Do Ashiq Anjane - 5 in Hindi Fiction Stories by Satyadeep Trivedi books and stories PDF | दो आशिक़ अन्जाने - 5

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दो आशिक़ अन्जाने - 5

भारतीय पुरुषों की एक ख़ास बात है कि सौंदर्य-दर्शन होते ही, इन्हें शक्ति प्रदर्शन करने की सनक चढ़ जाती है। कोई सुंदरी सामने दिखी नहीं कि बदन की बेचैनी बढ़ने लगती है। अर्जुन जहाँ बैठा था वहाँ अच्छा था। ठीक है, पुट्ठे में तकलीफ़ थी तो थोड़ी सह लेता। अब जो यहाँ आकर खड़े हैं तो क्या मज़ा आ रहा है। अभी चार-पाँच घंटों का सफ़र है, ऐसे खड़े-खड़े कहाँ तक जाएंगे। लेकिन भईया ये लड़की का चक्कर जो ना कराये। देखें क्या होता है अभी आगे-आगे।

अर्जुन ने यहीं से खड़े-खड़े मीनाक्षी को देखा, फिर सिर को थोड़ा ऊपर की ओर उठाकर, एक ख़ास अंदाज़ में नीचे झटक दिया। नौसिखियों को बताते चलें कि यह मेहबूब को पास बुलाने का इशारा है। यह इशारा इतना अकस्मात था कि रात अगर चाँदनी ना होती, तो संभव है लड़की को कुछ दिखाई भी न देता। लड़के की चपलता देखकर मीनाक्षी का कलेजा धक से हो गया। जिस हालत में वो बैठी है,ऐसे में बराबर एक खटका बना रहता है। माँ-बाप दोनों अगल-बगल सो रहे हैं। हल्की सी हरकत पर चोरी पकड़े जाने का डर है। उसके दिल में भी यों हलचलें तो उठने लगीं हैं, मगर अर्जुन के इस नेह-निमंत्रण को उसने कोई ख़ास तवज्जो नहीं दी। उसने सिर्फ़ इतना भर किया कि अपनी दोनों टाँगें, देह से थोड़ी दूरी पर कुछ इस अंदाज़ में मोड़ लीं, कि मानों बस उठने ही वाली हो। इस घटना से लेकिन उसके कंधे के सहारे सिर रखकर सोती हुई माँ के शरीर में ज़ुम्बिश हुई। उस प्रौढ़ महिला ने आँखे मूंदे-मूंदे ही एक जम्हाई ली, फ़िर अपने सिर को ऊपर उठाकर एक हल्की अँगड़ाई लेते हुए,सिर को वापस ट्रक की दीवार पर टेक दिया।


अर्जुन अब निराश हो चुका है। अपने इशारे पर उसे उम्मीद थी कि लड़की उसके पास खिंची चली आएगी। और कुछ नहीं तो कम से कम पलट कर इशारा ही कर देगी। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।

एक बार फ़िर उसने अपना दाहिना हाथ उठाकर लड़की को नज़दीक आने का संकेत दिया। सौभाग्य से, उसकी यह तरकीब काम कर गई। मीनाक्षी दो मिनट तक कुछ सोचती रही। फिर जाने क्यों और किस तरह-ना चाहते हुए भी यंत्रवत सी उठी; और अपना दाहिना पैर हौले से उठाकर आगे की तरफ़ रख दिया। एक डग भरके वो माँ की तरफ़ पलटी-फ़िर सब तरह से आश्वस्त होकर किसी बिल्ली की तरह दबे पाँव; ट्रक के फ़ाटक की तरफ़ बढ़ आयी।


अब वो दोनों इतने क़रीब हैं कि उनकी साँसें टकरा रहीं हैं।


कहीं रात की कालिमा है तो कहीं चाँद की चंद्रिका। मालूम होता है किसी बड़े पर्दे पर कोई ब्लैक एन्ड व्हाइट फ़िल्म चल रही है। मीनाक्षी की धुकधुकी अनायास ही बढ़ने लगी है। चाँदनी रात में नहाया हुआ उसका साँवला बदन, कुछ तो किसी अनहोनी की आशंका से और कुछ एक अनजान मर्द की मौजूदगी से, थरथरा रहा है। उसकी चढ़ती-उतरती साँसों ने बदन के ऊपरी हिस्से में एक तेज़ हलचल पैदा कर दी है, जिसे छिपा पाने में उसका दुपट्टा नाकाफ़ी है।

ट्रक के इस भाग में हालाँकि सोता पड़ा है, मगर फ़िर भी पकड़े जाने का खतरा तो है ही। ऐसे मामलों में एक जोड़ी चोर आँखें भी सत्यानाश कर सकती हैं। मीनाक्षी का दम फ़ूलने लगा है। अर्जुन हालाँकि प्रकट नहीं करना चाहता, लेकिन जी तो उसका भी घबराता है। कान किसी अनसुनी आहट पर लगे हैं, मन किसी अनहोनी से आशंकित है।


प्रेम चाहे लाख सात्विक हो-निश्छल हो, मगर प्रेम-प्रदर्शन में पकड़े जाने का डर बराबर बना रहता है। सिनेमाघरों की अंधेरी सीटों पर, बड़े होटलों के बंद कमरों में भी एक खटका हमेशा लगा रहता है। फ़िर यहाँ तो कोई पर्दा भी नहीं है। कौन जाने किस ओर से निगरानी हो रही हो। जरा सी आवाज़, रात के इस पहर में ढोल नगाड़े का काम कर देगी। कोई भी पर-पुरुष द्वेषवश-'ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा' की खीस में सारा खेल बिगाड़ सकता है। ट्रक के किसी हिस्से में, किसी के ऊँघने की आवाज़ आई और दोनों एकदम चौकन्ने हो गए। अपनी उखड़ती हुई सांसों को दबाने के प्रयास में मीनाक्षी, अपने दोनों हाथों से दुपट्टे के दोनों कोर मसले दे रही है। घबराहट में उसकी टाँगें कँपकँपा रहीं हैं, जिन्हें स्थिर करने के लिए उसने दोनों पैरों के पंजे भींच लिये हैं। एक अनजाने भय से उसका दिल बैठा जा रहा है। उसकी घबराहट प्रतिपल बढ़ती जा रही है। ठीक उसी समय एक सरसरहाट हुई और अचानक…. एक मजबूत-मर्दाना हाथ आकर उसकी कलाई से लिपटता गया। उसने चौंक कर अर्जुन को देखा मगर वो कुछ समझ पाती इससे पहले ही, अर्जुन उसे लेकर एक झटके से नीचे बैठ गया। मीनाक्षी ने बनावटी गुस्से में आँखें तरेरकर अर्जुन को देखा, कि ठीक तभी ट्रक का वो हिस्सा पीली रौशनी में डूबने लगा, और हॉर्न की कर्कश आवाज़ कानों में गूँज गयी। मीनाक्षी को अब जाकर उस अप्रत्याशित व्यवहार का कारण समझ में आया है। मुस्कुराकर आँखों ही आँखों में, उसने प्रेमी के सूझबूझ की दाद दे डाली। अर्जुन भी मुस्कुरा उठा, और प्रत्युत्तर में उसने अपनी बांयी आँख दबा दी। अचानक से हुए इस हमले के लिए मीनाक्षी तैयार न थी, उसका मुँह भक्क से खुल पड़ा कि मानो कलेजा ही बाहर आ जाएगा।


क्रमशः