Baingan - 40 in Hindi Fiction Stories by Prabodh Kumar Govil books and stories PDF | बैंगन - 40 - (अंतिम भाग)

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बैंगन - 40 - (अंतिम भाग)

मैं पहले कभी इस तरह नहीं रोया था। मेरे आंसू लगातार इतनी देर तक कभी नहीं बहे। लेकिन अब परिस्थिति ही ऐसी थी कि और कोई चारा नहीं था।
मैं पुलिस हिरासत में था।
वैसे मुझे पूरा यकीन था कि भाई वकील को लेकर जिस तरह भागदौड़ कर रहा था, उससे जल्दी ही वो मेरी ज़मानत करवा देगा और मुझे इस जीवन- घोंटू वातावरण से छुड़ा कर ले जाएगा। भाई जब हिरासत में मुझसे मिलने आया तब उसने मुझसे ऐसा कहा भी था। और भाई जो कहता था वो करता था। वह धीर - गंभीर और अपने में ही रमा रहने वाला दिखता था पर अंदर ही अंदर उसे सबकी चिंता रहती थी।
अब देखो न, कितने होशियार और महंगे वकील को साथ लेकर मुझे छुड़ाने की कोशिशों में जुटा था।
ओह! मैं भी क्या अपनी राम -कहानी लेकर बैठ गया। पहले आपको बता तो दूं कि ये सब कैसे हुआ? ऐसा क्या हुआ कि पुलिस ने मुझे सलाखों के पीछे ला पटका।
मुझे कहने - बताने में भी शर्म आ रही है।
जीवन ऐसा ही है। हम कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। मैं सबसे कहता रहा कि भाई विदेश से लौटने के बाद ज़रूर कोई न कोई काला धंधा कर रहा है इसीलिए खूब पैसा कमा रहा है। उसका बंगला और ठाठ - बाट देख कर मैंने बिना जाने- समझे उस पर ग़लत तरीके से पैसा कमाने का आरोप मढ़ दिया। जबकि ऐसा कुछ नहीं था। भाई शुरू से ही मेहनती, अच्छी आयोजना करने वाला, और जिंदगी में जोखिम उठाने वाला शख्स था और उसने इन्हीं गुणों के कारण जीवन में सफलता पाई।
मां शायद ठीक कहती थीं कि मैं भाई की तरक्की से जल रहा हूं। मेरी पत्नी का सोचना बिल्कुल सही था कि मुझे ज़रूर कोई ग़लत - फ़हमी हुई है।
सच कहूं तो मैं मन ही मन यही ईर्ष्या लेकर भाई के घर गया कि वो इतना पैसा कैसे कमा रहा है? कौन सा जादू है उसके पास!
और तरह - तरह की कुटिल कल्पनाएं करता हुआ मैं खुद उनमें फंसता गया।
अपना खुद का कारोबार मैनेजर के भरोसे छोड़ कर शांति और संतुष्टि से जीने का दिखावा करने वाला मैं, वास्तव में इसी बेचैनी से उतावला होकर भाई के बंगले पर आया था कि देखूं, वो कैसे कमा रहा है।
यहीं मेरी मुलाक़ात एक नशे के एक कुटिल कारोबारी से हो गई। अपने और भाई के स्टाफ के लोगों से आत्मीय संपर्क में रहने के दौरान ही मुझे ये शख़्स मिल गया।
ओह! मेरी मति मारी गई थी जो मैं लोगों को नुक़सान पहुंचाने वाले इस कारोबार में रुचि लेने लगा!
मैंने अपने बचपन के दोस्त के कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों को भी ये ब्राउन शुगर और हेरोइन जैसे उजले जहर बांटने में लगा लिया। मैं इन्हें ख़ूब पैसा बांटता, क्योंकि मेरे पास हराम का काला पैसा बरस भी तो रहा था।
ये लड़के मेरे कहने से क्या- क्या करने लगे? छी- छी... बैंगन के छिलके बांट कर जवानी के खुले खेल भी इन्होंने सीख लिए।
मैं तरह- तरह से ये खोज करता कि इसका उपयोग किस तरह और कहां- कहां किया जा सकता है?
