Kuchh chitra mann ke kainvas se - 23 in Hindi Travel stories by Sudha Adesh books and stories PDF | कुछ चित्र मन के कैनवास से - 23 - नियाग्रा फॉल - 1

Featured Books
Categories
Share

कुछ चित्र मन के कैनवास से - 23 - नियाग्रा फॉल - 1

नियाग्रा फॉल

अगले दिन हमें नियाग्रा फॉल के लिए निकलना था। कनाडा का वीजा बनवाना था अतः सुबह 9:00 बजे तक हमारा डेट्रायट पहुंचना आवश्यक था । 9:00 बजे डेट्रायट तक पहुंचने के लिए हमें घर से सुबह 4:00 बजे निकलना था । वीजा सिर्फ 12:00 बजे तक ही मिल सकता था । पेपर तैयार थे । पंकज जी और प्रभा पूरे आश्वस्त थे कि हमें वीजा मिल ही जाएगा । उन्होंने कनाडा में होटल मैरियट भी बुक करा लिया था पर हमारे मन में शंका थी क्योंकि इंडिया में तथा अमेरिका में भी एक दो लोगों ने हमसे कहा था कि अगर आप इंडिया से ही कनाडा का वीजा लेकर आते तो अच्छा था, यहां से मिलना कठिन है । पर कहते हैं आस पर दुनिया जिंदा है इसी आस के सहारे प्रयत्न करना था पर फिर भी मन में आ रहा था आखिर कनाडा का टूरिस्ट वीजा मिलने में परेशानी क्यों आएगी जबकि हमारे पास अमेरिकन टूरिस्ट वीजा है ही । कोई भी जब अमेरिका आता है तो वह नियाग्रा फॉल देखना चाहेगा ही ।

मन के इसी संशय के कारण आदेश जी ने कनाडा के टोरंटो में रहने वाली अपनी कजिन सिस्टर वनिता को भी अपने आने की सूचना नहीं दी थी । घर से सुबह 4:00 बजे हम निकल गए । थरमस में चाय बना कर रख ली थी । गाड़ी अपनी पूरी रफ्तार से चल रही थी साथ में ही हमारे विचार भी... बीच-बीच में हम इधर- उधर की बातें करने लगते । वन वे ट्रैफिक था । एक ही लाइन में एक ही स्पीड में गाड़ियां चल रही थीं । अगर कोई फास्ट ड्राइव करना चाहता या सामने वाली गाड़ी को ओवरटेक करना चाहता तो वह दूसरी लेन में जाकर उसे ओवरटेक कर आगे बढ़ जाता... भारत की तुलना में यहां गाड़ी चलाना काफी सुविधाजनक लगा ।

लगभग 9:00 बजे के करीब हमने डेट्राइट में प्रवेश किया । पंकज जी ने उस इमारत के सामने गाड़ी खड़ी की जिसमें कनाडा का वीजा मिलने का ऑफिस है । वह काफी बड़ी मल्टी स्टोरी ( बहु मंजिली) इमारत है । इसमें जी.एम. मोटर का भी कार्यालय है । हमें उस इमारत के पास उतारकर पंकज जी गाड़ी पार्क करने चले गए । हम ऑफिस का पता पूछते पूछते पहुंचे । ऑफिस छोटा ही था लगभग 20 -25 लोग लाइन में लगे हुए थे । आदेश जी और पंकज जी लाइन में लग गए तथा मैं प्रभा वहां लगी कुर्सी पर बैठ गए ।

लगभग 1 घंटे पश्चात हमारा नंबर आया । सारे डॉक्यूमेंट, फॉर्म के हिसाब से पूरे थे पर काउंटर पर बैठे व्यक्ति ने सारे पेपर चेक करने के बाद कहा, ' आपका फाइनैंशल डॉक्यूमेंट नहीं है ।'

फाइनेंशियर डॉक्यूमेंट था पर वह गाड़ी में रह गया था । उसे निकालकर लाने में समय लगता। आदेश जी और पंकज जी ने उसे अपने अपने तरीके से समझाने का प्रयत्न किया कि हम सिर्फ 2 दिन के लिए नियाग्रा फॉल देखने जा रहे हैं वहां हमारी होटल बुकिंग भी है बुकिंग से संबंधित उन्होंने सारे पेपर दिखाएं पर वह नहीं माना तब पंकज जी ने हमसे कहा तुम बैठो मैं सारे डॉक्यूमेंट निकाल कर लाता हूं ।

