AATMSAMMAN in Hindi Comedy stories by rajendra shrivastava books and stories PDF | आत्‍मसम्‍मान

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आत्‍मसम्‍मान

कहानी---

आत्‍मसम्‍मान

राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव,

प्रत्‍येक व्‍यक्ति अपने किये गये हर कर्म का समय-बे-समय प्रतिकर्म की अपेक्षा रखता है। आशावान रहता है। प्रतीक्षारत रहता है कि भविष्‍य में उसके द्वारा किये हुये कार्यों का आंकलन अनुसार सुफल उसे प्राप्‍त होगा।

लेकिन जब नाउम्‍मीदों के घने अंधेरे दिखाई देते हैं, तो उसके अपेक्षा के स्‍मारक भर- भराकर धराशाही हो जाते हैं। उसके द्वारा खू़न पसीना एक करके किया गया हाड़तोड़ परिश्रम शून्‍य मान लिया जाता है। एवं जो उसने नहीं किया या जो वह नहीं कर पाया, उस पर उसे प्रताडि़त किया जाता रहता है। जो उसके लिये मानसिक यंत्रणा से कम नहीं होता। वह उदासीन, उपेक्षित, अपमानित, अपराधी सा ठगा महसूस करने लगता है।

ऐसे कम ही सुसज्‍जन होंगे जो अपने किये हुये कार्यों का प्रतिफल चाहेंगे। देर-सबेर वे किसी ना किसी रूप में अपने प्रति सहानुभूति, सहृदयता की आशा रखते होंगे। तभी सम्‍बन्‍धों का सन्‍तुलन बना रहेगा। अन्‍यथा उनमें दरार, तनाव व अन्‍तर्कलह का अंकुर प्रस्‍फुटित हो जायेगा। एवं वह टीसते-टीसते नासूर बन जायेगा। जो कभी भी विद्यवन्‍सकारी साबित होगा।

जब व्‍यक्ति अपने कार्यों का अथवा अपने आपका स्‍वांकलन करने लगे तथा तीन का काम करके तैरह का रिटर्न चाहने लगे, तो समझो उसका पतन निश्चित है। वह दीर्घकाल तक अपना वर्चस्‍व नहीं बनाये रख सकता। सम्‍भवत: वह सबकी तरफ से नकार दिया जायेगा।

पारिवारिक व सामूहिक परस्‍पर सम्‍बन्‍ध बहुत ही स्‍वार्थपरक अनेक तात्‍कालिक एवं दीर्घकालिक तनावों से बोझिल हो गये हैं। एक दूसरे के प्रति प्रीत, विश्‍वास मर्यादा, नैतिकता पारदर्शिता, निश्‍च्‍छलता, बोल-चाल, मान-सम्‍मान, समर्पण और दरियादिली का नितान्‍त अभाव हो गया है। वातावरण तथा परिवेश में सूखापन एवं खुरदुरापन व्‍याप्‍त हो गया है। ऐसे हालातों में मानवीय सम्‍वेदनाऍं और आत्मिक भावनाओं का संरक्षण कैसे हो सकता है। इन सब मानवोचित विशेषताओं के वगैर सुख-शॉंति, अमन-चैन हंसी-खुशी, भाई-चारे इत्‍यादि की उम्‍मीद करना निर्मूल है। अपेक्षाओं के अनुकूल ना भी सही, कम से कम उसके मापदण्‍ड के आस-पास तो आना चाहिए-रिजल्‍ट.. !!

पूर्णत: विपरीत परिणाम को देखकर हैरानी होना स्‍वभाविक है।

ज्‍यादातर ग्रोथ एज़ में बच्‍चों पर अत्‍यन्‍त कठोर नियन्‍त्रण भी उनको विद्रोही बनाता है। मगर ऐसा कुछ हुआ ही नहीं कि कभी किसी काम पर किसी बच्‍चे को डॉंट-फटकार पड़ी हो। तो फिर....?

कच्‍ची उम्र में अनेकों अभाव, जो रोजमर्रा की आवश्‍यकताओं को प्रभावित करते हों, तो भी बालक उदासीन हो जाता है, और अपेक्षित व्‍यवहार नहीं करता। मगर सामान्‍यत: स्‍वाभाविक सामग्री, जो प्रतिदिन आवश्‍यक होती है। पूर्णत: उपलब्‍ध रही हो तो फिर........?

साधारणत: यह मान लिया जाता है कि बच्‍चे की जिस वातावरण, आवो-हवा, संगत, परिवेश एवं हालातों में उसकी परवरिश होती है, उसका रहन-सहन बोल-चाल, वैसा ही ढल जाता है, मगर सारी की सारी स्थितियॉं साफ-सुथरी व सामाजिक सुसभ्‍य स्‍तर पर है, तो फिर..........?

ऐसा भी नहीं है कि नैतिक मूल्‍यों, मानवीय सम्‍वेदनाओं, रिश्‍तों की मर्यादाओं तथा मान-सम्‍मान की शिक्षा न मिली हो! हर स्‍तर पर उन्‍हें खुला आसमान मिला, अपने-आपको विकसित करने के सम्‍पूर्ण विकल्‍प उपलब्‍ध थे तो फिर........? तो......फिर........किन कारणों से बच्‍चे इतने नाशुक्रे, एहसान-फरामोश, लापरवाह, लीचड़, निर्लज्‍ज, कामचोर, बद्तमीज, मुफ्तखोर, झूठ-सच बोलकर ऑंखें दिखाकर, भावात्‍मक ब्‍लेक-मेल करके, अपने-आपको अनुकूल स्‍वरक्षित समझकर निश्चिन्‍त हो जाना। ना वर्तमान देखना और ना ही भविष्‍य के बारे में सोचना.........!!

उम्र के अंतिम पड़ाव पर आते-आते असहनीय अनुभूतियों का इस तरह शिकार होना जहॉं ना कोई भविष्‍य की किरण दिखाई देने का तो प्रश्‍न ही नहीं उठता....! जीवन को आगे किस तरह बढ़ाया जा सकता है विचारशीलता भी लड़खड़ा कर चीख उठती है। बुद्धि-विवेक भी कोई हल निकालने में या उनका भविष्‍य बनाने में रत्तिभर भी सम्‍भावनाऍं दिखाई दें, ऐसे हालातों का शिकार होना जीवन को गर्त में ही पटकने जैसा आभास होता है।

ऐसी उबाल खातीं परिस्‍थितियों में स्‍वयं को झोंकने जैसा ही है।

विधाताराम अपने आप में अथवा कल्‍पना में इतना तल्‍लीन हो गया कि कब उसका राजदार राजेश निकट आकर बैठ गया, गुमसुम। कुछ ही समय बाद विधाताराम की तंत्रा भंग ड़तर्यजनक स्‍वर में पूछा, ‘’क्‍या चल रहा है, मन में, कैसा महसूस कर रहे हो।‘’

‘’ऐसा प्रतीत हो रहा है।‘’ विधाताराम ने तपाक उत्तर दिया, ‘’जैसे तपते तेल में, तली जा रही हो, जिन्‍दा मछली....!’’

‘’अरे...रे...रे......।‘’ राजेश को महसूस हुआ, विधाताराम के दिल-दिमाग पर औलाद के अनकॉपरेटिव रवैये का गहरा असर हुआ है। उदासीनता के चरमबिन्‍दू के निकट पहुँच गया है। बहुत तनावग्रस्‍त जान पड़ता है। इस स्थिति में उसे हार्दिक सहानुभूति की शैली में समझाईश की अत्‍यावश्कता है। उसका ध्‍यान एक बिन्‍दू पर केन्द्रित हो गया है। तत्‍काल उसे आशाजनक सलाह की औषधी चाहिए।

राजेश ने प्रयास किया उसके ध्‍यान की दिशा-दशा को मोड़ने का। परम हितैसी की भॉंति; हल्‍की मुस्‍कुराहट के साथ, देखा एवं कहा, ‘’यार तुम, जल्‍दी ह‍थियार डाल देते हो।‘’ राजेश ने उसके कन्‍धे पर सहानुभूति पूर्वक हाथ रखकर अपनत्‍व जताया, ‘’अपनी मुण्‍डी एक सौ अस्‍सी अंश दायें-बायें घूम सकती है।‘’ वह उसके और करीब खिसक गया, ‘’एक दिशा में अँधेरा दिख रहा है; तो तुम ना उम्‍मीद हो गये। मुण्‍डी घुमाओ, इतने विशाल फलक पर कहीं तो आशा की किरण दिखाई देगी! समस्‍याओं के निराकरण के अनेकों तरीके ढूँढे़ जा सकते हैं। यह नहीं–और-सही! पर निराश क्‍यों ! हम तो जीवटधारी प्राणी हैं। अन्‍य अनेक योजनाओं पर मंथन-मनन करेंगे। कोई कारण नहीं शिथिल होकर बैठने का।‘’

राजेश को प्रतीत हुआ, कि उसके प्रोत्‍साहन का प्रभाव पड़ रहा है। विधाताराम को कसैले वातावरण से बाहर निकालने की गरज से कहा, ‘’चलो चाय पीते हैं,…..कुछ तो सामाधान निकलेगा!’’ राजेश ने विधाताराम को हाथ का सहारा देकर खड़ा किया।

‘’तुम्‍हारा कहना ठीक है, राजेश।‘’ विधाताराम ने अपनी गम्‍भीर एवं जानलेवा खामोशी तोड़ी, ‘’हाथ में हुनर है, क्‍यों किसी के सामने हाथ फैलायें। किसी की अधीनता एवं आश्रय की उम्‍मीद क्‍यों करें। सक्षम थे, तब रिश्‍तों में बन्‍धकर मोहमाया-दुनियादारी में पड़कर, औलाद के लालन-पालन तथा भरण-पोषण में अच्‍छा से अच्‍छा, जो प्रयास हुआ। समयानुसार! हृदय में कहीं-न-कहीं प्रतिफल की लालसा पल रही थी, वह गलतफयमी भी दूर हो गई। चेतना लौट आई, सिर्फ अपने-आपके लिये, सोचना है, करना है।‘’

राजेश को आंतरिक प्रसन्‍नता हुई, विधाताराम खतरनाक उदासीनता से उभरता हुआ महसूस हो ।

विधाताराम ने, अपने हमदम, दोस्‍त, सखा, हितैसी, शुभचिंतक, सचेतक, मददगार सहायक के मार्ग दर्शन में सर्वथा अपने अनुकूल वातावरण में, अपनी पूर्ण ऊर्जा सामर्थ एवं सूझ-बूझ से कारोबार प्रारम्‍भ किया परिश्रमपूर्वक।

यथाशीघ्र नेकनियती व्‍यवहार कुशलता, विश्‍वसनीयता, अनुभव एवं सक्रियता के आधार पर सर्वमान्‍य व सराहनीय छवि का निखार हुआ। निश्चिंतता पूर्वक कारोबार उत्तरोत्तर प्रगति करने लगा। परिणाम स्‍वरूप, स्‍तरीय जीवन-यापन के सुनहरे संकेत प्राप्‍त होने लगे। जीवन में खुशियों की बारात आने लगी।

विधाताराम ने राजेश को आत्‍मीयता से आलिंगनबद्ध होकर कहा, ‘’ये सब तुम्‍हारे प्रयास की छत्रछाया में ही हुआ।‘’

राजेश ने, तेरा तुझको अर्पण की तर्ज पर विधाताराम को ही श्रेय देते हुये कहा, ‘’यह तुम्‍हारे आत्‍मसम्‍मान का करिश्‍मा है......।‘’

♥♥♥ इति ♥♥♥

संक्षिप्‍त परिचय

नाम:- राजेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव,

जन्‍म:- 04 नवम्‍बर 1957

शिक्षा:- स्‍नातक ।

साहित्‍य यात्रा:- पठन, पाठन व लेखन निरन्‍तर जारी है। अखिल भारातीय पत्र-

पत्रिकाओं में कहानी व कविता यदा-कदा स्‍थान पाती रही हैं। एवं चर्चित

भी हुयी हैं। भिलाई प्रकाशन, भिलाई से एक कविता संग्रह कोंपल, प्रकाशित हो

चुका है। एवं एक कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है।

सम्‍मान:- विगत एक दशक से हिन्‍दी–भवन भोपाल के दिशा-निर्देश में प्रतिवर्ष जिला- स्‍तरीय कार्यक्रम हिन्‍दी प्रचार-प्रसार एवं समृद्धि के लिये किये गये आयोजनों से प्रभावित होकर, मध्‍य-प्रदेश की महामहीम, राज्‍यपाल द्वारा २ अक्‍टूबर-२०१८, भोपाल में सम्‍मानित किया है।

भारतीय बाल-कल्‍याण संस्‍थान, कानपुर उ.प्र. में संस्‍थान के महासचिव माननीय डॉ. श्री राष्‍ट्रबन्‍धु जी (सुप्रसिद्ध बाल साहित्‍यकार) द्वारा गरिमामय कार्यक्रम में सम्‍मानित करके प्रोत्‍साहित किया। तथा स्‍थानीय अखिल भारतीय साहित्‍यविद् समीतियों द्वारा सम्‍मानित किया गया।

सम्‍प्रति :- म.प्र.पुलिस से सेवानिवृत होकर स्‍वतंत्र लेखन।

सम्‍पर्क:-- 145-शांति विहार कॉलोनी, हाउसिंग बोर्ड के पास, भोपाल रोड, जिला-सीहोर, (म.प्र.) पिन-466001,

व्‍हाट्सएप्‍प नम्‍बर:- ९८९३१६४१४० मो. नं.— ८८३९४०७०७१

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