Kuchh chitra mann ke kainvas se - 17 in Hindi Travel stories by Sudha Adesh books and stories PDF | कुछ चित्र मन के कैनवास से - 17 - नासा में हमारा एक दिन

Featured Books
Categories
Share

कुछ चित्र मन के कैनवास से - 17 - नासा में हमारा एक दिन



नासा में हमारा एक दिन

अमेरिका प्रवास के दौरान हमारे पर्यटन स्थलों की सूची में नासा भी था । आज हमें अपने पसंदीदा स्थान की सैर के लिए जाना था । मैं और आदेश जी सुबह 5:00 बजे उठकर तैयार हुए । घर से हमें 7:00 बजे नासा के लिए निकलना था… NASA (National Aeronautic and space Administration ) अटलांटिक महासागर के समीप स्थित बी वार्ड काउंटी ( Brevard county ) के मेरिट आइसलैंड के उत्तरी भाग में स्थित है । पिंकी ने सुबह उठकर सब्जी परांठा बना कर देना चाहा पर हम ने मना कर दिया । नाश्ता करके हम घर से निकले सुभ्रांशु जी ने हमें उसे स्थल तक छोड़ दिया जहां से बस को चलना था । बस को आने में अभी आधा घंटा समय था । जहां से बस को चलना था, उस स्थल पर ग्रॉसरी की अच्छी बड़ी दुकान है । सुबह ही सुबह वह भी खुल गई थी । अभी समय था अतः समय बिताने के लिए हम उस दुकान में चले गए. हमने वहां से कुछ स्नैक्स के पैकेट यह सोच कर खरीद लिए कि पूरे दिन की घुमक्कड़ी में शायद वे हमारे काम आएं.

बाहर आए तो सामने से बस आती दिखाई दी. हम ने नंबर चैक किया तो पाया, यह वही बस है जिससे हमें जाना है । बस में बैठते ही वह चल पड़ी । यहां से सिर्फ हमें ही चढ़ना था । बीच-बीच में कुछ जगहों पर रुक कर बस ने कुछ और यात्रियों को लिया तथा यात्रा प्रारंभ हो गई । ड्राइवर कम कंडक्टर तथा गाइड हमें बीच-बीच में पड़ते स्थानों के बारे में बताता जा रहा था । लगभग डेढ़ घंटे बाद उस ने बस ‘एस्ट्रोनौट हौल औफ फेम’ के सामने रोकी तथा यात्रियों को घूमने के लिए 1 घंटे का समय दिया.

एस्ट्रोनट हौल औफ फेम

एस्ट्रोनट हौल औफ फेम के अंदर प्रवेश करते ही एक बड़ी सी एस्ट्रोनट अर्थात अंतरिक्ष यात्री की मूर्ति दिखाई दी ।अंदर एक बड़े हॉल में उनके द्वारा समय-समय पर पहने जाने वाले कपड़े, स्पेस शटल के मौडल, पहली बार चंद्रमा पर उतरे मानव द्वारा वहां पहली बार चलाई गई गाड़ी का मॉडल डिस्प्ले किया हुआ था । इसके साथ ही स्पेस की मिट्टी तथा अन्य कई तरह की जानकारियां वहां उपलब्ध थीं । हॉल बहुत बड़ा नहीं था, इसलिए घूमने में बहुत समय नहीं लगा । वहां एक छोटे से रेस्टोरेंट के अतिरिक्त वाशरूम की भी सुविधा थी । हम तरोताजा होकर बस में बैठ गए, धीरे-धीरे सभी यात्री आ गए। बस चल दी ड्राइवर ने हमें बताया कि अब हमारा अगला स्टॉप कैनेडी स्पेस सैंटर होगा । कैनेडी स्पेस सैंटर जाने के लिए हमें इंडियाना रिवर को क्रॉस करना पड़ा। ड्राइवर ने कैनेडी स्पेस सैंटर के पास बने पार्किंग स्थल पर बस पार्क की तथा शाम साढ़े 5 बजे तक लौटकर हमें आने के लिए कहा । लगभग 12 बज रहे थे... हम आगे बढ़े, सामने नासा की भव्य इमारत देख कर रोमांचित हो उठे। जिसका नाम न जाने कितनी बार सुना था, उसे आज देखने जा रहे थे। हम अंदर प्रविष्ट हुए तो हमें सूचना केंद्र दिखाई दिया । वहां उपस्थित सज्जन से हमने बुकलेट लेते हुए पूछा, ‘‘ हमें पहले क्या देखना चाहिये ?’’ उसने हमसे आईमैक्स थिएटर देखने के लिए कहा ।

