Kaisa ye ishq hai - 64 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 64)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 64)

शान को गया देख अर्पिता वहीं खड़ी रहती है जब तक शान और बाकी सब की गाड़ी आंखों से ओझल नही हो जाती।गाड़ी के जाते ही अर्पिता वापस घर के अंदर चली आती है।आते हुए वो अपने कमरे में जाती है और वहीं बेड पर बैठ जाती है।उसकी नजर सामने वॉल पर लगे एक पोस्टर पर पड़ती है जिसे देख उसके उदास चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।चलो कम से कम आपकी एक बड़ी सी फोटो तो है।जिससे हम बाते कर सकते है।नही तो हमे लगता हम इन खाली दीवारों से बात करेंगे।

शान, क्या बिगड़ जाता अगर नाराजगी से नही खुशी खुशी जाते तो।उस पर बोलकर गये है कि हमसे बात नही करेंगे,ऐसा भी भला होता है अब बताओ भी ऐसा भी कहीं होता है अब यहां तो सौ तरीके आजमा आपका गुस्सा भी कम कर सकते थे हम लेकिन आप वहां हम यहां ज्यादा कुछ कहा तो कहीं ऐसा न हो फोन ही कट कर दे आप।कोई न कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा।एक बार बात करने की कोशिश करते हैं,कहते हुए अर्पिता शान को कॉल लगाती है।शान फोन उठा कर अपने कान पर लगा लेते हैं कुछ कहते नही है।

अर्पिता, "हेल्लो, शान कहां पहुंचे आप?
शान -क्यों तुम्हे भी आना है तो कहो मैं यही रुक जाता हूँ कुछ देर इंतजार कर लूंगा!

अर्पिता :- अच्छा!लेकिन अभी हमे नही आना शान।हमने ये जानने के लिए फोन किया कि पहुंचे कहां हो और ये जानने के लिए फोन किया कि ये झूठ मूठ की नाराजगी कितने समय तक चलने वाली है।

शान :- झूठ मूठ की नाराजगी अप्पू!
अर्पिता :- और नही तो क्या।हम समझते नही क्या आपको।आपको तो गुस्सा होना आता नही है न जाने क्यों कोशिश करते रहते है हमे तंग करने के लिए।

अर्पिता की बात सुन शान मुस्कुराये और बोले :- हक है मेरा तो करता हूँ और अभी मेरा मन नही है तुमसे बात करने का तो रहने दो टाटा बाय बाय।शान ने कहा और फोन रख खिड़की की ओर देख मुस्कुराने लगते हैं।

वहीं अर्पिता फोन रख तस्वीर की ओर देख मुस्कुराते हुए बोली,'पतिदेव जी गुस्सा तो आप वाकई में नही है।डर गये कही और थोड़ी देर बात कर ली तो पोल न खुल जाये इसीलिए हड़बड़ा कर फोन रख दिया।चलिये ये समस्या भी हम जल्दी ही दूर कर देंगे।आपको तो रूठना भी नही आता जिस दिन हम रूठे न ढूंढते रह जाओगे लेकिन हम नजर नही आएंगे।चलिये बाहर चलते है देखते है किरण और ताईजी क्या कर रही हैं।' कहते हुए अर्पिता उठी और उठकर बाहर चली आती है।जहां किरण कमला और शोभा के साथ बैठ कर सुबह की चाय पी रही है।अर्पिता आती है शोभा जी के पास जाकर उनके पैरो के पास बैठ जाती है अपना सर उनकी गोद में रख कुछ देर यूँ ही बैठी रहती है।

ये देख शोभा जी हंसते हुए बोली,'वो पागल लड़का अभी घर नही पहुंचा और उसकी पगली यहां उसकी जगह आकर बैठ गयी'! कार्बन कॉपी हो एक दूसरे की।
अर्पिता धीरे से बोली, 'नही ताईजी कार्बन कॉपी नही है।वो तो बस मां की याद आ रही थी तो बस दूसरी मां के पास आ गयी।'

सब पता है हमे किसकी याद आ रही है किसकी नही कमला और शोभा एक साथ बोली तो अर्पिता ब्लश करते हुए बोली, हम मां के पास जाते है काफी देर हो गयी है हमे आये कहते हुए वो उठकर ऊपर चली जाती है।जिसे देख शोभा बोली, 'शरमा गयी पगली'!

