वो शब्द जिसका बहुत ही बढ़िया विश्लेषण एक लोकप्रिय फ़िल्मी गीत में किया गया है । गीत के बोल हैं…' बचपन हर गम से बेगाना होता है …होता है ..इसीलिए तो खुशियों का खजाना होता है बचपन हर गम से ….......'
वाकई बचपन हर गम से बेगाना होता है ।
अभी कुछ ही दिन पहले मेरा दो वर्षीय पौत्र सार्थक घर में ही ड्राइंग रूम में खेल रहा था । जैसा कि सभी बच्चे करते हैं , अच्छे से अच्छे खिलौने को तोड़कर उसे भी असीम आनंद की अनुभूति होती है । गाड़ी के टायर को अलग करके चलाना या बिना टायर की गाड़ी घसीटना और न चलने पर उसे उठाकर घर से बाहर फेंक देना उसके प्रिय खेल हैं ।
इसमें उसका बड़ा भाई पाँच वर्षीय निर्भय उसका बखूबी मार्गदर्शन करते हुए बड़े प्रेम से बड़े भाई का फर्ज निभाता है ।
दोनों की पूरी कोशिश रहती है कि घर में कोई अच्छा खिलौना सलामत न रहे । कुछ टेडी बियर और फोम भरे गए गुड्डे गुडिया बचे हुए खिलौने हैं जो इन्हें बिलकुल पसंद नहीं हैं ।
हाँ तो बात हो रही थी एक दिन सार्थक घर में ही खेल रहा था । बहू किचन में कुछ काम कर रही थी । सार्थक के हाथ में एक बड़ा चम्मच था । वह चम्मच को जमीन पर पटक कर उत्पन्न ध्वनि का आनंद ले रहा था ।
इसी तरह खेलते खेलते अचानक ना जाने उसे क्या सूझी वह उठ खड़ा हुआ । हम लोग कुछ समझ पाते उसके पहले ही चम्मच उसके हाथों से निकल कर छनाक की ध्वनि करता हुआ सामने ही दीवार पर लगी प्लाज्मा स्क्रीन से जा टकराया ।
पल भर में 55 हजार रुपये की स्क्रीन को टूटते देख दुःख तो हुआ लेकिन अगले ही पल सार्थक की मासूम खिलखिलाहट ने हमें भी मुस्कराने पर मजबूर कर दिया ।
दुबारा ऐसी हरकत ना करे और उसे सही गलत का भान कराया जाना आवश्यक है सो उसे प्यार से करीब बुलाकर पूछा “देखो टी वी टूट गयी ना । क्यों तोड़े ? ”
जवाब था “ऐसे ही ”
उसकी लापरवाही भरे जवाब से गुस्सा तो बहुत आया लेकिन उसकी मासूमियत भरा अंदाज हँसने पर मजबूर कर गया । उसे समझाते हुए बोला, ” ऐसा नहीं करना चाहिए । टी वी तो टूट गयी अब क्या देखोगे ? ”
जवाब तो जैसे उसके मुँह में ही था अपनी थोड़ी तोतली भाषा में तुरंत बोला ” कार्टून ……टी वी में…..”
उसका मासूमियत भरा उत्तर सुनकर सभी खिलखिलाकर हँस पड़े और सार्थक सबको हँसता देख एक मिनट खड़ा रहा और फिर खेलने में व्यस्त हो गया ।
उसे कहाँ किसी बात की चिंता थी ? उसे तो बस किसी भी तरह खुश रहना था । जो मन को भाए वही करना था । इसीलिए तो उस गीत की पंक्तियाँ बचपन को रेखांकित करती कितनी सटीक लगती हैं ।
बचपन इंसानी छल कपट झूठ आडम्बर प्रपंच और नाना तरह की बुराइयों से कोसों दूर होता है ।
इसीलिए कहा जाता है बच्चों में भगवान बसते हैं ।
इंसानी जीवन और नदी में बहुत गहरी समानता है ।
नदी अपने शैशवकाल में झरने की शक्ल में निर्मल शीतल जलधारा लिए अपने अभिभावक पहाड़ों की गोद में स्वच्छंद अठखेलियाँ करती अपनी आगे की यात्रा जारी रखती है । इस समय तक झरने का पानी पूर्णतया निर्मल स्वच्छ होता है ।
पहाड़ों की गोद से निकल कर झरना मैदानी इलाके में प्रवेश करता है । मैदानी इलाके में आकर झरना नदी का रूप अख्तियार कर लेता है । कई अन्य दूषित नाले आकर नदी में मिल जाते हैं और उसके निर्मल स्वच्छ जल को प्रदूषित कर देते हैं ।
इसी प्रदूषित जल के साथ नदी कई पड़ावों को पार करती हुयी अंत में सागर में विलीन हो जाती है ।
इंसानी जीवनचक्र भी बिलकुल ऐसा ही है ।
निर्मल स्वच्छ जल लिए झरने के समान ही इंसानी जीवन भी बचपन से आगे बढ़ता है और छल कपट झूठ लोभ मोह रूपी नालों के संपर्क में आते ही प्रदूषित हो जाता है । इन्हीं सभी बुराइयों के साथ इंसान अपनी जीवनयात्रा पूरी करता है और पंचतत्व में विलीन हो जाता है वैसे ही जैसे नदी सागर में विलीन हो जाती है ।
इन बुराइयों से दूर बिरले ही देवत्व को प्राप्त होते हैं ।
बचपन चाहे कितना ही अभावों में बिता हो हर किसीको बचपन की यादें एक सुखद अनुभूति का अहसास करा देती हैं । इंसान अपने बचपन को फिर से एक बार जीना चाहता है । लेकिन गुजरा वक्त भी कभी लौटा है ?
वक्त तो नहीं लौटता लेकिन अपने पोतों की बालसुलभ हरकतें उनकी शरारतें उनकी आदतें जो काफी हद तक हमसे मेल खाती हैं देखकर हम थोड़ी देर के लिए अपने बचपन में पहुँच जाते हैं । उनके साथ बिताया हर पल सभी चिंता और तनावों से मुक्त आनंददायक होता है ।