Nagmani (Memoirs) - 4 in Hindi Adventure Stories by राज कुमार कांदु books and stories PDF | नागमणी (संस्मरण ) - 4

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नागमणी (संस्मरण ) - 4



दूसरे दिन गुरूजी निर्धारित समय पर हमारे घर आ गए । उन्हें घर पर जलपान वगैरह कराकर हम साथ में ही घर से बाहर निकले । मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि गुरूजी ने मुझसे एक बार भी यह नहीं पूछा कि कहाँ जाना है या कहाँ जा रहे हैं ? बस साथ चलते रहे ।
कुछ ही देर में मैं अपने उस मित्र के घर पहुँच गया जिसके पास वह नाग मणि थी । मित्र का घर मेरे घर से लगभग पाँच मिनट की ही पैदल दूरी पर था ।
दरअसल कल गुरूजी की बात सुनकर व साँपों के बारे में उनकी महारत देखकर सोच लिया था कम से कम एक बार इन्हें वह नाग मणि दिखाकर इनकी राय जानी जाय । उस मणि को लेकर अभी भी मेरे मन में दुविधा बनी हुई थी ।
औपचारिक दुआ सलाम के बाद मैंने गुरूजी का परिचय अपने मित्र से कराया और अपनी इच्छा भी बताई । तुरंत ही उन्होंने कहा, ” कोई बात नहीं ! अगर तुम कहते हो तो दिखाने में हर्ज ही क्या है ? वैसे मैं तुमको एक बात बताने ही वाला था । लेकिन चलो ! पहले देखते हैं तुम्हारे गुरूजी क्या बताते हैं ? ”
कहते हुए मित्र वह मणि लाने घर में चला गया । कुछ ही मिनटों में जब वह लौटा तब वही डिबिया उसके हाथों में थी ।
डिबिया खोलकर उसमें से वह मणि निकाल कर मित्र ने गुरूजी के हाथों पर रख दिया ।
गुरूजी ने अपनी हथेली पर रखी हुयी मणि उलट पुलट कर देखा और फिर उसे अपनी आँखों से छुआते हुए माथे से लगा लिया ।
हम लोग उनकी हर हरकत को खामोश रहकर निहार रहे थे । कुछ ही पलों में वो उत्तेजित सा नजर आने लगे । मुझसे रहा नहीं गया । ख़ामोशी भंग करते हुए मैंने पूछ ही लिया, ” गुरूजी ! यह क्या है ? ”
अपनी तन्द्रा से बाहर आते हुए गुरूजी ने मुस्कुराते हुए पूछा ” पहले तो यह बताओ ! यह तुम्हें मिला कहाँ ? ”
बात टालने की गरज से मैंने बताया, ” वह एक लम्बी कहानी है गुरूजी ! क्या करेंगे सुनकर ? बस इतना बता दो यह है क्या चीज ? ”
अपनी धीर गंभीर चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए गुरूजी बोले ,” तुम लोग खुशकिस्मत हो और तुम लोगों से मिलकर मैं भी अपने आपको खुशकिस्मत मान रहा हूँ जो इस दिव्य वस्तु के दर्शन हो गए । यह बहुत ही दुर्लभ नागमणि है । लेकिन अफसोस यह अब मृतप्राय है । जिसने भी इसे अब तक रखा था इसके साथ बड़ा ही अत्याचार किया है । लेकिन इसमें एक प्रतिशत अभी भी जान बाकी है । देखो ! मेरी ओर देखो ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए हैं इसकी दुर्दशा देखकर ! ”
हम तो लगातार उनकी तरफ देख ही रहे थे । वाकई उनके हाथों पे रोये खड़े हो गए थे ।
उनकी बातें सुनकर हमें अब पूरा यकिन हो गया था कि यह वाकई नागमणि ही है ।
मेरे मित्र ने पूछा ," गुरूजी ! अब इसका क्या कर सकते हैं ? ”
उत्तर मिला ,” अब इसका क्या करना है ? इस हालत में भी जहाँ यह चीज रहेगी वहाँ कुछ न कुछ फायदा ही करेगी । ” फिर अचानक जैसे उन्हें कुछ याद आया हो बोल पड़े ” हाँ ! अगर तुम कहो तो मैं कुछ कोशिश करूँ ? ”
उनकी बात सुनकर हम लोग चौंक पड़े थे । मैं बोल पड़ा, ” कैसी कोशिश गुरूजी ? ”
गुरूजी मुस्कुराये । बोले ,” अभी अभी मुझे ध्यान आया कि इस इलाके में इच्छाधारी नाग भी रहता है । और अगर वह आकर इस मणि पर फूंक दे तो शायद इसमें फिर से जान आ सकती है । इसमें सफलता पचास फीसदी ही मिल सकती है । वैसे मेरे ख्याल से कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है । आगे आप लोगों की मर्जी । ”
