुझे वहीं मिलेगी इसीलिए तो हर रविवार मैं वहां जाता हूँ..!

अगले दिन शान मसूरी के लिए निकल जाते हैं और जाकर उसी क्लिफ पर पहुंच कर क्लिफ के एंड की ओर देखने लगते हैं।वहीं अर्पिता पूर्वी युवराज युविका और प्रीत के साथ युवराज के घर जाने के लिए निकलती है।इस समय मन में उसकी कई उलझने है जो शायद उसके अतीत में शीला जी के व्यवहार को लेकर है क्योंकि चार साल बाद फिर वो कुछ ऐसा ही करने जा रही है बस फर्क इतना है इस बार अर्पिता पूर्वी के लिए जा रही है।