My crazy ... my friend - 6 in Hindi Love Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | मेरी पगली...मेरी हमसफ़र - 6

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मेरी पगली...मेरी हमसफ़र - 6

वहां से मैं ऑफिस के लिए निकल आया।आते हुए मन में कई सवाल थे।इन्ही सवालो मे उलझता सुलझता खुद मे थोड़ा सा बदलाव लाने कानिर्णय किया।ऑफिस पहुंच मैंने क्लाइंट को कॉल लगाया।उसने सॉरी कहते हुए इमरजेंसी मे है ऐसा कहा और शाम के पांच बजे मीटिंग रखने की गुजारिश की।चूंकि अब मैं बदल रहा था तो उससे ना कहने की जगह मैंने अपनी स्वीकृति दी।जिसे जान उसने लखनऊ के एके मॉल मे समय पर पहुंचने का कहा।समय पर पहुंचने का कह मैंने फोन रख दिया और अपने कार्य में लग गया।ऑफिस में कुछ ज्यादा शांति महसूस हुई।जिसका कारण मैंने कल हुई घटना को समझा।कुछ देर बाद घर से मां का फोन आ गया।मैं उनसे बात करने लगा।मां ने शिकायत करते हुए कहा 'तेरे पास अपनी मां से बात करने के लिए कतई टाइम नही है प्रशांत,तभी तो मुझसे बात ही नही करता, हमेशा भागता रहता है मुझसे।'उन्हें अक्सर शिकायत रहती थी मुझसे।कारण बस वही था उनका अलाप बेटा शादी कर ले अब सेटल होजा।मां और मां की फिक्र।मैं बोला 'ऐसा नही है मां,बस काम थोड़ा ज्यादा है फिर जब भी समय मिलता है तो आपसे और छोटी ताईजी से ही तो बात करता हूँ।' मां बोली 'अच्छा ऐसा क्या' मुझे अर्पिता से की हुई बातचीत याद आ गयी और मैं उसी के अंदाज में बोला 'हम्म ऐसा ही है'।मां की आवाज में मुझे खुशी महसूस हुई और वो मुझसे पूछते हुए बोली, 'ये बता घर कब आ रहा है'।मैं मन ही मन समझ गया 'मेरी टॉर्चर मशीन ने मेरी प्रदर्शनी लगाने का इंतजाम कर रखा है तभी मुझसे पहले से पूछा जा रहा है।' मैं बोला, 'मां, आऊंगा, जब समय मिलेगा या फिर जब छोटे की शादी फिक्स हो जायेगी तब सबसे पहले तो मैं ही आऊंगा सारे काम धाम भी तो देखने होंगे कि नही'।'हां ये भी सही है जीजी और तुम्हारे बड़े पापा इस बारे में बात करने ही गये है हमारे परिवार के कुलगुरु जी से जो भी होगा वो जल्द ही पता चलेगा सब को' मां ने कहा तो मैं उनकी बात पर सहमत हो बोला, 'हां, मां और कुछ अच्छा ही सुनने में आयेगा' इससे पहले कि मां अपना राग अलापने लगे मैं जल्दी बात खत्म करते हुए बोला 'मां ऑफिस बन्द करने का समय हो रहा है आपसे बाद में बात करता हूँ,ठीक है बाय।' कहते हुए मैंने झटके से फोन कट किया और राहत की सांस लेते हुए बोला, 'और दो मिनट बात होती मां से तो मां बोलती ,छोटे तो सेटल हो रहा है अब तुम कब इस बारे में सोचोगे।अब उन्हें मैं अर्पिता के बारे में कैसे बताऊं जब मुझे खुद उसके मन में क्या है ये नही पता' सो अभी बात शुरू ही न हो यही सोच मैंने फोन रख दिया।मैंने घड़ी में नजर मारी साढ़े चार बज चुके थे ये देख मैं बाहर आया और चित्रा से ऑफिस बन्द करवाने का कह वहां से मीटिंग के लिए निकल गया।पांच बजे तो लखनऊ की सड़के इतनी जाम हो जाती है जैसे किसी जेल से निकले हुए वाहनधारी कैदियो ने रास्ता रोक रखा हो।इसीलिए मैं समय से कुछ मिनट पहले ही पहुंच गया और मॉल के मैगजीन एरिया में जाकर बुक्स खंगालने लगा।मैंने एक दो बुक्स चुन भी ली।मीटिंग के लिए क्लाइंट का कॉल आ गया तो मैं जाकर कैफेटेरिया में बैठ गया।जहां मैं उससे हमारे प्रोजेक्ट की डिटेल्स के बारे में डिस्कस करने लगा।बाते करते हुए मेरी नजर मुझसे कुछ दूर बैठी राधु भाभी और श्रुति पर पड़ी जिनके साथ वो भी बैठी हुई थी।मन में खुशी के लड्डू फूटे और मैं मन ही मन मुस्का गया।कुछ देर बाद मीटिंग खत्म हो गयी तो मैं क्लाइंट को छोड़ने चला आया।रवीश को कॉल कर अकैडमी थोड़ा लेट आने के लिये बोला और वापस आकर श्रुति और अर्पिता दोनो को जॉइन कर लिया।

