Kaisa ye ishq hai - 58 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 58)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 58)

अर्पिता शान के घर से निकल आती है और एक दिशा पकड़ यूँ ही चलती जाती है उसके लिए तो वो शहर ही अजनबी है।किस राह जा रही है कहां जायेगी उसे कुछ नही पता।हाथ में सिर्फ एक मोबाइल के अलावा कुछ नही है।उसकी हालत उस राहगीर की तरह है जिसकी न मंजिल का कोई ठिकाना है और न रास्ते का ही पता।वो बहुत दुखी है।सड़क पर सबकी नजरो में होने के कारण वो जैसे तैसे अपने आंसुओ को रोके हुए है।क्योंकि यहां आंसुओ को देख हमदर्दी जताने वाली निगाहे बहुत मिल जाएंगी लेकिन उनकी ये हमदर्दी बिन किसी स्वार्थ के नही होगी।

थोड़ी देर चलने पर रास्ते में उसे एक छोटा सा पार्क दिखता है जिसमे कुछ बेंचे पड़ी हुई है।अर्पिता उसी तरफ बढ़ जाती है और जाकर एक बेंच पर बैठ जाती है।मोबाइल में समय देख वो अपना फोन स्विच ऑफ कर देती है और मन ही मन कहती है शान, हमे माफ कर दीजियेगा,हम आपको बिन बताये सबसे दूर जा रहे हैं।हमे जाना ही होगा क्योंकि हमारे पास अब कोई वजह भी नही बची है।हमारे पेरेंट्स का भी पता नही है कहां है वो कैसे है, हम इतने बड़े आरोप के बाद उनका सामना करेंगे भी तो कैसे शान?हमारी कोई गलती नही होने के बाद भी आज हमने वो शब्द सुना शान जिस को सुनकर एक लड़की हजार मौत मरती है।हमने कहा था आपसे कि हम आपको छोड़ कर कभी नही जाएंगे, लेकिन हमारी किस्मत देखो शान उस बात को कहे अभी चौबीस घण्टे भी नही गुजरे और हमे आपसे दूर जाना पड़ा।

शान छाया को रिसीव करने के लिए अपने बड़े पापा यानी ताऊजी की गाड़ी लेने घर आते है।घर में कदम रखते ही उन्हें एक अजब एहसास होता है और जेहन में तुरंत एक ही ख्याल आता है, "मुझे ऐसा लग रहा है अर्पिता तुम यहां नही हो"? ये ख्याल आते ही वो बैचेनी से चारो ओर देखते है अर्पिता उसे कहीं नजर नही आती है।शोभा और कमला दोनो प्रशांत को चारो ओर अर्पिता को खोजते हुए देख लेती है।जिसे देख शोभा कहती है :- लगता है प्रशांत अर्पिता को ही ढूंढ रहा है अब हम उससे क्या कहेंगी वो अचानक कहां गयी?

हम क्यों कुछ कहे उससे,उसने कुछ पूछा तो मैं तो सीधे उससे बोलूंगी, जाकर अपनी मां से ही पूछे।न जाने वो बच्ची इतनी सर्द मौसम में कहां होगी, और हमारी मजबूरी देखो हम में से कोई यहां से जा भी नही सकता सारे गेस्ट आ चुके है उनको भी देखना है।कुछ देर बाद सभी बारात निकालने के लिए हो हल्ला करने लगेंगे। कमला ने गुस्साते हुए कहा।प्रशांत को देख शीला रिश्तेदारों के बीच से उठ कर उसके पास आती है लेकिन प्रशांत तब तक अर्पिता के कमरे की ओर निकल जाते है।अर्पिता के कमरे के पास जाकर वो दरवाजा नॉक करते है।लेकिन जब दरवाजा नही खुलता तो वो खुद ही दरवाजा खोल कर अंदर चले जाते है।चारो ओर देख शान कहते है अर्पिता तुम यहां भी नही हो।कहां हो तुम अप्पू न जाने क्यों मुझे तुम्हारे यहां न होने का एहसास हो रहा है।एक बार छत पर और देख आता हूँ शायद वही हो तुम मन में कहते हुए शान तुरंत छत पर जाते है लेकिन वहां धूप लेते हुए गेस्ट के अलावा कोई नही दिखता।वो अपना फोन निकाल अर्पिता को कॉल करते है लेकिन अब उसका फोन भी स्विच ऑफ आने लगता है।

