Gumnaam - Murder Mystery - 17 in Hindi Crime Stories by Kamal Patadiya books and stories PDF | गुमनाम : मर्डर मिस्ट्री - 17

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गुमनाम : मर्डर मिस्ट्री - 17

"अजय...........!!!" प्रिया अजय को देखकर जोर से चिल्लाती है। अजय को देखकर सबकी आंखों में खुशी की चमक और चेहरे पर आशा की लहर दौड़ जाती है। अजय अपने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए सबको निश्चिंत रहने का ईशारा करता है।

नकाबपोश अभी भी जमीन पर बैठकर अपने हाथ को दुसरे हाथ से पकड़कर दर्द से कहरा रहा था। गोली उसके हाथ को छूकर निकल गई थी लेकिन उसके हाथ पर जख्म हो गया था और उसमें से खून निकल रहा था।

अजय धीरे धीरे उसके पास जाता है और उसकी आंखों में आंखें डाल कर कहता है "एक गलती तुमने कर दी, कानून से आंख मीचौली करके। माना कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तुम कानून को अपने हाथ मे लेकर किसी का भी, कहीं भी, खून कर दो। आखिर.... तुम मेरी पकड़ में आ ही गए..... अब अपना नकाब हटाने का जरा कष्ट करेंगे और अपना असली चेहरा सबको दिखाएंगे....Mr. Arjun Diwan उर्फ Mr. Vikram".

विक्रम अपने चेहरे से नकाब हटाता है और अपना चेहरा सबके सामने बेनकाब करता है। अजय विक्रम को गन दिखाकर कहता है कि "अगर इस बार कोई भी चालाकी करने की कोशिश की तो सीधा ऊपर पहुंचा दूंगा। चलो!!! चुपचाप उस सौफे पर जाकर बैठ जाओ।" इतना कहकर अजय प्रिया के पास जाता है। विक्रम जमीन से उठकर सौफे पर बैठ जाता है। अजय के गन की नोक विक्रम पर मुड़ी हुई थी।

अजय प्रिया के हाथ और पैर खोलते हुए कहना है कि "सॉरी प्रिया!!! मुझे आने में थोड़ी सी देर हो गई। लेकिन मैं करता भी क्या? मुझे किसी भी हाल में ईस कातिल को रंगे हाथ पकड़ना था।"

प्रिया के हाथ पैर खोलकर अजय उससे कहता है कि "प्रिया!!! सबके हाथ पैर खोल दो और सबके मुंह की पट्टीया हटा दो।"

"ठीक है अजय!!! लेकिन तू अब तक थे कहां??" प्रिया अपने हाथ पैर से रसिया हटाते हुए अजय से पूछती है।

"पहले तुम सबको खोल दो। बाद में, मैं तुम्हें सब कुछ बताता हूं।" इतना कहकर अजय एक पुरानी सी कुर्सी लेकर उस पर बैठ जाता है। उसकी आखें और बंदूक के निशाने पर अब भी सौफे पर बैठा हुआ विक्रम था।

प्रिया एक-एक करके सबको रस्सीयो और पट्टीयो के बंधन से मुक्त करती है। सब लोग चैन की सांस लेते हैं, अजय सबको वही बैठने के लिए कहता है और अपनी बात शुरू करता है " मैंने तुम सबको पहले ही मना किया था और कहा था कि तुम लोग यहां से लौट जाओ। विक्रम को पकड़ना तुम्हारे बस की बात नहीं थी। मेरी बात नहीं मानने का नतीजा देख लो!!! तुम लोग यहां पर आकर फस गए। तुम लोगों को हीरो बनने का बड़ा शौक था, आज अगर मैं यहां पर नहीं आता तो ना जाने क्या हो जाता?"

"लेकिन अजय तुम यहां पर पहुंचे कैसे?" प्रिया अजय से पूछती हैं।

"मैं जब शिमला आया तब मैं अपने दोस्त के फार्म हाउस पर रुका था और विक्रम के भूतकाल की सब जानकारियां इकट्ठा कर रहा था। मेरा मकसद सिर्फ विक्रम को पकड़ना ही नही था बल्कि उसने यह सब कत्ल किस बजह से किये उसका भी पता लगाना था इसलिए मैं तुम लोगों के साथ रहना नहीं चाहता था और मैंने अपना फोन नंबर भी स्विच ऑफ कर दिया था। मुझे लगता था कि 2-3 दिनों में तुम लोगों के सिर से विक्रम को पकड़ने का भूत उतर जाएगा तो तुम लोग खुद ही वापस चले जाओगे। मैं तुम लोगों को इस matter से दूर रखना चाहता था क्योंकि मुझे मालूम था कि तुम लोग कुछ ना कुछ बेवकूफी जरूर करोगे।