अब हमारी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी ,” वो तो ठीक है गुरूजी ! लेकिन हम लोगों को क्या करना होगा ? ”
गुरूजी हँसे ,” अरे ! अजीब बात है । तुम लोग कर ही क्या सकते हो ? जो भी करना है मैं ही करूँगा उसकी मर्जी से । आप लोगों को सिर्फ मेरे साथ रहना है । ”
अब हमें अपनी गलती महसूस हुई। मैं बोला ,” हमारे कहने का मतलब खर्चा क्या होगा ? ”
गुरूजी बोले ,” कोई खास खर्चा नहीं है । आपको सिर्फ एक बर्तन और तीन लीटर शुद्ध और साफ़ दूध का इंतजाम करना होगा । बस ! हाँ ! एक बात और जब मैं इस पर क्रिया करूँगा तब से चालीस दिन तक आपको इसकी पवित्रता का पूरा ध्यान रखना होगा । मतलब जहाँ भी तुम इसे रखोगे वह जगह शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए । यहाँ तक कि इस दरम्यान पति पत्नी को भी अलग रहना होगा । समझ रहे हो न मैं क्या बोल रहा हूँ ? और अशुद्ध अवस्था में महिला की परछाई भी इस पर नहीं पड़नी चाहिए । कर सकोगे तो बोलो ! ”
मेरे मित्र ने बताया ,” यह थोड़ा मुश्किल तो है इस छोटे से घर में इतना परहेज कर पाना लेकिन असंभव नहीं । आप जैसा कहोगे हम लोग करने के लिए तैयार हैं । ”
तभी मैंने पूछ लिया ,” वो तो सब ठीक है लेकिन इसे किया कब जा सकता है ? मेरा मतलब है किस दिन किया जाना चाहिए ? ”
गुरूजी बोले ,” यूँ तो मुझे इसके लिए कुछ नहीं करना है फिर भी यदि दिन सोमवार हो तो मेरे लिए नाग राज को मनाना थोडा आसान हो जायेगा । और फिर आपकी कोई सामग्री भी तो नहीं लगने वाली है । अगर आप लोग तैयार हों तो परसों ही सोमवार है । क्यों न परसों ही कर लिया जाये ? ”
अचानक जैसे मुझे कुछ ध्यान आया । मैं पूछ बैठा ” लेकिन गुरूजी ! ये तो आपने बताया ही नहीं कि आखिर यह विधि आप करेंगे कहाँ ? ”
गुरूजी ने कहा ” अच्छा हुआ आपने पूछ लिया । दरअसल मैं बताना भूल गया था कि यह विधि करने के लिए तालाब और शिवमंदिर अवश्य होना चाहिए । ”
मैंने उन्हें याद दिलाया, ” जहाँ आपने इच्छाधारी नाग के आने की बात कही थी वह मंदिर कैसा रहेगा ? ”
गुरूजी ने कुछ याद करते हुए बताया ,” हाँ ! वहीँ न जहाँ कल हम लोग दर्शन किये थे ? वह मंदिर तो बड़ा सुन्दर है लेकिन एक दिक्कत आएगी वहां पर । वहां मंदिर के आसपास कोई तालाब नहीं है और बिना पानी के यह विधि नहीं हो सकती । कोई ऐसा मंदिर जहाँ नजदीक ही तालाब हो तो अच्छा रहेगा । ”
फिर अचानक ही जैसे उन्हें कुछ याद आया ," जब मैं बाबूजी के यहाँ से आपके घर की तरफ आता हूँ तो रास्ते में एक बड़ा सा तालाब पड़ता है और उसके किनारे एक मंदिर भी है । अगर तुम लोगों को कोई दिक्कत न हो तो वही मंदिर इस काम के लिए ठीक रहेगा । ”
मेरे ध्यान में वह जगह थी लेकिन मैंने जानबूझ कर उसकी चर्चा नहीं की थी । मैं नहीं चाहता था कि मैं वहां कोई तांत्रिक क्रिया करते हुए मैं लोगों की नज़रों में आऊं । गुरुजी की बताई हुई जगह मेरे घर से 100 मीटर की दूरी पर ही है । एक बहुत बड़ा तालाब जिसके तीन तरफ सड़क है और उसीके किनारे प्राचीन राम मंदिर । एक तरफ भगवान शिव का भी मंदिर बना हुआ है । वहां अधिकांश लोग पहचानने वाले मिल जाते और फिर जितने मुंह उतनी बातें ।
मैंने अपनी आशंका गुरूजी को बताई । सुनकर वह मुस्कुराये और बोले, ” आप क्या इसे खेल समझते हैं ? यह बहुत ही बड़ी और खतरनाक क्रिया है जिसके लिए खुद ही शांत और एकांत वातावरण की जरुरत है जो दिन में सम्भव ही नहीं है । यह क्रिया हमें रात एक बजे से तीन बजे के बीच ही करनी है । और मैं समझता हूँ कि रात एक से तीन के बीच उस मंदिर के आसपास भी कोई नहीं आता होगा ।”

क्रमशः