अप्पू, अब मुझे पक्का यकीन हो गया है तुम यहां नही हो।मेरे जाने के बाद कुछ तो ऐसा हुआ है जो तुम मुझे बिन बताये चली गयी।कहां हो तुम अप्पू?कहां हो तुम?शोभा ताईजी वही बता सकती है सोचते हुए शान हड़बड़ा कर नीचे उतरते है जहां श्रुति उसे देख लेती है वो फौरन प्रशांत के पास आकर कहती है, भाई अर्पिता के मां पापा अर्पिता को मिल गये, कैसे है वो आप मिले उनसे?

श्रुति की बात सुन शान शॉक्ड हो गये क्योंकि अर्पिता के मां पापा कहां है ये बात सिर्फ उन्हें पता है और ये अर्पिता को पता कैसे चला,मतलब वो झूठ बोल कर यहां से चली गयी है जरूर कुछ तो कहा है मां ने उसे?

भाई बताओ न कैसे है उसके मां पापा?श्रुति ने दोबारा पूछा।वो ठीक है श्रुति लेकिन ये बताओ अर्पिता ने कुछ बताया कहां मिलने जा रही है वो अपने पेरेंट्स से?
भाई वो वहां खंभे के पास खड़ी थी थोड़ी परेशान लग रही थी। मैं पानी पी रही थी वो मुड़ी और मुझसे टकराई और बोली सॉरी श्रुति हमे जाना होगा हमारे मां पापा का पता चल गया है हम उनसे ही मिलने जा रहे हैं वो वहां है ठाकुर जी के पास।बस इतना ही कहा उसने और यहां से चली गयी।

श्रुति की बात सुन शान एक दम से कहते है नही अप्पू,तुम ऐसा नही कर सकती हो।श्रुति तुम यहां देखो और इस बारे में किसी से कुछ नही कहना मैं अर्पिता के पास जा रहा हूँ ठीक है और हां बारात निकलने से पहले ही मैं यहां आ जाऊंगा।छाया को लेने स्टेशन जाना है ये बात तो शान भूल ही जाते है और वो गाड़ी लेकर घर से बाहर निकल जाते है।

प्रेम जो घर होते है उनका फोन रिंग होता है जो छाया का होता है।
प्रेम जी फोन उठाते हैं, "हेल्लो छाया, कहां पहुंची हो प्रशांत यहां से निकल गया है कुछ ही देर में पहुंचने वाला होगा"?

प्रेम भाई मैं यहां स्टेशन पहुंचने ही वाली हूँ,वो प्रशांत भाई मेरा फोन ही नही उठा रहे है तभी तो आपको पूछा।छाया बोली।

"अच्छा!शायद उसका फोन साइलेंट मोड़ पर होगा तुम पहुंचो,मैं उससे बात करता हूँ" ठीक है प्रेम जी ने कहा और फोन कट कर प्रशांत को लगाते है।

प्रशांत फोन उठा कर कहते है :- हां भाई कहिये?

फोन उठा हुआ देख प्रेम जी बोले :-क्या हुआ प्रशांत कहां हो तुम स्टेशन पहुंच गये कि नही छाया बस पहुंचने ही वाली है।

छाया!सॉरी भाई,लेकिन मैं अभी नही जा सकता प्लीज आप उसे रिसीव कर लीजिये जाकर!शान ने कहा जिसे सुन प्रेम जी बोले,"क्या हुआ प्रशांत परेशान हो कोई बात है क्या मुझे बताओ"?

