Chandra Prabha - Part (19) in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | चन्द्र-प्रभा--भाग(१९)

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चन्द्र-प्रभा--भाग(१९)

अपनी असफलता पर रानी जलकुम्भी का इस भाँति हँसना अम्बालिका को नहीं भाया और उसने क्रोधित होकर अम्बिका से कहा कि___
तुम्हें स्वर्णमहल पहुँचने में इतना बिलम्ब क्यों हुआ?तुम बिलम्ब ना करती तो वो नागरानी अपनी योजना मे सफल ना होती।।
सुनो! अम्बालिका! मैं कोई तुम्हारी दासी नहीं हूँ जो तुम मुझसे ऐसा व्यवहार कर रही हो,तुम्हारी बड़ी बहन हूँ, तुम्हारे सभी षणयंत्र में तुम्हारे संग रहती हूँ तो इसका ये तात्पर्य नहीं है कि तुम मेरा कभी भी और किसी के भी समक्ष अपमान कर दोगी,ऐसा कहकर अम्बिका क्रोधित होकर वाटिका से चली गई।।
ये सब देखकर रानी जलकुम्भी को अत्यधिक आनन्द आया कि दोनों बहनों के मध्य मतभेद की स्थिति उत्पन्न हो गई है परन्तु वो सब मौन होकर देंखतीं रही,बोलीं कुछ भी नहीं, बस वो अम्बालिका के मुँख को देख रहीं थीं कि अम्बिका के मुँख से ऐसे शब्द सुनकर अम्बालिका की कैसी प्रतिक्रिया है।।
अम्बालिका ऐसे ही अम्बिका को जाते हुए देखती रहीं किन्तु मुँख से कुछ ना बोल सकी क्योंकि उसे ज्ञात था कि यदि उसने अब और भी कुछ अम्बिका से कहा तो ऐसा ना हो कि अम्बिका उसका पुनः जलकुम्भी के समक्ष अपमान कर दे,इसलिए वो भी उसी क्षण वाटिका से चली गई।।
इस घटना से जलकुम्भी को विचार आया कि इन दोनों बहनों के मध्य यदि कड़ा मतभेद हो जाएं तो वो लाभ उठा सकती है, हो सकता है बहुत से भेद, अम्बिका मुझसे कह दें,इस पर अवश्य ही कोई योजना बनानी होगी।।
और उधर नागदेवी और नागदेवता को सकुशल देखकर भालचन्द्र को शांति हुई,उसे अत्यधिक प्रसनन्ता हुई कि दोनों सुरक्षित हैं और उसने शीघ्र ही उनके निकट जाकर उनकी कुशलता पूछी__
आप दोनों को देखकर मेरे मन को शांति हुई,आप लोग सुरक्षित आ गए इसके लिए मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है, मुझे भय था कि कि वो चण्डालिका ना जाने आप दोनों के संग कैसा व्यवहार करें,इसी चिंता से मैं रात्रि भर जागा रहा।।
हम दोनों सुरक्षित हैं राजकुमार! अब आपको चिंतित होने की आवश्यकता नहीं, चाहें तो अब आप जाकर विश्राम कर सकते हैं, नागरानी बोली।।
नहीं नागमाता! अब मुझे सारा घटनाक्रम बताइए कि आप लोग वहाँ से किस प्रकार आ पाए,भालचन्द्र ने कहा।।
वहाँ उपस्थित सभी लोग नागरानी और नादेवता के आने से अति प्रसन्न थे और सभी उस घटनाक्रम को जानना चाहते कि वो किस प्रकार अम्बालिका को छल कर यहाँ तक आ पाएं।।
नागदेवता ने सारी घटना विस्तार से बतानी प्रारम्भ की वो सर्वप्रथम शीशमहल पहुँचे और रानी जलकुम्भी से मिले,उन्होंने बताया कि नागरानी को अम्बालिका ने स्वर्णमहल में बंधक बना रखा है, नागरानी ने दासी के संग छल किया और वो वाटिका में छुप गई, परन्तु इसी मध्य अम्बालिका ने नागदेवता को बंधक बनाकर पिटारी मे रख दिया और नागरानी अम्बिका बनकर झूठा अभिनय करके नागदेवता को छुड़ाकर ले आई और जब सबने ये सुना तो अत्यधिक प्रसन्न हुए।।
किन्तु अब विभूतिनाथ जी की आशंकाएं बढ़ गई और उन्होंने कहा कि आप लोग के स्वर्णमहल से वापस आने से अम्बालिका की योजना विफल हो गई, अब ना जाने वो कौन सी योजना बना रही होगी,वो सरलता से हार मानने वालों मे से नहीं, अब वो शांत होकर कदापि नहीं बैठेगी।।
अब सत्य कह रहें हैं, पुरोहित जी,वैद्यनाथ जी बोले।।
परन्तु अब हमें कौन सी योजना बनानी चाहिए, भालचन्द्र बोला।।
नादेवता बोले,एक ही उपाय है, भालचन्द्र!
