कमजोर, कृषकाय अमर कार की अगली सीट पर बैठा न जाने किस ख्याल में गुम था कि अचानक कार को एक हल्का सा झटका लगा और कार सड़क के किनारे खड़ी हो गई ! कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे बेटे राज ने बताया, "शायद कोई टायर पंचर हो गया है।" कहते हुए वह अपनी सीट से उतरकर पीछे कार की डिक्की की तरफ बढ़ा। पीछे डिक्की में रखी कार की स्टेपनी लेकर राज को कार के पंचर हुए टायर की तरफ बढ़ते देखकर अमर कार से बाहर निकल कर सड़क के किनारे उस बड़े से पेड़ की छाँव में बैठ गया और अतीत में खोता चला गया।
अभी दो महीने पहले की ही तो बात है जब उसके मैसेंजर में एक अनजान महिला का संदेश फ़्लैश हुआ था। कुछ साहित्यिक बातों के बाद अंत में उस महिला का संदेश था, " सादर चरण स्पर्श आदरणीय ! आप मेरे लिए बहुत खास हैं ! प्लीज अपना खास ध्यान रखिएगा।"
यूँ तो वह फेसबुक पर काफी लोकप्रिय व्यक्तित्व था और दिनभर में महिलाओं व पुरुषों के अनगिनत संदेश उसके मैसेंजर पर अक्सर फ़्लैश हुआ करते थे लेकिन उसने कभी ऐसे संदेशों की तरफ ध्यान नहीं दिया था। कभी-कभार किसी की आवश्यकता को महसूस कर किसी को जवाब दिया समय रहा तो, नहीं तो वह भी नहीं। लेकिन उस महिला के इस संदेश ने पता नहीं क्यों उसके दिल में अजीब सी हलचल मचा दिया था। बड़ी देर तक वह उस संदेश को पढ़ता रहा और उसमें छिपे गूढ़ भाव को समझने का प्रयास करता रहा लेकिन खुद ही अपने विचारों पर शर्मिंदा होकर उसने सामान्य होकर उस संदेश देनेवाली महिला रजनी का धन्यवाद अदा किया।
अब वह गाहे बगाहे किसी न किसी बहाने उसके मैसेंजर में आ धमकती और कुछ बातें इधर उधर की करके अंत में लिखना नहीं भूलती, "अपना ध्यान रखिये आदरणीय ! आप मेरे लिए बहुत खास हैं।"
अब वह अक्सर उसके ख्यालों में दस्तक देने लगी थी। ऐसा लगता था जैसे उसे रजनी के ही मैसेज का इंतजार हो। हर घड़ी हर पल और आश्चर्य ही हुआ था जब अक्सर वह उसे इसी तरह का मैसेज दिन में कई बार भेजने लगी। मैसेज के आदान-प्रदान का यह सिलसिला राज को बेकरार करता गया लेकिन अपनी चारित्रिक दृढ़ता की वजह से उसने कभी रजनी के सामने अपने मन की बात प्रकट नहीं की अलबत्ता अब वह भी रजनी के गुलाब के फूल व दिल की इमोजी का जवाब इन्हीं निशानियों से देने लगा। एक दिन उसने उसे धन्यवाद अदा करने के बाद स्वभावतः हाथ जोड़ने की इमोजी भेज दिया। तुरंत ही उसका जवाब आया, "कृपया यह निशान न बनाया करें आदरणीय ! आप मेरे लिए बहुत खास हैं।"
रजनी की इस अदा ने अमर को अंदर तक घायल कर दिया था। उसके मन में रजनी के लिए संवेदनाए जागृत हो चुकी थीं लेकिन वह कैसे कहता? मात्र दो चार दिनों की बातचीत में ही एक दिन रजनी ने अमर के धन्यवाद वाले संदेश के जवाब में लिखा, "अपना ध्यान रखिएगा आदरणीय ! love"
दिल व गुलाब के फूल की इमोजी के साथ लिखा वह एक शब्द उसके दिल की धड़कनें बेतहाशा बढ़ा गया। इन्हीं बढ़ी हुई धड़कनों के बीच मंत्रमुग्ध अमर ने बेख्याली में कब love you too लिख दिया वह समझ ही नहीं सका। यह मैसेज भेज कर वह बुरी तरह काँप उठा था। एक पल में कई बातें उसके मस्तिष्क में कौंध गईं लेकिन वह अब पछताए होत का वाली स्थिति से गुजर ही रहा था कि अचानक जवाब में आए मैसेज को देखकर उसका मन मयूर खुशी से झूम उठा। मैसेज में ढेर सारे दिल के साथ गुलाब के फूलों के इमोजी रजनी के इकरार की कहानी और उसके मन की खुशी को बयान कर रहे थे।