भाई, बात ही तो हुई है मेरी पगली घर छोड़ कर कहीं चली गयी है।इससे पहले कि बहुत देर हो जाये मुझे उसे ढूंढना है।शान ने ये शब्द कहे और कॉल कट कर दिया।।

प्रशांत की बात सुन प्रेम जी चौंकते हुए बोले अर्पिता तो यहीं थी न ..वो कहां गयी भला।नही मैंने तो कल से उसे नही देखा है मतलब प्रशांत ठीक कह रहा है वो घर नही है जरूर घर में कुछ तो हुआ है मुझे मां से बात करनी होगी लेकिन छाया,सुमित भाई को भेजता हूँ वो उसे रिसीव कर लाएंगे सोचते हुए वो राधु से बोले, "राधु तुम यही बैठो मैं एक बार मां से बात कर लूं कोई कमी तो नही रह गयी कुछ चाहिए तो नही उन्हें ठीक है,और जब तक मैं वापस न आऊं यहां से कहीं नही जाना।

जी प्रेम जी राधु ने कहा तो प्रेम सुमित को फोन कर छाया को लाने के लिए कहते है और स्वयं शोभा के पास गये और उससे बोले," मां मुझे आपसे कुछ बात करनी है"?

शोभा :- हां बोलो प्रेम।
प्रेम :- मां यहां नही मेरे कमरे में चलिये क्योंकि अभी बस वही खाली है।

ठीक है प्रेम चलो शोभा ने कहा और कमला जी की ओर देख आने का इशारा कर वहां से प्रेम के साथ चली जाती है।

प्रेम (दरवाजा बंद करते हुए शोभा से बोले) - मां घर में कोई बात हुई है क्या,अर्पिता से किसी ने कुछ कहा है क्या?

हां शीला ने उससे कुछ जरूर कहा है जिससे वो यहां से चली गयी है और गेस्ट की वजह से हम लोग उसके पीछे भी नही जा पाये।क्या हुआ प्रेम मुझे ऐसा क्यों लग रहा है जैसे तुम आगे भी कुछ बोलना चाह रहे हो।

मां,वो चली गयी और आपने उसे जाने भी दिया,उसका सारा समान यहीं रखा है अंजान शहर है ये उसके लिए कहां जायेगी वो सोचा आपने।प्रशांत बोल रहा था कि वो घर से कुछ परेशान होकर निकली है।उसकी बात भी सही है जब वो यहां शादी अटैंड करने आई है और ये तो उसकी कजिन की भी शादी है तो ऐसे में वो यहां से क्यों जायेगी,उस पर ये बिल्कुल अंजान शहर।
प्रेम की बात सुन शोभा शॉक्ड हो वहीं बैठ जाती है और कहती है सच में प्रेम मुझसे बड़ी गलती हो गयी।शादी का घर है कोई इतना गौर नही करेगा कि मै यहां हूँ या नही मैं रोक सकती थी उसके पीछे जा सकती थी लेकिन अर्पिता,वो परेशानी में घर से गयी है जो ठीक नही हुआ अब एक कार्य करो तुम अपने बड़े पापा की गाड़ी निकालो और चलो मेरे साथ। राधिका से इतना कहना कि तुम मेरे साथ मार्केट जा रहे हो सच बता दिया तो बेकार में परेशान होगी जो अब उसके लिए ठीक नही।ठीक है प्रेम, मैं जीजी से बोल कर बाहर मिलती हूँ शोभा ने कहा और वो वहां से बाहर कमला के पास जाकर उसे कुछ देर में आने का बोलकर घर के बाहर खड़ी गाड़ी में प्रेम जी के पास बैठ जाती है।प्रेम जी भी गाड़ी अपने शहर की सड़को पर दौड़ा देते हैं।