वो क्या नागदेवता? भालचन्द्र ने पूछा।।
वो ये कि राजकुमार! कि हम दोनों इच्छानुसार कोई भी रूप धर सकते हैं तो क्यों ना हम अम्बिका और अम्बालिका के मध्य मतभेद करवाने का प्रयास करें, नागरानी दोनों में से किसी भी बहन का आवश्यकतानुसार रूप धरकर ये कार्य कर सकती हैं,वो सरलता ये सब कर लेंगीं और उन दोनों बहनों को कुछ भी ज्ञात नहीं होगा,परन्तु इस कार्य को सफल बनाने के लिए हमें पुनः शीशमहल जाना होगा,हम अब भी शीशमहल चले जाते किन्तु आप सब को हमारी कुशलता का समाचार देना अति आवश्यक था,इसलिए हम वहाँ ना जाकर यहाँ चले आएं,अभी तक हमने रानी जलकुम्भी को भी अपनी कुशलता का समाचार नहीं दिया,ऐसा ना हो वो हमारे लिए चिंतित हो रहीं हों।।
आपकी योजना तो बहुत अच्छी है किन्तु शीशमहल में पुनः जाना ,पुनः नया संकट मोल लेना होगा,भालचन्द्र बोला।।
किन्तु ये सब तो करना ही होगा यदि हमें अम्बालिका को हराना है तो,वैद्यनाथ जी बोलें।।
आपका कहना भी उचित है, क्योंकि मुझे भी और कोई मार्ग नहीं सूझ रहा, भालचन्द्र बोला।।
,आज रात्रि ही हमें ये कार्य करना होगा,क्योंकि हमारे पास समय नहीं है,जितने शीघ्र ही हम इसे पूर्ण कर ले तो अच्छा होगा,नागदेवता बोले।।
जी,मैं आपसे सहमत हूँ, मुझे वर्षों से प्रतीक्षा है कि वो दिन कब आएगा कि जिस दिन मैं महाराज अपारशक्ति की सहायता कर सकूँ क्योंकि मेरे पुत्र के ही कारण आज वो और उनका परिवार इस स्थिति मे हैं,पुरोहित विभूतिनाथ जी बोले।।
आप चिंता ना करें बाबा! हम सब अवश्य इस कार्य में सफल होगें, भालचन्द्र बोला।।
वहाँ मुझे रानी जलकुम्भी ने एक और रहस्य से अवगत कराया था ,उन्होंने कहा था कि शीशमहल पर जिस गिद्ध का श्राप था,उसकी मृत्यु के पश्चात महाराज अपार ने ,उस गिद्ध की अस्थियों के कलश को स्वर्णमहल के प्राँगण में एक वृक्ष के नीचे धरती के तले छुपा रखा है और यदि किसी साहसी ने उस कलश की अस्थियों को अम्बालिका पर डाला तभी अम्बालिका की हत्या हो सकती है और उसने वहाँ जीवों की मूर्तियाँ बनवा रखी हैं,उन्हीं एक मे ही अम्बालिका की आत्मा है, परन्तु उस मूर्ति को ढूंढ़ना असम्भव सा लगता है क्योंकि यदि भूलवश कोई और दूसरी मूर्ति टूट गई तो जिसने मूर्ति तोड़ी है उसकी मृत्यु हो जाएंगी, नागदेवता बोले।।
ये रहस्य तो किसी को ज्ञात ही नहीं था,अच्छा हुआ आप रानी जलकुम्भी से मिले और इन रहस्यों को लेकर आएं,वैद्यनाथ जी बोले।।
अच्छा! ये सब तो ठीक है,मुझे ये बताइए कि अब सहस्त्रबाहु कैसा है?नागदेवता ने पूछा।।
चलिए उसके निकट ही चलते हैं, भालचन्द्र बोला।।
और सब सहस्त्रबाहु के निकट पहुंँचे और उससे नागरानी ने पूछा ___
अब कैसे हो पुत्र?
