chaahat - 13 in Hindi Fiction Stories by sajal singh books and stories PDF | चाहत - 13

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चाहत - 13

पार्ट -13

कहते हैं जीवन में गम और खुशी धूप -छाँव की तरह होते हैं। जो समय के साथ बदलते रहते हैं। मुझे एक तरफ सलिल की बातों से मायूसी हुई थी तो दूसरी तरफ शिव भैया की शादी की ख़ुशी थी। इसी ख़ुशी में मैं और नेहा आज सुबह जल्दी से कॉलेज के लिए निकल आये थे घर से। आज हमे शादी के लिए छुटियाँ जो लेनी थी। (कॉलेज में अपना काम खतम करके अब हम आशीष और पूजा के साथ बैठे हैं। )

पूजा -हे ! तुम्हें लीव मिली क्या ?

नेहा -हाँ ! हमे एक वीक की लीव मिल गयी है।

आशीष -पर तुम्हे तो 10 दिन की लीव चाईए थी ना ?

मैं - हाँ। 3 दिन वीकेंड वाले ऐड करके 10 दिन हो जायेंगे।

पूजा -सही है। चलो वीकेंड भी काम आ गया।

नेहा -ओह पूजा ! वीकेंड तो हमेशा ही काम आता है सोने के। क्यों चीनू ?

मैं - हाँ भई। बिलकुल।

आशीष - अब तुम दोनों तो 10 दिन शादी में मजे करोगे और हम यहाँ कॉलेज में तुम दोनों को मिस करेंगे।

मैं - मिस करेंगे का क्या मतलब ?

नेहा - मतलब अब दस दिन हमारी जान नहीं खा पाएंगे ये दोनों। इसलिए बहाना बना रहे हैं मिस करने का।

पूजा - क्या कहा ? हम तुम्हारी जान खाते हैं ?

नेहा -और नहीं तो क्या ?

आशीष -देखो चाहत। ये नेहा क्या कह रही है।

मैं - नेहा बस तुम दोनों को चिड़ा रही है। और हाँ। तुम दोनों को भी शादी में आना है।

आशीष -हम जरूर आएंगे।

मैं - आएंगे क्या मतलब ? कल ही तुम दोनों 10 दिन के लिए मेरे यहाँ आ रहे हो।

पूजा -चाहत , अभी से आकर क्या करेंगे ? शादी से दो दिन पहले आ जायेंगे।

मैं - नहीं ,दो दिन पहले बिलकुल नहीं चलेगा। मेरे शिव भैया की शादी है। तुम भी लीव ले लो एक वीक की।

नेहा - सही कह रही है चीनू। सब साथ में मिलकर मस्ती करेंगे।

आशीष - हाँ। शादी में कितना मजा आएगा।

नेहा -वो तो तुझे अपने आप आएगा। ठूसने के लिए लजीज खाना जो मिलेगा तुझे।

आशीष - तुम्हें मेरे ठूसने से क्या दिक्कत है ?

नेहा - मोटे ! कम खाया कर फैलता ही जा रहा है। ऐसे ही फैलता रहा तो कोई लड़की नहीं मिलेगी तुझे देख लेना।

आशीष - ना मिले तो ना मिले। पर मैं भूखा नहीं रह सकता। (आशीष का मुँह छोटे बच्चे जैसा हो गया। )

(आशीष की ये बात सुन हम सबको बड़ी हंसी आती है। )

मैं - अच्छा ,बहुत हुआ अब। मैंने जो कहा है उसके बारे में सोचो।

पूजा -लेकिन घर पर भी तो पूछना पड़ेगा।

मैं -डोंट worry ! शिव भैया के मम्मी -पापा तुम दोनों के घर पर बात कर लेंगे।

नेहा - अगर फिर भी ना माने तुम्हारे पेरेंट्स तो दादी बात कर लेंगी। भला उन्हें कोई कैसे मना कर पायेगा।

पूजा - ये सही रहेगा। मम्मी -पापा फिर मना भी नहीं करेंगे।

आशीष - वैसे शादी दिल्ली में ही होगी क्या ?

