Who is responsible? in Hindi Moral Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | जिम्मेदार कौन?

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जिम्मेदार कौन?

विभावरी के निर्जीव देह को उसका पांच वर्षीय बेटा हिलाते हुए कह रहा था कि मम्मी उठो न,मुझे भूख लगी है, दूध-ब्रेड दे दो।देखो,कितने सारे लोग आए हैं और आप सो रही हो।फिर पिता का कंधा हिलाकर पूछता है कि मां जमीन पर क्यों सो रही है, दादी,नानी रो क्यों रही है।पड़ोसी-रिश्तेदार सभी की आँखे नम हैं।नमन फ़टी आंखों से बस विभावरी को देखे जा रहा है, आंखों के अश्रुओं ने भी धोखा दे दिया है, दोस्त झंझोड़ कर कह रहा है, "उठ नमन, अब भाभी को विदा करने का समय हो गया है।"
कल तक हंसती,बोलती,मुस्कराती, गुनगुनाती ,भविष्य के सपने सँजोती विभावरी आज निष्प्राण पड़ी हुई थी।कल ही तो इलेक्शन ड्यूटी कर के आई थी।रात होते-होते 104 डिग्री ज्वर से तपने लगी थी,सांस लेने में दिक्कत होने लगी थी, सर में एक तरफ तीव्र पीड़ा हो रही थी,आँखे सुर्ख हो रही थीं,प्रेग्नेंसी का आठवां महीना चल रहा था,पेट में भी दर्द की लहर उठने लगी थी।उसका पति नमन उसकी हालत देखकर घबरा गया।नमन शीघ्रता से अपने दोस्त से कार लेकर तुरंत हॉस्पिटल को चल पड़ा।लेकिन कोरोना महामारी के कारण किसी हॉस्पिटल में जगह ही नहीं थी,कोई चिकित्सक देखने को तैयार नहीं था।
जिस महिला डॉक्टर की देखरेख में विभावरी का चेकअप चल रहा था, वह भी इस आपातकाल में बिना कोरोना टेस्ट रिपोर्ट के देखने को तैयार नहीं हुई।हर जगह से निराश होकर नमन मेडिकल कॉलेज भी गया,लेकिन वहाँ भी उसे इमरजेंसी में एडमिट करने से मना कर दिया गया, क्योंकि वहाँ भी जगह नहीं थी।एक सामान्य व्यक्ति को बिना सोर्स के चिकित्सा भी मयस्सर नहीं था इस समय, अंततः विभावरी के साथ उस अजन्मे शिशु ने भी संसार में आने से पूर्व ही प्राण त्याग दिया। यंत्रचालित सा नमन ने विभावरी के पार्थिव शरीर को अग्नि को समर्पित कर दिया।इस आपातकाल में चंद करीबी लोग उपस्थित थे।जैसे -तैसे करके समस्त संस्कारों को पूर्ण किया।
बेटे को कलेजे से चिपकाए हाथ में विभावरी की तस्वीर लिए नमन के व्यथित मस्तिष्क में विचारों का अंधड़ चल रहा था।हंसता-खेलता सुखी परिवार था विभावरी-नमन का।अरेंज मैरिज थी उनकी।एमए ,बीएड पास हँसमुख विभावरी को पत्नी रूप में पाकर वह अत्यंत प्रसन्न था।वह एक प्राइवेट कम्पनी में कार्यरत था।उसी के प्रोत्साहन से विभावरी ने प्रयास किया था और पहले ही प्रयास में सरकारी स्कूल में अध्यापिका हो गई थी।बेटे के बाद इस बार एक बेटी की हार्दिक इच्छा थी, जिससे परिवार पूर्ण हो जाता।सब कुछ अच्छा चल रहा था।कोरोना महामारी में उन्होंने हर सम्भव सावधानी से स्वयं तथा अपने परिवार को सुरक्षित रखा था।
इसी मध्य पंचायत चुनाव का घोषणा कर दिया गया।कुछ अन्य राज्यों में भी चुनाव हो रहे थे।सभी नियमों को ताक पर रखकर जोर-शोर से चुनावी रैलियाँ की जा रही थीं,कार्यकर्ता , नेता सभी हथकंडे अपना रहे थे।चुनाव में लोगों की ड्यूटी लगाई गई।जिनकी पहुँच थी,उन्होंने तो अपना नाम लिस्ट से कटवा लिया।नमन के साथ विभावरी शिक्षा अधिकारी से लेकर डीएम के कार्यालय तक कहाँ-कहाँ नहीं भटकी थी,अपनी प्रेग्नेंसी की दुहाई दी थी लेकिन सभी ने मना कर दिया कि हम क्या करें, जब नौकरी करनी है तो ड्यूटी तो निभानी पड़ेगी।
इलेक्शन ड्यूटी में शामिल काफी लोग कोरोना पॉजिटिव हो गए थे, सरकार एवं प्रसाशन चाहे जितने दावे करे लेकिन कटु सत्य है कि कुछ तो पहले से ही बीमार रहे होंगे,कुछ ड्यूटी के दौरान संक्रमित हो गए।समाचारों से ज्ञात हुआ था कि केवल उत्तर प्रदेश के चुनावों में ही सैकड़ों लोगों ने इलेक्शन ड्यूटी में कोरोना ग्रस्त होकर जान गवां दिया।एक युवती का दो दिन पश्चात विवाह था,मात्र दो दिन पूर्व ही वह इलेक्शन ड्यूटी करके आई,दूसरे दिन अर्थात विवाह से एक दिन पूर्व ही चल बसी। जो परिवार उजड़ गए,जो बच्चे पितृ-मातृविहीन हो गए, जिन्होंने अपने गवां दिए उनके दुखों का जिम्मेदार कौन है?जिन लोगों ने अपनी जान गवां दी उनकी हत्याओं के आरोपी कौन हैं, क्योंकि यह एक तरह से हत्या ही है।वे नेता जिनके लिए इलेक्शन इंसानों से अधिक महत्वपूर्ण था राजनीति के लिए।या चुनाव आयोग जो शायद राजनीति के ही इशारे पर नाचता है, या वे अधिकारी जिन्हें नेताओं की परोक्ष गुलामी करनी पड़ती है।इन नेताओं के लिए शायद आम जनता गाजर-मूली से ज्यादा नहीं है।चुनाव टाले जा सकते थे।
ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं है, दवाओं की भी कालाबाजारी हो रही है,दलाल एवं कालाबाजारी करने वाले घटिया लोग इंसानों की लाशों पर तिजोरी भरने में लगे हुए हैं। अस्पतालों में जगह नहीं है,इनकी व्यवस्था करने की बजाय हमारे देश में चुनाव महत्वपूर्ण हैं।एक तो लोग भी लापरवाह हैं,विवेक-बुद्धि का इस्तेमाल करना ही नहीं चाहते, जबतक की स्वयं चपेट में न आ जाएं औऱ उनके साथ कुछ लोग घुन की तरह पिस जाते हैं।जो लॉक डाउन इलेक्शन के बाद लगा,क्या वह पहले ही नहीं लगना चाहिए था?
इस अंधी व्यवस्था के प्रति आक्रोश नमन को मथ रहा था।भले ही वह कुछ नहीं कर सकता था लेकिन उसने अपने आक्रोश को वीडियो में अभिव्यक्त कर सोशल मीडिया पर डाला, वीडियो वायरल हुआ।भले ही इससे अंधे-बहरे प्रसाशन एवं नेताओं के कानों पर जूं नहीं रेंगा, लेकिन विरोध की एक लहर तो उठी ही।
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