BOYS school WASHROOM - 17 in Hindi Moral Stories by Akash Saxena "Ansh" books and stories PDF | BOYS school WASHROOM - 17

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BOYS school WASHROOM - 17

दोनों हॉल से बाहर निकलते है तो देखते हैँ की मौसम काफी ख़राब हो रहा है….जैसे तूफ़ान आने को हो….

अमन और यश दोनों वाशरूम की तरफ बढ़ रहें होते हैँ….तभी अचानक से शार्ट सर्किट होता है और लाइट चली जाती है।


"अब तो ये लाइट भी धोखा दे रही है तेरी तरह"यश बोला


अमन-देख यश इतनी भी कोई बड़ी बात नहीं है समझा ना….


यश थोड़ा गुस्से मे-तो बताई क्यूँ नहीं फ़िर अगर बड़ी बातें नहीं थी तो…


अमन-अच्छा देख सुन….


दोनों बातें करते हुए वाशरूम मे घुसते हैँ….वाशरूम की लाइट टिम टिमा रही होती है।


अमन-मै जब स्कूल की तरफ से चैंपियनशिप के लिए गया था….तब वहीँ मेरी मुलाकात सृष्टि से हुयी….हम दोनों उस इवेंट मे ही मिले थे तब मै तुझे बता नहीं पाया और उसके बाद वापस आकर मुझे मौका ही नहीं मिला...ऊपर से तू भी फेयरवेल की तैयारियों मे बिजी चल रहा था...अब तू बता मे क्या करता?


यश बेसिन के पास खड़े अमन की बात सुनता है और फ़िर दो पल रुक कर उस से कहता है-मुझे….अमन….सृष्टि…


अमन तुरंत यश की लड़खड़ाती हुयी आवाज़ सुनकर उसके पास आकर कहता है-यश क्या हुआ…..कोई प्रॉब्लम है क्या?


यश अब एक हाथ से बेसिन और दुसरे हाथ से अमन के कंधे का सहारा लेकर वाशरूम मे खड़ा होता है….और उसकी आँखे बंद होने लगती है।


"चल यश मै तुझे बाहर लेकर चलता हूँ" अमन इतना बोलता ही है की यश बेहोश होकर वाशरूम मे ही बड़ी ज़ोर से गिरता है और उसका सर बेसिन से भी टकरा जाता है।


"यश...यश क्या हुआ तुझे" अमन, यश के चेहरे को थप थपाते हुए कहता है।


अमन घबरा जाता है और मदद के लिए आवाज़ देने लगता है….



इधर मौसम ख़राब होता देख सब बच्चे अपने घरों की तरफ भाग रहे होते हैँ…..



अमन, यश को उठाने की कई कोशिश करता है….उसके मुँह पर पानी की छींटे भी मारता है लेकिन यश कोई रेस्पोंस ही नहीं देता…..अमन तुरंत वहां से उठकर प्रिंसिपल को लेने के लिए बाहर की तरफ बढ़ता ही है की वाशरूम का दरवाज़ा खुलता है और वही काली हुडी पहने...चेहरा छुपाये कुछ चार लोग बाथरूम मे घुस आते हैँ….

जिसमे से एक के हाथ मे लोहे की रोड लगी होती है…


अमन उन्हें देखकर, डरता हुआ पीछे हटता है….तभी उनमें से एक बोलता है…."अब इसका क्या करें? "


और अगले ही पल वो रोड वाला आदमी अमन के सर पर पूरी ताकत से रोड मार देता है…...और वो भी वहीं गिर जाता है…..


दोनों के सर से खून निकल रहा होता है और वो चारों उन दोनों को बस खड़े देख रहे होते हैँ।


इधर सब बच्चे और टीचर स्कूल से जा चुके होते हैँ और तूफ़ान के साथ तेज़ बारिश शुरू हो जाती है।


मौसम बिगड़ने के आधे घंटे बाद यश के घर मे भी एक तूफ़ान उठने लगता है।


प्रज्ञा को यश की चिंता सताने लगती है...जो की अविनाश के कहने पर काफी देर से शांत थी।


"अविनाश देखो ना यश अभी तक नहीं आया….मौसम इतना ख़राब हो रखा है….मुझे बहुत चिंता हो रही है अवि" प्रज्ञा, अविनाश पर झल्लाते हुए कहती है और रोने लगती है।


"मै कोशिश कर तो रहा हूँ, प्रिंसिपल और उसके दोस्तों को कॉल करने की….लेकिन नेटवर्क की वजह से किसी का कॉल ही नहीं लग रहा तो मै क्या करूँ" अविनाश की टेंशन की वहज से प्रज्ञा पर चिल्ला पड़ता है।


दोनों मे झगड़ा हो ही रहा होता है की तभी "आप दोनों लड़ क्यूं रहे हो,भाई आ जायेगा"......विहान अपने रूम से बाहर आकर बोलता है….


प्रज्ञा अपने आंसू पोंछती है और विहान को गोद मे लेकर कहती है "नहीं बेटा हम लड़ नहीं रहे"


"हाँ विहु! मम्मी-पापा तो बस भाई को लेकर थोड़ा परेशान हैँ। "अविनाश प्रज्ञा से विहान को अपनी गोद मे लेते हुए कहता है।


और प्रज्ञा की धडकने, बाहर मौसम को हर पल और ख़राब होता हुआ देख बढ़ रही होती हैँ।


एक माँ भला कैसे परेशान ना हो अपने बच्चे को लेकर और उसकी घबराहट अंदर ही अंदर कहीं डर मे बदल रही होती है…..वो जाकर नम आँखों से खिड़की से बाहर यश की राह देखने लगती है...