उपन्यास—भाग—2
दैहिक चाहत – 2
आर. एन. सुनगरया,
सुबह-सबेरे सही समय पर सबसे पहले ऑफिस पहुँची, शीला।
देवजी को अपने ऑफिस की तरफ आते देख शीला ने, आगे बढ़कर उन्हें रिसीव किया, ‘’गुड मोर्निंग !’’ देवजी ने मुस्कुराते हुये, ‘’हॉस्टल से होते हुये आये, शायद आपको कन्वेन्स ना मिले तो......।‘’
‘’मैं तो ऑटो में ही आ गई।‘’ शीला ने, प्रसन्नता पूर्वक कहा, ‘’पहला दिन, नई-नई नौकरी.......।‘’
दोनों हल्के से मुस्कान लिये, ऑफिस में प्रवेश कर गये।
कदाचित अपनी आदत अनुसार देवजी ने, चेयर के समीप खड़े-खड़े ही टेबल वेल बजाई। प्यून उपस्थित हुआ। देवजी ने हुक्म झाड़ दिया, ‘’बगल का कैविन वेल फर्निश करो, मैडम शीला वहीं बैठेंगी।‘’ शीला की ओर मुखातिब होकर, ‘’आप देख लीजिये, अपनी सुविधा अनुसार, ठीक-ठाक करवा लीजिये।‘’
सब शाँत थे। देवजी ने ही कहा, ‘’और हॉं, आपको ड्राइवर सहित जीप एलॉट हो रही है। उस से सारे मूवमेन्ट करना है, ऑफिसियली।‘’
‘’थेन्क्यू सर !’’ शीला ने आभार जताया। कुछ क्षण पश्च्चात, देवजी ने फाइलें, उलटते-पलटते..........
‘’नमस्कार सर !’’ ड्राइवर कक्कू आ धमका।
‘’नमस्कार,………बोलो।‘’ देवजी ने तिरछी नज़र से देखा।
‘’जी.....शीला......।‘’
‘’हॉं, उनके पास रिपोर्ट करो।‘’
‘’जी, वो..........।‘’
‘’अब क्या हुआ।‘’
’’मैं जानता नहीं उन्हें....।‘’
‘’जानते नहीं !’’ देवजी ने हल्के से क्रोधित नज़रों से देखा, ‘’चलो मेरे साथ।‘’ कक्कू देवजी के साथ हो लिया।
कैविन के द्वार पर कुछ पल रूके देवजी, शीला अंगड़ाई की मुद्रा में कुछ इन्सट्रेक्शन दे रही थी, कार्यरत कामगारों को। देवजी ने इंगित किया, ‘’ये हैं, मैडम शीला, अब से तुम, इन्हें ही अपनी सेवाऍं दोगे।‘’
कक्कू ने मुण्डी हिला कर स्वीकार किया, ‘’जी सर !’’
देवजी, शीला को कुछ व्यवहारिक एवं औपचारिक सलाह-मशविरा देने लगे। कुछ ही क्षणों में अपनी चेयर पर लौट आये।
. ड्राइवर कक्कू वहीं खड़ा रहा, टुकुर-टुकर घूरते हुये बुत्त बनकर, प्रतीक्षा में ...........कब कुछ आर्डर मिले ! मगर शीला अपने कैविन की साज-सज्जा में ही तल्लीन रही। कक्कू हिला नहीं इधर-उधर ! काफी देर बाद, शीला की नज़र उस पर पड़ी, ‘’अरे, अभी तक तुम यहीं खड़े हो !’’
‘’जी मैडम ।‘’ झेंपते हुये, ‘’बताइऐ काम ?’’