हम ऑफिस से बाहर निकलकर पास ही बने रेस्टोरेंट में आकर बैठ गए भूख लगी होने के बावजूद खाने का मन नहीं कर रहा था । पता नहीं वीजा मिल पाएगा या नहीं, बार-बार यही विचार मन को परेशान कर रहा था । 11:00 बज रहे थे । 12:00 बजे तक वीजा मिलने का समय है । वहीं एक पंजाबी परिवार भी बैठा था । उनके साथ एक वृद्ध औरत भी थी । हमें अपने देश का जानकर में वह हमारे पास आई । हमसे नमस्ते की तथा कहां से आए हैं वगैरा-वगैरा पूछा । उनकी भी हमारी जैसे ही समस्या थी । अभी हम बातें कर ही रहे थे कि पंकज जी आ गए । आदेशजी एवं पंकजजी पुनः वीजा ऑफिस गए । वहां से थोड़ी ही देर में आ गए तथा कहा 1 घंटे में वीजा के पेपर मिल जाएंगे ..सुनकर मन मस्तिष्क पर छाया बोझ कम हुआ तथा निश्चिंत मन से हम नाश्ता करने लगे ।

लगभग 1 घंटे पश्चात वे दोनों फिर ऑफिस गए । वीजा तैयार था । दोनों के आते ही हम बाहर निकले । फिर हमारी यात्रा प्रारंभ हुई । अभी थोड़ी दूर ही गए थे कि चेकपोस्ट आया । अमेरिका से कनाडा में प्रवेश करते समय बॉर्डर पर चेकिंग होनी थी । एक लंबी लाइन हमारा इंतजार कर रही थी । यह जगह हमारे यहां टोल टैक्स के लिए बनी लाइन के समान थी । लगभग 1 घंटे पश्चात हमारा नंबर आया । वहां उपस्थित संबंधित अधिकारी ने हमारा पासपोर्ट वीजा चेक किया । सब कुछ ठीक होने पर हमें आगे जाने की इजाजत मिल गई ।

हम सफर पर चल दिए । इस बीच आदेशजी ने अपनी कजिन सिस्टर वनिता से बात की । उसने कहा कि जब आप इतना पास आ गए हैं तो हमारे घर आने का भी प्रोग्राम बना लीजिए पर यह संभव नहीं था क्योंकि हमारी पहले से बुकिंग हो चुकी थी और ना ही हमारे पास अतिरिक्त समय था कि हम अपना एक दिन का इससे बढ़ा लेते । उसको अपनी समस्या बताई तो उसने कहा अच्छा मैं ही आप लोगों से मिलने आ जाऊंगी ।

लगभग 2 घंटे बाद पंकज जी ने प्रभा से कहा,' मैं अब थक गया हूं गाड़ी तुम चलाओ ।'

उन्होंने एग्जिट से बाहर निकलकर एक रेस्टोरेंट (सब वे ) पर गाड़ी पार्क की । तब पता चला कि हाईवे के किनारे गाड़ी पार्क करना नियम विरुद्ध है । थोड़ी थोड़ी दूर पर बने एग्जिट से बाहर निकलकर ही गाड़ी पार्क करनी पड़ती है । एग्जिट एरिया में पेट्रोल पंप ,रेस्टोरेंट और वाशरूम की सुविधा भी रहती है जिससे लंबी ड्राइव पर जाने वाले हैं यात्रियों को कोई परेशानी ना हो । इसके लिए पहले से ही साइन आने लगता है । फ्रेश होने के पश्चात हमारी यात्रा फिर प्रारंभ हुई । इस बार ड्राइविंग सीट पर प्रभा थी तथा उसके बगल में मैं बैठी थी । मन में संशय था कि वह कैसे हाईवे पर गाड़ी चला पाएगी । कैसे रास्ते ढूंढेगी पर इस समय कुछ भी कहने सुनने का प्रश्न ही नहीं था । वैसे भी जब पंकज जी ने उसे ड्राइविंग के लिए कहा है तो विश्वास तो होगा ही ।

प्रभा ने गाड़ी में सामने लगी मशीन जी.पी.एस. पर कुछ फीड किया । जी.पी.एस. के बारे में सुना अवश्य था पर उसका फायदा आज नजर आ रहा था। पहले पीछे बैठने के कारण मैं पर ध्यान नहीं दे पाई थी पर अब सामने बैठकर उसके दिशानिर्देशों को न केवल स्पष्ट देख पा रही थी वरन सुन और समझ भी पा रही थी । सामने लगी जी.पी.एस. मशीन न केवल रास्ते के बारे में बता रही थी वरन रास्ते में पेट्रोल पंप, रेस्टोरेंट, तथा वाशरूम के बारे में भी दूरी बताने के साथ इंगित भी कर रही थी अगर कहीं मुड़ना होता तो उस मोड़ के पहले ही वह बोलते हुए निर्देश भी दे देती थी ।