'प्रशांत भाई आप यहाँ।आपकी मीटिंग़ खत्म हो गयी।'श्रुति ने पूछा।

'हाँ जी खत्म ओ गयी' कहते हुए मैंने अपना हाथ टेबल पर रखा।मेरे हाथ में अभी तक रुमाल बंधा हुआ था।ये देख अर्पिता ने पूछा, 'आपने अभी तक कोई मेडिसिन नही लगाई।वैसे ही बांधे हुए हैं।'
उसका सवाल सुन मैं बोला 'न अब ठीक है कल तक ठीक हो जायेगा इंजेक्शन ले लिया है मैंने।' श्रुति का ऑर्डर किया हुआ पिज़्ज़ा आया।उसने अर्पिता को ऑफर किया।उसने एक नजर उस पर मारी और मुंह बनाते हुए बोली 'ईयू ये क्या है श्रुति लिब्लिबा सा।ये तुम्हे ही मुबारक।'उसकी इस बात पर मुझे हंसी आ गयी वो देख न ले ये सोच कर मेनू कार्ड देख मैंने अदरक वाली चाय और एक कैपेचिनो का ऑर्डर कर दिया।

उस वक्त खामोशी छा गयी।एहसास हुआ 'शब्द तो जैसे मौन हो गये थे हमारे बीच।शब्दो से ज्यादा खामोशिया हमारा साथ दे रही थी।क्योंकि मुझे शोर से ज्यादा खामोशियाँ पसंद है।उन्हें पढ़ना महसूस करना पसंद है जो उस समय मैं आराम से कर पा रहा था।

कुछ ही देर में चाय और कैपिचीनो दोनो आये तो कॉफी का मग अर्पिता की ओर बढा मैं चाय की चुस्की लेने लगा।मेरी इस बात पर वो हैरान हो गयी।उसने एक नजर मेरी ओर देखा।उसकी आंखों में सवाल था।मुझे कैसे पता?मैंने धीरे से कहा 'ये जरूरी तो नही किसी के मन की बात हम तभी जाने जब कोई आपको बताये कभी कभी खामोशिया भी सब कहती हैं और इसी ने तुम्हारे घर पर मुझे चुपके से बताया...।'