वहीं अर्पिता कुछ देर बाद उठती है और वहां से खाली रास्ते पर चलती जाती है।कुछ ही देर में चलते हुए वो नदी के किनारे पहुंच जाती है वहां एकांत देख कुछ देर वहीं बैठ जाती है और अब तक रोके हुए आंसुओ को बहने देती है।

शान उसे पूरे शहर में ढूंढ रहे है और मन ही मन कह रहे हैं अप्पू,तुम बस थोड़ी सी पगली ही अच्छी हो।बस ज्यादा पगली मत बन जाना और अपने साथ कुछ गलत मत करना प्लीज,एक बार मिल तो जाओ फिर जो भी समस्या होगी हम मिलकर सुलझा लेंगे।

न जाने कहां हो कहां ढूँढू मैं तुम्हे अप्पू।कैसे पहुँचूँ तुम तक।हर बार तो कोई न कोई क्लू मिल जाता था लेकिन इस बार तुम तक कैसे पहुँचूँ।हे ठाकुर जी अब आप ही कोई रास्ता दिखाओ मुझे, न जाने कहां है वो!कहते हुए शान चारो ओर देखने लगते है।वहीं नदी में बहते पानी को देख अर्पिता का मन जब शांत हो जाता है तब वो स्थिर हो कहती है,हम ये तो नही कर सकते आत्महत्या करना सबसे बड़ा अपराध है हम ये नही कर सकते उस पर ठाकुर जी के भक्त।ये तो हम पूरी तरह से गलत करने जा रहे थे।प्रेम में संयोग है तो वियोग भी है,हमने सही कहा था शान से अर्पिता सांसे छोड़ सकती है लेकिन शान को नही।तो हम खुद को वहीं तो छोड़ कर आये है शान के पास।अब बचा ये बेजान शरीर जिसका ध्यान हमे औपचारिकता पूर्ण करने के लिए रखना है।निर्णय कर अर्पिता उठती है और वहां से पैदल ही पीछे लौट जाती है और स्टेशन का रास्ता पूछते हुए स्टेशन की ओर चल देती है एवं कुछ ही देर में पैदल चलते हुए स्टेशन पहुंच जाती है और वहां प्लेटफॉर्म पर बैठ ट्रेन के आने का इंतजार करने लगती है।

वहीं दूसरी बेंच पर बैठे हुए सुमित छाया की ट्रेन के आने का इंतजार कर रहे हैं।वो आदतन अपनी गर्दन इधर उधर घुमा कर देखते है तो अर्पिता को स्टेशन पर बैठे देख हैरान हो मन ही मन कहते है ये कुछ दूरी पर अर्पिता जैसी लग रही है। अर्पिता यहां क्या कर रही है ये तो घर पर थी न।मैं एक बार पहले पता कर लेता हूँ सोचते हुए वो प्रेम को कॉल लगाते है और कहते है, "प्रेम तुम घर पर हो जरा देखना अर्पिता वहीं है क्या,क्योंकि यहां स्टेशन पर अर्पिता जैसी ही कोई बैठी हुई है"

प्रेम अर्पिता वहां ये जान एक राहत की सांस लेते है सुमित से कहते है :- भाई अभी तक आप वहीं हो एक घण्टा हो गया आपको निकले हुए?

सुमित :- अब ट्रेन यहीं पास ही में कुछ किलोमीटर दूर रुकी है जब वो आयेगी तभी तो मैं छाया को लेकर घर आऊंगा।

भाई मैं स्टेशन से कुछ ही दूर हूँ आप घर निकल जाओ अब मैं यहीं हूँ तो छाया के आने का कुछ देर इंतजार कर लेता हूँ प्रेम ने कहा तो सुमित बोले थैंक्स यार!वैसे भी मैं बोर हो रहा था यहां।ये शायद अर्पिता नही है अर्पिता जैसी ही कोई है।सुमित वहां से निकल जाते है।वहीं फोन कट होने पर प्रेम प्रशांत को फोन कर बोलते है," प्रशांत अर्पिता रेलवे स्टेशन पर है" वहां पहुंचो हम लोग वहीं पास ही है दो मिनट में पहुंच रहे है।

थैंक्स भाई, मैं बस पांच मिनट में पहुंच रहा हूँ कहते हुए प्रशांत फोन रख एक राहत की सांस लेते हुए ठाकुर जी का धन्यवाद करते हुए कहते है, धन्यवाद ठाकुर जी मेरी पगली का ध्यान रखने के लिए आपकी कृपा से उस ने पागलपन नही किया।नही मैं तो एक पल को डर ही गया था कही उसे खो न दूँ।

अपनी आंखों के आंसुओ को पोंछ शान गाड़ी बांदा स्टेशन की ओर मोड़ लेते हैं।

प्रेम और शोभा वहां पहुंच जाते है और अर्पिता को बेंच पर बैठे देखते है।शोभा उसके पास गयी और उसके सर पर हाथ रख कर बोली, अर्पिता?

अपना नाम सुन कर अर्पिता ने आवाज की ओर देखा,सामने शोभा को देख खड़े होकर बोली 'आंटी जी आप यहां '!

शोभा ने बड़े ही प्यार से अर्पिता के सर पर हाथ रखा और बोली :-हां, मैं यहां,लेकिन तुम कहां जा रही हो अर्पिता अभी बारात निकलना बाकी है फिर तुम्हारी बहन की भी तो शादी है।

शोभा का स्नेह एवं प्रेम देख कर उसकी आंखों से आंसू फिर बहने लगते है जिन्हें उसने बड़े ही जतन से बहने से रोक रखा था।

अर्पिता को यूँ रोया देख कर शोभा बोली, क्या बात है अर्पिता?ऐसे क्यों रो रही हो शीला ने कुछ कड़वी बात कह दी?

शीला नाम सुनते ही अर्पिता एक दम चुप हो सोच में पड़ गयी और बोली :- नही! आंटी जी बहुत अच्छी है उन्होंने हमसे कुछ नही कहा।अच्छे लोगों का स्वभाव तो होता है वो स्वयम दुसरो के ताने,दूसरो के द्वारा दिया हुआ दर्द सह लेते है लेकिन अपनी अच्छाई नही छोड़ते।

अर्पिता की बात सुन शोभा बोली, मां से भी झूठ बोलोगी,जब प्रशांत मुझसे अपने मन की सारी बातें शेयर करता है तो तुम क्यों नही अर्पिता!पता है उसने मुझे तुम्हारे बारे में सबसे पहले बताया था कि जीवन पथ पर तुम वो लड़की हो जिसने उसे पहली बार अपनी ओर आकर्षित किया है।फिर भला मैं तुम्हे कैसे यहां से जाने दे सकती हूँ बताओ क्या बात है अर्पिता?

शोभा की बात सुन कर अर्पिता फूट फूट कर रोते हुए शोभा के गले लग गयी और बोली, आंटी जी हमने कभी कुछ गलत नही किया है,कोई गलत कार्य नही किया है न ही शान के साथ और न ही किसी और के साथ।वो तो कल हालात ऐसे हो गये थे कि हमे वहां रुकना पड़ा।

वही शान भी गाड़ी रोककर अर्पिता को देखते हुए प्लेटफॉर्म पर आ जाते हैं और अर्पिता के पीछे खड़े होकर उसकी बातें सुनने लगते हैं।प्रेम उसे देख कुछ कहने ही वाले होते है कि तभी प्रशांत उसे चुप रहने का इशारा कर देते हैं।

