The Author Dave Vedant H. Follow Current Read रोग एने भरखी गयो! By Dave Vedant H. Hindi Fiction Stories Share Facebook Twitter Whatsapp Featured Books ભીતરમન - 55 હું દીપ્તિને મળ્યાં બાદ અમારા જમાઈ આશિષને પણ મળ્યો હતો. એકદમ... ભારતીય સિનેમાનાં અમૂલ્ય રત્ન - 2 આશાજી પાર્શ્વ ગાયનના ક્ષેત્રમાં ‘લિવિંગ લિજેન્ડ’ આશા ભોસલે જ... કંગુવા કંગુવા- રાકેશ ઠક્કર એમ કહેવાતું હતું કે ‘કંગુવા’ થી બ... નિયમિત મંદિર જવાના વૈજ્ઞાનિક ફાયદા નિયમિત મંદિર જવાના વૈજ્ઞાનિક ફાયદા કહેવાય છે કે ભગવાનની પૂજા... મારા અનુભવો - ભાગ 18 ધારાવાહિક:- મારા અનુભવોભાગ:- 18શિર્ષક:- ફરી ફોલ્લા પડ્યાંલેખ... Categories Short Stories Spiritual Stories Fiction Stories Motivational Stories Classic Stories Children Stories Comedy stories Magazine Poems Travel stories Women Focused Drama Love Stories Detective stories Moral Stories Adventure Stories Human Science Philosophy Health Biography Cooking Recipe Letter Horror Stories Film Reviews Mythological Stories Book Reviews Thriller Science-Fiction Business Sports Animals Astrology Science Anything Crime Stories Share रोग एने भरखी गयो! (1) 1.6k 6.4k स्वर्ग! स्वर्ग का वो चहिता गंधर्व था. स्वर्ग में सबका वो प्रिय था. उसके संगीत से स्वर्ग चारो दिशाओंमें खील उठता. अप्सराये ज़ूमने लगती और पंछीया मानो की कलरव करके उसके संगीत में सुर पुरा रहे हो. दिन को सूरज और रात को चांद भी उसकी कलाकारी से जलन अनुभव करते. गंधर्व एक दिन धरती पर आ पंहुचा. गंधर्व के साथ स्वर्ग की तीन अप्सराये भी थी. गंधर्व और अप्सराये धरती पर के स्वर्ग काश्मीर(भारतखंड का एक प्रदेश)के कोई पहाड़ पर के छोटे से गाव के पास आ पहोंचे. गंधर्व वो नजारा देख कर दंग रह गया. उसने एक छोटा सा गाव अपनी आंखो के सामने देखा. गाव में पहाड़ी के उपर एक बह रहे छोटे से पानी के धोध में अनेक बच्चे खेल रहे थे. अप्सराये गंधर्व का साथ छोड़ कर आगे निकली, पृथ्वी का स्वर्ग देखने! दुसरे दिन रात को स्वर्ग वापस लोटना था. कहा मिलना है वापस जाने के लिए वो जगह निश्चित थी. जेसे-जेसे दिन पसार होता चला गंधर्व उन बच्चो के साथ मिल के खूब आनंद ले रहा था. उसमेसे सबसे छोटा नटखट, केवल छ साल का, नाम गट्टू! गंधर्व का धरती पर का पहला मित्र था गट्टू! केवल छ साल का नटखट! दिन के अंत में गट्टू अपने मित्र को अपने घर ले गया. उस पहले दिन गट्टू ने उसके नये मित्र को अपना गाव और आसपास का काश्मीर दिखाया. समय आगे बढ़ता जाय...........और गंधर्व का संगीत चलता जाय. गट्टू की उसके नये मित्र के साथ काफी जम गयी. गट्टू गंधर्व को ‘गायक-काका’ बुलाता. गट्टू गंधर्व को सभी जगह घुमाने के बाद अपने माता-पिता के फल के ठेले के पास ले गया......शहेर में. गट्टू और उसके माता-पिता, काश्मीर में बसता एक अति गरीब गुजराती परिवार. उसके माता-पिता के पास गिनाई जाये एसी केवल दो ही संपति थी.....