मेरी बात सुन अर्पिता हल्का सा मुस्कुराई और कॉफी मग उठा कर कॉफी पीने लगी।हमारे बीच की खामोशियो को तोड़ती हुई श्रुति ने मेरी ओर देख कहा 'अप्पू! मुझे शॉपिंग करनी है तो तुम मेरे साथ चलना।बड़े दिनो बाद मौका लगा है भाइ की जेब ढीली कराने का।'मैं कुछ कहता उससे पहले ही वो बोल पड़ी 'श्रुति काहे नाहक अपने भाई को दोष दे रही हो जहाँ तक हमें लगता है इन्होने कभी तुमसे किसी बात के लिये न नही कहा होगा।'उसे सुन श्रुति अपनी आंखे फैला कर उसे देखने लगी।मैं चाय पीते हुए उसकी इस बात पर मुस्कुराने लगा।एहसास हुआ था मुझे वो मुझे बिन कहे समझने लगी थी।

श्रुति ने पिज्जा खत्म करते हुए कहा 'लगता है कुछ ज्यादा ही समझदार हो यार तुम।बात तो सही कही तुमने मेरे लिये कभी न नही कहते भाई।' चाय खत्म कर मैंने श्रुति को शॉपिंग के लिए कहा।और खुद परम के पास चला आया।क्योंकि परम वहां किरण से एक मुलाकात के लिए आया था।मेरे और अर्पिता दोनो की फ़ेमिली ने दोनो की मुलाकात कराने के लिए ही ये मॉल आने का प्रोग्राम फिक्स किया था।परम यहां श्रुति राधु भाभी के साथ आया था तो वहीं किरण अर्पिता के साथ आई थी।

'बात करते हुए देखा अर्पिता मेनू कार्ड में अपनी कॉफी का अमाउंट रख खड़ी हो चुकी थी।'मैं समझ गया खुद का खर्च खुद ही उठाने की आदत है उसकी'।श्रुति उसे साथ लेकर चली गयी।जाते जाते उसने मुड़कर मेरी ओर देखा।उसके यूँ देखने पर उसकी आँखे मन में बस गयी और मन बोल पड़ा ‘लवो से वो जो कह न सकी उसकी खामोशी वो सब कह गयी।'


उनके जाने के बाद मैं भी परम को साथ ले वही मॉल के फन कॉर्नर में घूमते हुए चुपके से उसको निहारने लगा।इस विचार से उसकी पसंद नापसंद थोड़ा बहुत जान समझ सकूँ।कपड़े ज्वेलरी और भी न जाने क्या क्या जरूरत का दुनिया भर का सामान खरीद लिया श्रुति ने जिसमे अर्पिता ने उसकी पूरी मदद की।वहीं इतनी देर मे अर्पिता ने पसंद किये केवल दो दुपट्टे।उन्हें भी खरीदने में पंद्रह मिनट लगा दिये थे उसने।न जाने क्या स्पेशल ढूंढ कर खरीद रही थी उनमे।

परम मुझे अपने साथ मोबाइल का सामान खरीदने के लिए बुला ले गया।वो अपना समान देखने लगा और मैं अपना फोन जो रिंग हो रहा था।त्रिशा का था जिसने अपनी मीठी जुबां मे एक लाल रंग के टॉय की मांग कर दी।उसे लाल रंग के गुड्डे कुछ ज्यादा ही पसंद थे।मैंने लाने का कहा और छोटे से काउंटर पर मिलने का कहा और वहां से गिफ्ट शॉप के लिए निकल गया।

वहां बहुत से टेडी,छोटी छोटी कार,बच्चो के खेलने का सामान सब था।इतने समान में जैसा त्रिशा ने बताया था वैसा मुझे नही दिखा।मैं वहीं खड़े होकर ढूंढ रहा था कि तभी हमारी एक बार फिर मुलाकात हुई।इस बार वो उसी छोटे से बच्चे के साथ आई जिससे पिछली बार मुलाकात हुई।वो उसकी ओर ही मुंह कर खड़ी थी और मैं उसके पीछे।मैंने उसे देखा तो ऐसे खुश हुआ जैसे डूबते को तिनके का सहारा मिल गया।मैंने सोचा ये बेहतर बता सकेगी कि एक छोटी सी बच्ची को उसके मनपसंद खिलौने की जगह क्या भेंट दूँ जिससे वो गुस्सा न करे।सो मैं मदद के लिए उसकी ओर बढ़ा लेकिन अगले ही पल अपने बढ़ते कदम मैंने बीच में रोक लिए और सोच में पड़ गया।अगर मैंने इससे मदद के लिए कहा तो कहीं ये न समझ ले कि इत्तु से काम के लिए भी मुझे मदद की जरूरत पड़ गई।क्या करूँ कश्मकश में पड़ मैंने अपने सर को खुजा लिया।जो मैंने उस दिन से पहले तक कभी नही किया था।ये पहली बारी था कि मै किसी बात को लेकर कन्फ्यूज हुआ।