यहां पर रहकर मुझे विक्रम के पापा रमाकांत दिवान की कहानी मालूम हुई। इसके पापा बहुत ही भले और नेकदिल इंसान थे और उसने गरीबों की काफी सेवा की थी।

डॉ. प्रधान, मि. रोय, मि. चड्ढा, इंस्पेक्टर प्रताप सिंह, बाबू बिल्डर और वकील साहब ने मिलकर किस तरह उनकी जिंदगी नरक बना दी थी उसके बारे में भी मुझे पता चला। बाकी तो विक्रम ने अपने मुंह से यह सबकुछ बता दिया है। इसका असली नाम अर्जुन दिवान है।

रमाकांत दिवान की कहानी सुनकर मुझे लगा कि हो ना हो, विक्रम उसके पुराने घर पर ही मिलेगा क्योंकि उसके लिए यह घर बहुत ही मायने रखता था। विक्रम के घर का पता ढूंढते ढूंढते मैं यहां पर आ गया लेकिन मुझको यह पता नहीं था कि तुम सब लोग भी यहां पर मिलोगे।

विक्रम मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन ली है। मुझे तुम्हारे साथ हमदर्दी है लेकिन तुमने 7 खून किए है। कानून की नजर में तुम गुनहगार हो।"

"किस कानून की बात कर रहे हैं आप?..... सर क्या आपको लगता है कि आपका कानून उन सब अपराधियों को सजा सजा दे पाता?"

"मैं यह तो नहीं जानता कि कानून उन अपराधियों को सजा दे पाता या नही लेकिन तुमने जो रास्ता चुना वो गलत है, मैं तुमको सजा जरूर दिलाउंगा। मैं तुमको छोडूंगा नहीं।'

"सर!!! प्लीज..... उसे छोड़ दीजिए, उसने काफी दुख झेले हैं।"

"यह तुम क्या कह रहे हो? अनिरुद्ध...." अजय आश्चर्यचकित होकर अनिरुद्ध से कहता है।

"अनिरुद्ध सही कह रहा है सर!!! उसकी कहानी बड़ी दर्दनाक है अगर उसकी जगह मैं होता तो मैं भी यही करता।"

"रणवीर!!! तुम जानते हो इसमें तुम्हारे पापा को मारा है फिर भी तुम उसकी तरफदारी कर रहे हो?"

"सर!!! हम लोग किसी की तरफदारी नहीं कर रहे हैं, जो सच्चाई है वह बयां कर रहे हैं। मुझे भी यही लगता है कि विक्रम ने जो कुछ भी किया वह सही था।"

"रेहान!!!....... तुम भी.....?"

"मैं रेहान की बात से बिल्कुल सहमत हूं,, सर!!! उसने जो कुछ भी किया है वही न्याय है।" रोशनी अजयसे कहती है।

"ऐसे तो हर कोई अपने आप को न्याय दिलवाने के लिए कानून को अपने हाथ में लेकर फिरेगा।"

"लेकिन जीजाजी!!! विक्रम ने जो कुछ भी किया वह करने के सिवा उसके पास ओर कोई रास्ता ही नहीं बचा था।"

"तुम भी कुछ कहना चाहोगी..... प्रिया!!!"

"मुझे लगता है कि सब लोग इस बात से सहमत हैं कि विक्रम ने जो कुछ भी किया है वह सही किया है।"

"तुम सब लोग पागल तो नहीं हो गए हो?? तुम सब लोग एक ऐसे आदमी को बचाने की कोशिश कर रही हो जिसने तुम्हारे अपनों को मारा है।"

"सर!!! वह लोग भले हमारे अपने थे लेकिन उसने अपने दौलत और शोहरत की ईमारत की नीवं एक भले और नेक दिल इंसान की लाश पर रखी थी। हमे तो उन्हे अपना कहते हुए भी शर्म आती है।" मुस्कान अजय से कहती है।

"तुम लोगों की समझदारी पर मुझे कोई शक नहीं है लेकिन तुम लोग यह भी तो सोचो अगर मैं वक्त पर यहां नहीं आया होता तो तुम लोगों का क्या हाल होता? यह तुम्हारी जान भी ले सकता था।"

"अजय!!! अगर ये हमे मारना चाहता तो अब तक हम लोग जिंदा नहीं होते। ये हमें उस वक्त भी मार सकता था जब इसने हम सबलोगो को kidnapp किया था। इसका मकसद हम सबको यह अहसास दिलवाना था कि जब अपनों की मौत होती है तो इंसान को कैसा दर्द होता है। हम सबको इससे कोई शिकायत नहीं है, आप इसको छोड़ दीजिए।" प्रिया अजय से कहती है।

