Chandra-Prabha - Part (14) in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | चन्द्र-प्रभा--भाग(१६)

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चन्द्र-प्रभा--भाग(१६)

नागदेवता और नागरानी आज अत्यधिक प्रसन्न थे क्योंकि नागरानी ये देखकर आई थी कि सूर्यप्रभा सुरक्षित है और रानी जलकुम्भी भी उसके संग है, दोनों को आत्मसंतुष्टि का अनुभव हो रहा था,दोनों ही वार्तालाप करते करते सो गए, परन्तु उधर अम्बालिका अपनी हार को भला कैसे सहन कर सकती थी,वो तो शीशमहल से इसलिए निकली थी कि नागदेवता और नागरानी को हानि पहुँचा सकें।।
वो वहीं एक टीले के पीछे छिपकर बैठ गई क्योंकि भोर होने मे अब और अधिक समय नहीं रह गया था एवं ये उसे ज्ञात था कि पूजा अर्चना के समय नागदेवता और नगरानी दोनों ही सर्प का रूपधारण करते हैं और वो इसी अवसर में थी।।
प्रातःकाल हुई नागदेवता और नागरानी स्नान करके बेलपत्र और कुछ पुष्पो को एकत्र कर के एक वृक्ष के तले ध्यान मे लीन हो गए और कुछ समय पश्चात उन्होंने सर्प रूप धारण किया,अम्बालिका तो इसी अवसर में थीं वो उन दोनों के निकट आकर हँसीं,उसकी हँसी सुनकर दोनों ने अपने नेत्र खोले,उसी क्षण उसने अपने जादू की सहायता से चील का रूपधारण किया और नागरानी को अपनी चोंच में दबाकर ना जाने कहाँ उड़ चली,नागदेवता ने जैसे ही ये दृश्य देखा तो शीघ्रता से मानव रूप में आकर सबको सूचित किया किन्तु जब तक वो सबको सूचित कर पाएं अम्बालिका तो नागरानी को उड़ाकर ना जानें कहाँ ले गई।।
सबके समक्ष ये बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई कि अब इसका क्या समाधान किया जाएं,क्योंकि किसी को ये ज्ञात नहीं था कि अम्बालिका नागरानी को कहाँ ले जा सकती है?
इधर भालचन्द्र ब्यथित सा ,चिंतित सा होकर बैठ गया,इन सबका दोषी वो स्वयं को समझ रहा था,उसे लग रहा था कि इन सबका क्या दोष ? ये सब तो मेरी सहायता के लिए यहाँ आए थे,उस रात्रि इतने इच्छाधारी सर्पों की हत्या हो गई,उधर सहस्त्रबाहु की मेरे कारण ही ये दशा हुई है और अब नागमाता,अम्बालिका ना जाने उन्हें लेकर कहाँ चली गई, मुझे तो कोई मार्ग ही नहीं सूझ रहा।।
भालचन्द्र की मनोदशा से वैद्यनाथ भलीभाँति परिचित थे,उन्होंने भालचन्द्र के समीप आकर कहा___
राजकुमार! इतने चिंतित ना हो,हम सब नागरानी को कुछ नहीं होने देंगें, वो उन्हें कोई भी हानि नहीं पहुँचा पाएंगी, इतना सरल नहीं है अम्बालिका के लिए नागरानी को हानि पहुँचाना,नागरानी के पास भी बहुत सी शक्तियाँ हैं जिनका उपयोग करके वो अम्बालिका को हरा सकतीं हैं,, वैद्यनाथ जी बोले।।
परन्तु, बाबा! अभी तो वो संकट में हैं और कैसे भी करके हमें उन्हें बचाना होगा,भालचन्द्र बोला।।
हाँ,सब मिलकर उसका भी कोई उपाय सोचते हैं, वैद्यनाथ जी बोले ।।
सब शीघ्रता से एक स्थान पर एकत्र हुए और योजना बनाई कि क्या किया जाएं?
