Its matter of those days - 18 in Hindi Fiction Stories by Misha books and stories PDF | ये उन दिनों की बात है - 18

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ये उन दिनों की बात है - 18

"सागर", थैंक यू, "भाई" |

अबे साले, दोस्त भी कहता है और थैंक यू भी बोलता है |

"सॉरी यार" और दोनों कहकहे लगा कर हँस पड़े |

मम्मी, नैना, दादी, और कुसुम चाची "कामिनी की मम्मी", खाना खा चुकी थी | हमने अभी तक खाना नहीं खाया था, इसलिए हमने उनसे कह दिया की वे हमारी फ़िक्र ना करें | कल सुबह दीदी की विदाई करने के बाद आ जाएँगी | नैना रुकना नहीं चाहती थी, क्योंकि उसकी कोई सहेलियां भी नहीं थी और वो नींद की भी बड़ी कच्ची थी |

बेटा तुम रुकना चाहते हो? दादी ने सागर से पुछा

हाँ दादी, मैं रुकना चाहता हूँ | मैंने पहले कभी शादियां नहीं देखी और यहाँ मेरे खूब दोस्त भी बन गए हैं, तो मैं भी कल ही आऊँगा दीदी की विदाई के बाद, सागर ने दादी का हाथ पकड़ते हुए गाड़ी में बिठाते हुए कहा |

ठीक है बेटा, अपना ध्यान रखना, दादी ने उसके सिर पर हाथ फेरा |

शायद 12 बज गए थे | दूल्हा-दुल्हन, सगे-सम्बन्धी सब फेरों के लिए बैठ चुके थे | मैं पहली बार किसी शादी को इतना करीब से देख रही थी | संगीत, मेहंदी, फेरे, विदाई सब कुछ ये क्षण बहुत ही अद्भुत था और मन को एक अलग ही अनुभूति हो रही थी कि कैसे नाज़ो से पाली एक बेटी को एक दिन अपना सब कुछ छोड़कर किसी पराये के साथ पराये घर जाना होता है | एक ऐसी दुनिया में जहाँ सब कुछ बहुत ही अलग होता है | जहाँ ना तो आपके माता-पिता होते हैं, ना ही भाई-बहन और ना ही कोई सखी-सहेली |

पहली बार सागर भी किसी शादी को इतना गौर से देख रहा था | ये सब उसके लिए एकदम नया था | नहीं तो अधिकतर शादियों में तो वो उसकी फैमिली सिर्फ खाना खाने जाती थी और उन शादियों में सिर्फ चकाचौंध के अलावा और कुछ भी नहीं होता था, जबकि यहाँ सिर्फ अपनापन था, रिश्ते थे | तभी तो वो इन पलों को जीने के लिये यहाँ रुका था | उसके चेहरे पर ख़ुशी के भाव देखे जा सकते थे | उसने सारे रस्मों-रिवाज को गौर से देखा था | नम थी उसकी आँखें, जब कोमल दीदी की विदाई हो रही थी |

सागर के पास क्रिकेट किट, बैडमिंटन रैकेट, बास्केटबॉल, फुटबॉल इत्यादि खेलने के सामान थे, इसलिए मोहल्ले के बच्चे अब उसके पास ही खेलने आने लगे थे | उसके आने से पहले बच्चे राजा-मंत्री- चोर-सिपाही, छुपन-छुपाई, लंगड़ी-टांग, सितोलिया, कोड़ा-जमालशाही, गिल्ली-डंडा, ये सारे खेल खेलते थे पर अब इनकी जगह क्रिकेट, बैडमिंटन, फुटबॉल और बास्केटबॉल ने ले ली थी | जैकी चेन उसका फेवरेट एक्टर था | हॉलीवुड की एक्शन फिल्मों की खूब सारी वीडियो कैसेटस थी, जिन्हें वो और उसके दोस्त मिलकर देखते थे | देखते ही देखते वो सबका चहेता हो गया था | छोटों से लेकर बड़ों तक का | अब सबके मुँह पर एक ही नाम रहता था, "सागर" |