अर्पिता आगे बोली, आंटी जी, कल रात को शान ने भांग वाले लड्डू खा लिए थे एक नही तीन तीन!और फिर ये नशे में एक मासूम बच्चे की तरह बाते करने लगे।बाते करते करते ही इन्होंने कंधे पर सर रखा और फिर नींद में लुढ़क कर गोद में सर रख सो गये।कल पूरे दिन कार्य किया था जिस कारण थकान और नशे की वजह से शान को गहरी नींद आ गयी नींद में खलल न पड़े इसीलिए चाह कर भी हम उठ नही पाये।दिसम्बर का महीना है सर्दी तेज पड़ रही है तो कहीं सर्दी न लग जाये ये सोचकर हमने बस शॉल ओढा दी।और फिर हमारी भी आंख लग गयी।हमने कभी कुछ गलत नही किया आंटी जी।और न ही हम शान के साथ पैसो की वजह से है।
अर्पिता आगे कुछ बोल नही पाई।कुछ क्षण बाद शोभा बोली, 'शीला ने कहा और तुम अपने प्रेम को छोड़ कर चल दी' क्यो अर्पिता? बस इतना ही प्रेम करती हो प्रशांत से, किसी ने तुमसे दो बातें कह दी और तुम सब छोड़ कर चल दी?

आंटी जी शान के लिए ही तो हम वहां से चले आये?बात हमारी होती हम कभी नही आते, बात तो प्रेम की थी उसकी पवित्रता की थी,रिश्तो में विश्वास की थी,जिस तरह आप शान पर भरोसा करती है उस तरह एक मां क्यों नही?और हमारे कारण एक मां बेटे के बीच में प्रॉबलम्स आये ये हम कैसे होने देते।हम जानते है, शान से अगर हम उनसे ये कहते तो वो अपनी मां से कुछ भी कहने में समय नही लगाते जो किसी के लिए ठीक नही होता।और फिर प्रेम तो हम उनसे ही करते है इसके लिए दूर रहे या पास इससे क्या फर्क पड़ता है।वैसे भी अब हम सदा तो साथ नही रह सकते किस नाते से रहेंगे, आज नही तो कल हमे उनके जीवन से जाना ही होगा।।

सही कहता है प्रशांत तुम्हे उसकी पगली!प्रेम जी बोले।माना कि चाची ने बहुत गलत किया है तो इसका मतलब तुम सबकुछ ठीक करने का प्रयास करते हुए चली जाओगी।कैसा ये इश्क़ है अर्पिता ...?
जिसकी खुशियो के लिए दूर जा रही हो उसी को रुला रही हो अपने पीछे देखो..!तुम्हारे जाने की खबर सुनकर ही वो पिछले एक घण्टे से बिन कुछ और सोचे इन गलियो में तुम्हे ढूंढते हुए भटक रहा है।और तुम सब ठीक करने के लिए उससे दूर ही चली हो।चाची ने जो भी कहा उसे भूल कर ये तो सोचो मां,और ताईजी ने तुमसे कुछ नही कहा,बल्कि उन्होंने तुम और प्रशांत दोनो पर विश्वास किया, साथ में तो वो भी थी न।दोनो मिलकर अर्पिता को समझाते हैं और अर्पिता पीछे मुड़ कर शान को देखने लगती है।

शान ने कुछ सोचा और उसके पास आये और उसका हाथ पकड़ कर उसे गाड़ी की ओर लेकर चले गये।शोभा ने ये देखा तो प्रेम से बोली, बेटे तुम छाया को रिसीव कर घर पहुंचो इस समस्या का एक ही समाधान हो सकता है मैं वो निकाल कर फिर घर पहुंचती हूँ और हां ध्यान रखना सबसे यही कहना कि मैं मार्केट में किसी कार्य से रुक गयी हूँ ठीक कहते हुए शोभा जी अर्पिता और शान के पीछे चली आती है।आते हुए वो नृपेंद्र जी को फोन करती है और घर से कुछ समान साथ लेकर आने के लिए कहती हैं।

शान अर्पिता को गाड़ी तक ले जाते है और पीछे का दरवाजा खोल कर सख्त आवाज में उससे कहते है,बैठो अर्पिता!
शान,लेकिन हमे तो... अर्पिता ने कुछ कहने की कोशिश की तो शान ने गुस्से में अर्पिता की ओर देखा आगे बढ़े और उसे खुद ही गाड़ी में बैठा दिया और खुद ड्राइविंग सीट पर जाकर बैठ गये।शोभा आकर आगे ड्राइविंग सीट पर प्रशांत के पास बैठ जाती है। प्रशांत गाड़ी ड्राइव करते हुए ठाकुर जी मंदिर के सामने जाकर रोको वहीं चलना हैं शोभा जी बोली।जी ताईजी प्रशांत ने कहा और गाड़ी मंदिर परिसर के पास जाकर रोक देते हैं।शोभा गाड़ी से उतरती है और अर्पिता को साथ चलने के लिए कहती है।अर्पिता गाड़ी से उतरती है और शोभा के साथ मंदिर के अंदर चली जाती है।वहीं प्रशांत गाड़ी पार्क कर अंदर चले जाते हैं।

शोभा अर्पिता से बात करते हुए कहती है, अर्पिता तुम यहां से अब कहीं नही जाओगी तुम दोनो की समस्या का समाधान मैंने ढूंढ लिया है।और समाधान ये ही है कि मैं तुम दोनो की शादी यहीं करा रही हूँ अभी कुछ ही देर में?प्रशांत तुम जाओ और पंडित जी से बात कर उन्हें साथ लाओ इससे मैं बात करती हूँ!'जी' कह प्रशांत वहां से पंडित जी के पास चले जाते हैं।

शोभा की बात सुन अर्पिता हैरान हो बोली "शादी आंटी जी"?

शोभा :- हां शादी।तुम और प्रशांत एक दूसरे से प्रेम करते हो फिर विवाह में हर्ज क्या है?इससे तुम्हारा स्वाभिमान भी रह जायेगा और मेरे बच्चे की खुशी भी।शीला ने तुमसे जो भी कहा उसे इस एक ही तरीके से ठीक किया जा सकता है।बाकी एक बार शादी हो गयी तो फिर अपने व्यवहार से शीला का दिल जीतने की पूरी कोशिश करना और इन सब में मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी।

आंटी जी हम ये नही कर सकते,हमारे माता पिता वो जब हमसे मिलेंगे उनसे हम क्या कहेंगे,और फिर शान की मां की नजरो में हम चरित्रहीन और बदचलन तो है ही फिर उनके बेटे की धूमधाम से शादी करने के अरमानो का टूटने का भार भी हम पर आयेगा।अर्पिता ने कहा तो शान आते हुए बोले,आप कुछ मत कहिये ताईजी,ये थोड़ी जिद्दी है हद से ज्यादा सोचने लगी है सबके बारे में।अब इसे कैसे मनाना है मैं जानता हूँ आप बस एक तरफ खड़े हो कर देखती जाइये :-

शान अर्पिता से बोले :- तो तुम हां नही कहोगी अप्पू!
अर्पिता ने शान की ओर देखा और बोली :- नही शान।जिद मत करिये आप प्लीज!

शान :- पक्का हां नही करोगी!
अर्पिता न में गर्दन हिला देती है।
शान :- (फिर से)पक्का हां नही करोगी।
अर्पिता :- न!

