Holiday Officers - 42 in Hindi Fiction Stories by Veena Vij books and stories PDF | छुट-पुट अफसाने - 42

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छुट-पुट अफसाने - 42

एपिसोड--- 42

‌ यात्राओं का सिलसिला तो खत्म होने का नहीं हम घुमक्कड़ों का। और यादें ! अलग-अलग झरोखों से झांकती हुई अतीत के द्वार खटखटाने लगती हैं। जिस धरातल पर यह घटी होती हैं उससे जुड़ी रहती हैं। इनकी प्रविष्टि पर हमारा पूर्ण स्वायत्त अधिकार होता है। फिर चाहे वह मधुर हों या भयावह ! इनमें हम आकंठ डूब सकते हैं फिर चाहे हम आनंदित हों या दुखी हों ! संतुष्ट हों या दर्द में डूब जाएं। यह उन बातों पर निर्भर करता है ।कुछ ऐसी ही बातें सुनाती हूं ...

पहलगाम में कुछ न कुछ होता ही रहता था। 70 के दशक की बात है ---एक बार पहलगाम में दो हाथी आए तो उनके ऊपर डब्लू और मीतू(दोस्त) ने सवारी करी। बाजार में अच्छा-खासा जुलूस निकल रहा था कश्मीरी लोग पीछे- पीछे, मानो कोई अजूबा हो रहा हो। उन लोगों ने जीवित हाथी कभी नहीं देखा था। लोग उसे छूकर देखना चाहते थे। हाथी वालों पर भी हैरानी होती थी वे लोग इतनी दूर पहाड़ों पर हाथी को घुमाने ले आए थे!

ऐसे ही एक शाम डब्लू को लेकर मैं सैर करने गई तो वहां बॉलीवुड के संगीतकार जयदेव मिल गए । उनके संगीत के बारे में ढेरों बातें वो सुनाते रहे। कटनी में तो ऐसा कुछ नहीं होता था । मैं ईश्वर का धन्यवाद करते थकती नहीं थी, उसने मेरी झोली में बहुत कुछ डाल दिया था।

उन दिनों बॉलीवुड की अधिकतर फिल्में पहलगाम में शूट होती थीं। सन् ‌'73 अक्टूबर में आर.के. फिल्म यूनिट पहलगाम पहुंच गया था। राज कपूर जी की और रवि जी की दोस्ती पिछले 10 -11 वर्षों से प्रगाढ़ हो गई थी ! उन्होंने पहलगाम पहुंचते ही रवि जी को अपने साथ लिया और होटल चले गए। उन दिनों में तो रवि जी हमको भूल जाया करते थे। लेकिन डब्लू उनके बगैर नहीं रह पाता था। सो, बीच-बीच में उसे साथ ले जाते थे।

उस वर्ष अचानक 15 अक्टूबर को सुबह स्नोफॉल शुरू हो गया। यह आश्चर्यचकित होने वाली बात थी, क्योंकि स्नोफॉल हमेशा दिसंबर में होता था। इस पर राज कपूर जी जोश से भर गए। इतने excited हो गए कि अगली सुबह से ही बर्फ में शूटिंग शुरू कर दी थी। डब्लू पापा के साथ बहुत अधिक रहता था इसलिए वह भी साथ-साथ जाता था तो डिंपल को उससे खेलकर अच्छा लगता था। उसने एक आदत ही बना ली थी कि वह शूटिंग जाने से पहले आकर डब्लू को प्यार करती, उसके गालों को चूमती- चाटती फिर शूटिंग पर जाती थी। कहती थी मैं तो सेव खाने आई हूं। क्योंकि डब्लू के गाल सेव जैसे लाल होते थे । नहीं मिले, तो उसको मंगवा भेजती थी।

हमारे आर. के .स्टूडियो के सामने डिंपल का एक सीन फिल्माया जाना था। जिसमें एक कश्मीरी 10 साल का लड़का डिंपल को आकर एक चिट्ठी देता है। राज कपूर जी ने रवि जी को कहा कि डब्लू को गोद में उठाकर आप डिंपल के सामने से निकलो। तभी मेरी बहन पूनम भी आई हुई थी। वह भी अपने बेटे चीकू को हाथ से पकड़े हुए दूसरी ओर निकल गई। यह लोग फिल्म में दिखते हैं। तभी पहलगाम क्लब की hutment में मशहूर गीत...

"हम तुम एक कमरे में बंद हो और चाबी खो जाए"  की कुछ शूटिंग हुई। हम सब यूनिट के साथ ही थे वहां। बाकी गुलमर्ग में भी शूटिंग हुई थी इस गाने की। बॉबी फिल्म के बाद डिंपल कपाड़िया की शादी सुपरस्टार राजेश खन्ना से हो गई थी। उसके बाद राजेश खन्ना जब पहलगाम में फिल्म "रोटी" की शूटिंग करने आए तो आर के स्टूडियो पर आकर उन्होंने पूछा, , "डब्ल्यू कहां है? भाई हमें तो डिम्पल ने डब्लू से मिलने भेजा है।"वे भी उसकी नन्ही-सी अदाओं पर फिदा होते रहते थे। कभी भी घर पर आ जाते थे उससे खेलने।

उन्हीं दिनों एक दिन पार्क के सामने " दो बीघा जमीन"और अपने जमाने की मशहूर फिल्म" सीमा"के हीरो बलराज साहनी जी मिल गए। उनकी " वक्त " और "काबुलीवाला" ‌भी मेरी पसंदीदा फिल्में थीं। वे बेहद उदासी से भरे दिखे। मैंने उन्हें घर चल कर चाय पीने की ऑफर दी, तो वे मान गए। मैं उन्हें अपने साथ घर ले गई और बातों बातों में उन्होंने बताया कि उनकी जवान बेटी शबनम की कम उम्र में ही मृत्यु हो गई है। तभी से वे गंभीर हो गए थे।

सुनकर धक्का सा लगा। हमने ढेरों बातें कीं। क्या मालूम था अगली बैसाखी पर उनकी मृत्यु हो जाएगी । जबकि पहलगाम आने की हसरत वे दुबारा रखते थे। मां बाप के लिए औलाद कितनी अमूल्य होती है---स्वयं मां बनने के बाद अब मैं यह समझ गई थी और उनके दर्द भरे जज्बातों की तह तक पहुंच पा रही थी।

उधर, ऋषि कपूर की पहली फिल्म होने के कारण राज पापा जी टेंशन में भी रहते थे। बीच-बीच में बोलते थे अभी ठीक से सुन ले मेरे बाप! जैसे मैं कह रहा हूं वैसे कर। ऋषि ने भी बहुत मेहनत करी। और मूवी सुपरहिट हुई थी। पहलगाम में बॉबी के कारण एक डेढ़ महीना बहुत ज्यादा रौनक रही। हवाओं में बहुत एक्साइटमेंट था

। आज भी लोग इकट्ठे बैठकर बॉबी का जमाना याद करते हैैं। फोटोस तो बहुत अधिक थीं। लेकिन नवंबर 2005 में जब हम अमेरिका में थे, तो पहलगाम में हमारे घर लगी भीषण आग ने सुरसा के मुख की तरह सब कुछ निगल लिया था।

 

वीणा विज'उदित'

7/8/2020