जी,माता! अब तो ठीक हूँ, सहस्त्रबाहु बोला।।
अभी ठीक तो है, किन्तु स्वस्थ नहीं, वहीं उसके निकट खड़ी सोनमयी ने उत्तर दिया।।
ये कैसे कह सकती हूँ सोनमयी!नागरानी ने पूछा।।
माता! आप स्वयं देखिए,अभी इनके मुँख को,ये स्वस्थ नहीं दिख रहें, अभी इन्हें स्वयं खड़े होने में असुविधा हो रही है, इनके घाव अभी भरे नहीं हैं, उपचार तो मैं कर रहीं हूँ और औषधियाँ भी मैं ही दे रही हूँ और इनकी देखभाल करते हुए मैं ये विश्वास के संग कह सकती हूँ कि ये अभी पूर्णतः स्वस्थ नहीं हुए हैं,सोनमयी बोली।।
ऐसा लगता है कि अभी कुछ और समय लगेगा सहस्त्रबाहु को स्वस्थ होने में,नागरानी बोलीं।।
कोई बात नहीं ,सहस्त्रबाहु को स्वस्थ होने दीजिए तब तक हम सब मिलकर कुछ योजनाएं बना लेते हैं, नागदेवता बोले।।
नहीं नागदेवता और नागमाता,सर्वप्रथम आप लोंग विश्राम कीजिए, उसके उपरांत ही हम कोई भी योजना बनाएंगे क्योंकि आप लोगों ने दो रात्रि से विश्राम नहीं किया है, भालचन्द्र बोला।।
हाँ, यही उचित रहेगा,वैद्यनाथ जी बोले।।
और सभी अपने अपने कार्य में लग गए,इधर सहस्त्रबाहु ने सोनमयी को अपने लिए सहानुभूति जताते देखा तो बोल पड़ा___
देवी! इसका तात्पर्य हैं कि आपको मुझसे प्रेम हो ना हो सहानुभूति तो है ही,तभी आप मेरी इतनी चिंता कर रही थीं।।
ऐसा कुछ नहीं है, श्रीमान! आपके स्थान पर और कोई भी होता तो तब भी उसके प्रति मेरा ऐसा ही व्यवहार होता,आप अपने मन में कोई संदेह ना रखे,प्रेम और वो भी आपसे,मेरे स्वप्नों का राजकुमार तो कोई और होगा,आप जैसा नहीं, आप ने कभी अपना मुँख देखा है, वो तो आप स्वस्थ नही हैं इसलिए मैं आपके निकट रहती ही हूँ, नहीं तो आप जैसे लोगों से बात करने भी में मुझे कोई रूचि नहीं है, सोनमयी बोली।।
आप तो मेरा हृदय तोड़ रहीं हैं देवी!सहस्त्रबाहु बोला।।
आपका हृदय इतना कोमल होगा,ये मुझे ज्ञात ही नहीं था,नहीं तो मैं ना तोड़ती,सोनमयी बोली।।
अब कोमल हो या कठोर वो तो आपने तोड़ ही दिया,सहस्त्रबाहु बोला।।
क्षमा करें, श्रीमान! अब कुछ नहीं हो सकता,सोनमयी बोली।।
होगा...देवी....कैसे नहीं होगा,आपको अवश्य मुझसे प्रेम होगा,सहस्त्रबाहु बोला।।
ये कभी नहीं होगा,श्रीमान! सोनमयी बोली।।
तभी सोनमयी को नागमाता ने पुकारा___
अभी आई नागमाता! सोनमयी ने उत्तर दिया।।
और सोनमयी ने नागमाता के निकट जाकर पूछा___
क्या बात है नागमाता! कोई आवश्यक कार्य है?
