Kuchh chitra mann ke kainvas se - 14 in Hindi Travel stories by Sudha Adesh books and stories PDF | कुछ चित्र मन के कैनवास से - 14 - एपकोट

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कुछ चित्र मन के कैनवास से - 14 - एपकोट

एपकोट

एपकोट में सर्वप्रथम हम स्पेसशिप अर्थ गए वहां हमें एक चलते खिलौना रेलगाड़ी में बिठा दिया प्रत्येक डिब्बे में दो व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था थी गाड़ी चलती जा रही थी तथा गाड़ी में बैठे बैठे हमें विभिन्न मॉडलों के जरिए मानव के विकास की यात्रा तथा पर्यावरण पर असर तथा इसे कैसे मानव की भलाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता है इसे दर्शाया जा रहा था साथ में एनाउंसर समय और परिस्थितियों से हमें अवगत करा रहा था यात्रा के दौरान उसने हमसे कुछ प्रश्न पूछने प्रारंभ किए जिसका डिस्प्ले हमारी शेर के सामने लगे कंप्यूटर सेट पर भी हो रहा था कुछ प्रश्न थे उनके कुछ ऑप्शन थे हमने अपनी अपनी सोच और समझ के साथ अपने उत्तर पर टिक करना था अब तक हम अपने अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुके थे एनाउंसर ने कहा यदि आप अपने उत्तर जानना चाहते हैं तो बाहर लगे टीवी स्क्रीन पर देखें हमने बाहर आकर देखा तो हमारे उत्तर के अनुसार हमारे चित्र बाहर डिस्प्ले हो गए अपने फोटो कार्टून के माध्यम से देखकर हमें हंसी भी आ रही थी साथ में ही साइंस की इस गति को देखकर आश्चर्य हो रहा था हर शो में कम से कम 20:25 पर तो होंगे ही चोर लगभग 45 मिनट का था तथा अशोक के तुरंत बाद इस तरह फोटो डिस्प्ले होना हमारे लिए आश्चर्य से कम नहीं था हमने इस चित्र को अपने कैमरे में कैद कर लिया इन यादों को सहेजने के लिए हमें सुविधा दी गई थी कि हम उन्हें वहां लगे कंप्यूटर की सहायता से अपने मेल बॉक्स में स्टोर करना और हमने ऐसा ही किया अब हम इनोवेशन नामक स्टूडियो में पहुंचे जब हम कतार में थे तब हमें एक आदमी मिला नाम तो याद नहीं आ रहा है वह वहां का कर्मचारी था हमें देखकर वह हमारे पास आया तथा पूछा क्या आप भारत से आए हैं हमारे यहां कहने पर वह बड़ी ही गर्मजोशी से हमसे मिला तथा बताया कि वह स्वयं भोपाल का है हमने वहां घूमने वाली जगह पूछी तो उसने कहा यहां इसी तरह के साइंस से संबंधित स्टूडियो हैं सभी दर्शनीय हैं परमिशन स्पेस में आप ग्रीन कार्ड लीजिएगा वैसे भी आप यहां घूमने आए हैं लकी एडवेंचर के लिए कहीं कोई प्रॉब्लम ना हो जाए उसकी चिंता हमें भली लगी ।

अंततः हमने हॉलनुमा कमरे में प्रवेश किया । हमको वहां पड़ी बेंचों पर बिठा दिया गया, शो प्रारंभ हुआ… इस शो में तेज हवा या साइक्लोन का हमारे घर या वातावरण पर बढ़ते प्रभाव को थ्री डाइमेंशनल बोली थी सहायता से दिखाया जा रहा था हमारे सामने एक घर था तभी तेज हवा चलती दिखाई दी हवा इतनी तेज थी कि घर के टुकड़े टूट टूट कर उड़ने लगे इसके साथ-साथ फिर भी टूट टूट कर गिरने प्रारंभ हो गया श्री डाइमेंशनल इफेक्ट के कारण हमें लग रहा था कि वहां स्थित पेड़ हमारे ऊपर ही गिर रहा है इसके साथ ही पानी पढ़ना भी प्रारंभ हो गया टेक्निक के कारण पानी के छींटे हमारे ऊपर भी पढ़ने प्रारंभ हो गए थे इस समय तक घर के टुकड़े टुकड़े हो गए थे आप सो के प्रोग्राम प्रोग्राम मरने हमसे कुछ कुछ प्रश्न पूछने प्रारंभ किए जिससे हम एक ऐसा घर बना सकें जो साइक्लोन प्रूफ हो हम उनके उत्तर देते गए मेजोरिटी के उत्तरों के आधार पर घर बनाया गया फिर एक बार फिर पहले जैसी सिचुएशन बनाई गई कुछ टूट-फूट तो हुई पर पहले जितनी नहीं संदेश ही था हमें ऐसे घर बनाने चाहिए जो हर तरह की हवाओं और पानियों पानी को झेल सकें अब हमने मिशन स्पेस वाले पवेलियन में प्रवेश किया हर जगह की तरह यहां भी अच्छी लंबी कतार थी लगभग आधे घंटे पश्चात हमारा नंबर आया एक बार फिर हमें लगा वैसे तो भारत की तुलना में अमेरिका की जनसंख्या कम है पर भीड़ तो हर जगह हमारे भारत जैसी ही है जैसे ही हमारा ना हमें एक हॉल में ले जाया गया यहां हमें ग्रुप में बांट दिया गया हमें मिशन 2 मार्च के बारे में बताया गया उसके बाद उस निर्देशों के पश्चात हमें एक कुर्सी पर बैठने का निर्देश दिया 4 कुर्सियों का एक रॉकेट मार्केटिंग था केबिन में घुसते ही दरवाजे लॉक हो गए तथा हमें बांधने का निर्देश दिया गया इसमें एक इंजीनियर था एक नेविगेटर एक पायलट तथा एक कमांडर हमें एनाउंसर के निर्देश के आधार पर अपना ज्ञान संचालित करना था हमें मोटर स्कूटर सेल राइट के द्वारा अपना मिशन टू स्पेस पूरा करना था इस काम में हमारा यहां भी नदी नालों से होता हुआ पहाड़ों से टकराता प्रतीत होता तो कभी स्पेस में चांद तारों के बीच घूमता ।