मैंने इसे सब्ज़ियों में मिलाने का तरीका खोज लिया। मैंने सुना था कि विदेश से आने वाले कई डिब्बाबंद खाने के सामान में इसे मिलाने से लोगों को इसकी आदत लग जाती है। यदि बर्फ़ के साधारण से गोले पर नमक की तरह इसकी ज़रा सी मात्रा का छिड़काव कर दिया जाए तो बच्चे इसके लिए छटपटाने की हद तक इसके आदी हो जाते हैं।
ओह! मैंने ये घोर पाप किया कि मंदिर में भक्त के रूप में आकर लोग हमसे प्रसाद के रूप में ये ज़हर ले जाते थे। कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के पार्ट टाइम जॉब के बहाने मंदिर में प्रसाद के पैसे जमा करते और उन्हें प्रसाद की तरह नमक की यह नन्ही सी पुड़िया थमा दी जाती। वीरान से इलाक़े के उस अनजान से मंदिर के बाहर "भक्तों" की गाड़ियां आ आकर खड़ी होने लगीं।
प्रबंधन की पढ़ाई कर के शहरों व गांव के ढाबों में फूड चेन चलाने वाले कुछ लोग खाने में इसे मिलाने लगे ताकि गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस युग में अपना धंधा भारी मुनाफे के साथ चला सकें।
हाय! हमने मेहनत से उगा कर एक्सपोर्ट की जाने वाली सब्ज़ी तक में रखरखाव के नाम पर ये नशा छिड़कना निर्दोष लोगों को सिखा दिया।
तन्मय को जिस लड़की के पिता ने तांगा देकर अपनी लड़की से संबंध बनाने के लिए उकसाया वही नशे की यह खेप लगातार मेरे लिए लाने वाला राक्षस बना। मैं तन्मय के घर की छत पर रात को इससे कारोबार की सफ़ेद- स्याह बातें करता। उसे इतने अनाप- शनाप पैसे मिलते थे कि वह अपना सब कारोबार छोड़- छाड़ कर घर बैठ गया। उसकी बेटी चिमनी मंडी के जिस व्यापारी के साथ भागी उसी ने हमें बैंगन की खेती करने वाले विशाल फार्म का रास्ता दिखाया।
तन्मय और उसके आवारा फिरते दोस्त मेरे लिए ऐसे भटकते कोलंबस बन गए जिन्होंने मेरे लिए अपराध की ये ज़मीन खोज डाली।
फूल माला बेचने वाले मासूम लोगों तक से हमने ये पाउडर बिकवाया।
क्या आप जानते हैं कि भाई मुझे जो कार तोहफ़े में दे रहा था वह भाई ने नहीं खरीदी, बल्कि उसी फार्म हाउस ने मेरे लिए तोहफ़े में भिजवाई थी। भाई को जब यह बात पता चली तो उसने नाटकीय ढंग से इसकी चाबी मुझे सौंपी ताकि मुझे भाभी और बच्चों के सामने जलील न होना पड़े।
अब ध्यान से सुनिए। चौंकिएगा मत, भाई को शुरू से ही मेरी गतिविधियों पर शक हो गया था इसलिए उसने अपने एक पुलिस अधिकारी मित्र को मेरी सारी आदतों और गतिविधियों पर नज़र रखने का काम सौंपा था। इस तरह भाई बराबर मुझ पर नज़र रखे हुए था ताकि वह मुझे इस गलीज़ रास्ते से उबार सके।
बताओ, मैं तो उसी मुहावरे के गुंजलक में फंस गया न, कि ख़ुद गुरुजी बैंगन खाएं और दूसरों को शिक्षा दें न खाने की!
शायद कबीर इसीलिए कह गए हैं कि बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय, जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय!
अब मुझे नींद आ रही है। मेरी कोठरी में मच्छर भी बहुत हैं। भाई सुबह आ जाएगा और मेरी जमानत करवा कर मुझे छुड़ा ले जाएगा।
सच में... भाई हो तो ऐसा!
(समाप्त)

प्रबोध कुमार गोविल