सब लोगों की बातें सुनकर कुर्सी पर बैठा हुआ अजय और सौफे पर बैठा हुआ विक्रम दोनों आश्चर्यचकित हो जाते हैं। उनको यह अंदाजा नहीं था कि सब लोग इस तरह react करेंगे।

अजय सबको कहता हैं कि "मैं तुम सब लोगों के जज्बातो की कद्र करता हूं लेकिन कानून की कार्यवाही जज्बातो के आधार पर नही, सबूतो और गवाहों के आधार पर होती है। खैर...!!! Mr. X विक्रम, अब तुम्हारी कहानी जरा मुझे Details में बताओगे, कैसे तुमने यह सब कारनामे कीए?"

विक्रम अपने जख्मी हाथ को रुमाल से बांधते हुए अपने कहानी की शुरुआत करता है "मेरी मां के गुम हो जाने के बाद हम लोग उनकी तलाश कर रहे थे। हमको सडक़ के हादसे के बारे में कुछ भी पता नहीं था। हमने पुलिस स्टेशन में जाकर मां की मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करवा दी थी। करीबन एक week के बाद हमे इस हादसे के बारे में पता चला तब तक वह डॉक्टर का बेटा छूट चुका था और हम लोग टूट चुके थे।

हमको सिर्फ पुलिस ने यह जानकारी दी थी की उनकी मौत एक्सीडेंट मे हुई थी लेकिन एक्सीडेंट किसने किया था यह बात पुलिस ने हमसे छुपा कर रखी थी क्योंकि पुलिस उस डॉक्टर के बेटे को बचाने के चक्कर में थी। जहां पर मेरी मां का एक्सीडेंट हुआ था, वहां पर जाकर मैंने पूछताछ कि तो वहां के लोगों से मुझे पता चला कि मेरी मां का एक्सीडेंट डॉक्टर के बेटे जय ने किया था। मेरे मन में बदले की आग सुलग चुकी थी।

मैंने डॉक्टर और उसके बेटे के घर का और हॉस्पिटल का पता लगाया और उन दोनो को follow करने लगा। मैं उसका पीछा करने लगा, उस दरमियान मुझे पता चला कि डॉक्टर के हॉस्पिटल में कंपाउंडर की जरूरत है तब तुरंत ही मैंने उस मौके को पकड़ लिया और उसके यहां कंपाउंडर की नौकरी करने लगा। मैंने अपनी नौकरी के दरमियान ऐसा काम करके दिखा दिया कि पुरे हॉस्पिटल के स्टाफ का विश्वास जीत लिया था। मैंने अपने काम से डॉ. राकेश प्रधान को भी impress कर दिया था। एक में ही था जो डॉ. प्रधान की केबिन में बिना रोक टोक के आ जा सकता था।

राकेश प्रधान का बेटा जय अकसर हॉस्पिटल में काम से आया जाया करता था। जब भी हॉस्पिटल में आता था तब उसको देखकर मेरे तन मन मे आग लग जाती थी मेरा मन करता था कि उसको दबोचकर वही पर मार डालूं लेकिन जैसे उसने मेरी मां को रस्ते पर तड़प तड़प कर मारा था मैं भी उसको वैसे ही तड़प तड़पकर मरते हुए देखना चाहता था इसीलिए मैंने सबसे पहले अपने आप पर काबू पाया और बड़ी ही चालाकी से उससे दोस्ती कर ली।

जय ने हीं मुझको अपने Bikers Gangs के दोस्तों से मिलाया था और तभी मुझे उसके बाइक और रेसिंग के शौक के बारे में पता चला। जय अक्सर मेरे रूम पर party करने के लिए आता था इसलिए उसको यकीन दिलवाने के लिए मैंने भी अपने रूम में स्पोर्ट्स बाइक के और रेसीग के पोस्टर लगावाये थे। उसी दरमियान मुझे मुस्कान से प्यार हो गया था लेकिन मैं अपने मकसद को नहीं भूल सकता था।

मैं उस मौके की तलाश करने लगा जब मैं जय को अपना शिकार बना सकूं। एक रात को मेरे रूम में जय ने काफी शराब पी ली थी। बाद में, हम दोनों Bikers Gangs के दूसरे दोस्तों से मिलने Highway पर गए। शराब पीने की वजह से जय ठीक से बाइक नहीं चला पा रहा था लेकिन वह मुझे अपने रेसीग के किस्से सुनाकर बड़ी-बड़ी डींगे हाक रहा था। मैं उसकी बाइक के पीछे बैठा हुआ था।

