Me and chef - 19 in Hindi Drama by Veena books and stories PDF | मे और महाराज - ( एक तोहफा_३) 19

The Author
Featured Books
Categories
Share

मे और महाराज - ( एक तोहफा_३) 19

" सैम । रुको। ये मुद्रा राजकुमार अमन के लिए जरूरी है। क्यों ना तुम मेरी राजकुमारी का छोटा सा काम कर दो। ये उन तक पहुंचा दो??????" मौली ने समायरा को समझाते हुए कहा।

" पर में ऐसा क्यों करु ? में उस राजकुमार को जानती तक नही।" समायरा।

" वजीर साहब ने ये काम मेरी राजकुमारी को सौंपा था। अगर नहीं किया तो मार पड़ेगी उन्हे।" मौली ने उसे समझाने की कोशिश की।

" तब तो में ये बिलकुल नहीं करूंगी। पता है आज तक उस वजीर ने कभी मेरे साथ अच्छा बर्ताव नहीं किया। हमेशा सताया। उसका काम और में करु।बिल्कुल नहीं।" समायरा।

" समझने की कोशिश करो सैम।" मौली।

" तुम पुराने जमाने की औरते भी ना। देखो मौली सिराज हमारे साथ कितना अच्छा बर्ताव करता है। हमे अच्छा खाना, अच्छे कपड़े सब देता है। अगर हमने उसके खिलाफ जाकर बड़े राजकुमार का साथ दिया। ये बात उसे पता चल गई तो वो हमे वहीं मार डालेगा। इस से अच्छा हम दोनो इसे बेच देते है। जो भी आएगा उसे ८०_२० मे बाट लेंगे। ताकि जब बुरा वक्त आए तब ये पैसा हमे बचाएगा।" समायरा।

" बिल्कुल नही।" मौली।

" ७०_३०" समायरा।

" तुम ही रखो सब । मुझे कुछ नही चाहिए।" मौली।

" जाने दो। मैने तुम्हे अच्छा प्रस्ताव दिया था। खैर। वो रही सोनार की दुकान। चलो चलते है।" समायरा।

उसने वो मुद्रा बेच मिले हुए पैसों से गहने खरीदे।

" क्या तुम सच कह रहे हो??" सिराज ने आशचर्य से पूछा।

" हा महाराज। में बिल्कुल सच कह रहा हूं। राजकुमारी ने वो मुद्रा एक सोनार को बेच दी।" रिहान।

" उस दुकान पर नजर रखो। हो सकता है, बड़े राजकुमार के जासूस की हो। वो कभी भी वहा से मुद्रा ले जा सकते है।" सिराज।

" में सुबह से उस दुकान पर नजर रखे हुए था। मैने उस दुकानदार से पूछताछ भी की। लेकिन उसका राजकुमार अमन से दूर दूर तक कोई संबध नही है। यहां तक कि अभी भी वो मुद्रा उस के दुकान मे ही पड़ी है।" रिहान।

" हम जितनी इनकी परीक्षाएं लेते है, वो उतना ही हमें और परेशानी मे डालती है। क्या सच मे उन्हे उस मुद्रा की अहमियत नहीं पता।" सिराज संभ्रम मे था। " जाकर वो मुद्रा ले आओ।" उसने रिहान को आदेश दिया।

यहां समायरा अपने खरीदे हुए गहनों को छिपाने मे मशगूल थी। अपने महल के पीछे की तरफ एक बड़े से पेड़ के नीचे उसने एक जगह खोजी और गड्ढा बनाया। फिर एक लकड़ी के बॉक्स में अपने सारे नए गहने एक एक कर के रखे। सिराज दूर से उसकी हरकते देख रहा था। जब उस से नही रहा गया, तब वो उसके पास जा बैठा।