कुछ देर बाद वो बच्चा मेरी तरफ मुड़ा तो उसके साथ ही अर्पिता भी मुड़ी और ठीक मेरे सामने ही खड़ी हो गयी।

उसने मेरी ओर देखा और मेरा हाथ थाम कर एक खूबसूरत सा लाल रंग का एक टेड़ी रखते हुए बोली, "हमें उम्मीद है कि आपको ये अवश्य पसंद आएगा।"तभी उस बच्चे की आवाज सुन वो उस बच्चे की ओर मुड़ गयी।उस बच्चे ने एक छोटा सा फुटबॉल पसंद किया था।उसे लेकर वो बच्चे के साथ काउंटर की ओर चली गयी।जाते हुए वो बार फिर पीछे मुड़ी।उसकी ये अदा देख मैं मन ही मन बोला 'हाय! मेरे बिन कहे तुम्हारा यूं समझ लेना मुझे अनकहे एहसासों से रूबरू करा रहा है।'एक अजनबी बच्चे के लिए उसके मन मे कितना सॉफ्ट कॉर्नर है फिर जब बात उसके अपनो की हो तब तो ध्यान का मैं सोचूं ही ना।ये ख्याल ही मन को गुदगुदा रहा था।वो खिलौना ले मैं बाहर चला आया।जहां मैंने एक बार फिर उसका नया रूप देखा।अर्पिता बाहर उस बच्चे के परेंट्स को उनकी गलती का एहसास दिलाते हुए कह रही थी आपको ध्यान रखना चाहिए।माना कि बच्चे शरारती होते है लेकिन फिर भी हमें उनका ध्यान तो रखना चाहिए न।ये जरूरी नहीं कि हर बार हम इनके साथ मिले।कभी कोई और भी मिल सकता है।जो इनके अकेले होने का लाभ भी उठा सकता है।वो नीचे झुकी।बच्चे के माथे को चूमा और वहां से काउंटर की ओर बढ़ गयी।हर बार कुछ अलग कर जाती थी वो।जो हर बार मुझे उसकी ओर पहले से ज्यादा खिंचाव महसूस होता।मैं भी काउंटर पर चला आया।श्रुति को देख उसे अपना कार्ड थमाया और सबके सामान ले मैं गाड़ी की ओर बढ़ गया।गाड़ी की डिग्गी मे सामान भरा और सबके आने का इंतजार करने लगा।भाभी अर्पिता श्रुति परम सभी चले आये।राधु भाभी ने किरण को घर छोड़ने के लिए कहा।किरण अर्पिता,भाभी श्रुति सभी पीछे बैठ गयी।उनके बैठने पर मैंने अपनी बाइक चालू की और एक अजनबी हसीना यूँ मुलाकात हो गयी...!गुनगुनाते हुए वहां से निकल गया।'अकैडमी मे पहुंचने का समय जान मैं सीधे अकैडमी पहुंचा।मैं अपना गिटार लेकर नही आया था तो एक छात्र से ही लिया और उसे ट्यून करते हुए गुनगुनाने लगा।


ख्वाहिशे थी जो मेरी अधूरी।
तेरे मिलने से हुई वो पूरी।
वर्षो का था ये इंतजार मेरा
हुआ पूरा देख भीगी आँखे मेरी।

ना समझू मै कैसा ये इश्क़ है..?
ना जानूँ मै कैसा ये इश्क़ है...?