तब नागदेवता बोले ___
बस,एक ही उपाय है।।
किन्तु, वो क्या है? नागदेवता! वैद्यनाथ जी ने पूछा।।
वो ये है कि शीशमहल पुनः जाऊँगा,वहाँ सर्प का रूपधारण कर महल में भीतर जाकर छुप जाऊँगा और जब अम्बालिका वहाँ आएंगी तो मैं अम्बिका का रूप धरकर उससें ये ज्ञात करने का प्रयास करूँगा कि नागरानी कहाँ है, क्योंकि इसके अलावा तो मुझे और कोई मार्ग नहीं सूझ रहा,नागदेवता बोले।।
उपाय तो बहुत ही अच्छा है, किन्तु आप पर कोई संकट ना आ पड़े नागदेवता, विभूतिनाथ जी बोले।।
नहीं, ऐसा नहीं होगा,मैं सावधानीपूर्वक ये कार्य करूँगा, जब अम्बिका शीशमहल में नहीं होगी तभी मैं उसका रूपधारण करूँगा, नागदेवता बोले।।
नहीं,नागदेवता! ये संकट, मैं आपको नहीं लेने दूँगा, मेरे कारण पहले ही इतने निर्दोषों के प्राण चले गए और अपने मित्र को इस अवस्था में देखता हूँ तो मेरा मन द्रवित हो जाता है और अब नागरानी के पश्चात आपके प्राण भी संकट में डाल दूँ,ये मुझसे न होगा,भालचन्द्र बोला।।
तो तुम्ही बताओ,अगर तुम्हारे पास इससे भी अच्छा उपाय हो तो,अगर हैं तो कहों, हम सब वही करेंगे जो तुम कहोगे, नागदेवता बोले।।
मेरे पास तो कोई उपाय नहीं है ,कदाचित इससें अच्छा और कोई उपाय हो भी नहीं सकता,परन्तु मुझे आपकी चिंता है कि आपके ऊपर कोई संकट ना आ पड़े,भालचन्द्र बोला।।
मुझे कुछ नहीं होगा,तुम निश्चिन्त रहों, नागदेवता बोले।।
कैसे चिन्ता ना करूँ? आप लोग तो मेरी सहायता के लिए आएं थे ना! और यहाँ आकर संकट में पड़ते जा रहे हैं, भालचन्द्र बोला।।
मैं आज रात्रि ही ये ज्ञात करने का प्रयत्न करता हूँ, रात्रि होने की प्रतीक्षा है,ये दिन कैसे कटेगा, कितना कठिन है रात्रि की प्रतीक्षा करना,पता नहीं वहाँ नागरानी की कैसी दशा होगीं, उसे कहाँ, कैसे स्थान पर रखा होगा उस चण्डालिका ने,नागदेवता बोले।।
नागदेवता, अब इतनी प्रतीक्षा तो करनी ही होगी, ये ज्ञात करने के लिए कि नागरानी कहाँ हैं, वैद्यनाथ जी बोले।।
नागदेवता दिनभर गहरी चिंता में डूबे रहें, ज्यों ज्यों दिन ढ़लता त्यों त्यों उनके व्याकुल हृदय को शांति मिलती जाती और एक लम्बे अन्तराल के पश्चात रात्रि भी आ गई,अब प्रतीक्षा की घड़ियाँ समाप्त हो चुकीं थीं,सब एक स्थान पर नागदेवता को शीशमहल भेजने के लिए एकत्र हो चुके थे,परन्तु भालचन्द्र अत्यधिक उदास था,नागदेवता ने सर्प का रूपधारण किया और चल पड़े शीशमहल की ओर।।
कुछ समय में ही शीशमहल तक जा पहुँचे और उन्होंने नागरानी की भाँति वाटिका से प्रवेश करने का निर्णय लिया,उन्होंने वाटिका में प्रवेश किया और चारों ओर अपनी दृष्टि डाली,वाटिका में रानी जलकुम्भी और पिंजरे में बंद मैना के सिवाय और कोई ना था,तब नागदेवता ने मानव रूप धारण किया और रानी जलकुम्भी के समक्ष आएं,
रानी जलकुम्भी ने एकाएक नागदेवता को देखा तो भयभीत हो उठीं और उनसे पूछा____
कौन हो तुम?
