आटे पर बैंक लोन !
यशवन्त कोठारी
बैंक वाली बाला का फोन था। रिसीव किया ,तो मधुर आवाज गंूजी - ‘सर ! आपके लिए खुशखबरी !! हमारी बैंक ने आटे और गेहूं खरीदने के लिए भी लोन देना ष्शुरू कर दिया है । आप जैसे गरीब लेखकों को ईएमआई की सुविधा देने का निर्णय किया गया है। सर ,आप बैंक आएं और अनाज के लिए लोन ले लें तथा आसान ईएमआई से चुका दें । ऐसे सुनहरे अवसर बार -बार नहीं आते । आप यह मौका हाथ से न जाने दें । हमारे बैंक से आटा खरीदने के लिए लोन ले लें । आटा खाते रहें और ईएमआई चुकाते रहें ।
यह सुनकर मन मयूर नाच उठा हिये में उमंगें हिलोरें लेने लगीं । पहली बार फीलगुड़ का अहसास हुआ । सोचा ,वाकई हम अर्थिक उदारीकरण के युग में जी रहे हैं । देखिए ना ! बैंक भी कितने उदार हो गए । कहां तो लोन के लिए चक्कर काटते-काटते कई जोड़ी जूते घिस जाते थे और अब तो गरीबों का भी पूरा खयाल रखा जाने लगा है । मैं बाला के मीठे स्वर से खुश था कि चलो कहीं से तो बैंक लोन का डोल जमा । आटा खाने के बाद लोन चुकाना पड़ेगा । यह भी एक अच्छी खबर थी , क्योंकि औसत भारतीय खाना खाने के बाद जुगाली करने लग जाता है । मैं भी लोन चुकाने की जुगाली करूंगा । लोन के जुगाड़ से भी ज्यादा खुशी मोबाइल की फिजूलखर्ची के पत्नी के आरोपों का सटीक जवाब मिल जाने की थी । अब पत्नी से कह दूंगा कि देख मोबाइल का कमाल , इसने सारी समस्याएं चुटकियों में सुलझा दी।
मैं प्रफुल्लित मन से बैंक पहुंचा । ष्शानदार दफतर । ष्शानदार कालीन । ष्शानदार फर्नीचर । जानदार बालाएं ! सुन्दर स्वस्थ युवा । अच्छी अंग्रेजी में लोने -देने को तत्पर । मैंने उन्हें बड़ी प्रसन्नता से बताया कि आटा खरीदने के लिए लोन लेने आया हूं और बैंक से मुझे फोन भी आया था । ये सुनते ही उस सुंदर बाला ने हिकारत से मुझे देखा और कहा - सर , मैं तो कार लोन को डील करती हूॅ। आप रमा के पास जाएं ।
रमा कहां हैं ? मेरे सवाल का जवाब मिला - वे जो महंगे फोन पर बतिया रही हैं , वे रमा जी हैं । रमा जी की टेबल पर कई फोन थे । सभी रह-रह कर बजते थे । रमाजी एक फोन रखती ,दूसरा उठाती । दूसरा फोन रखती ,तीसरा उठाती । इस बीच उनका मोबाइल बजने लगता , वो मोबाइल उठाती और सुर मिलाती । मैं उनके सामने जाकर खड़ा होगया । कभी उन्हे देखता ,तो उनकी नजर पड़ने पर उनके फोन को घूरने लगता । रमा जी की बॉडी लैंग्वेज देख कर मुझे लग रहा था कि फोन रखते ही वे मुझ से बात करने वाली है ,लेकिन वे मेरी तरफ मुस्कान फेंकते हुए दूसरे फोन पर लग जाती । काफी देर तक मुझे इस तरह खड़ा देखकर रमाजी ने मेरी तरफ नजर घुमाई , फोन पर बतियाते हुए ही बोली - ‘कहिए सर ! मैं और यह बैंक आपके लिए क्या कर सकते हैं ? आपकी सेवा में हम तत्पर है । ’
मैंने सोचा ,अब तो अपना काम हो जाएगा । मैं मुस्कुराते हुए बोला - ‘ आप चाहें तो मुझे आटा खरीदने के लिए लोन दे सकती हैं । ’ देखिए बैंक ने वित्त मंत्री के आदेश से अपनी पॉलिसी बदल दी है । पिछले वर्प हमने कुछ लोगों को आटे के लिए लोन दे दिया था । सबके सब आटा खाकर चित्त हो गए । अब हम केवल गेहू के लिए लोन दे रहे हैं । ,मैंने कहा - ‘ कोई बात नहीं पॉलिसी बदल गई तो , मुझे गेहू के लिए ही लोन दे दीजिए । ,
‘ देखिए क्या आप ईएमआई भर सकेंगे ?’ उनका सवाल सुनकर मैं झेंप गया । फिर साहस जुटाकर बोला- ‘ क्यो नहीं ! आप मेरा और मेरे परिवार का पेट भर रही हैं ,तो मैं ईएमआई क्यों नहीं भर सकता ?’वेसे यह ईएमआई है क्या बला । वे बोली - ‘सर इक्वल मंथली इन्स्टालमेंट ही ईएमआई है । ’ ‘ अच्छा यह कितनी राशि होगी , ‘ मैंने जिज्ञासावश पूछा । ‘ यह तो लोन राशि पर निर्भर करेगा । ’ ‘ लोन कितना मिलेगा ? ’ ‘यह आपकी इन्कम पर निर्भर करेगा । ’ ‘ मैं तो लेखक हूं आय तो कम ज्यादा हेाती रहती है । ’ ‘ तो फिर आपको गारंटी देनी होगी । ’ ‘ वो तो नहीं है । ’ ‘ तो फिर लोन मिलना भी मुश्किल है । ’
रमा जी का फोन फिर बजने लगा । वे किसी उद्धोगपति को आटा फैक्टी के लिए लोन देने में लग गई । मैंने फिर सोचा ,आटा , गेहू ,दाल और सब्जी के लिए किस बैंक से लोन लूं । हर बैंक ने मुझे निराश किया । आप लोन की ईएमआई की गारंटी ले सकें , तो सूचना दे । देखिए निराश न कीजिएगा । प्रयास करते रहने से कामयाबी मिलेगी और कोई न कोई बैंक मुझे आटे के लिए लोन दे देगा ।
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