After the execution - 20 - the last part in Hindi Detective stories by Ibne Safi books and stories PDF | फाँसी के बाद - 20 - अंतिम भाग

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फाँसी के बाद - 20 - अंतिम भाग

(20)

नौशेर मौन खड़ा रहा और रनधा उसकी ओर देखता रहा । फिर अचानक उसकी नज़रें उपर वाले रौशनदान की ओर उठ गईं । वह मुस्कुरा पड़ा । फिर कहने लगा ।

“तुम्हारी तस्वीर यहां की सरकारी फाइल में मौजूद है और तुम्हारे कारनामे भी । तुम करोड़ों रुपये हिन्दुस्तान से बाहर ले जा चुके हो । कर्नल विनोद को तुम्हारी तलाश थी । उसी तस्वीर के आधार पर तुम्हारा मेकअप मिस्टर रमेश के चेहरे पर किया गया था – और अब तुम्हारे सारे खेल ख़त्म हो चुके हैं न्यू मैन उर्फ़ मिस्टर नौशेर और तुम्हारे विरूद्ध सारे प्रमाण भी एकत्रित किये जा चुके हैं । पहला प्रमाण मैं ख़ुद हूं – रनधा – जिससे तुमने क़त्ल कराये – डाके डलवाए । ख़ुद अपने यहां भी डाका डलवाया ताकि तुम्हारे साथी तुम पर संदेह न कर सकें और तुम यह तो जानते ही थे कि वह दौलत भी तुम्हारे ही पास जायेगी । उस समय तक मैं यह नहीं जानता था कि एक ही आदमी के दो नाम हैं – न्यू मैन और नौशेर । मैं लूट की सारी रक़म यहीं तुम्हारे पास लाता था और तुम्हारे हवाले कर देता था और चला जाता था । मैं सोच भी नहीं सकता था कि तुम ही नौशेर भी हो और तुम ही न्यू मैन भी हो । मगर उस रात मैंने तुम्हारी असली सूरत देख ली थी जिस रात मैं वीना को लेकर तुम्हारे पास आया था ।”

“तो फिर उसी समय तुमने मेरे विरूद्ध विद्रोह क्यों नहीं किया था ?” – नौशेर ने हंसकर पूछा ।

“इसलिये नहीं किया था कि मुझे इस बात का विश्वास था कि तुम मेरे साथ गद्दारी नहीं करोगे । जब तुम मुझे यह बताया करते थे कि किसके पास कितनी दौलत है और कहां कहां रखी है तो मुझे आश्चर्य होता था कि तुमको इस प्रकार की सच्ची सूचनाएं किस प्रकार मिलती हैं । बाद में मुझे मालूम हुआ कि कुछ तो तुम अपने साथियों को ही घुमा फिराकर प्रश्न करके मालूम कर लेते थे । कुछ उनके घरों के नौकरों को रुपये देकर मालूम करते थे और कभी उन घरों की लड़कियों से पता लगाते थे और कुछ वीना तथा मादाम ज़ायरे से मालूम करते थे । वह अपनी कामपिपासा बुझाने के लिये बता दिया करती थी ।”

“बकवास बंद करो और यह बताओ कि तुम क्या चाहते हो ?” – नौशेर गरजा ।

“तुम समर्थन करते हो कि तुम्ही न्यू मैन हो ?” – रनधा ने पूछा ।

“हां ।”

“यह भी समर्थन करते हो कि इस तमाम अपराधों में तुम लिप्त थे ?”

“नहीं ।” – नौशेर या न्यू मैन गरजा – “तुम्हारा बयान मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता । मेरे विरूद्ध प्रमाण चाहिये और यह भी सुन लो कि तुम आज मेरी मुट्ठी में हो । विनोद ने तुम्हें फांसी से बचा लिया मगर मैं तुम्हें अवश्य फांसी दिलाऊंगा । मैं बड़ी सफाई से यह कह रहा हूं कि मैंने अपने विरूद्ध हर प्रमाण और हर गवाह को ख़त्म कर दिया – क्या साबित करोगे ?”

“यह एग्रिमेन्ट्स ।”

“इसमें गैरकानूनी बात क्या है ? क्या व्यवसाय करना जुर्म है ? क्या कर्ज़ लेना जुर्म है ?”

“और यह काला धन जिसका डिक्रेशन फार्म इन लोगों ने भरा है ?”

“इन्हें पुलिस गिरफ़्तार कर सकती है – मैंने तो नहीं भरा है । तुम मेरा जुर्म बताओ ?”

