Aghori's curse - 4 in Hindi Adventure Stories by नवीन एकाकी books and stories PDF | अघोरी का शाप - 4

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अघोरी का शाप - 4

शायद बाबा के बाप और विनती का असर अघोरी पर पड़ा और वो अपनी उसी गुर्राहट भरी आवाज़ में बोला-

"तूने मुझे जल पिलाया है, मेरी प्यासी आत्मा को तृप्त किया है इसलिए मैं तेरा ऋणी हो गया हूँ , तेरे इस उपकार के बदले मैं तेरी विनती को मान कर अपने श्राप का असर कम तो कर सकता हूँ पर वापस नही ले सकता।"

ऐसा मत कहो महाराज, हम अभागों पर दया करो, ये हमारी पहली संतान है और अगर ये ही मंदबुद्धि या किसी और कमी से ग्रसित हुई तो हमारा क्या होगा, उसका भी भविष्य दुखदायी होगा महाराज और वैसे भी महाराज उस अबोध का क्या दोष जो अभी जन्मा ही नही..महाराज हम पर नही तो उस पर तो दया कीजिये...बाबा का बाप रोते हुए अघोरी से हाथ जोड़कर बोला

मैंने बोला न! मैं अपने श्राप को वापस नही ले सकता परन्तु उसका असर कम कर सकता हूं...

जैसा आपको सही लगे महाराज कीजिये पर हमारे ऊपर दया कीजिये महाराज दया कीजिये...बाबा का बाप लगातार रोये जा रहा था

ठीक है... तेरा बालक मंदबुद्धि तो नही होगा, वो अन्य बालकों जैसा ही स्वस्थ और बुद्धिमान होगा परन्तु वो आजीवन नग्न ही रहेगा। वो कभी भी कमर के निचले भाग में कभी भी कोई भी वस्त्र नही धारण करेगा...अघोरी ने उसी खरखरती आवाज में कहा

महाराज ऐसा मत करिए, भगवान के लिए हमे माफ कर दीजिए... इस तरह तो लोग उसकी हंसी उड़ाएंगे, न जाने क्या क्या कहेंगे, कैसे जी पायेगा वो इन तानों को सुनकर...दया करो महाराज दया करो...बाबा का बाप अघोरी के कदमों में दण्डवत हो गया।

बस अब इससे ज्यादा कुछ भी नही हो सकता...इतना भोगमान तो तुमलोगों और उसको भोगना ही होगा....हर हर महादेव...अघोरी ने सपाट लहज़े में बाबा के बाप को बोला और एक ओर चल पड़ा। शाम का धुंधलका छाने लगा था।
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बाबा का बाप उस अघोरी के पीछे भगा पर वो अघोरी कुछ दूरी जाने के बाद अचानक देखते ही देखते उस धुंधलके में गायब सा हो गया। एकाएक न जाने कँहा चला गया था वो। बाबा का बाप ठगा का ठगा खड़ा रह गया। उसने उस जगह का चप्पा चप्पा छान मारा मगर उस अघोरी का नामोनिशान तक न मिला। वो आश्चर्यचकित रह गया था, उसका गला डर से सूख चुका था। वो काफी देर तक थर थर कांपता रहा। उसे यकीन ही नही हो रहा था कि ये सच था या कोई वहम।

वो भाग कर वापस कुंए के पास पहुंचा जँहा उसकी पत्नी अभी भी बेसुध पड़ी थी। चारो ओर सन्नाटे के सिवाय कुछ न था।

उसने अपने आँखो में आये आँसुओ को पोछा और अचानक उसकी नज़र उस जगह पर पड़ी जँहा वो अघोरी खड़ा था। कुंए के पानी की वजह से गीली हुई मिट्टी में अभी भी उस अघोरी के पैरों के निशान मौजूद थे। यानि वो सब सच था, ये उसका कोई वह नही था। वो अघोरी शायद कोई देवदूत था जिसे पहचानने में उनसे भूल हो गयी थी। उसने न जाने किस वजह से उस मिट्टी को अपने गमछे में बांध लिया शायद श्रद्धा और भक्ति भाव उमड़ आये थे उसके मन मे और अपनी पत्नी को होश में लाने का प्रयास करने लगा।

थोड़ी देर में वो होश में आ गयी आंख खोलते ही सबसे पहले उसने उस तरफ नज़र डाली जिधर वो अघोरी खड़ा था पर शाम के धुंधलके के सिवा कुछ न था।

वो बाबा कँहा गया और वो क्या अनाप शनाप कह रहा था...उसने अपने पति से पूंछा

वो चले गए...और कुछ भी नही कहा उन्होंने... चलो घर चलते हैं... बाबा के बाप ने उसे सहारा देकर उठाते हुए कहा।

पर वो तो शाप वाप दे रहा था न...मैं तो डर के मारे होश खो बैठी था....सब ठीक तो है न....उसने पति से फिर पूंछा

हां सब ठीक है... कुछ भी नही हुआ...अब चलो भी मुझे भूख लगी है... कहते हुए वो गांव की ओर बढ़ चला शायद वो कुछ भी बता कर अपनी पत्नी को और डराना या अपराधबोध में ग्रसित नही करना चाहता था। उसकी पत्नी बिना कुछ और पूंछे उधेड़बुन में उलझी हुई उसके पीछे चल पड़ी।

शेष अगले भाग में