नहीं, ऐसे ही ,कुछ क्षण मेरें संग बातें करो,जब मै सो जाऊँ तो चली जाना,नागमाता बोली।
ठीक है नागमाता!सोनमयी बोली।।
अच्छा! ये तो बताओ, सहस्त्रबाहु क्या कह रहा था,नागमाता ने पूछा।।
कुछ नहीं माता! वो बावरा है, कहता था कि मुझसे प्रेम करता है, सोनमयी बोली।।
तो तुमने क्या कहा,नागमाता ने पूछा।।
मैने कहा कि मैं तो किसी राजकुमार से ही विवाह करूँगी, तुम्हारे जैसे से नहीं,सोनमयी बोली।।
वैसे लड़का तो बहुत अच्छा है, उसका हृदय भी पारदर्शी है और किसी की भी सहायता के लिए अपने प्राण भी दे सकता है, वो तो तुमने देख लिया है, नागमाता बोलीं।।
आपकी बात तो ठीक है नागमाता, परन्तु प्रेम! सोनमयी बोली।।
वो तुमसे अत्यधिक प्रेम करता है, उससे अच्छा लड़का नहीं मिलेगा तुम्हें, नागमाता बोली।।
ठीक है, माता! इस विषय पर पुनः विचार करूँगीं,सोनमयी बोली।।
कुछ समय तक सोनमयी से वार्तालाप करने के पश्चात नागरानी सो गई........

दिन ऐसे ही ब्यतीत हो गया और रात्रि हो गई,नागदेवता और नागरानी ने सबसे शीशमहल जाने के लिए अनुमति माँगी और सर्प रूपधारण करके चल पड़े शीशमहल की ओर.......
कुछ क्षण के पश्चात ही वो दोनों शीशमहल जा पहुँचे,इस बार दोनों ने ही संग में वाटिका के भीतर प्रवेश किया,देखा तो रानी जलकुम्भी सूर्यप्रभा से वार्तालाप कर रहीं थीं,नागरानी दोनों के निकट पहुँची और मानव रूपधारण किया___
जलकुम्भी ने जैसे ही नागरानी को देखा तो अति प्रसन्न हुई और उन्हें गलें से लगाकर पूछा___
आप ठीक तो हैं नागरानी!मैं तो अत्यधिक चिंतित रही रात्रि भर किन्तु जब अम्बिका ने मेरे निकट खड़ी अम्बालिका से आकर कहा कि आप नागदेवता की पिटारी को अम्बिका बनकर ले भागीं हैं तो मुझे अत्यधिक आनन्द आया और अम्बालिका का मुँख देखकर हँसी भी आई और नगदेवता भी सुरक्षित तो हैं ना!
जी,रानी जलकुम्भी! मैं यहाँ हूँ और ठीक हूँ, नागदेवता भी मानव रूप में आकर बोले।।
मुझे अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है आप दोनों संग देखकर, आप लोगों के सुरक्षित होने का समाचार तो अम्बिका ने दे दिया था।।
तो रानी जलकुम्भी अब आपकी आगें क्या ऐसी योजना बनाएं की अम्बालिका अपने हर षणयंत्र मे विफल हो,नागरानी बोली।।
इन दोनों के मध्य आपसी मतभेद करवाना होगा,तभी हम जीत सकते हैं, रानी जलकुम्भी बोली।।
वही तो मैं भी सोच रहा था,परन्तु वो किस प्रकार कर सकते हैं? नागदेवता ने पूछा।।
मैने आज जो अम्बिका का क्रोध देखा था अम्बालिका के ऊपर हम उसका लाभ उठा सकते हैं, नागरानी अम्बालिका बनकर पुनः अम्बिका का अपमान करें तो,तब तो अवश्य अम्बिका कुछ ना कुछ तो करेगी ही ,वो शांत नहीं बैठैगी और हम इसका लाभ उठाएँगे,रानी जलकुम्भी बोली।।
योजना तो अच्छी हैं,नागरानी बोलीं।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा__