Chandra-Prabha - Part (15) in Hindi Love Stories by Saroj Verma books and stories PDF | चन्द्र-प्रभा--भाग(१५)

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चन्द्र-प्रभा--भाग(१५)

तू ही मेरी बेटी प्रभा है, मैं तुझे पहचान क्यों नहीं पाई?तू इस रूप मे हैं कि तुझे देखकर मैं कल्पना भी नहीं कर सकतीं कि तू कैसी दिखती है बड़ी होकर,बहुत विवश हूँ मैं,मेरी पुत्री और रोते हुए जलकुम्भी ने मैना बनी सूर्यप्रभा पर प्रेमपूर्वक अपना हाथ रखा और माँ का ऐसा प्रेमभरा स्पर्श पाकर सूर्यप्रभा के नेत्रों से अश्रुओं की धारा बह चली।।
माँ और पुत्री सारी रात्रि यूँ ही वार्तालाप करतीं रहीं,उस रात्रि क्या क्या हुआ था? वो सारी घटना जलकुम्भी ने सूर्यप्रभा से कह सुनाई और बोली तुझे ज्ञात है मेरी पुत्री कि मैने ये ज्ञात कर लिया है कि अम्बालिका की मृत्यु किस प्रकार हो सकती हैं, चूँकि इस रहस्यमयी शीशमहल पर एक गिद्ध का श्राप था,भूलवश उसके परिवार की हत्या हो गई थीं और वो गिद्ध मूर्छित अवस्था में आकर शीशमहल की मुंडेर पर बैठ गया और महाराज को श्राप दिया किन्तु महाराज ने इस श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब उन्होंने नया महल बनवाने का उपाय दिया परन्तु एक रहस्य और भी हैं।।
तब सूर्यप्रभा ने संकेतो में पूछा कि वो रहस्य क्या है?
रानी जलकुम्भी बोली___
ये रहस्य केवल मेरे और महाराज के मध्य ही था,वो ये हैं कि महाराज ने गिद्ध का अंतिम संस्कार करने के उपरांत उसकी अस्थियों के कलश को स्वर्णमहल के प्राँगण में पीपल के पेड़ के तले धरती के भीतर छुपा दिया था,चूँकि गिद्ध की आत्मा एक अच्छी आत्मा थी,इसलिए उन अस्थियों का उपयोग हम अम्बालिका को नष्ट करने में कर सकते हैं एवं यहाँ ये प्रश्न उठता है कि उस अस्थियों के कलश को लाएगा कौन?
क्योंकि अम्बालिका ने तो उस महल पर भी अपना आधिपत्य कर रखा हैं,वो अधिकतर समय वहीं रहती हैं तथा महल के सिंहासन और राजकोष पर भी उसी ने अधिकार कर रखा है, महल पर इतना कड़ा पहरा कर रखा है कि कोई भी सरलता से महल में प्रवेश नहीं कर सकता क्योंकि उसी महल में अम्बालिका ने अपने प्राणों को कहीं किसी प्राणी में डालकर छुपा रखा है और जब तक अम्बालिका पर उस गिद्ध की अस्थियों को नहीं डाला जाता तो अम्बालिका मृत्यु को प्राप्त नहीं होगी और ऐसे कार्य के लिए किसी वीर योद्धा की आवश्यकता है।।
ये सब बातें सूर्यप्रभा बड़े ध्यान से सुन रहीं थीं, उसने सोचा राजकुमार यहाँ आ जाते तो अवश्य ही प्रयास करते उस महल में जाने के लिए,कितना अच्छा हो कि राजकुमार यहाँ शीघ्र ही पहुँच जाएँ।।
रानी जलकुम्भी बोली,मुझे ज्ञात है पुत्री कि तू अवश्य राजकुमार के विषय में ही सोच रही हैं, चिंता मत राजकुमार शीघ्र ही आएंगे, अब तू सो जा और दोनों माँ और पुत्री अपने अपने बिछावन पर लेट गए।।
और उधर नागरानी और नागदेवता शीघ्रता से पहुँचे और उन्होंने बताया कि अम्बिका इसी ओर आ रहीं है,आज ना जाने कौन सा संकट लेकर आ रही है चण्डालिका,सब सावधान हो जाइएं और निद्रा मे लीन होने का अभिनय कीजिए।।
और सभी ऐसा ही किया, कुछ समय पश्चात अम्बिका आईं और सबको निंद्रा में देखकर उसने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया, अपनी बगल में टँगी हुई पोटली से उसने बीन निकाली और उस पर तान छेड़ दी हैं जिससे कि सभी सर्प उस बीन की तान सुनकर मोहित हो जाए और उसके वशीभूत होकर वहीं कार्य करने लगें जो वो कहें।।
अम्बिका ने अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया और सभी सर्प बने सैनिक ,सर्पों में परिवर्तित होने लगें, परन्तु ये तो केवल सबका अभिनय था,इसी बीच भालचन्द्र ने पीछे से आकर अम्बिका की बीन छीन ली और सभी सैनिक बने सर्प एक एक करके अम्बिका पर लिपटने लगें, इस कारण अम्बिका का ध्यान भी केन्द्रित नहीं हो पा रहा था कि वो जादू कर सकें, अब अम्बिका चीखने लगी कि दूर हटो मुझसे...जाओ यहाँ से परन्तु,उन सर्पो को नागदेवता ने भी कोई आदेश नहीं दिया कि अम्बिका से दूर हटो।।