उसकी गियर वाली साइकिल जो वो अभी कुछ महीनों पहले ही लेकर आया था, चलाते-चलाते पुरानी होने लगी थी, क्योंकि हर कोई उसकी साइकिल चलाता था और वो भी अपनी हर चीज सबसे शेयर करता था | पहले तो दादा दादी के यहाँ बच्चे कम ही जाते थे और अगर जाते भी, तब जब उन बच्चों की मम्मियाँ को दादी को कुछ भिजवाना या मँगवाना होता था | लेकिन अब, अब तो दिन भर चहल- पहल रहती है, घर में | सागर के आने के बाद से रौनक लौट आई थी, उनके चेहरों पर | सागर था भी ऐसा ही हर किसी को अपना बना लेता था और छोटे बच्चों के साथ तो खेलना बहुत ही पसंद था उसको |

"पिंकी" जो कॉलोनी की सबसे छोटी बच्ची है, केवल 2 साल की है, वो अपनी मम्मी से ज्यादा सागर के पास रहती है | उसकी मम्मी की प्रॉब्लम भी सॉल्व हो गई क्योंकि पिंकी अपनी मम्मी को बहुत परेशान करती थी | उन्हें ठीक से न तो काम करने देती, न खाना खाने देती और न ही आराम करने | लेकिन अब जबकि सागर पिंकी को अपने साथ ले जाता है, तबसे चैन है उनको |

वो हर किसी की प्रॉब्लम को चुटकियों में सॉल्व कर देता था फिर चाहे छोटों की हो या बड़ों की |

अभी थोड़े ही पहले मोनू के हाथों से उसका रैकेट टूट गया था | मोनू बहुत डरा हुआ था | उसे लगा सागर भैया डाँटेंगे तो उसने अपने छोटे भाई सोनू का नाम लगा दिया |
"भैया", सोनू ने आपका रैकेट तोड़ दिया | मैंने नहीं तोड़ा |
कोई बात नहीं मोनू, मैं दूसरा ले आऊँगा |
सच्ची भैया, तो आप सोनू को कुछ नहीं कहोगे ना !!
"नहीं", सागर मुस्कुरा दिया |
क्योंकि उसे पता था कि रैकेट सोनू ने नहीं मोनू के हाथ से टूटा है लेकिन उसे समझाना पड़ेगा कि झूठ बोलना बुरी बात है |

नमस्ते चाची |
अरे सागर बेटा, आओ, आओ अंदर आओ |
उसने झुककर चाची और सोनू-मोनू की दादी के पैर छुए |
"सोनू-मोनू" कहाँ है, चाची?

खेलने गए हैं, बस अभी आते ही होंगे |
बैठो बेटा |

इतने में सोनू मोनू भी आ गए थे |
सागर के हाथ में गिफ्ट देखकर सोनू ने पूछा, भैया, ये गिफ्ट किसके लिए लाये हो ?
ये तुम्हारे लिए है सोनू |
मेरे लिए, सच्ची, सोनू का चेहरा खिल उठा |

मुच्ची |
मोनू इससे पहले कुछ कहता, इतने में सागर कह उठा, अब जिसने रैकेट तोड़ा है तो उसको गिफ्ट तो मिलना ही चाहिए ना|

पर भैया रैकेट तो मेरे हाथ से टूटी थी, मोनू तपाक से बोल पड़ा |
अच्छा!! फिर तुमने सोनू का नाम क्यों लिया |
भैया वो मैं........मैं.......
हाँ बोलो , बोलो |
वो......मैं..........डर गया था, भैया | मुझे लगा, आप मुझे डाँटोगे इसलिए मैंने सोनू का नाम ले लिया, मोनू जमीन पर देख रहा था |

चाची सब सुन रही थी | "ये लड़का नहीं सुधरेगा" और वो उसको डाँटने ही आ रहे थी कि सागर ने रोक दिया |
चाची, एक मिनट |
"मोनू", यहाँ आओ, मेरे पास |
मोनू घबरा गया |
डरो मत, तुमने कुछ गलत नहीं किया |
आओ!! मेरे पास बैठो, सागर ने प्यार से उसे अपने पास बिठाया और उसे समझाया कि झूठ बोलना बुरी बात है | मुझे पता था रैकेट तुम्हारे हाथों से ही टूटी है, पर मैं चाह रहा था कि तुम खुद ये क़ुबूल करो |

आई एम सॉरी, भैया आइंदा ऐसा नहीं होगा
और फिर सागर ने उन दोनों को अलग अलग रैकेट दी, जिसे पाकर दोनों बहुत खुश हुए | इस तरह सागर ने ये प्रॉब्लम सोल्व कर दी थी |