" क्या हम जान सकते है, ये क्या कर रही है आप ????" सिराज ने पूछा।

" हा.... तुमने तो मुझे डरा दिया।" समायरा।

" मुझे बताएं क्या चल रहा है यहां।" सिराज।

" ये मेरी खास सिक्रेट जगह है। अब तुमने देख ली पर किसी को इस के बारे मे मत बताना समझे।" समायरा ने धीमी आवाज मे कहा।

" ये सिक्रेट क्या होता है?" सिराज।

" खुफिया। सिक्रेट का मतलब है खुफिया।" समायरा ने कहा ।

" ओह..... क्या आप मुझे बताएंगी। मैने जो तौफा दिया था वो कहा है???" सिराज।

" हे क्या तुम्हे ये पता नही की दिया हुवा तोहफा वापस नहीं लिया जाता। सच बताओ तुम उसे वापस मांगने तो नही आए ना??" समायरा ने डरते हुए पूछा।

सिराज उसके पास गया, और उसने उसका नाक पकड़ कर खींचा। " नही । आपको बस उस तोहफे का महत्व समझाने आए है। वो मुद्रा हमे हमारे स्वर्गवासी दादाजी ने दी थी। उस से हमारे पूरे देश की सारी सेनाए नियंत्रित होती है। इसका मतलब जिसके पास वो मुद्रा होगी वो कभी भी सत्ता पलट सकता है।" सिराज ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

" ओह माय गॉड। तुम पागल हो क्या ???? तुमने इतनी खास चीज़ मुझे क्यो दी????? पागल।" समायरा।

" नही । आप राज परिवार के किसी भी सदस्य को इस तरह नही बुला सकती।" सिराज ने कहा।

" अब मुझे क्या देख रहे हो। जल्दी चलो मेरे साथ।" समायरा ने उसका हाथ पकड़ कर उसे खींचा।

" कहा ????" सिराज ने सब जानते हुए भी ना समझी का नाटक किया।

" उस सोनार के पास जिसे मैंने वो मुद्रा बेची।" समायरा ने रोनी सी सूरत बनाई।

" क्या आपने वो मुद्रा बेच दी।" सिराज ।

" हा। सुबह में बाजार गई थी। पैसे नही थे तो मैंने मुद्रा बेच दी। और ये गहने खरीद लिए। प्लीज़ मुझे माफ कर दो। मुझे नही पता था, वो इतनी जरूरी है। अगर तुम मुझे पहले बता देते, तो ऐसा नहीं होता।" समायरा ने कहा।

सिराज ने उसे अपने पास खींचा, और वो कुछ समझ पाए उस से पहले उसके होठों का चुम्बन ले लिया।

" हमने आपको बोहोत बिगाड़ दिया है। कभी कभी आपको सबक भी सिखाना होगा लगता है।" सिराज आगे कुछ कहे उस से पहले समायरा पीछे हो गई।

" ऐसी गलती फिर नही होगी सच मे। बस ये बात छोड़ दो। अभी के लिए।" समायरा ने डरते हुए कहा।

" ठीक है। याद रखिए गा अगली बार कोई गलती हुई, तो हमारे होठों की जगह तलवार होगी। जो भी तोहफा हम आपको देते है, वो हर चीज़ खास होती है। इस लिए आगे से हमारा हर तोहफा संभाल कर रखिए गा।" इतना कह सिराज फिर अपने रास्ते चला गया। लौटते वक्त उसके चेहरे पर एक विजई मुस्कान थी।

समायरा ने अपने गहनों को देखा, फिर उसने तसल्ली की कोई उसे देख तो नहीं रहा। फिर सारे गहने उठाए और छिपाने के लिए नई जगह खोजने निकल पड़ी।

" अब आगे क्या करना है मेरे राजकुमार।" रिहान ने हाथ जोड़कर सिराज से पूछा।

सिराज अभी भी चेहरे पर वही मुस्कान पहने हुए था। " राजकुमारी पर से नजरबंदी हटा दो। अब एक आखरी परीक्षा। उस के बाद हम अपनी सुहागरात के लिए तैयार होंगे।"