अब अम्बिका इतनी व्याकुल हो गई कि उन सर्पों को हटाने के लिए धरती पर लोटने लगी,परन्तु सर्प तब भी नहीं हटे और अम्बिका को इस दशा मे देखकर सबको बड़ा आनंद आ रहा था,अत्यधिक प्रयास करने के उपरांत भी जब अम्बिका नहीं छूटी तो उसने नागदेवता से कहा कि वो उसे क्षमा करें और अपने साथियों को अपने निकट बुला ले,मुझे अत्यधिक व्याकुलता हो रही है।।
तब नागरानी बोली___
ये सब तुम अभी अभिनय कर रही हो और दूसरे ही क्षण इनसे छूटते ही,पुनः हम पर प्रहार करोगी।।
नहीं मैं ऐसा नहीं करूँगी, कृपया इनसे कहें कि ये चलें जाएं, अम्बिका बोली।।
आपने मुझसे कितना बड़ा विश्वासघात किया है, बड़ी माँ!हमारे साथ रहकर इतना बड़ा षणयन्त्र रच रहीं थीं आप,भालचन्द्र बोला।।
राजकुमार मुझे आपसे कुछ नहीं कहना,ये हम दोनों बहनों के प्रतिशोध की बात थीं, तो मुझे वो सब करना पड़ा,परन्तु अभी मुझे जाने दो,मैं ये विश्वास दिलाती हूँ कि आगें से कभी भी रात्रि के समय कोई भी षणयन्त्र नहीं करूँगी, अम्बिका बोली।।
तब नागदेवता ने सर्पों को आदेश दिया कि अम्बिका को छोड़ दो और सर्पों ने नागदेवता के आदेश का पालन किया,सर्पो से छूटते ही अम्बिका शीशमहल की ओर भागी।।
सब अम्बिका को देखकर बहुत हंसे।।
तब व्याकुल होकर भालचन्द्र ने नागरानी से पूछा कि___
मेरी प्रभा ठीक तो है ना माता!
हाँ..हाँ..राजकुमार आप इतना चिंतित क्यों होते हैं?वो ठीक है।।
सच,नागमाता,भालचन्द्र ने प्रसन्न होकर कहा।।
हाँ ,पुत्र! आप निश्चिंत रहें, वो अपनी माँ के साथ हैं और स्वस्थ हैं, नागरानी बोली।।
अब मेरा हृदय ये सुनकर प्रसन्न हुआ कि प्रभा ठीक है, भालचन्द्र बोला।।
और क्या कहा आपने नागरानी, महारानी जलकुम्भी भी सूर्यप्रभा के साथ ही हैं, तब तो बहुत ही अच्छी सूचना दी आपने,वैद्यनाथ जी अत्यधिक प्रसन्न होकर बोले।।
हाँ,वैद्यनाथ जी अपनी इन्हीं आँखों से मैने आज रानी जलकुम्भी की दशा देखी है,उन्हें अम्बालिका ने एक खुलें आकाश के नीचें वाटिका में ही रख रखा हैं, हाथ और पैरों में मोटी मोटी बेड़ियाँ डाल रखीं हैं, जिससे वे केवल वाटिका में ही इधर से उधर जा सकतीं हैं,वहीं वाटिका मे बने हुए सरोवर से वे जल गृहण करतीं हैं तथा उसी से वो स्नान करतीं होगीं, भोजन के नाम पर वहीं वाटिका के वृक्षों पर लगें फल ही उनका आहार होगें और वहीं एक वृक्ष की शाखा से मैना बनी सूर्यप्रभा का पिंजरा भी लटकता रहता हैं, ये ही दशा है दोनों माँ और पुत्री की,नागरानी उदास मन से बोलीं।।
दुखी न हो नागरानी अब ये दिन और अधिक नहीं रहने वाले हैं, अम्बालिका के पापों का दण्ड उसे शीघ्र ही मिलने वाला है, एक बार सहस्त्रबाहु स्वस्थ हो जाएं,इसके उपरांत आगें की रणनीति बनाता हूँ, भालचन्द्र बोला।।
राजकुमार! आपका कथन सत्य हो और अम्बालिका शीघ्र ही अपने पापों का दण्ड पाएं,नागरानी बोली।।
इधर अम्बिका भयभीत होकर शीशमहल पहुँची,उसकी दशा देखकर अम्बालिका ने पूछा__
क्या हुआ? तुम इतनी भयभीत क्यों हो?
आज रात्रि अत्यधिक कष्टकारी थीं, जैसे तैसे अपने प्राण बचा कर आ रहीं हूँ, अम्बिका बोली।।
क्यों ऐसा क्या हुआ,तुम्हारे संग,मेरे रहते हुए उनमें से किस में इतना साहस हैं कि तुम्हें कष्ट पहुँचाएँ, अम्बालिका ने अम्बिका से पूछा।।
और कौन वहीं नागदेवता और उसकी नागरानी, अम्बिका बोली।।
उन लोगों का इतना साहस,अब तो मुझे ही कुछ करना होगा और समझ लो कि उन दोनों के जीवन की कल अन्तिम रात्रि होगी, ऐसा आश्वासन देकर अम्बालिका ना जाने कहाँ चली गई.......

क्रमशः___
सरोज वर्मा..