शोभा शान को देख कहती है, 'ये क्या कर रहे हो प्रशान्त, लग जायेगी तुम्हे हटाओ उसे'।

शोभा की बात का शान कोई जवाब नही देते और अर्पिता से कहते है, तो बताओ 'मानोगी या नही'?
अर्पिता प्रशांत की ओर देखती है जिसने अपने हाथ पर एक तेज धार का छोटा सा चाकू रखा हुआ है।उनके चेहरे पर मुस्कान की जगह बस सख्ती है।ये देख अर्पिता शान की ओर बढ़ती है तो शान बोले, "बस वहीं रुको अर्पिता अगर मेरी बात नही मानी तुमने तो मेरी तरफ मत बढ़ना। तुम आगे बढ़ी कि मैंने अपनी जिद पूरी की।क्या करूँ तुम बिन बात इतनी जिद कर रही हो!प्यार से तो मानोगी नही तो अब जिद ही सही,लेकिन तुम्हे यूँ खुद से दूर तो नही जाने दूंगा"।

शान,लग रही है आपको क्यों कर रहे है जिद, छोड़ भी दीजिये चाकू।अर्पिता ने कहा।तब तक नृपेंद्र जी भी वहां आ जाते हैं उन्हें देख शोभा चुप रहने का कह अपने पास आने का इशारा करती है।

तुम बस हां या न में बोलो,मुझसे शादी करोगी?
शान के हाथो में हल्का सा खून देख वो मासूम से दुखी फेस कर कहती है, हां करेंगे,कोई और विकल्प छोड़ा कहां है आपने शान।

अर्पिता की बात सुन शान मुस्कुराये और बोले, गुड तो अब ताईजी के पास जाकर उनसे दुल्हन के कपड़े लो और दस मिनट में तैयार होकर यहां आओ।क्योंकि मुहूर्त 15 मिनट के बाद का है अगर एक मिनट भी लेट हुई तो ठीक नही होगा समझी अब जाओ..!हम्म जाते हैं अर्पिता बुझे स्वर में बोली और शोभा जी के पास गयी तो शोभा जी उसे लेकर एक ओर बने एक छोटे से कक्ष में चली जाती है।उसके जाने के बाद शान मन ही मन बोलकर फुसफुसाए जानता हूँ मैं जो कर रहा हूँ तुम्हे अच्छा नही लग रहा है लेकिन अभी के लिए यही सही है बाकी तुम्हारा गुस्सा तो मैं आराम से निश्चिन्त हो झेलता रहूंगा फिलहाल तो तुम कहीं न जाओ बस।

कुछ ही मिनटो में अर्पिता तैयार होकर आ जाती है उसे देख शान फुसफुसाते हुए कहते है इतनी सादगी में भी कहर ढा रही है मेरी पगली।अर्पिता गुस्से से एक नजर प्रशांत की ओर देखती है तो प्रशांत हल्का सा मुस्कुरा देते हैं।पंडित जी भी आ जाते है और वो सारे विधि विधान से रस्मे शुरू करते हैं।अर्पिता बीच बीच में शान को घूरते हुए देखती है और फुसफुसाती है आपसे तो हम अब शादी के बाद निपटेंगे।उसकी बात सुन शान मुस्कुराते हुए हौले से कहते है निपट लेना तुम्हारे ही सामने रहूंगा अब से।गठबंधन, फेरे, सिंदूर दान और शोभा द्वारा लाये गये मंगलसूत्र के साथ ही अर्पिता और शान की शादी सम्पन्न हो जाती है। दोनो शोभा और नृपेंद्र का आशीर्वाद लेते हैं।

शोभा बोली :- तो अब तुम हमारे परिवार की बहू हो अब अपने मन से सारे कार्य करना लेकिन परिवार की मर्यादा का भी ध्यान रखना और मुझे विश्वास है तुम ये कर पाओगी।

जी आंटी जी हम पूरी कोशिश करेंगे!अर्पिता ने कहा तो शोभा बोली अब आंटी जी नही बड़ी मां या ताईजी कहो ठीक।

जी ताईजी अर्पिता ने धीमे स्वर में कहा।
शोभा बोली :- प्रशांत इसे हमारे दूसरे घर ले जाओ अब मैं दोनो बहुओ का स्वागत एक साथ करूँगी।सबसे क्या कहना है किस तरह सबको ये बात बतानी है ये हम घर जाकर सब मिलकर सोचते है।

क्रमशः ....