नि.र.स. - एक प्यार का एहसास
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
Dedicate to my pen
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
नज्मेें
१. तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है
२. मोहब्बत: - शब्द या नि:शब्द
३. तुम भी
४. कलम-ए-वफा
५. प्यार के सौदे
६. मुझको पसंद है
७. शायद मंजिल मेरी कुछ ओर ही है
८. चुपके से
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है
तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है...
मैने तेरी इन जुल्फों को,
इन मय के प्यालो की हिफाजत करते देखा है।
तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है।।
जिस राह को ये तक रही है,
उस राह के नसीब को बदलते देखा है।
तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है।।
काजल लगाती हो क्या, कभी इन आंखों में,
मैंने तो यूं ही कह दिया,
क्योंकि आज मैंने सूरज को वक्त से पहले ढलते देखा है।
तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है।।
मासूम सी मुस्कान तेरी,
आंखों को कितना सुकून देती है मेरी,
मानो इसमें मैंने मेरी बरसों की थकान को उतरते देखा है।
तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है।।
तेरी माथे पर यह काली व छोटी सी बिंदी,
कितनी मनमोहक लगती है, तेरे रूप पर मैंने,
पूर्णिमा के चांद को भी बादलों में छिपते देखा है।
तेरी आंखों से मैंने प्यार को छलकते देखा है।।
- नि.र.स.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मोहब्बत: - शब्द या नि:शब्द
मोहब्बत को शब्दों में कोई कैसे बयां करेगा...
क्योंकि दिल है मोहब्बत से मिलकर,
सांसे थम सी जाती हैं, होंठ सिल से जाते हैं।
क्योंकि यह तो नि:शब्द से की गई,
आंखों ही आंखों में कुछ पल की बातें हैं।।...
बेवजह मग्न हो,
फना हो जाता है परवाना, शमा की आग में।
कोई यह बताए तो सही कि क्या यह जल जाना ही,
शिद्दत-ए-मोहब्बत में कुर्बानी कहलाता है।।...
मिलना जरूरी नहीं प्यार में, रुह के मिलनसार से भी,
मोहब्बत-ए-इज़हार हो जाता है,
क्या यह द्वापर में, कान्हा की बजती बांसुरी पर,
कृदन करती राधा की पाजेब का सुर बताता है।।...
राम के प्रेम की सीमा नहीं,
ये असीम रत्नाकर पर तैरती, रज भांति शिलाएँ बताती हैं।
और ऐतबार-ए-प्यार कि ये अनोखी कहानी,
सिया राम से पहले लग, उनके प्रेम बंधन का एहसास कराती है।।
ये गुमशुदा लेखनी लिखती मेरी कलम,
किसी की यादें, बातें, व मुलाकाते,
आंखों से गिर कागज पर स्याही बन,
देख नि.र.स. नि:शब्दता को शब्द दे जाती हैं।।...
- नि.र.स.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
तुम भी
तुम भी हमें कितना याद करती हो।
और कहती हो, तुम्हे मै याद नहीं।।
तुम भी, कितने झूठे हो , धोखेबाज हो।
आये थे शहर मेरे, ओर मुझसे अब तक मिले नही।।
तुम भी अब कहने पर,
कितने दिनों बाद मिली।
और खुशी तक नहीं झलकाई,
अपनी आंखों से हल्की-सी भी।।
तुम भी कितने बेफिक्र और लापरवाह हो चले हो।
मगर तुम मेरे दिल में मेरा लहु बन ढले हो।।
तुम भी ना,
ना जाने क्यों इतना सताते हो।
एक बात बताओ ना,
ये मैं हूं या सिर्फ तुम...
