Gumnaam - Murder Mystery - 16 in Hindi Crime Stories by Kamal Patadiya books and stories PDF | गुमनाम : मर्डर मिस्ट्री - 16

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गुमनाम : मर्डर मिस्ट्री - 16

नकाबपोश सोफे से उठकर, इधर-उधर घूमते हुए और अपने हाथ में खंजर घुमाते हुए अपनी कहानी की शुरुआत करता है।


आज से लगभग 20 साल पहले की यह बात है। यहां पर इसी मकान में एक वैद्य रहता था जो सब बीमारियों का जंगल की जड़ी बूटियों से इलाज करता था। उसका नाम रमाकांत दीवान था, वह बहुत ही सज्जन और भला मानुष था। वह गरीबो, लाचार और बीमारों का इलाज करता था। बीमारों की सेवा करना ही उसकी जिंदगी का मकसद बन गया था। वह तन मन धन से उनकी सेवा में लगा रहता था।

वह जंगल में जाकर बड़ी मेहनत से वनस्पतियों को पहचानकर उससे हर्बल दवाइयां बनाता था। अलग अलग प्रकार के रोग में किस प्रकार की जड़ी बूटियों का इस्तेमाल होना चाहिए, यह बात सिर्फ उसको ही पता थी। लेकिन उसने अपनी बनाई हुई दवाइयों को कभी भी के मुनाफा कमाने के लिए नहीं बेचा बल्कि जरूरतमंदों को वह बड़े हि सस्ते दामों में दवाइयां देता था। उसकी बनाईं हुई दवाइयों में इतना असर था कि उस दवाई को लेने के बाद मरीज बिल्कुल ठीक हो जाता था इसीलिए उसकी दवाइयों के चर्चे दूर दूर तक फैले हुए थे।

उसका एक छोटा सा हंसता खेलता हुआ परिवार था। वह अपनी बीवी और दो बच्चों के साथ अपनी दुनिया में खुश था।

एक दिन उसकी ख्याति सुनकर शहर से एक बड़े डॉक्टर और डॉक्टर के दोस्त रमाकांत से मिलने आते हैं। वह डॉक्टर, रमाकांत को बताता है कि शहर में उनका एक बड़ा हॉस्पिटल है जिसमें वह गरीब दर्दीयो का मुफ्त में इलाज करते हैं और उनको दवाइयां देते हैं। उसनें रमाकांत से पूछा "क्या आप इस नेक काम में हमारा साथ दे सकते हैं?" रमाकांत ने बड़े आश्चर्य से उनसें पूछा "मुझे कुछ समझ मे नहीं आ रहा है, मैं आपका इस काम में कैसे साथ दे सकता हूं?" तब डॉक्टरने उनको बताया कि आप की दवाइयां बड़े ही चमत्कारिक परिणाम लाती है। आपकी दवाइयों की वजह से बड़े बड़े असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। क्यों ना आप यह दवाई बनाने का फार्मूला हमें बताइए ताकि हम लोग ज्यादा से ज्यादा गरीबों और जरूरतमंदों को ठीक करने का बीड़ा उठा सकें। मुझे विश्वास है कि आप इस नेक काम में हमारा साथ जरूर देंगे। उस डॉक्टर की बाते सुनकर उस भले मानुषने कुछ भी सोचे समझे बिना अपने दवाइयों के सब फार्मूले उस डॉक्टर को बता दिए।

बाद में, उस डॉक्टर ने शहर में जाकर उन दवाइयों के फार्मूले को अपने नाम पर पेटन्ट करवा लिया और अपने बिजनेसमैन दोस्तों के साथ मिलकर एक बहुत ही बड़ी दवाई की कंपनी खोल दी। बाद में, उन दवाइयों को ऊंचे दामों में बेचकर उनसे बहुत ही मुनाफा कमाने लगे।

जब रमाकांत दिवान को इस बात का पता चला तो उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। उसने शहर जाकर उस डॉक्टर और उसके बिजनेसमैन दोस्तों को अपनी दवाइयों का मुनाफे के लिए इस्तेमाल करने पर उन लोगों को बहुत ही खरी-खोटी सुनाई और तुरंत ही दवाइयों का धंधा बंद करने को बोला लेकिन वह डॉक्टर और उनके साथी इंसान की खाल में भेड़िये थे, उनको सिर्फ हर जगह मुनाफा ही दिखाई देता था इसलिए उन्होंने रमाकांत की बातों को नहीं सुना उल्टा उन्होंने एक भ्रष्ट पुलिस अफसर की मदद से रमाकांत पर हि अपनी कंपनी के दवाइयों के फार्मूले चुराने का झूठा आरोप लगाकर उस पर केस दर्ज करवा दिया और उस पर मानहानि का दावा ठोक दिया। रमाकांत जैसे अच्छे और भले मानुष को पुलिस स्टेशन और कोर्ट के चक्कर लगाने पर मजबूर कर दिया।