शोभा किरण से बोली, किरण अब ज्यादा कुछ करने को है नही है सो अब तुम अपना जो भी कार्य करना है कर लो अब खाना तो दोपहर को ही बनेगा वो हम देख लेंगे।उससे पहले हम तुम्हे हमारे दूसरे घर लेकर चलते हैं।उसे भी देख लो।

किरण हैरानी से बोली :- दूसरे घर मां?
शोभा :- हां,यहां तो हम सभी शादी के लिए इकट्ठे होते हैं।इस घर में जीजी और बड़े भइया रहते हैं।

हमारा एक और घर है वही मैं और प्रेम के पापा दोनो रहते हैं।शोभा ने कहा तो किरण बोली मतलब हम लोग अब वहीं रहने चलेंगे मां।

शोभा जी :- नही किरण!अभी नही अभी तो तुम्हारी पग फेरो की रस्म होनी है उसके बाद कभी कभी हम लोग वहां घूम आया करेंगे।

ठीक है मां किरण ने कहा और वो वहां से उठकर चली जाती है।अर्पिता जो ऊपर शीला जी के साथ होती है।उनसे बाते करती हुई उनकी सारी जिम्मेदारी उठाते हुए गर्म पानी से उनके शरीर को पोंछ कर कपड़े बदल देती है।शीला जी मना करती रह जाती है लेकिन वो बाते करते हुए ही सारा कार्य कर लेती है।

हम्म अब लग रही है न आप बिल्कुल फ्रेश !हम एक कार्य करते है चलो आपका मेकअप भी कर देते है आपको अच्छा लगेगा।ठीक है कहते हुए वो वहीं ड्रेसिंग टेबल पर रखे मेकअप का सारा समान उठा लेती है और बेहद हल्का मेकअप करने लगती है।शीला जी न नुकुर करती है लेकिन अर्पिता ठहरी जिद्दी,प्यार से मुस्कुराते हुए बोली,आप ये न समझना कि हमने घूंघट ले रखा है तो हमे कुछ दिखेगा नही जिससे आपका मेकअप हमसे खराब होगा, नही मां आपका मेकअप तो हम घूंघट में भी सधा हुआ ही कर देंगे बस अब आप चेहरा हिलाना नही ठीक है।

अर्पिता, क्यों कर रही हो ये!तुम कुछ देर चुप से नही बैठ सकती शीला जी बोली।

नही मां!हम चुप बैठ गये तो आप यहां अकेले लेटे लेटे बोर हो जाओगी।फिर मन ही मन बोलोगी हम घायल क्या हो गये कोई हमसे बात भी नही करता।तो बताओ भला आपको ऐसा लगे तो हम चुप क्यों बैठे?

ओह हो कितना बोलती हो अर्पिता!वाचाल लड़की।
शीला जी ने हल्का मुस्कुरा कर चिढ़ते हुए कहा।ये देख अर्पिता बोली, अभी तो बताया मां हम क्यों इतना बोलते हैं।अच्छा अब चुप एक दम चुप हो कर लेटी रहे हम दो मिनट में आपका मेकओवर करते है फिर एक अच्छी सी फोटो खिंचते है आपकी।ठीक है अर्पिता ने कहा और ध्यान से शीला जी का मेकओवर कर देती है और अपने फोन से एक फोटो खींच शीला को दिखाते हुए बोली, 'देखो मां अच्छी है या नही'!