गुनगुनाते हुए मेरी नजर सामने छात्रों पर पड़ी जिनमे मुझे उसके वहां होने का आभास हुआ।मुझे वो वहां न होकर भी वहीं नजर आ रही थी।कुछ अनकहे एहसास थे जिन्हें मैं पूरे मन से महसूस कर रहा था।मेरा मन पूरा का पूरा खुशी से सरोबार हो रखा था।

गुनगुनाने के बाद मैंने ट्यूनिंग बन्द की तो सभी लर्नर्स वंस मोर कह चिल्ला उठे।मैं गिटार रखते हुए बोला, 'बस आज इतना ही अब आगे आप सबको मैं गाइड करता जाऊंगा और आप लोग वैसा ही करेंगे जैसा मैंने बताया ठीक है'!ये सुन सभी के खिले हुए चेहरे लटक गये जिसे देख मैं बोला 'तो मैं अब शुरू कर रहा हूँ,सिर्फ दो बार बताऊंगा,बाकी अभ्यास आपको एक दूसरे की मदद से करना होगा समझ गये'।सभी बेमन से बोले समझ गये!

मैंने फिर से गिटार को ट्यून किया और एक एक रिद्म उन्हें स्पष्ट बताता गया जिसे उनमे से कुछ अच्छे विद्यार्थी की तरह बड़े ध्यान से सीख गये।सबको एक बार बताया और गिटार वापस कर क्लास रूम से बाहर निकल आया।गैलरी में आकर खिड़की से खड़े हो उन पर दृष्टि रख उनके सीखने की ललक का अवलोकन करने लगा।कुछ एक छात्र अटके तो दूसरे साथियो ने उन्हें सही निर्देश दे साथ ले लिया ये देख मन खुशी से भर गया।खड़े खड़े बीस मिनट गुजर गये तो मैं वहां से वापस अंदर चला आया और उन सबको कुछ पुराना रिवाइज कराने लगा।कुछ देर बाद समय हो गया तो मैं रवीश से मिल वहां से वापस रूम के लिए निकल गया।