हमें पता था कि हमारा यान कहीं नहीं टकराएगा । हम स्पेस या अर्थ में वास्तव में नहीं घूम रहे हैं वरन एक केबिन में बैठे सिर्फ उसका एहसास कर रहे हैं पर फिर भी लाइट और साउंड इफेक्ट के कारण हमारी हार्ट बीट बढ़ गई थी । जब शो समाप्त हुआ तब लगा भोपाल वाला वह आदमी ठीक ही कह रहा था... हमारी जितनी उम्र में हमें ऐसे शो में भाग नहीं लेना चाहिए । हम यहां घूमने आए हैं न कि किसी एडवेंचरस ट्रिप पर... अगर वास्तव में हममें से किसी को कुछ हो जाता है तो मेडिकल इंश्योरेंस के बावजूद इस देश में व्यर्थ परेशानी ही होग़ीब। साथ ही घूमने का सारा मजा भी किरकिरा हो जाएगा पर हमने उसकी बात पर तब ध्यान नहीं दिया था ।

अब हमने यूनिवर्स ऑफ एनर्जी स्टूडियो में प्रवेश किया । यहां हमें एक बड़ी बेंच नमः सीट पर बिठाया गया । शो से पहले लगभग 8 मिनट की फिल्म के द्वारा पृथ्वी पर जीवन के विकास की यात्रा पर प्रकाश डाला गया । इस शो के पश्चात हमारी सीट ने घूमना प्रारंभ कर दिया । सामने की स्क्रीन पीछे चली गई तथा हम डायनासोर युग में चले गए...। धीरे-धीरे हमें मानव के विकास की विभिन्न अवस्थाओं से विभिन्न मॉडलों के द्वारा परिचित कराया गया । बाद में पता चला कि इस थिएटर की पूरी छत 80,000 फोटोवॉल्टिक सोलर सेल से बनी है जो यात्री गाड़ी को चलाने में सहायता करती है ।

अंत में हम एस्कॉर्ट करैक्टर स्पॉट में गए । वहां हम मिकी माउस तथा कुछ उसी तरह के अन्य करैक्टरों से मिले । बच्चों के साथ उनके हाव-भाव बड़ों को भी आकर्षित कर रहे थे । लोग उनके साथ विभिन्न पोजों में फोटो खिंचा रहे थे । हमारे मतानुसार जो जगह हम देखना चाहते थे, हमने देख ली थीं । लगभग एक 1:00 बज गया था अब हमने साथ में लाया खाना खाया तथा मेप देखकर आगे की प्लानिंग करने लगे ।

एपकोट रिसोर्ट के चारों ओर विभिन्न देशों के शो केस पवेलियन मॉडल बने हुए थे । हमारे पास इतना समय नहीं था कि हम इन सबको पैदल देख पाते अतः हमने मोटर बोट से घूमना श्रेयस्कर समझा । इस बोट ने हमें मैक्सिको, नार्वे ,चाइना, जर्मनी ,इटली, जापान, मोरक्को, फ्रांस ,यूनाइटेड किंगडम, कनाडा तथा अमेरिकन एडवेंचर घुमाया । प्रत्येक मॉडल में कुछ शो हो रहे थे, साथ ही उनके अपने ररेस्टोरेंट भी थे जहाँ लोग कह-पी भी रहे थे । मोटर बोट ने हमें दो जगह उतारा । हम वहां उतर कर घूम और फोटोग्राफी भी की । इस एपकोट रिसॉर्ट में सप्ताह में 2 दिन फायर वर्क भी होता है पर जिस दिन हम वहां गए उस दिन फायरवर्क की सुविधा नहीं थी । वैसे भी एक फायरवर्क तो हम शिकागो में बोट शो के समय देख ही चुके थे ।

हमें देखकर आश्चर्य हुआ जिस पाश्चात्य संस्कृति के बारे में हम सुनते आए है कि वे बुजुर्गों की ओर ध्यान नहीं देते, उनका सम्मान नहीं करते ...पर हमने यहां व्हील चेयर पर कुछ ऐसे बुजुर्ग व्यक्तियों को घूमते देखा जो चलने में समर्थ नहीं थे । उन्हें उनके बच्चे घुमा रहे थे । कुछ व्यक्ति सेल्फ ड्राइविंग वेहीकिल (स्वयं चलाने वाली छोटी गाड़ी ) में भी घूम रहे थे । व्हीलचेयर तथा छोटे बच्चों के लिए प्राम यहां किराए पर उपलब्ध थी ।

अब थोड़ी बूंदाबांदी प्रारंभ हो गई थी । लोगों ने फटाफट प्लास्टिक के रेनकोट निकाले और पहन लिये । ये रेनकोट इतनी महीन प्लास्टिक के बने थे कि हम इंडियन शायद इन्हें सामान्य परिस्थितियों में भी पहनने को तैयार नहीं हों । अब हमने होलोवुड स्टूडियो जाने का फैसला किया । एपकोट से हॉलीवुड स्टूडियो पहुंचने के लिए पैदल रास्ता भी था पर हमने एपकोट इंटरनेशनल गेटवे से बोट ली । कुछ ही देर में हम डिजनी हॉलीवुड स्टूडियो पहुंच गए।

सुधा आदेश
क्रमशः