शीला अपनी फोटो देख मुस्कुराते हुए बोली सिर्फ अच्छी नही अर्पिता बहुत अच्छी है।अब एक कार्य करो मुझे एक मैगजीन लाकर दे दो मैं वही पढ़ती हूँ तुम जाकर अपना कार्य कर लो ठीक है।

ठीक है मां अर्पिता ने मुस्कुराते हुए कहा और वहां उठ कर शीला जी को एक मैगजीन दे देती है और बाहर आ कर सोचती है कम से कम मां ने हमसे मुस्कुराकर बात तो की और हमसे मैगजीन देने के लिए भी बोला!हमे पूरा भरोसा है शान कि हम जल्द ही मां का मन जीत लेंगे फिर हमारी फॅमिली में सब अच्छा ही होगा।अर्पिता शोभा जी के पास आकर बैठ जाती है।शोभा जी उसे देख कर बोली अर्पिता मैं और किरण दोपहर को हमारे दूसरे घर जा रहे है तुम तो देख चुकी हो न वहीं जहां विवाह के बाद तुम दोनो गये थे।

जी बड़ी मां हमारा कहने का अर्थ है ताईजी जी।अर्पिता ने हड़बड़ाते हुए कहा जिसे सुन शोभा बोली, बड़ी मां भी बोल सकती हो ये जरूरी नही जो प्रशांत बोले तुम भी वही बोलो।

जी बड़ी मां!अर्पिता ने कहा।
बहुत बढ़िया तो मैं ये कह रही थी हम दोनो दोपहर को नही होंगे तुम्हे कोई समस्या कोई परेशानी तो नही होगी।शोभा जी ने कहा तो अर्पिता बोली नही बड़ी मां हम और बड़ी वाली बड़ी मां है न तो कोई समस्या नही है।

ठीक है अर्पिता।शोभा ने कहा।अर्पिता वहां से उठकर कमरे में चली जाती है।और कमरे को अपने तरीके से जमाने लगती है।शान के कबर्ड में रखी सारी चीजे निकाल कर बेड पर फैला लेती है।जिनमे कुछ अखबार में गजलो की कटिंग तो कुछ गिटार के बारे आर्टिकल की रिंग, पेन्स,एक डायरी और डायरी से झांकती हुई सूखे गुलाब की एक लकड़ी।
कुछ पुराने पेपर और शान के डॉक्यूमेंट।वहीं शान के कॉलेज की कुछ फोटोज जिनमे वो अपने दोस्तो के साथ मस्ती करते नजर आ रहे हैं।वहीं एक फोटो जिसमे शान आंखों में सनग्लास लगाये बाल बिखरे हुए माथे तक आ रहे है चेहरे पर बेहद महीन मुस्कान और गालों से झलकता डिम्पल देखते हुए अर्पिता कहती है इतने अट्रैक्टिव और चार्मिंग होकर कॉलेज में आपका कोई क्रश नही हुआ शान।कोई तो होगी न जो आपके इस लुक के पीछे पागल होगी।माना कि आपकी राधा हम है लेकिन हमारे अलावा इस कृष्ण की और भी तो गोपियाँ होंगी जो आपसे प्रेम करती होंगी।आपकी कॉलेज लाइफ के बारे में पूछना पड़ेगा आपसे शान!

इस पिक्स को तो हम फ्रेम करवाएंगे अर्पिता ने खुद से कहा और वो तस्वीर उठा कर अलग कर लेती है।एक दो पिक्स और होती है जो कॉलेज के किसी फंक्शन में पार्टिसिपेशन की ही होती है।अर्पिता उनमे से कुछ फोटोज चुनकर निकाल लेती है और बाकी सबको इकट्ठा कर एक जगह रख लेती है।कुछ ही देर में वो पूरे कमरे का नक्शा चेंज कर लेती है और बड़बड़ाते हुए कहती है अब लग रहा है ये हमारा कमरा शान।वो घड़ी देखती है उसे वहां आये हुए दो घण्टे हो चुके हैं।यानी शान को गये हुए पूरे पांच घण्टे से ज्यादा हो चुके है अब तक तो पहुंच गये होंगे।हम अब वीडियो कॉल कर उन्हें ये रूम दिखाते है सोचते हुए वो फोन उठा कर शान को लगा देती है।वहीं लखनऊ में शान अर्पिता के मां पापा के साथ हॉल में बैठे हुए उनका हालचाल पूछ रहे है अर्पिता का कॉल है ये देख वो उसके मां पापा से कहते है लो बड़ी लम्बी उम्र है आपकी बेटी की आप याद कर रहे थे उसे उसका कॉल आ गया आप लोग बातें करिये उससे मैं चेंज कर फिर वापस आता हूँ ठीक है।कहते हुए वो फोन ऑन कर उन्हें दे वहां से निकल जाते हैं।