रूम पहुंचने पर मेरे पास बड़ी मां का कॉल आ गया।मैंने आदतन कॉल रिसीव की और बात करने लगा।बड़ी मां बहुत खुश थी।उन्होंने बताया मुझे छोटे की शादी की तारीख निकलवा ली है।चार महीने बाद का समय निकला था।सुनकर ख्याल आया आखिर चार महीने बाद घर मे शहनाई बजेगी।बड़ी मां ने सारे इंतजामात मुझे और सुमित भाई को देखने का कहा जिसे मैंने खुशी खुशी ही स्वीकार कर लिया।पहली बार मुझे इतना खुल कर बात करते देख वो कहने लगी,प्रशांत,'आज बहुत बातें आ रही है क्या राज है इन बातों का?'मैं हंस कर मस्ती करते हुए बोला 'बड़ी मां राज तो गहरा है और फिलहाल ये राज मुझ तक ही सीमित रहे तो बेहतर होगा।राज को राज ही रखना चाहिए जिससे नजर नही लगती है न'!बड़ी मां बोली 'समझ गयी मैं बातें बना रहे हो चलो अब बाद में बात करती हूँ तुम अपना काम खत्म कर लो' ठीक है ध्यान रखना अपना भी और बाकी सब का भी।रखती हूँ।' जी ताईजी प्रणाम!'मैंने कहा तो उन्होंने फोन रख दिया।मैं फोन रख कुछ देर रेस्ट कर अपनी लाडली बहन श्रुति के पास आ गया और उससे बाते करते हुए बोला, 'छुटकी,आज तो खूब शॉपिंग करी है न तो अब जाकर मेरे लिए चाय बना कर लाओ' मुझे सुन उसकी आँखे फैल गयी और चेहरे पर हैरानी के भाव आ गये।श्रुति ने मेरी ओर देखा तो मैं थोड़ा अकड़ते हुए बोला,अब ऐसे क्या देख रही हो 'जाओ उठो उठो चाय लाओ ये मैं ही हूँ प्रशांत द ग्रेट चलो जाओ'।वो बिन कुछ कहे उठी और अंदर चली गयी उसे देख मैं भी उसके पास आ गया और उससे बातें करने लगा।उस समय मुझे थोड़ी दिक्कत तो हो रही थी कुछ भी व्यर्थ का बोलने में।लेकिन अपनो के लिए बदलना भी तो जरूरी था सो मैं बदलने की कोशिश करते हुए बातें कर रहा था।वहीं श्रुति कुछ देर तक तो हैरान रही और फिर अपनी आदत के अनुसार पटर पटर करने लगी।मैंने चाय पी और बोला,'ईयू चाय तो ठीक ठाक बनाई है छुटकी!' वो सोफे पर पसरते हुए बोली 'हां तो बनेगी ही भाई आखिर मैंने बनाई है मैंने।'सुनकर छोटी सी स्माइल पास की और उससे पूछा, 'चल बता क्या खायेगी आज आज का सारा खाना तेरी पसंद का।' मेरे इतना कहते ही उसने एक बार फिर मेरी ओर देखा और अटकते हुए बोली 'भाई आज आप ठीक तो है, आज तो आप पूरे बदले लग रहे है लग ही नही रहा कि मैं प्रशांत भाई से बात कर रही हूँ।' मैं हंसते हुए बोला 'हम्म मैं ही हूँ छुटकी।बस समझ गया हूँ अपनो से खुल कर बात करनी चाहिए कभी कभी अपनो के बीच गम्भीरता भी एक आवरण का काम कर जाती है।मैं नही चाहता जो आज हुआ वो भविष्य में कभी दोहराया जाये।तुम या मेरा कोई भी अपना मेरे स्वभाव की वजह से मुझसे अपनी तकलीफ कहने से भी झिझके।सख्त रखना चहिये लेकिन जरूरत पड़ने पर बेवजह नही।तो अब यूँ हैरान न हो और बताओ क्या चाहिए आज वही बनेगा।'


श्रुति बोली 'कुछ भी जो आपका मन हो वो बना लो मैं चली अब पढ़ने'।वो उठकर वहां से कमरे में चली गयी मैं भी अपनी चाय खत्म कर अपने काम पर लग गया।कुछ देर बाद परम भी आ गया और हम दोनो हमेशा की तरह साथ कार्य करने लगे।कुछ देर बाद हम सभी फ्री हो अपने अपने कार्य में लग गये।फ्री हो मैं छत पर चला आया और गुजरते लम्हे के बारे में सोचते हुए बोला दिन भी बहुत अच्छा गया अब छोटे की शादी भी फिक्स हो गयी यानी इस शादी में तुम्हे और करीब से जानने का मौका मिलेगा अर्पिता।मैंने अपना फोन उठाया और अपने पेज पर गुलज़ार साहब की कुछ लाइने शेयर कर ली।

यूँ तो आदत नही मुझे मुड़कर देखने की।तुम्हे देखा तो लगा एक बार और देख लूं..!!

मैंने फोन में जगजीत साहब की गायकी प्ले की और सॉन्ग सुनने लगा।रात गहराती गयी।मैं नीचे चला आया।

अगले दिन फिर मैं तैयार हो श्रुति को उसके कॉलेज छोड़ दूर से ही उसे देख ऑफिस के लिए निकल गया।ऑफिस पहुंच सबकी रिपोर्ट ली और अपने केबिन में जाकर काम करने लगा।

काम करते हुए कब लंच टाइम हो गया पता ही नही लगा।मैं ऑफिस के केबिन में बैठा लंच कर रहा था तभी आंखो के सामने अचानक से अर्पिता का चेहरा आ गया।मैंने धीमी आवाज में अर्पिता को पुकारा और चुप रह गया।आगे लंच का मन किया।हाथ धुल खड़े हो मन ही मन बोला