प्रभा बड़ी ही चुस्ती और फुर्ती से ड्राइव कर रही थी जो मेरे लिए एक अनोखा अनुभव था । जगह-जगह पर स्पीड लिमिट लिखकर आ रही थी । लगभग सभी स्पीड लिमिट को फॉलो कर रहे थे क्योंकि अगर वे ऐसा नहीं करते तो फाइन हो सकता है । अगर किसी को अपनी स्पीड कम या अधिक करनी है तो वह स्पीड के अनुसार अपनी लेन बदल सकता है । प्रभा ने हमें बताया कि यहां पर हाईवे या अन्य सड़कों पर चलने वालों के ऊपर ट्रैफिक पुलिस के कंट्रोल रूम से निरंतर निगरानी रखी जाती है । अगर कोई ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करता है तो तुरंत पकड़ा जाता है तथा उसे फाइन देना पड़ता है । प्रभा की इस बात से लगभग हफ्ते का वाकया याद आया... प्रभा की बेटी प्रियंका की गाड़ी की हेड लाइट अचानक खराब हो गई । उसे पता ही नहीं चला तथा वह गाड़ी ड्राइव करती रही । जब नियम तोड़ने का उसे संदेश मिला तब उसे पता चला कि गाड़ी की हेड लाइट खराब हो गई है । दूसरे दिन उसने लाइट ठीक करवाई तथा जुर्माना भरा ...इस एक उदाहरण से ही पता चल जाता है कि यहां ट्रैफिक नियम कितने कड़े हैं ।

चलते चलते एक बार सू...की आवाज आई । मैंने प्रभा से पूछा तो प्रभा ने बताया यह आवाज सड़क के किनारे बने पीली लाइन को गाड़ी के पहिए द्वारा छूने के कारण हुई है । इसका मतलब है हम अपने लेन से भटक रहे हैं । यहां पर सड़क के किनारे बनी पीली लाइन पर छोटे-छोटे कटा वाली धारियां (स्पीड ब्रेकर टाइप ) बनी रहती हैं । जब तेज रफ्तार चलती गाड़ी इस पीली लाइन।को छूती है तो गाड़ी में हल्के झटके (वाइब्रेशन) आने लगते हैं जो चालक को सावधान कर देते हैं जिससे दुर्घटना से बचाव हो सके ।

इसी तरह हमने भी गाड़ियों की लाइट जलती देखी तो उसने कहा कि यहां गाड़ियों में लगे सेंसर निर्धारित लाइट के कम होने पर अपने आप लाइट जला देते हैं ...अर्थ यह यह कि आपको यहाँ गाड़ी का स्टीयरिंग संभालने के अतिरिक्त कुछ नहीं करना पड़ता है । सब कुछ गाड़ी में लगी मशीन अपने आप ही कर देतीं हैं । हमें आश्चर्य तो तब हुआ जब प्रभा ने सीधे मैरियट होटल के पार्किंग लाउंज में गाड़ी खड़ी करके यात्रा की समाप्ति की घोषणा की । शाम का 4:00 बज रहा था हमने लगभग 800 मील की यात्रा कर ली थी । अपने भारत में इतने कम समय में इतनी दूरी तय कर पाना संभव ही नहीं है । सिर्फ इसी बात से यहां की सड़कों के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है ।

हमने रिसेप्शन पर अपने लिए बुक कमरे की चाबी ली तथा सामान लेकर अपने कमरे में पहुंचे । हमारा कमरा 19 वीं मंजिल पर था । हमने कमरे में जैसे ही प्रवेश किया उसकी खिड़की से नियाग्रा फॉल को देखते ही मुंह से निकला... अति सुंदर... अति सुंदर...। इस झरने को देखकर ऐसा महसूस हुआ जैसे 8 घंटे की हमारी थकान छूमंतर हो गई है । पंकज जी फॉल व्यू वाला कमरा बुक कराया था जिससे कमरे के अंदर से प्रकृति के सौंदर्य को निहार सकें । कनाडा की तरफ घोड़े की नाल के आकार का फॉल बहुत ही सुंदर है । जैसा सुना था वैसा ही पाया । हम इस दृश्य को आंखों में भर लेना चाहते थे । वैसे होटल की खिड़की से अमेरिका की तरफ वाला झरना भी पूरी तरह दिख रहा था। यह सीधा फॉल है पर इसकी शोभा भी कम नहीं है । हम सामने रखी कुर्सी पर बैठकर झरने का आनंद लेने लगे ।

' क्या यहीं बैठे-बैठे फलक5 देखती रहोगी, नीचे नहीं चल आ है क्या ?' आदेशजी ने कहा ।

आदेशजी की आवाज सुनकर हम सपनों की दुनिया से बाहर आए । कॉफी बनाने के लिए कॉफी मेकर ऑन कर दिया तथा फ्रेश चले गए । फ्रेश होकर आए, तो कप में कॉफी, शुगर और दूध डालकर काफी तैयार कर सबको दी । फॉल को देखते-देखते गरमागर्म कॉफी का आनंद लिया तथा नीचे चल दिए । रिसेप्शन में कुछ बुकलेट रखीं थी जो भी हमें ठीक लगी हमने उठा लीं ।