मैं -हाँ। अभी तक तो दिल्ली में ही decide है।

नेहा - ऐसा करो तुम दोनों लीव के लिए ऑफिस में बात करो।

आशीष - नेहा तू सही कह रही है।

नेहा - मैं तो हमेशा ही सही कहती हूँ।

मैं - अच्छा। अब हमें घर के लिए निकलना है। तुम दोनों के घर मैं अंकल -आंटी को बोल दूंगी बात करने के लिए।

आशीष - ओके ! जल्द ही हम सब मिलेंगे शादी में।

मैं - जरूर। bye !

(इसके बाद मैं और नेहा अपनी स्कूटी पे घर आ गए। घर आकर हमने कपडे चेंज किये और फ्रेश होकर शाम की चाय के लिए हॉल में आ गए। भैया भी हॉस्पिटल से आ चुके हैं। )

भाभी - राघव , आज प्राची की माँ का फ़ोन आया था।

मैं - आंटी ने किसलिए फ़ोन किया था भाभी ?

भाभी - वो उन्होंने आज हमे डिनर पर बुलाया है। नेहा को भी बुलाया है।

भैया - रिया वो तो ठीक है। लेकिन शिव की फॅमिली के बिना हम कैसे जाएँ अकेले डिनर पर।

भाभी - ओह ! मैं तो बताना भूल ही गई कि आंटी (शिव भैया की माँ ) भी आई थी यही बताने। हम सब को जाना है। आंटी बोल रही थी कि शादी के फंक्शन से रिलेटेड डिस्कशन है कुछ।

भैया - भई फिर तो जाना पड़ेगा। हम सब एक परिवार जो हैं अब।

भाभी -जी बिलकुल। ( मेरी और देखते हुए ) चीनू ,तुम अच्छे से कपडे पहनना कुछ डिनर के लिए।

नेहा -भाभी ,ये बोरिंग वही सूट डालेगी ,देखना।

भैया -गुड़िया का जो मन है उसे पहनने दो।

नेहा - भाभी ,हम कितने बजे चलेंगे डिनर के लिए।

भाभी -8 बजे।

नेहा -अभी तो 6 बजने में भी दस मिनट हैं।

भाभी -अरे जल्दी से टीवी ऑन करो। (भाभी जल्दी से टीवी के पास जाती हैं )

भैया -क्या हुआ ?

मैं - भाभी 6 बजे कुछ खास आने वाला है क्या ?

भाभी - हाँ ! (टीवी ऑन करके बोलती हैं ) सलिल का इंटरव्यू आ रहा है 6 बजे। प्राची की मम्मी ने बताया था।

नेहा -वाह।

मैं - (चलो कम से कम टीवी पर ही देख लेती हूँ विश्वामित्र को ,वैसे तो आजकल ईद का चाँद बना हुआ है। )

(सब आराम से सोफे पर बैठते हैं , मैं नेहा के सोफे के पीछे खड़ी हो जाती हूँ। टीवी पर इंटरव्यू स्टार्ट होता है। एक journalist और सलिल आमने -सामने बैठे हैं। सच में ,सलिल ब्लैक ब्लेज़र में बड़ा ही हैंडसम लग रहा है। )

journalist - मिस्टर सलिल जैसवाल ! आपका स्वागत है हमारे चैनल पर।

सलिल - thanku !

journalist - वैसे हमने दो साल आपका पीछा करके आख़िरकार आपको मना ही लिया इंटरव्यू के लिए।

सलिल -(हल्का सा मुस्कुरा कर ) ऐसा कुछ नहीं है। बस टाइम की कमी की वजह से आपको मना कर दिया था।

journalist -खैर , आपने कल ही यंग बिजनेसमैन ऑफ the ईयर अवार्ड जीता। आपको ढेर सारी badahi आपकी जीत के लिए !