‘’अभी तुम अपनी जीप में बैठो आवश्यक होने पर बुला भेजूँगी।‘’
‘’येस मैडम.......।‘’ कक्कू चला गया।
लंच का समय था, सभी ड्राइवर्स प्यून्स इत्यादि-इत्यादि, ऑफिस परिसर में ही बड़े-बड़े वृक्षों के नीचे कुदरती शीतलता में, अपना-अपना भोजन सामूहिक बैठ कर खाने की तैयारी कर रहे थे। कक्कू को देखा तो, सबकी नज़रें उसी की ओर मुड़ गईं।
‘’चला आ रहा है, मैडम को सलाम ठोंक कर !’’ समूह से किसी ने कहा।
‘’हॉं, नई-नई मैडम आई है।‘’ दूसरे ने बताया, ‘’तभी तो देव साहब बटरिंग कर रहे हैं, अपने तेवर दिखाने में लगे हैं। अपना इम्प्रेशन जो जमाना है।‘’
‘’है तो बहुत खूबसूरत।‘’ कक्कू ने कसीदे पढ़े, ‘’आवाज भी कोकिला जैसी है, मीठी-मीठी, चेहरे से ज्यादा ऑंखों में चमक है ! खुमारीदार ! अव्यक्त सा खिंचाव है, नज़रों में, देखो तो देखते ही रहो।‘’
‘’कहॉं थी पहले ?’’
‘’बड़ी कम्पनी जम्प करके आई है।‘’
‘’टॉप एक्जुकेटिव है, वेतन बडि़या है।‘’
‘’हॉं, सीनियर इन्जीनियर पोस्ट पर ज्वाइन की है।‘’
‘’मगर है, टॉप ! अच्छी हाईटेड, भरी-पूरी देह, गोरी-भूरी, लावण्यमयी चमचमाती सुनहरी धधकती अंगार......।‘’
‘’चलो देव साब का मन बहलता रहेगा।‘’
‘’वह भी तो कुँवारा-रंडुआ जैसी जिन्दगी काट रहा है।‘’
‘’हो ही गया अधेड़ !’’
‘’ठीक है, हाई प्रोफाइल लोग हैं, खग ही जाने खग की भाषा।‘’
‘’हमें तो मौसम-बे-मौसम ऑंखें सेंकने का मौका मिल जाय बस, इसी में ग्लेमराइज मिजाज का मजा ले लेंगे।‘’
‘’लंच टाइम खत्म होने को है। कुछ रेस्ट कर लेते हैं।‘’
रूटीन प्रोटोकॉल के अनुसार देवजी शाम को सारे मातहतों की मिटिंग लेकर डैयलीवर्क पोजीशन लेते हैं। आगे के लिये आवश्यक इन्सट्रक्शन देते हैं। पूछते हैं, किसी को कोई प्रॉबलम तो नहीं है, साइट में, कुछ रेक्वारमेंट हो तो अरेन्ज करवा देते हैं। कोई टूल-टैकल चाहिए हो तो उपलब्ध करवा देते हैं। इत्यादि-इत्यादि।
शीला मिटिंगके दौरान खामोश बैठी सारी कार्यवाही, सुनती-देखती रही। खत्म होते ही मिटिंग में शामिल सब ऑफिसर अपने-अपने ऑफिस लौट गये, मगर शीला अंतिम तक बैठी रही उसका कैविन तो बगल में ही था; छुट्टी का समय निकट आ गया था। तो उसने सोचा, यहीं देवजी से कुछ सामान्य जानकारियों के बारे में बातें कर ली जाये। शीला कुछ बोलती, उससे पहले ही देवजी ने पूछ लिया, ‘’कैसा रहा पहला दिन ?’’
‘’ठीक ही है।‘’ शीला ने बुझे-बुझे लहजे में जवाब दिया।
‘’धीरे-धीरे मन लग जायेगा।‘’ देवजी ने ढॉंढ़स बंधाया, ‘’जब काम का लोड बढ़ेगा, स्वत: ही व्यस्थता महसूस होने लगेगी।‘’
‘’हॉं, लगता तो है।‘’ शीला ने पीछा छुड़ाना चाहा।
‘’चलते हैं, अन्यथा ऑफिसियली काम सर पर सवार ही रहेगा।‘’
दोनों ने आज की अंतिम विदाई औपचारिकता पूरी करके अपने-अपने रास्ते हो लिये।
हॉस्टल पहुँचते ही शीला कुछ ऊर्जावान महसूस कर रही है। निरन्तर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर मोबाइल लेकर बैठ गई, ध्यानपूर्वक नम्बर टेप किया, कान से सटा लिया, वेल लगातार घनघना रही है।.......