अर्पिता जब सामने शान को न देख अपने पेरेंट्स को देखती है तो खुशी से बोल पड़ती है मां पापा आप वहां है!प्रणाम!कैसे है आप दोनो!

अर्पिता!बेटे एक गहरी सांस लो फिर आराम आराम से पूछो।हम लोग भी कहीं भागे नही जा रहे है कल वापस आगरा के लिए निकलेंगे।आप बताओ कैसी हो और मन तो लग रहा है वहां? कोई परेशानी तो नही है।

मां पापा!हम बिल्कुल ठीक हैं।यहां सब बहुत अच्छे है हमारा बहुत ख्याल रखते हैं।अर्पिता मुस्कुराते हुए बोली।हां अर्पिता हमे बताया प्रशांत ने कि तुम्हारा मन बहुत था हमसे मिलने का लेकिन मां के लिए तुम वहीं रुक गयी।अच्छा किया अर्पिता हमे सच में खुशी है कि हमारी थोड़ी चंचल और थोड़ी समझदार अर्पिता निर्णय बहुत समझदारी से लेती है।ठीक है अपना ध्यान रखना बेटा हम ये फोन दामाद जी को देते है तुम लोग बातें करो हम दोनो अब रेस्ट करते हैं।कहते हुए अर्पिता के पिता शान के कमरे में आये और उसे फोन देते हुए बोले प्रशांत बेटे आपका फोन!

जी पापाजी कहते हुए शान फोन लेते है अर्पिता के पिताजी वहां से बाहर चले जाते है तो शान दरवाजा बन्द कर परम के पास बेड के एक तरफ बैठ कानो में हेडफोन लगाते हुए बोले, कहो क्या कहना है अप्पू?

अर्पिता :- हमे कहना नही दिखाना है हमारा कमरा देखो हमने इसे पूरा चेंज कर दिया।कहते हुए वो घूमकर पूरा कमरा दिखाती है और मुस्कुराते हुए कहती है तो शान बताओ कैसा लगा?
शान:- कैसा बताऊं अप्पू अब मैं तो वहां हूँ नही न तो कैसे बताऊं कैसा लगा देखने में ठीक ठाक लग रहा है।
किसने कहा आप यहां नही है देखो आप तो यहीं है शान हमारी नजरो से देखिये तो आप वहां नही यही है ये देखिये कहते हुए शान का बड़ा सा पोस्टर दिखाती है और देखो न शान आपकी पगली को आपके पास होने का एहसास इस पूरे कमरे में हो रहा है हमे ऐसा नही लग रहा है कि आप यहां नही है।

अर्पिता की बात सुन शान बोले मतलब तुम्हे मेरे गुस्से का इतना भी बुरा नही लगा!बिल्कुल नॉर्मल बात कर रही हो कैसे अप्पू!

लो अब आपकी बातों का बुरा हम क्यों मानने लगे शान।पता है हमे कि आपका गुस्सा और आपके गुस्से में कहे शब्द सब यूँ ही है हवा हवाई से।दो पल के मेहमान।

अच्छा जी इतना भरोसा हम पर! शान ने कहा तो अर्पिता बोली शान आपको गुस्सा होना आता ही नही है हमे बहुत अच्छे से आता है जिस दिन रूठे न तो मनाने के लिए ढूंढते रह जाओगे।अर्पिता मिश्रा न मिलने वाली फिर।लेकिन सपने में क्योंकि शान से रूठना हमे भी अब नही आता।

दिख रहा है हमे।और ये भी दिख रहा है शादी के बाद बहुत बातें करना भी सीख गयी हो।शान ने मुस्कुराते हुए कहा।

हां तो मां से बाते करते करते ये आदत आ गयी शान!आपको पता है आज मां ने हमसे अच्छे से यानी मुस्कुराकर बात की और उन्होने हमसे मुस्कुराकर मैगजीन देने के लिए भी बोला हमे पूरा विश्वास है कि एक दिन मां हमे जरूर अपना लेंगी।

अर्पिता की बात सुन शान बोले , 'हां तुम हो ही ऐसी तुमसे कोई नाराज रह भी नही सकता'।कहते हुए वो खामोश हो जाते हैं।और मन ही मन सोचते है मां ने इतनी जल्दी ऐसा किया ये कारण मुझे समझ नही आता।

'अच्छा तो इसका अर्थ ये हुआ कि अब आपका गुस्सा फुर्र हो गया' अर्पिता ने हंसते हुए कहा।
जिसे सुन शान बोले " तुमसे मैं ज्यादा देर नाराज रह भी नही सकता अर्पिता"।

अच्छा समय देखो बहुत देर हो गयी अब शाम को बात करता हूँ कुछ देर मां पापा के साथ बैठता हूँ फिर शाम को अकैडमी भी जाना है।आकर ढेर सारी बातें करेंगे तब तक तुम भी फ्री हो जाना ठीक है।शान ने कहा तो अर्पिता मुस्कुराते हुए हां में सर हिला देती है और फोन रख देती है।

अर्पिता उठ कर बाहर चली आती है हॉल में कोई नही होता है।पूरा घर खाली है अर्पिता चलती है तो उसके पायलों की आवाज उस घर के सन्नाटे को तोड़ कर गुंजार कर देती है।बड़ी मां और किरण दूसरे घर गयी है वहीं बड़ी ताईजी अपने कमरे में होगी हम क्या करे अब चलो मां को एक बार देख ले फिर छत पर अपना पसंदीदा काम कर लेते है सोचते हुए वो शीला मां के कमरे में गयी और कमरे के दरवाजे से हल्का सा झांकी।शीला जी परेशान दिखाई देती है वो अपने फोन में कुछ देख रही हैं।

अर्पिता ने देखा तो सोचते हुए बोली अवश्य ही शान को लेकर मां परेशान है।अब शाम को शान की मां से बात कराने की कोशिश करेंगे।पता नही क्यों बेवजह नाराजगी दिखा रहे है शान!उनसे तो शाम को बातें होगी अभी के लिए मां का ध्यान डायवर्ट करते हैं - कहते हुए अर्पिता अंदर आते हुए बोली, मां हम आ गये आपसे बातें करने!हमे लग ही रहा था कि आप अकेले परेशान हो रही होंगी।कहते हुए अर्पिता घूंघट निकाल शीला जी के पास बैठ जाती है।उसे देख शीला जी बोली, किसने कहा तुमसे कि मैं परेशान थी बताओ!

अर्पिता बोली-कहेगा कौन मां साफ साफ तो दिख रहा है आपके चेहरे पर।

शीला :- ऐसा कुछ नही है वो तो बस यूँ ही प्रशांत के बारे में सोच रही थी वो पहुंचा कि नही!कब पहुंचा!अभी क्या कर रहा है।तुम्हारी वजह से मेरा बेटा मुझसे बात नही कर रहा अर्पिता!

शीला जी की बात सुन अर्पिता बोली, ' मां एक बार आप जल्द से ठीक हो जाओ फिर हम खुद आपको आपके बेटे के पास ले चलेंगे तब आप कान खींच कर डांट लेना उन्हें और पूछना क्यों हमारी वजह से बात नही करते'!