होटल से नीचे उतरते ही फॉल था । एक ट्रॉली लिफ्ट भी चल रही थी ऊपर से नीचे जाने के लिए पर हमने पैदल जाना ही उचित समझा । सोचा इस बहाने इधर-उधर के दृश्य भी देख लेंगे ।

थोड़ी देर में हम नीचे पहुंच गए । जितना सुंदर फॉल था उतना है अच्छा वहां का रखरखाव था । वैसे उस फॉल को देखकर हमें अपने देश के जबलपुर में स्थित 'धुआंधार फॉल' की याद आ गई । वह भी इसी तरह घोड़े की नाल की तरह बना हुआ है तथा उसका पानी भी इतने वेग से नीचे गिरता है कि चारों ओर पानी की बौछारों के कारण लगता है कि जैसे रिमझिम बरसात हो रही है तथा जहां पानी गिरता है वहां धुंआ भी हो जाता है शायद इसी कारण उसका नाम 'धुंआधार 'पड़ा है । वहां मार्बल रॉक के बीच बहती नदी में वोटिंग करना तथा फॉल का आनंद लेना एक अनोखा सुख प्रदान करता है । कहते हैं पूर्णिमा कि वहां पूर्णिमा की रात में उपस्थित मार्बल रॉक पर चांदनी के कारण बना अभूतपूर्व दृश्य दर्शकों को अभूतपूर्व आनंद से भर देता है ।

'दीदी कहां खो गई चलो आगे चलते हैं । यह कनाडा की तरफ का फॉल है । थोड़ा आगे जो दिख रहा है वह अमेरिकन साइड का है तथा सामने दिखता पुल दोनों भागों के बीच आवागमन का साधन है ।' प्रभा की बात सुनकर मैं विचारों से बाहर आई ।

चलते-चलते जब उसे 'धुआंधार फॉल' के बारे में बताया तो उसने कहा, ' तुम सच कह रही हो दीदी, हमारे भारत में एक से एक अच्छे पर्यटन स्थल हैं पर हमारी सरकार को इसका एहसास नहीं है कि उनको कैसे उनको डेवलप किया जाए तथा कैसे इनका प्रचार प्रसार करें जिससे इन स्थलों को देखने के लिए न केवल ज्यादा से ज्यादा दर्शक आएं वरन टूरिज्म की वजह से भी कुछ आय हो ।'

बातें करते -करते हम अमेरिकन साइड के फॉल की तरफ बढ़ गए । यह फॉल भी अच्छा था पर कनाडा के फॉल की तरह नहीं है । हमने पूछा इसका नाम नियाग्रा फाल कैसे पड़ा ? तो प्रभा ने बताया यह नियाग्रा रिवर के द्वारा बना है इसलिए इसे नियाग्रा फॉल कहते हैं । इस फॉल के आसपास बसी आबादी नियाग्रा शहर कहलाती है ।

नियाग्रा रिवर में छोटे जहाज की तरह नावें में चल रही थीं । उनमें कुछ अमेरिकन साइड से आ रही थी तो कुछ कनाडा की तरफ से । दोनों तरफ की बुकिंग काउंटर तथा डेक अलग -अलग थे पर यह बात अच्छी लगी कि अमेरिकन साइड वाली बोट कनाडा साइड के फॉल तक आ रही थी तथा कनाडा साइड की बोट अमेरिकन फॉल तक जाकर दर्शकों को फॉल का आनंद करा रही थी । तेजी से गिरते झरने से गिरते पानी के छींटे से कपड़े गीले ना हो जाए उसके लिए दर्शकों को पहनने के लिए रेनकोट दिया गया था । नीले रंग का कनाडा सेड वालों का था तथा पीले रंग का अमेरिकन साइड वालों का था । शायद रंग का यह अंतर दोनों देशों के यात्रियों को पहचान देने के लिए था ।

उस दिन तो समय के अभाव के कारण और कहीं घूमने का प्रश्न ही नहीं था । रेलिंग के किनारे खड़े होकर ही हमने फॉल का आनंद लिया तथा कुछ फोटोग्राफ भी लिए । शाम हो गई थी हम वहीं पार्क में बड़ी बेंच पर बैठकर फॉल का आनंद लेने लगे... होटल के रिसेप्शन से हमने आसपास घूमने की जगह की जानकारी प्राप्त करने के लिए बुकलेट ले ही ली थी । फॉल की सुंदरता निहारते निहारते मैं वही बुकलेट पढ़ने लगी …

सुधा आदेश
क्रमशः