‘’हेल्लो.........हेल्लो तनया ? मैं मॉम !’’
‘’हॉं मॉम बोलो।‘’ तनया ने पूछा, ‘’कैसा रहा पहला दिन..........नई कम्पनी, नई नौकरी नया ऑफिस !’’
‘’तू तो प्रश्नों की झड़ी लगा देती है।‘’ शीला ने सलाह दी, ‘’बीच-बीच में सॉंस तो ले लिया कर।‘’
‘’हॉं बताओ एक-एक प्रश्न का उत्तर।‘’
‘’सब कुछ ठीक रहा।‘’ शीला ने आगे कहा, ‘’तू चिन्ता ना कर।‘’ आगे बताया, ‘’अपने अनुकूल हॉस्टल एलॉट हो गया है, निवास के लिये, वेल फर्निशड है। किसी तरह की कोई असुविधा नहीं.........ऑफिस का माहौल भी अच्छा है, सब कॉप्रेटिव हैं, कहीं कोई कठिनाई नहीं जान पड़ी, और क्या चाहिए!’’
‘’ठीक है, चिन्ता दूर हुई।‘’
‘’तू बता स्टेडी कैसी चल रही है। अब तो आर्थिक संकट नहीं है। और अच्छे मार्क आऍंगे अब तो।‘’
‘’हॉं..हॉं बिलकुल, मेरी प्यारी मॉम।‘’ कुछ अस्पष्ट संयुक्त स्वर, सुनाई देने लगे शीला को, शायद उसकी कुछ संगी-साथी-सहेलियों के शोर-गुल की आवाजें सुनाई दे रही हैं।
तनया बोली, ‘’अभी रखती हूँ। मॉम, बाद में मोबाइल लगाती हूँ।‘’
’’हॉं रख, वाय।‘’ शीला ने भी काट दिया। कनेक्शन।
शीला ने परम संतोष की सॉंस खीची लम्बी,…छोड़ी। छोटी बेटी से बात करके तसल्ली हुई। अब बड़ी बेटी को नम्बर लगाया, ‘’हेल्लो......तनूजा....मैं.....मॉम.......।‘’
‘’हॉं मॉम कैसी हो, कैसी रही शुरूआत नये जॉब की।‘’’
‘’एकदम फाइन, मेरी लाडो।‘’ शीला ने स्नेहपूर्वक बताया, ‘’जो, असमन्जस, कशमाकश थी वह निर्मल साबित हुई। तू बता कैसा चल रहा है कोर्स ?’’
‘’बहुत बडि़या माहौल बन गया है अध्ययन-अध्यापन का सब गम्भीर हो गये हैं। कोई परेशानी नहीं.........।‘’
‘’लगन से, परिश्रम पूर्वक अपनी शिक्षा पूरी करो। यही तुम्हारे पापा की मनोकामना एवं मंशा थी। जिसे पूरी करना हम तीनों का कर्त्तव्य है, उद्देश्य है, बस !’’
‘’जी मॉम, वाय !’’