बिल्कुल साधारण सी शख्सियत वाले अमर के लिए रजनी जैसी किसी रूपसी का प्रेम निवेदन आना व फिर उसका स्वीकार कर लिया जाना संसार के आठवें अजूबे से कत्तई कम न था।
अब जब तब रजनी का मैसेज उसके मैसेंजर की घंटी बजाने लगा। सुबह काम करते हुए, किचन में काम करते हुए, मेड के आने पर कुछ पल की फुर्सत मिलते ही उसका मैसेज आ जाता। कभी कभार होने वाली उनकी बातचीत अब इतनी अधिक हो गई थी कि यदि रजनी का मैसेज आधा घंटा भी तय समय से देर हो जाता तो अमर तड़प उठता था। हर पल उसकी निगाहें मोबाइल स्क्रीन पर और जब किसी काम में व्यस्त होता तो कान बड़ी शिद्दत से रजनी के मैसेज के लिए मैसेंजर की घंटी का इंतजार करते। कई बार घंटियाँ बजती भी लेकिन अनचाहे चेहरे देख वह बुझे मन से उनसे जल्दबाजी में बात करके उन्हें निबटा देता और फिर शुरू हो जाता इंतजार रजनी के मैसेज का और जब उसका मेसेज आता उसे लगता जैसे वह दुनिया का सबसे खुशनसीब व्यक्ति है।
एक दिन बातचीत के क्रम में ही रजनी ने अमर से अपने मन की पीड़ा व्यक्त की, "वादा करो ! आप मुझे कभी छोड़ तो नहीं जाएंगे । मेरे साथ अक्सर ऐसा ही होता है। कुछ दिन सही चलता है और फिर लोग छोड़ जाते हैं !" उसकी बात सुनकर अमर का मन पीड़ा से भर उठा था। तुरंत उसे आश्वासन दिया ," तुम चिंता न करो! मैं दूसरों से थोड़ा अलग हूँ। मैं आजीवन तुम्हारा साथ निभाऊंगा! मुझ पर भरोसा करो !"
बदले में एक मुस्कुराती हुई इमोजी के साथ बड़ा दिल का इमोजी उसके सामने मुस्कुराने लगा। अमर को स्वर्गिक खुशी की अनुभूति हुई।
उस दिन के बाद सामान्य बातों से शुरू हुई उनकी बातें अब प्रेम में आकंठ डूबे प्रेमी प्रेमिका की तरह दूर रहकर भी साथ जीने मरने के वादे कहने सुनने में तब्दील हो गई !
किसी भी तरह की अश्लीलता से दूर उनका प्यार मैसेंजर में लिखे शब्दों व चिन्हों का अहसास कर परवान चढ़ता गया। दिनभर में जब भी समय मिलता रजनी उसे मैसेज अवश्य करती और अमर तो जैसे उसका इंतजार ही कर रहा होता था।
इस बीच दिन में कई बार वह उसे अपनी भावना से अवगत कराना नहीं भूलता। वह कहता, "पता नहीं तुमने क्या जादू कर दिया है। अधिक देर तक जब नहीं दिखती हो तो ऐसा लगता है जैसे मेरी साँसें थमने लगी हैं। ऐसा लगता है जैसे जिस्म को ऑक्सीजन नहीं मिल रहा हो! हाँ ! तुम मेरे लिए अब मेरी ऑक्सीजन बन गईं हो। सच ! अब तुम मेरी जरूरत बन गई हो ऑक्सीजन के सिलेंडर की तरह। तुम्हें देखते ही मेरी जान में जान आ जाती है।" और जवाब में रजनी का जीवन भर साथ निभाने का प्यार भरा वादा उसे एक नई ऊर्जा से भर देता।
तभी राज की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई। वह आवाज लगा रहा था, "पापा ! चलिए! बैठिए गाड़ी में! हम पहले ही देर हो चुके हैं। समय पर नहीं पहुँचे तो डॉक्टर के यहाँ हमारा अपॉइंटमेंट कैंसल हो जाएगा।"
बेमन से ही थके कदमों से वह कार की अगली सीट पर जा बैठा। उसके बैठते ही कार एक बार फिर हवा से बातें करने लगी।
एक बार फिर उसके अतीत ने उसे घेर लिया। उसके मन ने सरगोशी किया, "हाँ ! बिल्कुल इसी तरह !"
दिमाग ने प्रश्नचिन्ह लगाया, "क्या इसी तरह ?"
उसके मन ने स्पष्ट किया' "बिल्कुल इसी बेकार पड़े स्टेपनी के टायर की तरह उस रजनी नाम की कार ने मुझे अपने सान्निध्य में ले तो लिया था और मैं भी कितना निहाल हो गया था उसकी इस कृपा पर। उसकी कृपा से इतना प्रसन्न व अभिभूत हो गया था कि यह भी नहीं सोच पाया कि कहाँ वो और कहाँ मैं .........! सच तो है , लाखों की चमचमाती कार के सामने धूल मिट्टी सने एक अदने से स्टेपनी की औकात ही क्या है? लेकिन कार के लिए भी एक वक्त ऐसा आता है जब उसके वफादार टायर उसका साथ छोड़ जाते हैं तब उसे मेरे जैसे धूल और मिट्टी सने अतिरिक्त टायरों का ही सहारा होता है। शायद उस समय रजनी की यही अवस्था रही होगी जब कातर स्वर में उसने अपनी व्यथा कही होगी और मुझसे मेरा साथ माँगी थी।'..
पता नहीं कब तक अमर के दिल और दिमाग के बीच अंतर्द्वंद चलता रहा।
इस बीच वक्त तेजी से गुजरता रहा। कुछ देर बाद राज ने एक पेट्रोल पंप के किनारे पंचर वाले की दुकान पर कार खड़ी कर दी।
पंचर वाले ने मुख्य टायर बनाकर कार में फिट कर दिया। राज के निर्देशानुसार उसने स्टेपनी के टायर को जो अब तक कार में लगा था निकालकर पीछे डिक्की में डाल दिया।
पास में ही कुर्सी पर बैठे अमर की पलकें गीली हो गईं। अपना चश्मा उतारकर आँखें पोंछते हुए उस का दिल कर रहा था कि फफककर रो पड़े, निकाल ले अपने दिल की भड़ास! लेकिन वह कितना मजबूर था? खुलकर रो भी तो नहीं सकता था।
उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे रजनी को भी शायद उसका पुराना साथी मिल गया हो जिसकी वजह से उसने उससे ठीक स्टेपनी के टायर की तरह किनारा कर लिया। कभी उसे बेहद ख़ास कहनेवाली रजनी अब कई दिनों तक उसके भेजे संदेश भी नहीं देखती थी।
अपनी आँखें पोंछते अमर पर जैसे ही राज की नजर पड़ी, वह बोल उठा, "ओह, पापा! लगता है आपकी आँखें भी खराब हो गई हैं। चलिए वापसी में किसी अच्छे नेत्र विशेषज्ञ को आपकी आँखें भी दिखा लेंगे।"
चश्में के पीछे अपनी गीली पलकें छिपाए अमर कार की अगली सीट पर बैठ गया और कार एक बार फिर हवा से बातें करने लगी लेकिन अमर के मनोमस्तिष्क में अभी भी स्टेपनी का टायर नाच रहा था। आँसू बेसब्र होकर पलकों का किनारा तोड़ अपनी सीमा से आगे उसके गालों तक बढ़ आए थे।
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