आईमैक्स थियेटर सूचना केंद्र के एकदम सामने था । हमने अंदर प्रविष्ट किया । पहले हमें वहां के स्टाफ ने हमें एक हॉल में बिठाया । इस हाल में हमें टी.वी. के द्वारा इससे जुड़ी जानकारी दी गई । उसके समाप्त होते ही हमें अंदर थियेटर में ले जाया गया । अंदर प्रवेश करते समय हमें पहनने के लिए एक चश्मा दिया गया । 3D इफेक्ट के द्वारा हमें दिखाया जा रहा था कि स्पेस शटल में भार रहित स्थिति में एक इंसान को एक-दो दिन नहीं, महीनों कैसे रहना और काम करना पड़ता है । अंतरिक्ष यात्री इस स्पेस में चलते नहीं वरन तैरते रहते हैं । तैरते- तैरते ही उन्हें शेव बनाना, कपड़े पहनना यहां तक कि खाना भी खाना पड़ता है । कभी-कभी खाने की वह चीज अगर हाथ से छूट जाए तो उसका अनुभव करना भी आनंददाई रहा । 3D इफेक्ट के कारण एक अंतरिक्ष यात्री के हाथ से छूटा संतरा अचानक ऐसा लगा कि जैसे वह हमारे हाथ में ही आ गया है।

हमारा अगला दर्शनीय स्थल शटल लॉन्च था । हॉल में जाने से पहले उन्होंने हमसे हमारा बैग और अन्य चीजें बाहर ही छोड़ने का निर्देश दिया । इसके लिए उन्होंने हमें एक लॉकर दिया । उसमें सामान रखकर हम अंदर गए ।पहले हमें एक हॉल में बिठा कर शटल लॉन्च ऐक्सपीरिएंस के बारे में जानकारी दी गई । इसके बाद हमें एक दूसरे हॉल में ले जाया गया । उस हाल में घुसते ही मुझे एक बोर्ड पर वार्निंग लिखी दिखाई दी... मैं जब तक आदेश जी को रोकती तब तक वह अंदर जा चुके थे । मैं भी इनके पीछे पीछे गई । अंदर हमें ग्रुप में खड़ा कर दिया गया I मैंने इन्हें बोर्ड पर लिखी वार्निंग के बारे में बताया जिसमें लिखा था कि जिनको हार्ट प्रॉब्लम हो या जिनको ब्लड प्रेशर हो या बैक या नेक प्रॉब्लम या कोई भी ऐसी बीमारी जो इस प्रकार के अनुभव से बढ़ जाए वह इसमें न बैठें ।

मुझे और इनको दोनों को ही ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम थी । पहले तो यह नहीं माने पर जब बार-बार मैंने इनसे आग्रह किया तब इन्होंने बाहर निकलने के लिए वहां उपस्थित स्टाफ से बात की । उसने हमारी बात मानी तथा हमसे कहा अगर आप शटल में नहीं बैठना चाहते तो कोई बात नहीं है , आप अगर चाहे तो उसका अनुभव कर सकते हैं । उसने हमें एक कमरे में बिठा दिया । जहां से हम इस शटल की गतिविधियों को लाइव देख सकते थे । जब शो समाप्त हुआ तब हमें लगा इस प्रकार का अनुभव तो हम एपकोट में मिशन स्पेस की शटल में ले चुके हैं पर वहां इस तरह की कोई चेतावनी न पढ़ने के कारण हम उसमें बैठ गए थे पर यहां नहीं बैठ पाए । अनजाने में हमने वहां अंतरिक्ष यान में बैठने का अनुभव कर लिया था जबकि यहां इस चेतावनी को पढ़ने के पश्चात हिम्मत नहीं कर पाए जबकि वहां भी भोपाल वाले व्यक्ति ने हमें सचेत किया था।