उस समय, उन सब लोगों ने मिलकर रमाकांत दिवान को बहुत ही सताया और रुलाया। रमाकांत दिवान ने कोर्ट के सामने अपने दवाइयों के फार्मूलो के सबूत रखें लेकिन उन सब लोगों ने अपने पैसों के बलबूते पर सरकारी वकील और गवाहों को खरीद लिया और इस केस को जीत लिया।

मानहानि के दावे की रकम को चुकाने के लिए उस भले मानुष को अपना घर, जमीन और उसके पास जो भी मिल्कत थी वो सब बेचना पडा। पूरा परिवार रातोरात फूटपाथ पर आ गया और पाई पाई को मोहताज हो गया।

रमाकांत दिवान ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर सके और उसने जहर खाकर अपनी जान दे दी। उसकी बीवी विधवा हो गई और उसके बच्चे अनाथ हो गए।" ईतना कहने के बाद, उस नकाबपोश की आवाज गुमसुम हो जाती है, उसका गला भर आता है, पर वह आगे बोलना जारी रखता है।

जरा सोचो.... उस पत्नी पर क्या गुजरी होगी जिसने अपने सच्चे और ईमानदार पति को सिर्फ इसलिए खोया हो क्योंकि वह दूसरों का भला चाहते थे और अन्याय के खिलाफ खडे थे । ......उन बच्चों पर क्या गुजरी होगी जिसने अपने बाप को तड़पते पिलपते तील तील मरते हुए देखा हो। तुम लोग इस बात का अंदाजा भी नहीं लगा सकते कि वो दर्द क्या होता है क्योंकि तुम लोग अमीरी मे ही पले बड़े हो। तुम लोगों को इस दर्द का एहसास दिलवाने ही मैं तुमको यहां पर लाया हूं।

उस मां का दर्द महसूस करो……..!!! जिसने दूसरों के घरों मे जा-जाकर काम करते-करते अपने बच्चों को पाला हो। उन छोटे बच्चों का दर्द महसूस करो जो अपनी मां का दुख-दर्द दूर करने के लिए दिनभर मजदूरी और रात में पढ़ाई करते थे।

तुम लोगों को यहां पर थोड़ा सा दर्द क्या हुआ? तुम लोग चिल्ला उठे...। जरा..... उस मां और बच्चों का दर्द महसूस करो, जो लोग जमीन पर पैर नहीं रखते थे, उसको फूटपाथ पर सोना पड़ता था और दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती थी।

यह जो बड़ा सा खंडहर जैसा मकान तुम लोग देख रहे हो यहां पर कभी खुशियों की किलकारियां गूंजती थी। त्योहारों में दुल्हन की तरह सजनेवाला ये घर आज स्मशान की भांति लग रहा है। सबको छाव देनेवाला ये घर आज सूखे बंजर जमीन की तरह उजड गया है। और इन सब के पीछे तुम्हारे अपनों का ही हाथ है। क्या उन सपनों की, क्या उन खुशियों की भरपाई तुम लोग कर सकते हो? जो तुम्हारे अपनों ने हमसे छीनी थी। नहीं...!!! तुम लोग कभी नहीं कर सकते हो लेकिन फिर भी उस वक्त उन लोगों ने सब कुछ भुलाकर नए सिरे से अपनी जिंदगी जीने की शुरुआत की थी।

जैसे-जैसे वक्त बीतता जा रहा था, बच्चे धीरे धीरे बड़े हो रहे थे और अपनी मेहनत के बलबूते पर अपनी पढाई मे वह अच्छे नंबर ला रहे थे। अच्छे नंबरों पर पास होने की वजह से उसको शहर के एक बड़े कॉलेज में स्कॉलरशिप मिलती हैं और उन बच्चों का उस कॉलेज मे एडमिशन हो जाता है। दोनों बच्चे बड़ी ही मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ा रहे थे और अपने आप को शहर के माहौल में ढालने की कोशिश कर रहे थे।

बच्चे शहर में पार्ट टाइम जॉब करके अपने परिवार का खर्चा निकाल रहे थे। उन लोगों ने शहर में अपनी छोटी सी दुनिया बसा ली थी जिसमें वह बहुत ही खुश थे लेकिन कुदरत को उनकी ये छोटी सी खुशियां भी मंजूर नहीं थी। कॉलेज का आखरी साल था तभी उन बच्चों को ऐसा जख्म मिलता है जिससे उसकी पूरी जिंदगी हि पलट गई।

एक दिन उसकी मां सब्जी लेकर रास्ते से घर की तरफ जा रही थी तभी उस डॉक्टर के रेसर बेटे ने अपनी बाइक को बेफिक्री से overspeed में चलाते हुए उनको ठोकर मारकर उड़ा दिया। उस मां ने तड़प तड़पकर वहीं रास्ते पर ही अपना दम तोड़ दिया और वह बच्चे फिर से अनाथ हो गए।

रास्ते पर खड़े लोगों ने उस रइसजादे को पकड़कर उसको पुलिस के हवाले कर दिया लेकिन फिर से एक बार उस भ्रष्ट पुलिस वाले और उस गद्दार वकील ने मिलकर उस रईसजादे को बचा लिया और उस पूरे केस को एक्सीडेंट का नाम देखकर उसको छुड़वा लिया। उन बच्चो को जब इस हादसे के बारे में पता चला तो उनके सिर पर बिजली गिरी। उनकी सहनशीलता की अब सारी सीमाएं टूट चुकी थी।

अब उन बच्चों ने अपने माता-पिता के कातिलों से बदला लेने की ठान ली थी। उन्होंने उन रईसजादे का biker gangs group ज्वाइन कर लिया और उन्होंने एक एक करके अपने मां-बाप के हत्यारों को तड़पा तड़पाकर मौत के घाट उतार दिया।

अब तुम लोग ही बताओ अपने मां-बाप के कातिलों को मारकर उन बच्चों ने कुछ गलत किया?

क्या उन उद्योगपतिओ को मारकर उन बच्चों ने कोई गलती की थी? जिसको उन्होंने बेघर किया था।

क्या उन डॉक्टरों और बिल्डर को मारकर उन्होंने कोई गलती की? जिसने उस भले मानुष को धोखा दिया।

क्या उस वकील को मारकर उन्होंने पर गलती की? जिसने हारे हुए केस को धोखे से अपने दोस्तों के fever मे कर दिया था।

क्या उस इंस्पेक्टर को मारकर कोई गलती की थी? जिसने उस भले आदमी को सताने में और उसे टॉर्चर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

नही..... उन्होंने कोई गलती नहीं की थी। जिन लोगों ने उसके परिवार पर जुल्म ढाए, उसने उन लोगों का काम तमाम कर दिया। बल्कि मैं तो यह कहता हूं कि उसने समाज से गंदगी को हटाने का काम किया है। उसने अन्याय करने वालों के साथ सही न्याय किया है।

नकाबपोश अपनी बाहें फैलाकर ऊपर देखकर चिल्लाता है "भगवान!!! हमने उन पापियों को मारकर कोई गलती नहीं की है। कोई गलती नहीं की है।"

नकाबपोश की बातों में जोश के साथ सच्चाई की गूंज सुनाई दे रही थी। उसके हर एक शब्द से दर्द की चिंगारियां निकल रही थी।

नकाबपोश की बातें सुनकर पूरे स्टोर रुम में सन्नाटा छा गया। सब लोगों की गर्दने शर्म से झूक गई थी। सबको पता चल चुका था कि उनके अपनो की हत्याए क्यों हुई थी और उन सबको यहां पर क्यों लाया गया था।

प्रिया नकाबकोश से कुछ कहने को जाती है लेकिन उसके मुँह पर पट्टी लगी होनेके कारण वो कुछ बोल नहीं पाती है।

नकाबपोश उसके मुँह की पट्टी हटा देता है। प्रिया नकाबपोश से कहती है "हम सब लोग जान चुके है की तुम्हारे साथ बहुत ही अन्याय हुआ है लेकिन उसमे हम लोगो की कोई भी गलती नहीं है, तुम हम लोगो को छोड़ दो।"

नकाबपोश प्रिया से कहता है "गलती तो रमाकांत दिवान और उसके परिवार की भी कुछ नहीं थी फिर भी तुम्हारे अपनों ने उन्हें छोड़ा था क्या ?"

प्रिया नकाबपोश से माफ़ी मांगती है और उसे समझाने की कोशिश करती है।

नकाबपोश और प्रिया के बीच में बातचीत हो रही थी तभी अचानक, कोई कुछ सोचे या समझे इससे पहले स्टोर रूम की खिड़की में से एक गोली छननन्......करके आती है और नकाबपोश के खंजर पकड़े हाथ को छल्ली करके निकल जाती है। वह अपने जख्मी हाथ को दूसरे हाथ से पकड़कर वहीं बैठ जाता है और दर्द के मारे चिल्लाने लगता है। किसीको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब क्या हो रहा है। तभी स्टोर रूम का दरवाजा खुलता है और overcoat और अपने सिर पर black hat पहने हुए एक आदमी स्टोर रूम के अंदर दाखिल होता है। सब लोग को उसकी तरफ देखने की कोशिश करते हैं लेकिन अंधेरा होने के कारण उसका चेहरा दिखाई नहीं दे रहा था।

वह आदमी धीरे धीरे अपने हाथ में रिवाल्वर लिए आगे बढ़ता है जब वह lamp की रोशनी में आता है तब सब लोग उसका चेहरा देखकर चौक जाते है।

क्रमशः