पहली गट्टू और दूसरी उनके कुछ पुश्तेनी आभूषण, जो कुछ न बचे तब कुछ पाने के लिए रखे थे! गट्टू का परिवार पहाड़ी उपर के एक छोटे से गाव में रहता था. मकान एसा था की जो ज्यादा तेज हवा चले तो घर पूरा खत्म हो जाए. गट्टू के माँ-बाप जंगल में से फल तोड़ के उसका शहेर में व्यापार करने जाते. शहेर गाव से दो घंटे की दूरी पर. गट्टू पूरे दिन गाव में उसके दोस्तों के साथ घुमा करता. गट्टू को फल बोहोत ही पसंद थे. रोज उसके माता-पिता जंगल में से व्यापार के लिए तोड़े हुए फलो में से एक सबसे अच्छा फल गट्टू के लिए बचाके रखा करते! रात को जब वो लोटते, तो गट्टू उनकी ही राह देखते बेठा मिलता,’आज कोन सा फल मिलेगा?’ गट्टू और गंधर्व! दो दिन में गट्टू ने अपने गाव का और गंधर्व ने पुरे स्वर्ग का वर्णन कर दिया एकदूसरे को. गट्टू को स्वर्ग के बारे में जानने की ज्यादा से ज्यादा उत्सुकता होती और गंधर्व एक के बाद एक बाते कहता ही रहता. गंधर्व ने खुद को दूसरे दिन स्वर्ग वापस लोटना है वो बात करते गट्टू के चहेरे की खुशी उतर गयी. गंधर्व ने उसे समजा कर अंत में वचन दिया की वो जल्द ही वापस आयेगा और उसके लिए उसका सबसे प्रिय फल सेब......स्वर्ग का सेब! लेकर आयेगा. दूसरे दिन की रात आखिर में आ ही गयी. गंधर्व और स्वर्ग की अप्सराये निश्चित करे हुए स्थान पर स्वर्ग वापस जाने आ पहोंचे. स्वर्ग का विमान आया और गंधर्व और अप्सराओं को लेकर उड़ गया. गंधर्व स्वर्ग वापिस लोट गया और ईधर गट्टू का रोजबरोज का जीवन शरू हुआ. एक दिन गंधर्व स्वर्ग में सुमसान हो कर अकेला बेठा था और अपने मित्र गट्टू को याद कर रहा था. स्वर्ग मतलब स्वर्ग, फिर उसमे दुःख किस बात का!? उसे गट्टू की खूब याद आयी और उसने उसे अपने संगीत में पिरोई. स्वर्ग में दुःख नहीं होता, तो फिर दुःख का संगीत कहा से!? गंधर्व को सजा सुनाई गई और एक साल के लिए पृथ्वीलोक भेजा गया. ईस बार, तो उसे अकेले ही आना था पृथ्वी पर. मन ही मन वो बोहोत आनंद में था, सजा के लिए नहीं मगर गट्टू के साथ अब तो वो एक साल रह शकेगा! गंधर्व को पृथ्वीलोक पर स्वर्ग का विमान आकर छोड़ गया. लो कर लो बात!वो ही जगह गंधर्व वापिस आया, गट्टू के गाव के पास! मगर पहाडीयों और जंगलों में वो भटक गया. आखिर, तिन-चार दिन के अंत में उसे गट्टू का गाव मिल ही गया. वो खूब खुश था, उसके मित्र को मिलने के लिये और उसके लिए स्वर्ग में से लाया हुआ उसका प्रिय सेब देने. गंधर्व धीमेधीमे गट्टू के घर तरफ आगे बढ़ रहा था और बादल गाज रहे थे, पवन चल रहा था........किसे पता कुदरत नाराज थी!? आखिर वो गट्टू के घर आ ही पहोंचा, रात का समय था पर घर में केवल उसके माता-पिता ही थे.......गट्टू ना था. गंधर्व ने स्वर्ग में से लाया हुआ सेब बहार निकाला और बोला,”गट्टू कहा है!? उसको बुलावो. मैं पृथ्वीलोक पर एक साल के लिए रहने आया हूँ और ये सेब ख़ास गट्टू के लिए, उसे मैने वचन दिया था की मैं जल्द ही वापस आऊंगा और उसके लिए स्वर्ग से सेब लाऊंगा.” पवन चलना शरू हुआ, बिजली कड़कने लगी और घनघोर अँधेरा हुआ. गट्टू के माँ-बाप ने गंधर्व को बिठाया, उसे भोजन दिया और गंधर्व ने भोजन किया. उसके साथ गट्टू के माता-पिता ने भी भोजन किया. अब समय आ गया था की ‘गट्टू कहा है!?’ वो गंधर्व को कहेनेका. बादल, बादलों में कड़क रही बिजली और सुमसान वातावरण ये घडी का साक्षी बनने जा रहे थे! गट्टू की माँ ने गंधर्व को मक्क्म हो कर बोला, “रोग एने भरखी गयो!” गंधर्व निःशब्द हो गया. उसने खूब गंभीरता से पूछा,”क्या!? कैसे!? मुझे जरा विस्तार से बतावो.” गट्टू की माँ बोली,”गंधर्व, तुम्हारा दोस्त अब ईस दुनिया में नही रहा. वो स्वर्ग चला गया. आपके जाने के बाद वो आपको खूब याद करता था और मित्रता तो देखो आप दोनों की! आप पृथ्वीलोक पर और वो आपकी ख़ोज में स्वर्गलोक में.” गट्टू की माता के मुख पर मक्क्मता थी की जाणे उन्होंने और गट्टू के पिता ने बिते हुए समय को भूल कर नये जीवन की शरुआत कर ली हो, मगर दोनों का मन गट्टू के विरह में डूबा हुआ था. “आपके जाने के बाद सब कुछ पहले जेसा एकदम ठीक चल रहा था. गट्टू कभी कबार आपको याद कर के आपका संगीत हमको सुनाता, खूब ही बेसुरा!(गट्टू की माँ हस पड़ती है.) कुछ ही महीनों में एक कठोर समय आया. दुर देश के एक चेपीरोग ने भारत देश को भी बाकात न रखा. हम दोनों सुबह फल बेचने शहर में जाते और सीधा रात को वापस आते, गट्टू दिनभर अपने मित्रो के साथ किसी और किसी के भी घर पे खेलता रहता. चेपीरोग ने हमारे गाव का पता भी ढूँढ ही निकाला!”(गट्टू की माता के मुख पर कपरा हास्य!)(हास्य......विरह का.......दुःख का!) “हमे घर के बहार निकले बिना और कोई चारा ही नहीं था. रोज का कमाके रोज पेट भरने का! अनाज तो सरकार के द्वारा हर महिने मिल जाता, थोडा बोहोत! एक दिन की बात है, हमारे को काम के लिए शहर निकलना था और सरकार द्वारा अनाज की जाहेरात हुई और तो और बोहोत ही कम समय में वो ला देने का था. हमने मजबूरन ही गट्टू को हमारे पड़ोशिकाका के साथ अनाज लेने भेजा. फिर हम जेसे अशिक्षित लोगो को क्या पता था की वो रोग इतना चेपीरोग होगा की, छोटे से बच्चे को नहीं बक्षता!(दो मिनिट की उदासी) गट्टू को वो चेपीरोग हुआ. हम उसे गाव के छोटे से दवाखाने में सारवार के लिए ले गए, पर कुछ हुआ नहीं.(हास्य......गुस्से का) हमारे चहिते लोगो की सलाह के अनुसार हम गट्टू को लेकर शहर के बड़े से दवाखाने में पहोंच गये. चेपीरोग की कोई दवाई थी ही नहीं! फिर भी गट्टू को सारवार के लिए ले गए और हमारी दूसरी संपति थी वो ही कुछ खानदानी आभूषण, उसे बेच कर अस्पताल का बील चुकाया. बोहोत दुःख हुआ पर एक ही संपति तो गयी है ना! दूसरी हमारा गट्टू तो दुरुस्त हो जाएगा!.........पर चेपीरोग एने भरखी गयो.” गंधर्व के हाथ में से सेब गिर जाता है और जमीन पर आंसु के टपक-टपक.....टीपे गिर रहे है. आंसु गट्टू के माँ-बाप के तो नहीं थे.......वो लोग तो मक्क्म हो चुके थे बस खाली गट्टू की यादो के पल उनकी आंखो में थे. ये दुःखभरे आंसु तो गंधर्व के थे.......ग़जब है ना पृथ्वीलोक......जिसे दुःख क्या है!? वो ही पता नहीं और ये पृथ्वीलोक उसके दुःखभरे आंसु का साक्षी बना! गंधर्व जमीन पर गिरा हुआ सेब उठाता है और गट्टू के विरह में सेब पर चुंबन का अभिषेक करता है! 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