कहो ना कुछ कहते क्यो नहीं
तुम भी...।।
- नि.र.स.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
कलम-ए-वफा
खफा हूं भी मै गर,
शिकवा कर नही सकता।
वक्त गुजर जाने पर,
तुमसे मै कलम-ए-वफा कर नही सकता।।
बेइंतहा प्यार मे भी,
जुदाई देखी है मैने।
बात गर तेरे प्यार के हिफाजत कि है,
तो सच ये है, मै खुद का गुजारा भी कर नही सकता।।
अरे तु महलो कि शहजादी है,
मै उन दरो का फरयादी हूँ।
ये मोहब्बत-ए-बंधन हरगिज,
मुमकिन हो नही सकता।।
खफा हूं भी मै गर,
शिकवा कर नही सकता।
वक्त गुजर जाने पर,
तुमसे मै कलम-ए-वफा कर नही सकता।।
- नि.र.स.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
प्यार के सौदे
तुम्हारी आंखों के आंसू हम रख लेते हैं।
हमारे होठों की मुस्कान, तुम रख लो।।
तुम्हारे दिल की नफरत हम रख लेते हैं।
हमारे दिल का प्यार,तुम रख लो।।
तुम्हारी नाराजगी कि वजह हम रख लेते हैं।
हमारे अपनेपन का सार, तुम रख लो।।
तुम्हारे अकेलेपन के आंसू हम रख लेते हैं।।
हमारे नज्मों की सजी महफिलो के खुशनुमा पल, तुम रख लो।।
कुछ तुम्हारा गम हम रख लेते हैं।
कुछ हमारी खुशियां तुम रख लो।।
कुछ तुम्हारे नि.र.स. तराने हम रख लेते है।
कुछ हमारे प्यार के सौदे का र.स. तुम रख लो।।
- नि.र.स.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
मुझको पसंद है
तेरा यूं मंद मंद मुस्करना,
मुझे पसंद है।
तेरा यूं मुझे सताना,
मुझे पसंद है।।
प्यार करते हो तुम भी,
पर उसको कभी ना जताना,
मुझे पसंद है।
तुम्हें रूठ जाने का पूरा हक है,
और उस रूठे पन में तुम्हें मनाना,
मुझे पसंद है।।
मेरे इंतजार को कभी खत्म ना होना देना,
तुम्हें पसंद है।
और हर बार प्यार का इकरार करना,
मुझे पसंद है।।
कुछ तुम्हें पसंद है,
और कुछ मुझे पसंद है।।
- नि.र.स.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
शायद मंजिल मेरी कुछ ओर ही है
इस खत में, मैने वो बात,
तो लिखी ही नही, जो तुमको कहनी थी।
बस वही लिख पाया, जो तुम्हे खुश रखे।।
शायद डर लगता है, मोहब्बत-ए-इजहार करने में।
ये सोचकर की कहीं तुम्हे खो ना दे।।
या फिर शायद मंजिल मेरी कुछ ओर ही है।।
इस बार जब मिले, मैने वो बात,
तो कही ही नही, जो तुमको कहनी थी।
बस वही कह पाया, जो तुम्हारी उलझनो को सुलझा सके।।
शायद डर लगता है, तेरे प्यार के धागे में बंधने से।
ये सोचकर की कहीं ये धागे हमें उलझा ना दे।।
या फिर शायद मंजिल मेरी कुछ ओर ही है।।
इस बार जब मेरे मन को कहनी थी बात,
तो तुम डोली में बैठ कहीं दूर जा चुकी थी।
बस अब मै क्या कहता, और किस हक से तुम्हे प्यार करते।।
शायद डर लगता था, अब इस प्यार के र.स. की दुनिया से।
ये सोचकर की कहीं ये दुनिया हमें नि.र.स. ना बना दे।।
या फिर शायद मंजिल मेरी नि.र.स. तक ही थी।।
- नि.र.स.
---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
चुपके से
आना मेरे ख्वाबों में तुम चुपके से।
मुझको चुराना मुझसे चुपके से।।
देखो कोई देख ना ले जमाने में।
आना मेरे ख्वाबों में तुम चुपके से।।
प्यार करते हो इस बात का,
इकरार करना चुपके से।
भरी भीड़ में आंखें झुका के,
नजरो से इकरार करना चुपके से।।
आना मेरे ख्वाबों में तुम चुपके से।
मुझको चुराना मुझसे चुपके से।।
देखो कोई देख ना ले जमाने में।
आना मेरे ख्वाबों में तुम चुपके से।।
- नि.र.स.