जी,मैं नागदेवता, कल रात्रि मेरी रानी आपसे मिली थीं ना,हम दोनों को सूचना मिली की अम्बिका वहाँ सबको हानि पहुँचाने वाली है, तब शीघ्रता से हमने सबको सूचित किया और अम्बिका अपने षणयंत्र मे सफल नहीं हो पाई और उसी का प्रतिशोध लेने के लिए आज अम्बालिका प्रातः उस स्थान पर आई और नागरानी ने पूजा करते समय जैसे ही सर्प रूपधारण किया तभी अम्बालिका ने चील का रूप धर लिया और ना जाने नागरानी को कहाँ ले गई, नागदेवता ने शीघ्रता से सारा वृत्तान्त रानी जलकुम्भी को कह सुनाया।।
ये तो अत्यधिक दुखद घटना है, रानी जलकुम्भी बोली।।
इसलिए आज रात्रि पुनः मुझे यहाँ आना पड़ा कि यदि कोई भी सूचना नागरानी के विषय में मिल जाए तो मैं उनके प्राण बचा लूँ, नागदेवता बोले।।
जी,नागदेवता! और हो ना हो अम्बालिका ने नागरानी को हमारे स्वर्णमहल मे छिपा रखा होगा,क्योंकि उसने वहाँ अत्यधिक कड़ा पहरा लगा रखा है, एकदा उसके वार्तालाप से ज्ञात हुआ था मुझे कि स्वर्णमहल पर कड़ा पहरा रहता है, रानी जलकुम्भी बोली।।
तभी जलकुम्भी को कोई आहट सुनाई दी और उसने नागदेवता को सावधान करते हुए कहा कि लगता है जैसे कि कोई आ रहा है, आप अपना पूर्व रूप लेकर कहीं छिप जाइएं, मैं अम्बालिका से ज्ञात करने का प्रयत्न करती हूँ कि नागरानी कहाँ हैं?और नागदेवता ने पुनः सर्प रूपधारण किया और झाड़ियों में जा छुपे।।
तभी वाटिका मे अम्बालिका उपस्थित हुई और जकुम्भी के समक्ष आकर बोली____
आज मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ रानी,आज रात्रि के भोजन में तुम क्या खाना चाहोगी बोलो,मैं आज रात्रि तुम्हें वहीं खिलाऊँगी, अम्बालिका ने जलकुम्भी से पूछा।।
रहने दो अम्बालिका, तुम एक रात्रि अच्छा भोजन खिला दोगीं तो उससे मेरे जीवन में भला क्या अन्तर पड़ने वाला है, परन्तु आज तुम प्रसन्न क्यों हो?रानी जलकुम्भी ने पूछा।।
बस,ऐसे ही तुम्हें ज्ञात हो जाएगा तो कहीं तुम्हारा मन ना खिन्न हो जाए,अम्बालिका ने कहा।।
और कितना मेरा मन खिन्न करोगी, वर्षों से तुम यही तो करती आई हो,जलकुम्भी बोली।।
परन्तु,आज तो मैं प्रसन्न थी इसलिए पूछ लिया,अब तुम्हें नहीं चाहिए तो कोई बात नहीं,अम्बालिका बोली।।
परन्तु, बात क्या है, मुझे भी तो कारण ज्ञात हो तुम्हारी प्रसन्नता का,जलकुम्भी ने पूछा।।
वो तुम्हारी राजकुमारी का राजकुमार है ना भालचन्द्र उसके मित्र नागदेवता की नागरानी का सुबह मैने अपहरण कर लिया है,किसी भी दशा में ,मैं राजकुमार को जीतने नहीं दूँगी, अम्बालिका बोली।।
क्या कहा?और तुमसे आशा भी क्या की जा सकती हैं? तुम तो ऐसे ही घृणित कार्य करती आई हो,परन्तु क्या किया तुमनें नागरानी के संग,कहीं तुमने उनकी हत्या तो नही कर दी,रानी जलकुम्भी ने पूछा।।
ना! इतनी शीघ्र हत्या नहीं करूँगी मैं उसकी,मैने तो उसे स्वर्णमहल में बंदी बनाकर रखा,अम्बालिका बोली।।
क्या कहा?स्वर्णमहल में,जलकुम्भी ने उच्च स्वर मे कहा।।
अच्छा, अब मैं जाती हूँ, इतना समय नहीं हैं मेरे पास,जाकर देखती हूँ कि कैसी दशा हैं नागरानी की और इतना कहकर अम्बालिका वाटिका से प्रस्थान कर गई।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा...