Atonement - 16 in Hindi Adventure Stories by Saroj Prajapati books and stories PDF | प्रायश्चित - भाग-16

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प्रायश्चित - भाग-16

इतना तो शिवानी की सास भी समझ गई थी कि बेटा बहू के
बीच एक अनकहा तनाव चल रहा है।
जब से दोनों गांव आए थे। उन्होंने दोनों को काम की बातों के अलावा कभी आपस में प्यार से हंसते बोलते नहीं देखा था।
एक दो बार उन्होंने दोनों से अलग-अलग इस बारे में पूछने की कोशिश भी कि तो दोनों ही हंसते हुए बात टालते हुए उन्हें कहते, नहीं मां सब कुछ सही है। शायद आपको कोई गलतफहमी हुई है। वैसे भी देखो ना पहले पिताजी और अब आप बीमार हो गए ऐसी परिस्थितियों में भला कोई खुश कैसे रह सकता है । आप जल्दी से सही हो जाओ। तभी हमारे चेहरे की रौनक लौटेगी। उनकी बात सुनकर शिवानी की सास कुछ ना कह पाती।
धीरे धीरे गांव में रहते हुए उन लोगों को साल भर होने को आया। इस बीच उन्होंने अपने शहर का मकान बेच दिया था।
शिवानी की सास की हालत स्थिर ना रहती थी। कभी तो वह बिल्कुल सही हो जाती और कभी बहुत ज्यादा बीमार।
दिनेश और शिवानी अपनी तरफ से उनकी पूरी सेवा कर रहे थे लेकिन डॉक्टर वाली बात शायद उन्होंने जीने की इच्छा ही छोड़ दी थी।
पिछले 1 महीने से उनकी हालत कुछ ज्यादा ही बिगड़ती जा रही थी। दिनेश ने उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया लेकिन हॉस्पिटल में भी 5 दिन रखने के बाद डॉक्टरों ने यह कहते हुए छुट्टी दे दी कि आप घर पर ही इनकी सेवा करें। दवाओं से ज्यादा आपका साथ और दुआएं ही अब इनके लिए जरूरी है। हम अपनी तरफ से जितना कर सकते थे हमने किया।
डॉक्टर की बात सुन दोनों का ही दिल बैठ गया।
दिनेश और शिवानी उनका अब और भी ज्यादा ध्यान रखने लगे। शिवानी की कोशिश रहती है कि ज्यादा से ज्यादा उनके पास रहे और उन्हें खुश रख सके।
नन्हा रियान भी अब 1 साल का हो चुका था । वह तो अपनी दादी की जान बन गया था। अपनी तोतली जुबान से हमेशा उन्हें हंसाता रहता।
दिनेश अपनी नौकरी के बाद जितना भी समय मिलता मां के साथ ही बिताता ।
इन सबके बाद भी दिनेश की मां की सेहत दिन-ब-दिन गिरती ही जा रही थी। अब तो वह चारपाई से खुद उठ भी ना पाती। दिनेश और शिवानी उनकी यह हालत देखकर बहुत चिंतित थे।
1 दिन दिनेश जब अपने काम पर गया हुआ था और शिवानी अपनी सास की मालिश कर रही थी तो वह बोली 'बहू सच-सच बता, तेरे और दिनेश के बीच में ऐसा क्या हो गया। जो तुम दोनों साथ रहते हुए भी अनबोले से हो गए हो!"
"नहीं मां, ऐसा तो कुछ नहीं। आपका वहम है। बोलते तो है हम और वैसे भी अब हम कोई नए नए तो रहे नहीं जो 24 घंटे हंसी मजाक करते रहे। सब कुछ सही है ।"
"बहू मैंने दुनिया देखी है। माना अब बूढी हो गई हूं लेकिन तुम दोनों को बखूबी जानती हूं । एक दूसरे के बगैर ना रहने वाले आज कैसे साथ रहते हुए भी, अनजाने से बने हुए हो मेरी आंखों से छुपा नहीं है। हां तुम दोनों मुझे बताना नहीं चाहते वह अलग बात है । लेकिन ऐसे तो तुम दोनों को परेशान देख मैं चैन से ना जी सकती हूं, ना मर सकती हूं! तू अपनी सास को ऐसे ही तड़पता देखना चाहती है क्या!"

"नहीं मांजी मैं तो आपके बारे में ऐसा सपने में भी सोच नहीं सकती!"
"फिर बता ना ! क्या बात है! क्यों तुम दोनों के बीच यह चुप्पी की गहरी खाई खुद गई।"
अपनी सास के बार-बार जिद करने पर शिवानी ने उन्हें सारी बातें बता दी।
सुनकर शिवानी की सास बोली "बहू क्या तुम दोनों का रिश्ता शीशे का था क्या! जो किसी ने हल्का सा पत्थर मारा और वह चटक गया।"
"मैं समझी नहीं मांजी आप क्या कहना चाहती हो!"

"बहू पति पत्नी का रिश्ता तो आपसी प्रेम और विश्वास की नींव पर टिका एक अटूट बंधन होता है।
जो समय की आंधियों के साथ उसका सामना कर और मजबूत बनता है।
कहने का मतलब यह है कि किरण ने एक वीडियो दिखाया और तुमने उसे सच मान लिया। हो सकता है उस सच के पीछे कोई झूठ छिपा हो। गहरी साजिश हो।
तुमने उसे जिस नजर से देखा तुम्हें वही नजर आया लेकिन मैं भी एक ही बात कहूंगी , एक बार उस वाकये को दरकिनार कर कर ठंडे दिमाग से सोचो तो सही! क्या दिनेश ने कभी तुम्हारे साथ कोई दुर्व्यवहार किया। अभी तुम्हें उसके चाल चलन पर शक हुआ! तो फिर अचानक से वह इतना बड़ा कदम कैसे उठा सकता है! ऐसा मत समझना कि वह मेरा बेटा है इसलिए मैं उसकी तरफदारी कर रही हूं । "

"माजी अगर आपने अपनी आंखों से वह सब कुछ देखा होता तो आप क्या अपने पति को फिर से अपना लेती!"

"हां बहू । क्योंकि दूसरों से ज्यादा, मैं तेरे ससुर को जानती थी और ऐसे लांछन लगाने वालों को तो मैं उसी समय अपने घर से निकाल देती ना कि अपने ही रिश्ते में दरार लाती।"

"कहना आसान है मांजी लेकिन जिस पर बीतती है यह वही जान सकता है!"
"तो क्या तू कभी दिनेश को माफ नहीं करेगी।"

"पता नहीं मांजी! मांजी क्या आपको लगता है कि यह सब कर मैं खुश हूं। आपको नहीं पता जब से वह सब मैंने देखा है, मैं 1 दिन भी चैन से नहीं सो पाई। मन को जितना भी समझाने की कोशिश करती हूं, उतना ही उलझती जाती हूं।
तिल तिल कर के मर रही हूं मैं!"