“तुम्हारा जुर्म... तुमने बूचा के भाई को क़त्ल किया । तुमने बमों के धमाके किये । तुमने निम्बाल्कर, रोहन और राबी को क़त्ल किया और सबसे बड़ा प्रमाण यह मादाम ज़ायरे है ।”

“अभी तुम बच्चे हो ।” – नौशेर ने अट्टहास लगाकर कहा – “राबी, रोहन, निम्बाल्कर और बूचा के भाई की हत्याओं का कोई निशान तुमको नहीं मिल सकता है और केवल तुम्हारे कहने से अदालत मुझे इनका कातिल नहीं मान सकती । रह गई यह मादाम ज़ायरे । तो इससे पूछो कि इसे यहां कौन लाया है –मैं ?”

“तुम्हारे दो आदमी राबी और रोहन इसे यहां लाये थे ।”

“और वह दोनों इसका समर्थन करने के लिये ज़िन्दा नहीं रहे ।” – नौशेर ने कहा । फिर भयंकर अट्टहास लगाता हुआ बोला – “अभी तुमने ख़ुद ही कहा कि मादाम ज़ायरे और वीना अपनी कामपिपासा बुझाने के लिये मुझे दूसरों के धन के बारे में बताती रहती थीं – इसलिये मैं सीना तान कर यह कह सकूँगा कि मादाम ज़ायरे एक ऐयाश औरत है । राबी और रोहन उसके आशना थे । उनसे पीछा छुड़ाने के लिये मादाम ज़ायरे ने उन्हें शराब में ज़हर दे दिया । अब बोलो ।”

“अब तो यही कहना है कि जब संसार की कोई अदालत तुम्हें सज़ा दे ही नहीं सकती तो फिर मैं ही तुम्हें क़त्ल कर दूं ।” – रनधा ने कहा ।

“न्यू मैन इसलिये पैदा नहीं हुआ कि तुम जैसे तुच्छ आदमी के हाथ से क़त्ल किया जाए ।” – उसने फुफकार कर कहा – “मेरी मौत जब भी होगी मेरे ही हाथ से होगी । इस दावे के बाद अब कुछ छिपाने ने कोई लाभ नहीं । सुनो, पहले तो मैं निकल जाने ही की कोशिश करूँगा – और यदि इस प्रयास में सफल न हो सका तो फिर केवल मैं ही नहीं मरूँगा बल्कि इस कमरे में जितने लोग हैं वह सब मर जायेंगे । मेरी जेब में एक अत्यंत शक्तिशाली बम है, समझे मेरे दोस्त !”

सीमा और रमेश चुपके से बाहर निकल गये । किसी ने उस पर ध्यान भी नहीं दिया क्योंकि सब लोग तो रनधा और न्यू मैन की बातें सुनने में लीन थे ।

“हां मिस्टर रनधा उर्फ कर्नल विनोद के मित्र तथा हिंदुस्तानी पुलिस के वफादार ! बोलो – क्या कहते हो – कोई प्रमाण है मेरे विरूद्ध ?” – न्यू मैन ने हंसी उड़ाने वाले भाव में कहा – “हो सकता है कि यहां कहीं तुम्हारा टेप रेकार्डर भी हो और उसमें मेरी कही हुई बातें टेप भी हो रही हों मगर मुझे इसकी चिंता नहीं – मैं एक बार फिर सारे अपराधों का समर्थन करता हूं – मगर तुम प्रमाण क्या दोगे ?”

रनधा कुछ नहीं बोला ।

“तुम्हारी खामोशी यह साबित कर रही है कि तुम विवश हो ।” – न्यू मैन ने कहा “इसलिये अच्छा यही होगा कि तुम सब यहाँ से चले जाओ और मुझे भी चला जाने दो वर्ना जो कुछ होगा वह न मेरे लिये अच्छा होगा और न तुम लोगों के लिये ।”

“वीना कहां है ?” – प्रकाश बोल उठा ।

“अच्छा रनधा ।” – न्यू मैन ने कहा जो अब भी नौ शेर हु के मेकअप में था “वीना भी तुम्हारे हवाले कर दी जाएगी ।”

“उसे कैसे हवाले करोगे दोस्त ।” – रमेश ने अंदर दाखिल होए हुये कहा “वह तो तुम्हारे विरुध्ध सबसे बड़ा प्रमाण है – और वीना यहीं है ।”

“वह मारा !” रनधा ने चहक कर कहा “हां दोस्त मिस्टर न्यू मैन ! बोलो अब क्या कहते हो । वीना के साथ साथ ही साथ यहां करोडो की मौजूदगी तुम्हारे हर अपराध को साबित कर देगी । अब वह जुर्म तुम नहीं कर सकोगे जो करने जा रहे थे । इसके अतिरिक्त एक अच्छा काम यह भी हो गया कि इन शरीफ आदमियों ने अपनी छिपी हुई दौलत प्रकट कर दी । अब तुम जानो और पुलिस जाने मैं तो चला । मैं केवल वीना को लेने के लिये आया था ।”

“तुम या इनमें से कोई भी यहाँ से जिन्दा न जा सकेगा ।” – न्यू मैन ने फुफकार भरी आवाज में कहा “यहां से केवल मैं जिन्दा जाउँगा ।”

“यार मिस्टर नौ शेर ।” – सुहराब जी ने कहा “तुम बड़े खतरनाक आदमी हो । कैप्टन हमीद ने कहा था कि हममें से ही कोई मुजरिम है ओउर उनकी बात सच साबित हुई । एक ओर तो तुम हमारी कम्पनी के सेक्रेटरी बन कर हमारे रुपये हड़प कर लेना चाहते थे और दूसरी ओर हमारे भेद मालूम करके हमारे यहां डाका भी डलवाते रहे थे ।”

“यह दुनिया है मिस्टर सुहराब ! यहां सब चलता है ।” – न्यू मैन ने कहा “मुझे इस सच्चाई को मानने मैं तनिक भी संकोच नहीं है कि मैं जो दुहरी चाल चल रहा था उसमें असफल रहा और यह सच्चाई भी प्रकट हो गई कि मै नौ शेर नहीं बल्कि न्यू मैन हूँ – अच्छा अब मैं जा रहा हूँ – शुभ रात्रि ।”

“ठहरो – एक बात बताते जाओ ।” – सुहराब जी ने कहा “कल रात हम लोगों को कौन ले गया था ?”

“कर्नल विनोद का कोई आदमी ।”

“तो क्या कर्नल विनोद लंदन में नहीं है ?”

“है तो लंदन ही में मगर यहाँ की सारी बातें उस तक पहुँच रही थीं और वह वहीँ से अपने आदमियों को आदेश देता रहा था ।” – न्यू मैन ने कहा “बहरहाल विनोद के आने से पहले ही मैं यह देश छोड़ चुका हूँगा – और यदि उसे लंदन से मेरे विरुध्ध प्रमाण मिल भी गये है तो वह मेरा कुछ न बिगाड़ सकेगा ।”

बात समाप्त करके जैसे ही न्यू मैन ने आगे बढ़ना चाहा रमेश ने गरज कर कहा ।

“अपने हाथ ऊपर उठा लो मिस्टर न्यू मैन !”

“अरे ! अब मुर्दे भी बोलने लगे ।” – न्यू मैन ने हंस कर कहा “कर्नल विनोद ने लाशों का अच्छा कारोबार किया ! अगर तुम्हें मुर्दा न मशहूर किया गया होता तो मैंने तुमको अवश्य क़त्ल कर दिया होता ।”

“मुझे इस बात की ख़ुशी है कि तुम जैसा अंतर्राष्ट्रीय अपराधी भी कर्नल विनोद की प्रसंशा कर रहा है ।” – रमेश ने मुस्कुराकर कहा फिर गरज उठा “अपने हाथ ऊपर उठा दो ।”

“अच्छा सरकार !” – न्यू मैन ने मुस्कुराते हुये कहा और फिर अपने दोनों हाथ ऊपर उठा दिये मगर उसी समय कोई वस्तु टप से फर्श पर गिरी ।

हमीद ने ब्लैकी की ओर देखा और रोश्न्दान में अपने पैर डाले । उसी समय एक धमाका हुआ और पूरा कमरा धुयें से भर गया मगर इतनी देर में हमीद नीचे कूद चुका था और भागते हुये न्यू मैन की कमर पीछे से पकड़ ली थी ।

न्यू मैन हमीद के बंधन से मुक्ति होने के लिये कोशिश कर रहा था । कमरे में घुटन भी थी और चीखें भी गूंज रही थीं । बाहर जीपों की घरघराहट सुनाई दे रही थी । आखिर न्यू मैन अपने प्रयास में सफल हो ही गया । हमीद के बंधन से निकल कर भगा । हमीद उसके पीछे दौड़ा फिर उसने न्यू मैन को गिरते देखा । उसने छलाँग लगा कर न्यू मैन को दबोच लिया और उसके मुख पर घूंसे बरसाने लगा । उसी समय उसने बूटों की खडखड़ाहट सुनी । वह समझ गया कि डी. आई. जी. पुलिस फ़ोर्स के साथ आ पहुँचा इसलिये पूरी शक्ति लगा कर चीखा ।

“हथकड़ियाँ ।”

इसी के साथ न्यू मैन ने उसे उलट दिया । हमीद ने समझा कि वह उसके नीचे से सरक के निकल भागा मगर दुसरे ही क्षण न्यू मैन फिर उसके बंधन में आ गया और वह यह न समझ सका कि इस बार न्यू मैन किस प्रकार उसके बंधन में आया । बहर हाल वह उसके चेहरे पर फिर घूंसे बरसाने लगा और जब न्यू मैन ने हाथ पाँव डाल दिये तो वह उठ कर खड़ा हो गया – अब उसके हाथ में हथकड़ियों का जोड़ा था – किसने दिया था ? इसका ज्ञान उसे नहीं था । उसने न्यू मैन के हाथों में हथकड़ियाँ डालीं और लडखडाता हुआ दरवाज़े की ओर बढ़ा । आंखों में मिर्चे भर गई थीं । सिर चकरा रहा था । किसी प्रकार कमरे से बहार निकला तो सबसे पहले डी. आई. जी. पर नजर पड़ी और वह रुक रुक कर कहने लगा ।

“सर ! – वीना इसी इमारत में कही है......और तलाशी लेने पर......वह रुपये भी मिल जायेंगे....जो रनधा द्वारा लूटे.....गये थे.....और......और ।”

वह बात पूरी किये बिना चकरा कर गिर पड़ा और चेतना गंवा बैठा ।

*******

सवेरे जब हमीद की आँख  खुली तो दिन निकल आया था । उसने अपने सामने डी. आई. जी. को खड़ा पाया । वह जल्दी से पलंग से नीचे उतर गया और स्लूट किया ।

“मैं तुमसे बहुत खुश हूँ हमीद ।” – डी. आई. जी. ने मुस्कुराते हुये कहा “रात तुम बेहोश हो गये थे इसलिये मैं तुम्हें अपने बंगले पर उठा लाया था ।”

“शुक्रिया सर – नौ शेर अर्थात न्यू मैन का क्या हुआ ?” – हमीद ने पूछा ।

“उसने आत्म हत्या कर ली । साधारण से लापरवाही के कारण मामिला बिगड़ गया मगर अच्छा ही हुआ । जिन्दा रहता तो अदालत तक दौड़ धूप करने की परेशानी उठानी पड़ती । उसका मेस अप हटा कर देखा गया । वह सचमुच न्यू मैन ही था ।”

“रमेश ?” – हमीद ने पूछा ।

“वह तथा तमाम लोग सकुशल अपने अपने घर पहुँच गये है । वीना प्रकाश के हवाले कर दी गई है । तलाशी ली गई थी और वीना की निशान दही पर करोड़ो रुपयों की करन्सी बरामद हुई थी । इस संबंध में एक महत्व पूर्ण बात यह भी हुई थी कि इस नगर के पूँजी पतियों ने अपना काला धन प्रकट कर दिया ।”

“रनधा कहाँ है ?” – हमीद ने पूछा ।

“उसे तो फाँसी हो गई ।”

“मगर सर !” – हमीद ने आश्चर्य से कहा “रात वह भी वहाँ मौजूद था । मैंने उसे अपनी आँखों से देखा था ।”

“तुम्हें भ्रम हुआ होगा ।”

इसके बाद हमीद अपनी कोठी पर आ गया और चार बजे तक सिर खपाता रहा । सुहराब से लेकर प्रकाश तक सबने वहां रनधा की उपस्थिति का समर्थन किया मगर सीमा – रमेश तथा लाल जी ने इन्कार किया । ब्लैकी का भी कहीं पता नहीं था ।

संध्या की हवाई जहाज से विनोद आया । उसने पहले हमीद को लिष्टाया फिर उसकी सफलता पर बधाई देता हुआ बोला ।

“मुझे सब कुछ मालूम हो चुका है ।”

“मगर रनधा ?” – हमीद ने पूछा ।

“उसे भूल जाओ – उसे फाँसी हो चुकी है ।”

“आप लंदन ही से आ रहे है ना ?” – हमीद ने मूर्खो के समान पूछा ।

“हाँ भाई !” – विनोद ने हंसते हुये कहा ।

मगर हमीद सोच रहा था कि विनोद ने गलत कहा था । वह ख़ुद लंदन नहो गया था बल्कि अपनी ब्लैक फ़ोर्स के किसी आदमी को भेज दिया था और ख़ुद यहीं रहा – विभिन्न रूपों में – हर स्थान पर – वर्ना किसी में इतना साहस नहीं हो सकता था कि वह विनोद की कोठी से उस प्रकार उसका अपहरण करता ।

 

।। समाप्त ।।