सलिल -थैंक्स !

journalist - कैसा लग रहा है आपको ,मात्र 26 वर्ष की उम्र में आपने ये अवार्ड जीता है।

सलिल -अवॉर्ड जीत कर सबको अच्छा ही लगता है। मुझे भी लगा।

journalist - आप अपना अवार्ड किसे डेडिकेट करेंगे।

सलिल -ये अवार्ड मैंने अकेले ने नहीं जीता है। इस अवार्ड को जीतने में मेरे साथ -साथ मेरे परिवार ,मेरे दोस्तों और कंपनी के हर employee का योगदान है। तो ये अवार्ड मैं मेरी फैमिली और मेरी टीम को डेडिकेट करता हूँ।

journlist - मैंने सुना है आप अपना बिज़नेस फॉरेन में भी जमाना चाहते हैं।

सलिल - जी , आपने सही सुना है। विदेश में भी हम अपना टेक्सटाइल ब्रांड लांच करने वाले हैं।

journalist - क्या आप इंडिया में अपने बिज़नेस को एक्सपैंड करना चाएंगे ? टेक्सटाइल को छोड़ किसी और सेक्टर में।

सलिल - क्यों नहीं ? इन फैक्ट हमने एजुकेशन और एग्रीकल्चर सेक्टर में इन्वेस्ट करने का प्लान भी बना लिया है। कुछ ही दिनों में ये इन्वेस्टमेंट हो जायेगा।

journlist - हमने सुना है आप अपने कॉलेज के topper रह चुके हैं ?

सलिल -जी बिलकुल।

journlist -मुझे लगता है जीतने की आपकी आदत है। तभी तो आप स्पोर्ट्स में भी बेस्ट हैं।

सलिल - ऐसा कुछ नहीं हैं। बस खेल लेता हूँ।

journlist -नहीं ,मिस्टर सलिल। हमारे पास सबूत है।

सलिल -किस चीज का ?

journlist - यही कि आप फुटबाल और बैडमिंटन के स्टेट लेवल के प्लेयर रह चुके हैं।

सलिल - हाँ। मैंने स्टेट के लिए खेला है।

journlist - आपने सिर्फ खेला ही नहीं बल्कि दोनों ही गेम्स में 100 परसेंट जीत हासिल की है।

(ये लाइन सुन कर तो मेरे पैरों के निचे से मानों जमीन ही खिसक गयी। )

सलिल -फुटबाल में कह सकते हैं आप 100 percent . बैडमिंटन में 99 percent रिजल्ट है।

journlist -क्या आप हमें बताएँगे आप बैडमिंटन में एक मैच किससे हारे हैं ?

(मुझे लगा अब सलिल मेरा नाम लेगा। )

सलिल - था कोई अपना। मैं नाम नहीं लेना चाउंगा।

journlist -ओके ! तो आप ये बता दीजिये आप शादी कब कर रहे हैं ? इस टाइम आप मोस्ट एलिजिबल bachleor हैं ? लड़कियाँ मरती हैं आप पर।

सलिल - अभी तो मेरा शादी का कोई इरादा नहीं है।

journlist - चलिए कोई नहीं। आखिरी सवाल ,आप हमे अपनी चाहत ,मोहब्बत के बारे में ही बता दीजिये। कौन है वो खुसनसीब लड़की ?

सलिल -(थोड़ी सी स्माइल के साथ ) मेरी चाहत ....अभी तो कोई नहीं है। जब कभी होगी आपको जरूर बताऊँगा।

journlist - आपने हमे अपना वक़्त दिया। thanku सो मच !

सलिल - माय pleasure ! (इतना बोल कर इंटरव्यू खतम हो गया। लेकिन मेरे मन में ढेरों सवाल आ गए थे। )

भैया - सलिल सच में बड़ा ही नेक इंसान है। देखो तो हर सवाल का जवाब कितनी ईमानदारी से दिया है।

भाभी -आप सही कह रहे हो। (फिर घडी की ओर देखकर ) जल्दी से तैयार हो जाइये सब। सलिल के यहाँ जाना भी तो है।

(सब अपने -अपने कमरों में तैयार होने चल दिए। )

मेरे मन में बस अब यही सवाल था कि सलिल उस दिन जान -बूझ कर क्यों हारा ? जिसका जवाब मैं हर कीमत पर सलिल से लेना चाहती हूँ। मैं जल्दी से वाइट सूट विथ multicolour दुपटा के साथ पहन कर तैयार हो गयी। थोड़ी ही देर में हमारा और शिव भैया का परिवार सलिल के यहाँ पहुंच गया।