"बहू भूल जा सारी बातों को! आगे बढ़ने की कोशिश कर। परिवार को मत बिखरने दे। मेरे बच्चे यूं तिल तिल कर के जल रहे हैं। यह देख कर क्या मैं चैन से रह पाऊंगी। अरे, जीना तो दूर, मैं तो मर भी नहीं पाऊंगी!"
"ऐसा मत कहो मांजी! आप परेशान ना हो इसलिए तो मैंने आज तक आपको कुछ नहीं बताया। आपके परिवार को बिखरने नहीं दूंगी ।आप निश्चिंत रहें।"
सुनकर दिनेश की मां की चेहरे पर शांति के भाव आ गए। वह शिवानी के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए बोली "बहू मुझे तुझ से यही आशा है। समय हर घाव को भर देता है। अपने मन से उन सारी बातों को निकाल दे। बहू किरण से तो मैं मिली हूं। मुझे तो वह समय व दुखों की मारी लगती थी। अरे तूने तो सदा उसका भला सोचा था। नही बहु नहीं!! वह ऐसी गिरी हुई हरकत नहीं कर सकती। मुझे भी लगता है, उसके बदमाश पति ने तुम लोगों से पैसे ऐंठने के लिए यह सब खेल रचा था।
हां, बहू मुझे विश्वास है मेरा बेटा कभी ऐसा गलत काम नहीं कर सकता। वह तेरे सिवा किसी के बारे में सोच भी नहीं सकता।
फिर भी तेरी यह बूढ़ी सास अपने अंतिम समय में तुझ से हाथ जोड़कर विनती करती है कि अगर तुझे लगता है कि उसने यह पाप किया है तो उसकी तरफ से मैं माफी मांगती हूं। उसे माफ कर दे बहु, उसे माफ कर दे!!! मेरे बेटे का साथ और अपना यह घर छोड़ कर कभी मत जाना।
बता मेरी अंतिम इच्छा पूरी करेगी ना!! बोल बहु बोल!!!!"

"मांजी आप मुझसे माफी मांग मुझे यूं पाप का भागी ना बनाएं। मुझे किसी से कोई गिला शिकवा नहीं। अरे आप तो मेरी मां से बढ़कर हो। ना मैं कहीं जा रही हूं और ना आपको कहीं जाने दूंगी। हम दोनों सदा साथ रहेंगे।" कहते हुए वह अपनी सास के गले लग कर रोने लगी।
"शांत हो जा बहु, शांत हो जा। मैं तो भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि हे प्रभु मेरे बच्चों को फिर से मिला दे। झूठ से पर्दा उठा प्रभु ।इस झूठ से पर्दा उठा! जिससे मैं उनके चेहरों पर फिर से मुस्कान देखूं। "
शाम को दिनेश के आने पर शिवानी ने उन्हें मां के साथ हुई सारी बातें बता दी।
"शिवानी यह तुमने सही नहीं किया तुम्हें तो पता है ना डॉक्टर ने मना किया था। उनको कोई भी ऐसी बात ना बताएं जिससे उसे सदमा लगे फिर भी!" दिनेश नाराज होते हुए बोला।
"मैं जानती हूं दिनेश लेकिन मैं क्या करती। मां ने मुझे बताने पर मजबूर कर दिया और मैं चाह कर भी उनसे अपना दुख साझा करने से नहीं रोक पाई ।" शिवानी अपनी आंखों में आए आंसुओं को पोंछते हुए बोली।
"शिवानी, इन बातों को साल भर गुजर गया। क्या तुम्हें अब भी विश्वास नहीं कि वह सब झूठ था!"
शिवानी दिनेश की बातों को अनसुना करते हुए बोली "दिनेश मां के सामने बता कर शायद मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई। मैं चाहती हूं जब तक मां है, हम उनके सामने पहले की तरह से ही मतलब तुम समझ रहे हो ना!!!!
मैं नहीं चाहती वह अपने दिल पर कोई बोझ रखें और यूं उदास रहे!"
दिनेश ने हां में सिर हिला दिया।
उस दिन के बाद दिनेश और शिवानी मां के सामने पहले की तरह ही रहने की कोशिश करते । उनके सामने खूब हंसते बोलते । जितना हो सकता पति-पत्नी की तरह सहज रहने की कोशिश करते।
अपने बेटा बहू को फिर से एक होता देख, दिनेश की मां के मन को बहुत ही सुकून मिल रहा था। वह मन ही मन परमात्मा का धन्यवाद करती कि उन्होंने उनके परिवार बिखरने से बच लिया। अब वह निश्चित हो इस दुनिया से विदा ले सकती थी। अपनी जिम्मेदारियां पूरी करने का संतोष अब उनके चेहरे पर झलकने लगा था।
क्रमशः
सरोज ✍️