अधर्म  का  व्यापार in Hindi Spiritual Stories by Alok Mishra books and stories PDF | अधर्म  का  व्यापार

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अधर्म  का  व्यापार

अधर्म का व्यापार

धर्म के नाम पर जहाँ देखिए पाखंड फैला है । इससे कुछ लोग धर्म पर ही उंगली उठाने लगे है। सबसे पहला प्रश्न है की धर्म क्या है ? धर्म की परिभाषा अनेकों विद्वानों ने दी है ।जैसे :- धर्म जीवन जीने की कला है ;धर्म उस प्रकृति के प्रति आभार प्रगट करने का तरीका है जिस ने हमें बनाया ।परन्तु गीता में दी गई परिभाषा ही सबसे उचित ओर उत्तम है । "जो धारण किया जाता है वही धर्म है । धर्म को यदि रसायन शास्त्र के गुण -धर्म शब्द के साथ देखा जाए तो धर्म मानव का गुण -धर्म ही है । अनेक लोग धर्म के इस स्वरुप से परिचित भी है परन्तु धर्म अब आस्था ओर विश्वास से भी अधिक व्यापार ओर लेन -देन बन गया है ।
वास्तविक्ता यह है कि धर्म मानव को शांति प्रदान करता है , सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है । लेकिन लोग मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे शांति ओर सत्य की खोज के लिए नहीं अपने लिए कुछ मांगने ही जाते है । आप जगह के विषय में यह प्रचारित कर दे कि यहाँ तेल चढ़ाने से मन की मुराद पूरी होती है तो सारे शहर का तेल वही चढ़ जाएगा ।
आज हर व्यक्ति किसी न किसी समस्या से ग्रस्त है । ऐसी समस्याओं से निकलने के लिए वो "शार्ट कट" तलाश रहा है । जब उसे कोई विश्वास दिलाता है कि वो उसकी समस्याएँ हल कर सकता है तो उसे वो बड़े ही धार्मिक भाव से स्वीकार कर लेता है । इसी कमजोरी का फायदा अनेक लोग उठाते है । यहीं से धर्म में अधर्म का पाखंड प्रारम्भ होता है ।
ऐसे लोगों कि कोई कमी नहीं है जो शायद धर्म को ठीक से जानते भी न हो लेकिन अपनी वाचलता और भ्रमजाल से अपने चारों ओर ऐसा ताना -बाना बुनते लेते है कि वे ही ईश्वर के सच्चे दूत है और वे जैसा चाहते है ईश्वर वैसा ही करता है । वे अपने इस प्रपंच को फ़ैलाने के लिए छोटे स्तर पर आस पास के लोगों का और बड़े स्तर पर प्रचार माध्यम ओर इंटरनेट जैसे साधनों का प्रयोग करते है। इस अधर्म के पाखंड से कोई भी धर्म सम्प्रदाय अछूता नहीं है । अक्सर अनेक लोगों को इस पाखंड की जानकारी भी होती है परन्तु वे धार्मिक विरोधों से बचने का प्रयास करते है । राजनैतिक लोग भी पाखंडियों के द्वारा जुटाई गई भीड़ का अपने स्वार्थ के लिए करने में नहीं हिचकते है । इस पूरे वातावरण के कारण ऐसे कुछ लोग जो विरोध करने की शक्ति रखते है , निर्बल होते है ।
इस अधर्म के के व्यापार से देश ओर विदेश में अरबों की मुद्रा काले धन के रूप में परिवर्तित हो जाती है । इससे संत,महात्मा ओर बाबा कहलाने वाले धनकुबेरों की श्रेणी में आ जाते है । वे अपने व्यवसाय राजनीति ओर फैक्ट्रियां चलते है । उन्हें इस बात से कोई वास्ता नहीं कि वे किसी व्यक्ति को धोखा दे रहे है या ईश्वर को ।इस अधर्म कि आड़ में वे अपने लिए एशोआराम के ऐसे साधन भी जुटा लेते है जो शायद धर्म की किताबों में वर्जित हो ।
जब ऐसे पाखंडी धर्म के ठेकेदार बन जाते है तो उनमे से कुछ तो स्वयम को भगवान कहलाने से भी नहीं चूकते है । आज भारत में ही केवल 70 भगवान है पूरी दुनिया में लगभग 200 से अधिक भगवान अपने पाखंडों के साथ काम कर रहे है । ऐसे भगवानों के साम्राज्यों को छेड़ने से सरकारें भी हिचकिचाती है । पूजास्थलों को भी भक्तों ने मालामाल कर दिया है । यहाँ भी लूट का साम्राज्य पनपने लगा है । कुछ लोगो ने अपने व्यक्तिगत हितों को साधने के लिए मिशन ही बना डाले । वे अब मिशन की आड़ में शांति ,स्वर्ग और मनोकामना पूर्ति का प्रलोभन दे कर अपने स्वार्थ की पूर्ति कर रहे है ।
आप कोई धर्म को मानते हो ,किसी भी संप्रदाय के हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता । आपको भी पाखंडियों के व्दारा धर्म के नाम पर अधर्म की घुट्टी पिलाने का प्रयास किया जा रहा है । इन पाखंडियों से बच कर कर्म पर विश्वास रख कर आगे बढ़े ,आप को सफलता अवश्य प्राप्त होगी ।

आलोक मिश्रा