सलिल की फैमिली ने हमारा बड़ा ही अच्छा वेलकम किया। सलिल भी मौजूद है लेकिन उसने मेरी ओर देखा तक नहीं। दादाजी ने तो जाते ही सावी को गोद में लिया था अब तक लिए बैठे हैं। अब हम सब उनके हॉल में बैठे बात कर रहे हैं।

शांतनु अंकल (शिव भैया के पापा )- (दादाजी को ) अंकल ,अब तो शादी में एक वीक ही बाकी है।

राजेंदर अंकल (प्राची के पापा )- इसी बारे में तो पापा ने बात करने के लिए बुलाया है।

दादीजी -क्या बात करनी है ? बताइये ?

दादाजी - मुझे आप सब को ये बताना है कि हम प्राची की शादी अपने पुश्तैनी जगह जयपुर से करना चाहते हैं। अगर आप लोग सहमत हों तो।

दादीजी -भाई साब ! ये भी कोई पूछने की बात है भला ?

शांतनु अंकल (शिव भैया के पापा )- इसी बहाने हम सब जयपुर भी देख लेंगे।

आंटी (शिव भैया की माँ ) -और क्या ? एक तरह से डेस्टिनेशन वेडिंग हो जाएगी।

सलिल -दादू ! अचनाक से जगह बदलेंगे तो गेस्ट को दिक्कत होगी। कार्ड में तो अपने दिल्ली वाले घर का एड्रेस है।

राघव भैया - सलिल ,अभी एक वीक है। हम गेस्ट को फ़ोन पर पर्सनली इन्फॉर्म कर देंगे।

दादाजी - राघव सही कह रहा है सलिल।

राजेंदर अंकल (प्राची के पापा )- और गेस्ट के लिए हम दिल्ली से जयपुर बस बुक कर देंगे।

सांतनु अंकल (शिव भैया के पापा )-तो तय रहा। शादी जयपुर में होगी।

भाभी -(शिव भैया और प्राची को ) -क्यों भाई ? तुम दोनों खुश तो हो ना इस फैसले से ?

(प्राची और शिव भैया शरमा जाते हैं। )

दादी जी - ठीक है भाई साहब। अब बताइये हम सब कब निकलेंगे जयपुर के लिए ?

दादाजी - कल सुबह ही चलते हैं। बच्चे एक -दो दिन घूम -फिर लेंगे जयपुर।

दादीजी -ठीक है। (मेरी ओर देखकर ) चीनू ,अपने दोस्तों के घर बात करवा देना मेरी आज घर जाकर। वो भी कल ही चल पड़ेंगे हमारे साथ।

मैं -जी दादी।

दादाजी -सलिल ,तू बस बुक करवा देना कल सुबह के लिए।

सलिल -जी दादू।

आंटी (प्राची की माँ )- चलिए अब डिनर कर लीजिये। फिर कल सुबह के लिए पैकिंग भी तो करनी है।

सच में ,हम डिनर कर रहे हैं और आंटी के खाने की तारीफ कर रहे हैं। सब कुछ कितना अच्छा बनाया है आंटी ने। शिव भैया और प्राची तो खा कम रहे हैं ,देख एक -दूसरे को ज्यादा रहे हैं। देखे भी क्यों नहीं भई लव -बर्ड्स जो ठहरे।

सलिल -मेरा खाना हो गया है। मैं बस बुक कर देता हूँ अभी जाकर।

दादाजी - ठीक है। तुम जाओ।

मैं -(यही समय है सलिल से बात करने का , जान -बूज कर पानी गिरा लिया मैंने अपनी ड्रेस पर ) भाभी ,ये पानी गिर गया। मैं साफ़ करके आती हूँ।

नेहा -मैं भी चलूँ क्या ?

मैं -नेहा ,तू अपना खाना खतम कर। मैं चली जाउंगी।

आंटी (प्राची की माँ ) -चाहत बेटा। तुम प्राची का कमरा तो जानती हो ना।

मैं -जी आंटी।