हाईवे पर मजाक मजाक में रेस को लेकर रणवीर और जय के बीच में शर्त लगी। दोनों में से कौन बेहतर रेसर है इस बात को लेकर दोनों में बहस होने लगी, इस मौके का फायदा उठाकर मैंने जय की बाइक के पिछले टायर में एक किल लगा दी थी। बाद में, मैंने जय को रेस के लिए उकसाया और दोनों के बीच रेस शुरू हो गई। रेस के दरमियान जय की बाइक का पिछला टायर फट गया और वह अनबैलेंस होकर ट्रक से जा टकराया और उसने वही तड़प तड़प कर अपना दम तोड़ दिया। उसको ऐसे तड़पता हुआ देखकर मुझे बड़ा ही सुकून मिला और शायद मेरी मां को भी शांति मिली होगी। जैसे मेरी मां का केस एक्सीडेंट में close हो गया था, वैसे ही जय का केस भी एक्सीडेंट मे close हो गया।

"इसका मतलब डॉक्टर के बेटे जय का एक्सीडेंट नहीं हुआ था बल्कि उसका मर्डर हुआ था?"

"हा......एक मर्डरर का मर्डर हुआ था।

जय को मारने के बाद मेरी हिम्मत और बढ़ गई थी मैंने उन सब को मारने का ठान लिया था जीसने मेरे हसते खेलते परिवार को बर्बाद कर दिया था लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था।

मैं पुलिस के हाथों पकड़े जाने से डरता नहीं था लेकिन उन सब पापीओ के मरने से पहले अगर मैं पकड़ा जाता तो इसका मुझे बेहद अफसोस होता इसलिए उन सबको मारने के लिए मुझे एक ऐसे हथियार की तलाश थी जीससे मेरा काम आसानी से हो जाए और किसी को मुझ पर शक भी ना जाए।

एक दिन हॉस्पिटल में मैंने Cube-c15 के बारे में सुना। डॉ प्रधान अकसर सर्जरी करने के लिए इसका इस्तेमाल पेशेंट पर करते थे। तब मैं ऑपरेशन थिएटर में ही मौजूद होता था इसीलिए इसके बारे में पूरी जानकारी मैंने हासिल कर ली थी और इसका इस्तेमाल कैसे करना है वह भी मैंने जान लिया था। अब मुझे बस एक मौके की तलाश थी जब मैं हॉस्पिटल के लेबोरेटरी मे से Cube-c15 की बोतले चूरा सकु। वह मौका भी मुझे जल्दी ही मिल जाता है। हॉस्पिटल में स्टाफ कम होने की वजह से कभी कभी मुझको रात को भी काम करना पड़ता था। मैंने लेबोरेटरी के सिक्योरिटी गार्ड से दोस्ती कर ली थी और रात को बात करने के बहाने में उसके पास बैठने जाता था। एक रात को जब वह सो रहा था तब मैंने उसके टेबल में से चाबियां निकालकर लेबोरेटरी के फ्रिज में से Cube-c15 की 10 बोतले चुरा ली। बाद मे, टेबल मे चाबियां रखकर मैं चुपचाप वहां से निकल गया।

अब मेरे पास हथियार आ चुका था अब सिर्फ वार करना बाकी था। उसके लिए मुझे सबके जीवन मे क्या-क्या हो रहा था उसकी जानकारीया हासिल करनी थी। एक दिन रेहान और रणवीर की बातों से मुझे पता चला कि उन दोनों के पापा रोज रात को उनके घरो के गार्डन में बैठते हैं और एनर्जी ड्रिंक की बोतले पीते है। उनके घरो मे एनर्जी ड्रिंक्स की बोतल डायमंड मॉल के बीग ब्लास्ट के शॉप से आती थी। उनकी बातों से मुझे आईडिया मिल गया कि मुझे क्या करना है।

मैंने बीग ब्लास्ट शोरूम के गोडाउन में काम करने वाले हिरेन से दोस्ती कर ली। मैं उसके साथ घूमने जाता था, उसके साथ पार्टी करता था जबकि मैं कभी भी शराब को हाथ लगाना नहीं चाहता था लेकिन मजबूरी मुझे ऐसा भी करना पड़ा। कभी उसके रूम पर तो कभी मेरे रूम पर हमलोग पार्टी किया करते थे।