ये इश्क की राहें आसान नहीं है।
कही खुशी तो कही आंखो में नमी है।
उनके एक ख्याल से उड़ जाता है चैन यहां।
फिर भी न जाने क्यों यूँ ही भागे ये ज़मी है।

मैं अपनी ही सोच में रत हूँ कि तभी मेरे पास श्रुति का कॉल आया।मेरे कॉल अटैंड करते ही वो बोली 'भाई ! I need your help ?'

मैं उसकी बात का मतलब समझ नही पाया।पूछा बताओ क्या मदद चाहिए उसे?

उसकी आवाज मे घबराहट थी।उसने कहा 'मेरी दोस्त है न अर्पिता वो किसी परेशानी में है भाई मुझे नही पता क्या परेशानी है लेकिन वो परेशानी में है उसका मेरे पास कॉल आया मैंने अटैंड किया लेकिन उसने कुछ नही कहा बल्कि वहां से कुछ और ही आवाजे आई।मैंने आपका कॉल कॉन्फ्रेंस पर लिया हुआ है लेकिन मुझे समझ नही आ रहा है मैं कैसे उस तक पहुँचूँ।प्लीज भाई कुछ कीजिये न?

उसे सुन मेरा मन बैठ गया।लगा जैसे किसी ने मुझे आसमान से नीचे उतार फेंका हो।मैं बमुश्किल बोल पाया क्या.. श्रुति ? अर्पिता .. ।एक पल को तो मेरी आंखों के सामने अर्पिता का हंसता मुस्कुराता चेहरा आ गया।लेकिन अगले ही पल वो मुस्कुराता हुआ चेहरा दर्द में बदल गायब हो गया।मैं चिंतित हो गया लेकिन उसे जताया नही।खुद को सम्हालते हुए मैंने श्रुति को सब ठीक होने का कहा।अर्पिता ठीक होगी।वो कमजोर नही है।वो सबसे अलग और बेहद मजबूत लड़की है।वो खुद को सम्हालना जानती है।बस हमे मदद के लिए उस तक पहुंचना है मैं कोई न कोई रास्ता निकालता हूँ तुम परेशान न होना।मैं यहां से निकलता हूँ और कोशिश करता हूँ उसे ढूंढने की।'बस तुम परेशान मत होना मैं उस तक पहुंच ही जाऊंगा।ठीक है कहते हुए मैंने फोन बिन कटे पॉकेट में रखा अपनी बाइक की चाबी उठाई और केबिन से निकल गया।

मन में उथल पुथल के साथ सवालो का पुलिंदा!क्या करूँ कैसे पता करूँ अर्पिता के बारे में।न जाने वो कहां हो क्या करूँ।मन में ख्याल आया कि पहले नंबर की लोकेशन पता करवाऊँ।इससे मुझे पता चल जायेगा कि वो है कहां।किससे निकलवाऊँ।परम का ख्याल आया तो तुरन्त ही उसे कॉल लगा दिया।उसे एक नम्बर बताते हुए लोकेशन पता करने को कहा।

तो

परम बोला 'ठीक है भाई! आप नंबर सेंड कीजिये।मैं बस दो मिनट में पता करवा के आपको बताता हूँ।'


'ओके' मैंने कहा और श्रुति से बोला,'नंबर बताओ श्रुति।' 'हां भाई' कह श्रुति ने परम को नंबर बताया जिसे मैंने मन ही मन याद कर लिया।

परम कॉल रख अपनी जानकारी का उपयोग किया और कुछ ही मिनटों में पता लगा कर मुझे बताया,'भाई ये नंबर तो मलिहाबाद रोड पर थोड़ी सुनसान जगह के आसपास दिखा रहा था।'