शीला जी बोली :- नही अर्पिता!एक बार तुम यहां से उसकी लाइफ से चली जाओ तो हमारे बीच सब ठीक होगा।मां कहती हो मुझसे तो मां की इच्छा भी तो पूरी करो उसके लिए तुम इतना नही कर सकती हो बोलो!

शीला जी ने अर्पिता से कहा तो अर्पिता बोली लेकिन मां आपने तो कहा था कि जब तक आप हमे स्वीकार नही कर लेती तब तक हम हमारा रिश्ता आगे नही बढ़ाएंगे।हमने वो वचन माना है न आपका फिर ये ख्वाहिश क्यों मां?

शीला जी बोली सच कहूँ अर्पिता! मुझे कुछ नही पता और न ही मेरा अब खुद की सोच पर कोई वश है मुझे बस इतना पता है तुम्हे देख कर मुझे न जाने क्यों चिढन महसूस होती है।मैं कोशिश करती हूँ तुम्हारी अच्छाई को एक्सेप्ट करने की तुम्हे स्वीकार करने की लेकिन नही कर पाती हूँ।तुम्हारी बातें तुम्हारी आवाज मुझे न जाने क्यों चुभते हैं।

ठीक है मां जैसा आप चाहती है वैसा ही होगा!आप बस जल्दी से स्वस्थ हो जाइये काहे कि जितनी जल्दी आप स्वस्थ होंगी उतनी ही जल्दी तो हम यहां से जाएंगे।अर्पिता ने बुझे स्वर से कहा।

ठीक है मुझे भरोसा है तुम अपनी बात से पीछे नही हटोगी।शीला ने खुश होते हुए कहा।अर्पिता ने बस हां में सर हिला दिया।उसने शीला जी को दवा दी उनके कपड़े धुल कर छत पर ले गयी निकाल कर वहीं झूले पर बैठ कर सोचने लगी -

शान !हम कैसे आपसे कहेंगे हम क्या करें, हम अगर आपके पास रुकते है तो मां कहेंगी हमने आपको उनसे अलग कर दिया वो कभी खुश नही रहेंगी।और अगर हम आपसे दूर जाते है तो आप खुद अपनी मां से दूर हो जाएंगे उसका भी सारा दोष हम पर ही आयेगा लोग कहेंगे न जाने कैसी लड़की थी खुद तो गयी ही जाते जाते घर में फूट डाल गयी।वैसे भी शादी के दूसरे दिन ही मां के साथ हादसा हो गया दबे मुंह नाते रिश्तेदार यही कह रह होंगे कि हमारा पैर ही खराब है आते ही मां को परेशानी हो गयी।

अब तो ठाकुर जी ही सब ठीक कर सकते हैं।हम नीचे जाते हैं।बड़बड़ाते हुए अर्पिता नीचे आई और अपने कमरे में जाकर गुमसुम उदास बेड पर बैठ शान की फोटो देखते हुए कहती है ...

क्यों किसी को हमारी हर बात से इतना रस्क है
जो कोशिश करते है तोड़ने की हमारे रिश्ते को
और नाकामयाब होने पर कहते है कैसा ये इश्क है..?

शीला जी की स्पष्ट बात कहने के बाद से अर्पिता एकदम खामोश हो जाती है।उसके चेहरे पर मुस्कान तो आती है लेकिन एक फीकी मुस्कुराहट जो शोभा जी किरण और कमला के लिए है।वो शीला जी पास भी जाती है उनसे मुस्कुराकर बात करती है उनके सारे कार्य करने के बाद वो चुपचाप चली आती है।यहां तक शान से भी वो कुछ देर बात करती है और कुछ न कुछ बातें बना कर फोन रख देती है।