शटल एक्सप्लोरर

हमारा अगला गंतव्य स्थल शटल एक्सप्लोरर में था । जहां एक रॉकेट का मॉडल रखा हुआ था । उसमें रॉकेट के अंदर के भागों को दर्शाया गया । उसके अंदर जाने के बाद ऐसा अनुभव हो रहा था कि मानो हम वास्तविक रॉकेट के अंदर के भागों का अवलोकन कर रहे हैं ।

स्पेस सेंटर टूर स्टॉप

अब हम नासा के अन्य भागों को घूमने के लिए स्पेस सेंटर टूर स्टॉप पर गए जहां से नासा के द्वारा चलाई जा रही । बस में बैठकर अन्य स्थानों के अवलोकनार्थ हमें जाना था । लंबी कतार थी । गर्मी भी काफी थी ।तभी एक हलकी सी बौछार ने हमें गर्मी से राहत दी । ऊपर देखा तो पाया जगह-जगह पर ऐसे फौब्बारे लगे हैं जो यात्रियों के ऊपर पानी का हलका सा छिड़काव करते हुए उनको गरमी से राहत पहुंचा रहे हैं । इसी तरह का फब्बारा मैंने पिछले वर्ष चंडीगढ़ से दिल्ली आते समय 'हवेली' नामक रेस्टोरेंट के सामने स्थित फन जोन में देखा था ।

नंबर आने पर हम बस में सवार हुए । उसी समय हमने देखा कि व्हीलचेयर को बस में चढ़ाने के लिए बस से एक स्लाइडर नीचे आया तथा व्हीलचेयर के चढ़ते ही वह अंदर चला गया । हमें यह देखकर बहुत अच्छा लगा । वृद्ध और विकलांग लोगों के लिए वह बहुत अच्छी व्यवस्था है । इसके द्वारा बिना किसी परेशानी के वे भी बस में सवार हो गए । सबके बस के अंदर बैठते ही बस चल दी । उसने हमें रॉकेट लौंच कॉम्प्लेक्स ‘39 औब्जर्वेशन गैंट्री’ में उतारा ।

39 औब्जर्वेशन गैंट्री

यहां पहले हमें एक फिल्म के जरिए रॉकेट लॉन्च की जानकारी दी गई । उसके बाद हम लॉन्च पैड पर चढ़े जहां से हम ने क्राउलर वे तथा व्हीकल एसैंबली बिल्डिंग देखने का आनंद लिया.

अपोलो सैटर्न फिफ्थ

39 औब्जर्वेशन गैंट्री को देखने के बाद हम ने बस पकड़ी तो उसने हमें ‘अपोलो सैटर्न फिफ्थ’ पर उतारा... वहां हम ने एक बड़े हॉल में प्रवेश किया । उस हॉल में अनेक तरह की मशीनें लगी हुई हैं । जिनके द्वारा लॉन्च किए रॉकेट को कंट्रोल किया जाता है । वह फायरिंग रूम थिएटर था जिसके द्वारा अपोलो के लॉन्च का प्रसारण किया जा रहा था जो पहली बार चंद्रमा पर उतरा था । वैसे तो इस तरह के दृश्य टी.वी . पर मैंने कई बार देखे हैं, लगभग हर बार जब भी किसी रॉकेट को लॉन्च किया जाता है पर अपनी आंखों से उन मशीनों को देखना अपने आप में अद्भुत था ।


इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन सैंटर

अब हमारा दूसरा स्टौप ‘इंटरनैशनल स्पेस स्टेशन सैंटर’ था । वहां बड़ी-बड़ी मशीनें लगी हुई थीं। दरअसल, वहां रॉकेट के विभिन्न भागों के निर्माण का काम चल रहा था । यह एक बड़ा प्रोजैक्ट है जो हमारे टूर प्रोजैक्ट का भी एक हिस्सा था । उन भागों को हम प्रोजैक्ट के चारों ओर बने पथगामी मार्ग से ही देख सकते हैं, किसी को भी अंदर प्रवेश करने की इजाजत नहीं है । एक स्टॉप से दूसरे स्टॉप पर जाते हुए हमने नासा हैडक्वार्टर भी देखा । जिसमें लगभग 6 हजार कर्मचारी काम करते हैं । वह काफी बड़ी एवं भव्य इमारत है । इसके साथ ही दूर से बस के द्वारा हमने वे स्थान भी देखे जहां लॉन्चिंग पैड बने हुए हैं । इनकी सहायता से ही स्पेस शटल को लॉन्च किया जाता है । पर्यटकों को वहां जाने की सुविधा नहीं है । यह जगह एटलांटिक ओशन के पास बनी हुई है । अब हम वापस स्पेस सेंटर टूर स्टॉप पर आ गए । इस समय तक हमें भूख लग आई थी । हम वहीं बने रेस्टोरेंट में बैठ गए । आदेशजी बर्गर और कॉफी लेकर आ गए । अभी कहा ही रहे थे कि बड़े पुत्र अभिषेक का फोन आ गया । उसने हमसे बात कर फोन अपने छोटे भाई आदित्य को पकड़ा दिया । उनसे बातें करने के पश्चात मैंने अपनी दोनों बेटी समान बहुओं से बात की । विदेश प्रवास के दौरान फोन के जरिये ही हम उनसे जुड़े हुए थे । वैसे मेरी बड़ी बहू अनुप्रिया प्रेग्नेंसी की अंतिम स्टेज पर थी । संतोष था तो सिर्फ इतना कि वे सब साथ में रहते थे । वैसे भी इस ट्रिप के तुरंत पश्चात मुझे उनके पास बैंगलोर जाना था...अपने परिवार के नये नवासे को गोद में खिलाने जो उनत्तीस वर्ष पश्चात हमारे परिवार का हिस्सा बनेगा ।

बच्चों से बात करके, संतुष्ट मन से खा पीकर तथा थोड़ा आराम करने के बाद बाहर आए तो एक जगह एस्ट्रोनौट के कपड़े पहना मॉडल बना हुआ था... उसकी सिर वाली जगह खाली थी, कुछ लोगों को फोटो खिंचवाते देखा तो हमने भी एक दूसरे की फोटो खींच लीं ।

समय बाकी था । हम वहीं बने रॉकेट गार्डन में चले गए । वहां पर एक बहुत बड़े स्पेस में रॉकेट के विभिन्न मॉडल बने हुए थे । कुछ देर हम वहां बैठे और घूम-घूम कर देखते रहे। साढ़े 5 बज रहे थे । हमने नासा पर अंतिम बार नजर डाली तथा बाहर निकल कर बस में बैठ गए ।

यात्रियों के बैठते ही बस चल पड़ी. जहां हम सुबह एक आस ले कर चले थे उस आस से तृप्त हो जाने की खुशी तथा एक अनोखा एहसास लेकर लौट रहे थे । यद्यपि शरीर थक कर चूर हो गया था जबकि मन सारी यादों, बातों को मन ही मन दोहरा रहा था । बस ड्राइवर जहां सुबह से लगातार जानकारी देता जा रहा था, अब चुप था । अपनी मंजिल आने पर यात्री उतरते तथा अपरिचित बन जाते । हम भी संतुष्ट मन से अपने स्टॉप पर उतरे । शुभ्रांशु जी हमें लेने आने वाले थे । हमने नासा से बस के चलते ही उन्हें फोन कर दिया था ।उनके आते ही हम घर की ओर चल दिये । नई यादों और अनुभवों के साथ हमारी यात्रा का एक दिन और समाप्त हो गया था । पिंकी और बच्चे हमारा इंतजार कर रहे थे, उनके साथ हमने अपने पूरे दिन के अनुभव शेयर किए तथा कहना खाकर सोने चले गए ।

सुधा आदेश
क्रमशः


सुधा आदेश