वह पार्टी करने के लिए कभी-कभी अपने रूम पर अपनी कंपनी की एनर्जी ड्रिंक्स की बोतले लेकर आता था और हम दोनों पार्टी करते थे। एक रात को जब वह नशे मे सो रहा था तभी मैंने उसके रुम मे से एनर्जी ड्रिंक्स की 5 बोतले चुरा ली और अपने साथ अपने रूम पर लेकर गया। वहां पर मैंने एनर्जी ड्रिंक्स की बोतलों में इंजेक्शन से Cube-c15 को डालकर उस पर सील लगा दिया।

मैं अक्सर रात को हॉस्पिटल से छूटने के बाद हिरेन से मिलने उसके गोडाउन में आता जाता रहता था। वहां पर अक्सर रात के 8 बजे के बाद हम दोनों अकेले ही होते थे। मैं कभी-कभी उसके काम में उसका हाथ बटाया दिया करता था। एक दिन हिरेन एनर्जी ड्रिंक्स की बोतलो की पैकिंग कर रहा था, तभी मुझे पता चला कि वह जीस बॉक्स को पैक कर था वह मि. चड्ढा और मि. रोय के घर पर जाने वाली थी। मैंने बडी चालाकी से हिरन को दूसरे कामों में लगा दिया और खुद वह बॉक्स पैक करने लगा। जब हिरेन दूसरे कामो मे बिजी हो गया तब मैंने अपने पास रखी हुई जहरवाली एनर्जी ड्रिंक्स की 2-2 बोतलों को उन 2 बॉक्स में डाल दिया और दोनों बॉक्स को पैक कर दिया।

अब मुझे इंतजार था तो बस उन दोनों की मौत की खबर का। जैसा मैंने सोचा था वैसा ही हुआ, पहले मि. रोय और बाद में मि. चड्ढा का खेल खत्म हो गया। लेकिन उस दरमियान मुझसे एक गलती हो गई, मैंने एक जहरवाली एनर्जी ड्रिंक की बोतल हिरेन के कमरे में छोड़ दी थी। एक रात को नशे में उसने वह जहरवाली एनर्जी ड्रिंक पी ली थी जीससे उसकी मौत हो गई। मेरा यकीन मानिए सर.... उसको मारने का मेरा बिल्कुल भी इरादा नहीं था वह एक्सीडेंटली ही मारा गया और इसके लिए मैं बहुत ही शर्मिंदा हूं।

बाद में, एक-एक करके मैंने डॉक्टर प्रधान, वकील झुनझुनवाला, बाबु बिल्डर और इंस्पेक्टर प्रताप सिंह को Cube-c15 जहर देकर मार डाला और इसके लिए मुझे कोई अफसोस नहीं है बल्कि सुकून है।

"तो तुमने अकेले ही सबका काम तमाम कर दिया?....hmmmm....."

"हा.....यह सब मैंने अकेले ने ही किया है।"

"विक्रम.... मुझे शक हो रहा है। यह सब काम तुम अकेले नहीं कर सकते। तुम एक साथ सबको follow नही कर सकते, बताओ तुम्हारे साथ और कौन था? कौन है तुम्हारा दूसरा साथी?"

"दूसरा साथी?..... मेरे साथ और कोई नहीं था।"

"अभी थोड़ी देर पहले ही तुमने चिल्ला चिल्लाकर सबको बताया था कि रमाकांत दिवान के दो बच्चे थे उसमें से तुम एक हो तो दूसरा कहां है? तुम्हारा भाई कहां है?"

"मेरा कोई भाई नहीं है।"

"तुम झूठ बोल रहे हो।विक्रम!!! मेरे सब्र का इंतिहान मत लो। अगर तुमने यह नहीं बताया कि तुम्हारा भाई कहां है तो मैं तुम्हें गोली मार दूंगा।" इतना कहकर अजय गुस्से से कुर्सी से खड़ा होता है और कुर्सी को लात मारता है।

"सर !!! इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। इन मर्डर्स के पीछे उसका कोई लेना-देना नहीं है। आप उसे जाने दीजिए, आपको जो भी सजा देनी है मुझे दीजिए।"

"यह तुम नही कानून तय करेगा कि उसे क्या सजा देनी है। मुझे सिर्फ यह बताओ कि वह कहां है?" अजय अपनी आवाज कड़क करके बोलता है और अपने रिवाल्वर का ट्रिगर दबाने जाता है तभी अजय के सामने एक रिवाल्वर तन जाती है और उसके निशाने पर अजय होता है।

"वह दूसरा साथिया यहां है, छोड़ दो... मेरे भाई विक्रम को.... वरना....!!!"

सब लोग उस आवाज को सुनकर चौक जाते हैं।

क्रमशः