शीला भावुक होने ही वाली थी कि तनूजा ने मोबाइल काट दिया। वह भॉंप गई थी।
शीला की दोनों बेटियॉं विद्याध्ययन में होशियार हैं। परिश्रमी, जुझारू, प्रवीण और संकल्पित भी हैं। अपने स्वर्गिय पापा का नाम नीचा नहीं होने देंगे, उनकी इच्छा को पूरा करना अपना ध्येय बना लिया है। उल्लेखनीय उपलब्धी प्राप्त करने हेतु।
तनया एक महानगर, तो तनूजा दूसरे शहर के नाम चीन कॉलेजों में एडमीशन हुआ है रेन्क के आधार पर। इन शिक्षण संस्थानों में प्रतिभाशाली विद्यार्थी ही चयनीत होते हैं। सर्वोच्च विश्व विद्यालयों में। अन्तर्राष्ट्रीय कॉलेज विशिष्ठ विद्यार्थियों को ही सेलेक्ट करते हैं, उनमें तनूजा-तनया शामिल थीं। शीला को अपनी बेटियों पर गर्व था।
संघर्षशील समय का सामना, जो करते हैं, वे अपनी ऐच्छिक मंजिल हासिल करने में अवश्य ही कामयाब होते हैं। निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त करके ही, उन्हें शॉंति मिलती है। परम सुख की अनुभूति होती है। एक मिशाल बनते हैं, समाज में।
तनूजा, तनया एवं शीला अपने-अपने मोर्चों पर दृढ़ता से डट गये, कमर कस कर अपनी विलक्षण बुद्धि कौशल, सूझ-बूझ और कड़ी मेहनत के सहारे, सुपरिणाम पाने को आत्मविश्वास के साथ।
शीला के शुकून का समय, सपने की भॉंति होता है। अभिमन्यु की सपनीली यादों ने उसे अपने आगोश में समाहित कर लिया है। शीला बहुत ही कोमल एहसास कीअनुभूति में अपने आपको फुदकती एवं नृत्यमय मोरनी सा आनन्दित महसूस कर रही है। अभिमन्यु की गोद में लेटी ऑंखें मीचे अनेकों लहराती भावनाओं की तरंगों में हल्के हिचकोले खाती हुई, ना जाने कहॉं बहे जा रही हूँ। रंग-बिरंगी तितलियॉं, नंगे बदन पर अटखेलियॉं कर रही हैं। जैसे अभिमन्यु नरम-नरम उँगलियों से शरीर पर अदृश्य रेखाचित्र चित्रित कर रहा हो, उसका छुअन गुदगुदा जाता है। बल्कि गुदगुदाता रहता है। अभिमन्यु अपनी गर्म सॉंसों की गरमाहट दे रहा हो या उसके बदन की तपन सहला रही हो। कुछ स्पष्ट समझ नहीं पा रही हूँ। सारे शरीर में सुरीले संगीत की स्वर लहरियॉं क्रीड़ा कर रही हों......उफ ! यह कैसा कामनाओं व पवित्र वासनाओं का भ्रमजाल है। साक्षात यथार्थ है या सपना है ! कुछ बूझ नहीं पा रहा है, मन ! मगर दिव्य अनुभूति तो है.........शीला को इन काल्पनिक एहसासों में ही सुहाना शुकून बहलाये रखना चाहता है, अपितु वह स्वयं चाहती है, ख़यालों के आशियानों में बेसुध पड़े रहना...।
न्न्न्न्न्न्
क्रमश:---३
संक्षिप्त परिचय
1-नाम:- रामनारयण सुनगरया
2- जन्म:– 01/ 08/ 1956.
3-शिक्षा – अभियॉंत्रिकी स्नातक
4-साहित्यिक शिक्षा:– 1. लेखक प्रशिक्षण महाविद्यालय सहारनपुर से
साहित्यालंकार की उपाधि।
2. कहानी लेखन प्रशिक्षण महाविद्यालय अम्बाला छावनी से
5-प्रकाशन:-- 1. अखिल भारतीय पत्र-पत्रिकाओं में कहानी लेख इत्यादि समय- समय
पर प्रकाशित एवं चर्चित।
2. साहित्यिक पत्रिका ‘’भिलाई प्रकाशन’’ का पॉंच साल तक सफल
सम्पादन एवं प्रकाशन अखिल भारतीय स्तर पर सराहना मिली
6- प्रकाशनाधीन:-- विभिन्न विषयक कृति ।
7- सम्प्रति--- स्वनिवृत्त्िा के पश्चात् ऑफसेट प्रिन्टिंग प्रेस का संचालन एवं स्वतंत्र
लेखन।
8- सम्पर्क :- 6ए/1/8 भिलाई, जिला-दुर्ग (छ. ग.)
मो./ व्हाट्सएप्प नं.- 91318-94197
न्न्न्न्न्न्