'ओके।थैंक्स छोटे।मुझे अभी निकलना होगा ! बाय' मैंने कहा और तेजी से उस तरफ जाने के लिए निकल गया।अर्पिता की लोकेशन पता तो चल गयी थी अब बस मुझे चिंता इस बात की थी कि मैं सही समय पर वहां पहुंच जाऊं।फोन कनेक्टेड था और मैं अपनी स्पीड से ज्यादा पर बाइक दौड़ा रहा था।हेडफोन के कारण मुझे वहां की आवाजे साफ साफ सुनाई दे रही थी।'अबे बंदी यहां नही है ढूंढो उसे' आवाज सुनाई दी जिसे सुन मन को राहत मिली कि चलो वो वहां से निकल तो गयी।लेकिन ये राहत भी ज्यादा देर की नही थी आवाज फिर से आई 'वो रही पकड़ो उसे' अर्पिता सबसे खुद के सम्मान के लिए जद्दोजहद कर रही थी।उसकी सांसे सामान्य से ज्यादा तेज चल रही थी जिससे मुझे अनुमान हो गया था कि वो वहां से निकलने की कोशिश कर रही है।कुछ स्वर फिर मुझे सुनाई पड़े,'बहुत तेज हो!लेकिन आज हमसे बचकर नही निकल सकती तुम।'ये शब्द सुन मुझे खुद की मजबुरी पर बहुत गुस्सा आया क्यों मैं उसके पास नही था।'ओह गॉड अब हम क्या करे' ये आवाज पुनः आई जिसे सुन मेरी धड़कने बढ़ गयी।मन में ख्याल आया 'न जाने वहां वो कितने है कब तक वो उनसे लड़ पायेगी।' बस किसी तरह मैं जल्दी से पहुँचूँ।कुछ सेकण्ड बाद फिर से आवाज सुनाइ दी 'दूर रहो हमसे' और फिर किसी के गिरने की आवाज सुनाई दी साथ ही दौड़ने का तेज स्वर भी।लेकिन अगले ही पल वो स्वर अर्पिता की आवाज में बदल गया 'गॉड ..हेल्प' इन शब्दो से मेरे मन का रहा सहा धीर भी डोलने लगा।लेकिन आवाजे कम नही हुई।कुछ देर बाद फिर कुछ स्वर सुनाई दिये, 'सॉरी शिव हमे यहां से निकलना होगा,हम चाह कर भी आपकी मदद नही कर सकते सॉरी' ये स्वर थमे और फिर उसकी तेज चलती हुई सांसे मुझे सुनाई देने लगी।मैं समझ गया वो वहां से निकलने में कामयाब हो चुकी थी।ये जान अधीर मन शांत हुआ।कुछ दूर रहने पर मेरी नजर अर्पिता पर पड़ी जो एक बंद कारखाने से कुछ दूरी पर दौड़ते हुए हाइवे की ओर चली आ रही थी।ये देख मैं मन ही मन बोला 'धीरता के साथ बुद्धिमानी दोनो ही गुण तुममे कूट कूट कर भरे हैं अर्पिता।' तुम सच में शेरनी से कम नही हो जो मुसीबत में भी यूँ ही खड़ी रहती हो।मेरी नजर उसके पीछे आ रहे लड़को पर पड़ी जिनमें से एक के हाथ में गन थी और वो उसे अर्पिता की ओर ताने खड़ा था।इस बात से बेखबर अर्पिता के सामने उसकी मासी और किरण चली आ रही थी।ये देख मैं मन ही मन घबरा गया।मै थोड़ी दूर था इसीलिए कुछ कर नही सकता था सो वहीं से उसका ध्यान भटकाने के लिए मैंने मिरर उसकी ओर घुमा दिया।जिसके कारण अर्पिता का ध्यान बंटा रास्ता दिखा नही और वो नीचे गिर पड़ी।लेकिन तब तक उस लड़के ने गोली चला दी जो सामने आ रही उसकी मासी को लग गयी।


क्रमशः...