पगफेरे की रस्म के लिए आरव पगफेरे के लिए किरण को लिवाने आया होता है।शोभा जी अर्पिता से पूछती है अर्पिता! मौसी मतलब मां जैसी है न तो उनका घर भी तुम्हारा अपना ही हुआ तो मैं सोच रही थी कि तुम भी इस रस्म के लिए चली जाती।ये देख अर्पिता बोली बड़ी मां एक बार ठीक हो जाये फिर हम खुद यहां से चले जाएंगे।अर्पिता की बात सुन शोभा मन ही मन बोली तुम शर्त जीत गये प्रशांत।ठीक है शोभा ने कहा और कमला से बातचीत करने लगती है।

अर्पिता आरव के पास बैठ कुछ देर उसके हालचाल पूछती है और दोनो के जाने के बाद वो वापस अपने कमरे में चली आती है।अर्पिता के जाने के बाद शोभा कमला से कहती है जीजी कुछ तो बात हुई है अर्पिता और शीला के बीच, अर्पिता के चेहरे की मुस्कान और उसमे वो तेज नही है जो विवाह के दिन था।मुझे ऐसा लग रहा है कि अर्पिता के मन में कुछ तो बात है जो वो किसी से कह नही पा रही है।

कमला बोली सच कहूँ शोभा लग तो मुझे भी रहा है तुम एक बार प्रशांत से बात करो शायद उसे पता हो।

नही जीजी उससे कहा तो वो सब कुछ छोड़ कर यहां चला आयेगा जो मुझे नही लगता कि सही होगा।अब मैं खुद अपने तरीके से बात पता करती हूं क्या बात है जो इसे इतनी परेशान कर रही शोभा ने कहा और वो उठ कर अर्पिता के पास चली जाती है।अर्पिता उस समय शान इंटरनेट के जरिये स्वेटर बुनना सीख रही होती है।उसने थोड़ा सा पल्ला बुन भी लिया है।शोभा जी अंदर आती है और अर्पिता को लगन से स्वेटर बनाते हुए देख मुस्कुराते हुए मन ही मन कहती है मैं बेकार में ही कुछ ज्यादा सोच रही थी यहां तो ये बच्ची कितने मन से कार्य कर रही है।ऐसे में मुझे बात करके इसका ध्यान भटकाना नही चाहिए।सोचते हुए वो वापस लौट जाती है।वहीं अर्पिता बिन ध्यान भटकाये अपने कार्य में रत रहती है।

दिन गुजरते जाते हैं किरण लखनऊ से ही परम के पास चली जाती है।वहीं अर्पिता डेली शीला से अच्छे से बात करती उसका पूरा ध्यान रखती जिसके परिणाम से वो बहुत जल्द रिकवर करने लगती है एवं समय मिलने पर वो स्वेटर को पूरा करने में लग जाती।
लखनऊ में राधु लेबर पेन से जूझति है और ट्विन्स प्रिंस ओर प्रिंसेस को जन्म देती है।प्रेम प्रशांत परम किरण चित्रा सभी ये देख बेहद खुश होते हैं।प्रेम राधु से कहते है अब तो हमारे बीच का झगड़ा ही खत्म तुम्हारा प्रिंस और मेरी प्रिंसेस।प्रेम की बात सुन राधु मुस्कुरा देती है।
शान अर्पिता को कॉल लगाते है।ऊपर छत पर अकेले बैठी हुई अर्पिता शान का फोन देख मुस्कुराते हुए उठाती है और कहती है "हां शान बोलिये"!

शान (मुस्कुराते हुए):- बधाई हो बीवी जी प्रमोशन हो गया एक नये रिश्ते से बंध गये है हम।

अर्पिता उत्साहित होते हुए बोली:- सच बताओ कौन प्रिंस या प्रिंसेस?
शान :-दोनो ही है।दोनो के बीच के झगड़े की जड़ ही खत्म कर दी ठाकुर जी ने।

अर्पिता :- कृपा है ठाकुर जी की शान!तो अब आप सभी यहीं आएंगे न।

शान :- नही अप्पू!ताईजी ने कहा है कि वो यहीं आ रही है सर्दी बहुत है कहीं आना जाना ठीक नही है।

शोभा की जाने की बात सुन अर्पिता उदास होते हुए बोली मतलब बड़ी मां भी वही पहुंच जाएंगी शान!

शान :- हां!अप्पू।और अब बहुत जल्द तुम भी आ जाओगी ताईजी बोल रही थी कि अब मां बैठने लगी है और तुम उन्हें थोड़ा बहुत टहलाती भी हो।

शान की बात सुन अर्पिता बोली, " हम्म शान हम भी हमारे शान के पास आना चाहते है उन्हें देखना चाहते है उन्हें गले से लगाना चाहते है और ढेर सारी बातें करना चाहते हैं।अर्पिता न चाहते हुए भी भावनाओ में बह ही जाती है।उसका गला भर आता है।अपनी नियति से मजबूर अर्पिता इतने दिनों का भरा हुआ सारा दर्द उड़ेल देती है।

शान उसकी आवाज में छुपे दर्द को समझ कहते है क्या हुआ अप्पू!परेशान हो मां ने कुछ कहा क्या अर्पिता बोलो!

अर्पिता भावुक होकर कहती है "नही शान!बस आपकी बहुत याद आती है"।
कुछ देर तक एक खामोशी दोनो के बीच आ जाती है।कुछ आवाजे एक दूसरे को सुनाई देती है जो दो प्रेमियों के दूर रहने के दर्द से आंसुओ के रूप में गूंजती है।तभी शीला जी की आवाज गूंजती है, "अर्पिता यहां आना"!

अच्छा शान सुनो, हम अब रखते हैं बाद में बात करते हैं मां आवाज लगा रही है।आवाज सुन अर्पिता ने कहा और फोन रख दिया।

वो अपने आंसू पोंछती है और कमरे में पहुंच कर घूंघट निकाल चुपचाप खड़ी हो जाती है।
शीला जी उसे खड़े देखा तो बोली,"मैं थक गयी हूँ मुझे जरा गार्डन में ले चलो"! अर्पिता ने कुछ नही कहा और आगे बढ़ कर उन्हें कंधे से थाम कर धीरे धीरे बगीचे में ले जाती है एवं वहां सम्हाल कर बिठा देती है।उनके बाल बिखरे देख अंदर जाकर बाल संवारने के लिए कॉम्ब ले आती है और बिन कुछ कहे बाल बना देती है।वो वापस कमरे में जाकर कॉम्ब रखती है।शोभा और कमला बगीचे में आती है और शोभा अर्पिता से कहती है अर्पिता मैं लखनऊ निकल रही हूँ अभी मेरा आना नही हो पायेगा तुम जीजी छोटी और घर का ध्यान रखना ठीक है।

शोभा की बात सुन अर्पिता आगे आकर बोली, बड़ी मां, घर का ध्यान रखने के बड़ी ताईजी है न हम सोच रहे थे मां के ठीक होने के बाद हम भी अपने मां पापा से मिल आये कुछ दिनों में मां के पैरो का प्लास्टर भी कट जायेगा फिर मां भी ठीक हो जाएंगी फिर वो अपना ध्यान खुद रख पाएंगी तो हम बस घर..कहते हुए अर्पिता अपना सर झुका लेती है जिसका कारण अपनी आंसुओ से भरी हुई आंखों को छुपाना होता है।

शोभा मुस्कुराते हुए बोली :- हम्म समझ गयी मै।चली जाना।जब शीला ठीक हो जायेगी मै प्रशांत को भेज दूंगी वो तुम्हे घुमा लायेगा ठीक है।

हम्म बड़ी मां अर्पिता ने धीमी आवाज में कहा।तो शोभा जाने के लिए मुड़ती है अर्पिता एक बार फिर आगे आ शोभा के ऐसे गले लग जाती है मानो अब वो उससे कभी मिल नही पायेगी।उसके आंसू निकल आते है जिन्हें देख शोभा बोली, "पागल लड़की".....

क्रमशः....!