Kaisa ye ishq hai - 52 in Hindi Fiction Stories by Apoorva Singh books and stories PDF | कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 52)

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कैसा ये इश्क़ है.... - (भाग 52)

शान, बात डर की ही है लेकिन आपसे नही है,डर इस बात से है हमारे रिश्ते को जितनी गहराई से आप समझते है,परम जी समझते है,राधिका जी समझती है उतनी गहराई से कोई और समझ पायेगा कि नही।

अर्पिता की बात सुन शान आगे बढ़े और बोले, तो मैं हूँ न इसके लिए तुम हो परम है सभी मिलकर सब सम्हाल लेंगे और एक राज की बात बताऊं हमारी फैमिली बाकी फैमिली की तरह टिपिकल नही है यहां सभी अपनी अपनी पसंद नापसंद एक दूसरे के सामने रख सकते है फिर सभी विचार कर के एक नतीजे पर पहुंचते है और सभी को वो निर्णय स्वीकार होता है।उससे किसी को भी कोई समस्या नही होती।

आप ठीक कह रहे है शान लेकिन न जाने क्यों हमे ऐसा लग रहा है जैसे आपके और आपकी मां के रिश्ते ठीक नही है एक अजब सी खिंचाकसी आप दोनो के बीच में चल रही है।कोई न कोई वजह होगी इसकी हमे अभी नही पता शान लेकिन न जाने क्यों हमे लग रहा है कि वो वजह दूर की जा सकती है।अर्पिता ने सोचते हुए कहा।उसे कहां एहसास है कि अगर शान अपनी मां की बात मान कर उस वजह को दूर करने के लिए मान गये तो शान और अर्पिता भी दूर हो सकते हैं।

अर्पिता की बात सुन शान बोले मां को कैसे मनाना है उसका कोई न कोई रास्ता मैं निकाल लूंगा लेकिन अभी तुम बस इस घर की एक सदस्य बनकर हर फंक्शन एन्जॉय करो यही मैं चाहता हूँ सो कोई टेंशन नही अब ओके।।

ओके अर्पिता ने कहा और दोनो के चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कुराहट आ जाती है।जिसे नीचे खड़ी शीला देख लेती है।वो वहां से अपने कमरे में चली जाती है।कमरे में जाकर शीला बेड पर बैठ अभी कुछ देर पहले जो भी उन्होंने देखा उस विषय में सोचने लगती है।उन्हें शान और अर्पिता का एक दूसरे के सामने खड़े होकर यूँ कुछ देर बातचीत करना अच्छा नही लगता।लेकिन मां है तो प्रश्न मन में उठने लाजिमी है।

उधर ऊपर खड़े हुए शान अर्पिता को बाद में मिलने का कह नीचे चले आते हैं।अर्पिता अपने कमरे में न जाकर बाहर देखती है तो शोभा और कमला को गार्डन की साफ सफाई डेकोरेशन में व्यस्त पाती है।

अरे वाह यहां तो बगीचा भी है वो भी बहुत सुन्दर है।हम देखते है जाकर नीचे ताईजी क्या कर रही हैं कहते हुए अर्पिता मुस्कुराते हुए तेज कदमो से नीचे चली आती हैं।

अर्पिता(शोभा कमला से) :- आप क्या कर रही हैं?
आवाज सुन शोभा पीछे मुड़ कर देखती है और कहती है "हम दोनो तो यहां के गमलो और प्लांट्स को सजा जमा कर उनकी कांट छांट कर रहे है अर्पिता"।

हम भी करे?अर्पिता ने कहा तो शोभा बोली "तुम कर पाओगी"?

"जी हम कर लेंगे नही कर पाये तो आप है न हमे बताने के लिए फिर भी नही सीखे तो डांट कर सिखाना लेकिन हम सीख जाएंगे"।अर्पिता ने कहा।

"ठीक है फिर तैयार रहना हमसे डांट खाने के लिए" शोभा ने कहा और धीमे से कमला से बोली ,"ये प्रशांत तो बड़ा नटखट है पिछली बार जब यहां आया था तब अर्पिता को यहीं बुलाने का कह खुद ही बोला था कि ये डांटती बहुत है लेकिन यहां तो इसका उल्टा ही लग रहा है मुझे".!

ये सुनकर कमला बोली :- अभी इतनी जल्दी कैसे नतीजे पर पहुंच गयी शोभा! अभी तो सिर्फ इनके रिश्ते की गहराई पता चली है स्वभाव नही।

शोभा सोचते हुए बोली :- हां, जीजी!मैं कुछ ज्यादा ही जल्दी राय बना रही हूँ अभी तो छ दिन है हमारे
पास! सब पता कर लूंगी मैं।

वहीं अर्पिता इन दोनो की बातों से बेखबर हो कार्य में लग जाती है।वो पौधों की छटाई का कार्य करती है जिसे वो कम समय में उचित तरीके से पूरा कर लेती है।

शोभा और कमला दोनो ही उसका कार्य देखती है तो उन्हें बेहद पसंद आता है।

शोभा :- बहुत अच्छे से किया है अर्पिता।अब एक कार्य करिये ये जो बचे हुए दो गमले है इन्हें आप अपने तरीके से कलर कर दीजिये ठीक।

जी आंटी जी अर्पिता ने कहा और वो रंग लेकर उन्हें रंगने में लग जाती है।शोभा और कमला तब तक सभी सड़ी गली बिखरी सूखी टहनियों और पत्तियो को हटाकर झाड़ बुहार कर बागीचा स्वच्छ कर देती हैं।तब तक अर्पिता का भी कार्य पूर्ण हो जाता है तो वो रंग से खाली उन बाल्टियों को ले जाकर अंदर बाथरूम में साफ कर उल्टा कर रख देती है।

वहीं दूसरी ओर कमरे में बैठी शीला सोच में डूबी हुई होती है वो जितना सोचती उतना ही और व्याकुल हो जाती है।सोच की शक्ति ही ऐसी होती है तिल का ताड़ बनाने में देर नही करती।व्याकुल परेशान शीला बाहर चली आती है बाहर फर्श पर चारो ओर पानी फैला होता है वो बिन ध्यान दिये चली जारही है आगे कदम रखती है कि उनका पैर स्लिप हो जाता है लेकिन तब तक शोभा आकर उसे सम्हालते हुए कहती है "इतना मत सोचो छोटी कि शरीर तक का भान न रहे"।

"नही कुछ नही सोच रही थी जीजी ये तो बस ऐसे ही धन्यवाद आपका मुझे सम्हालने के लिए।अब मैं ठीक हूँ "शीला ने कहा तो शोभा उसके कंधो से अपना हाथ हटा लेती है।

शीला ने कुछ सोचते हुए शोभा से पूछा :- जीजी! एक बात बताओ क्या अर्पिता और प्रशांत एक दूसरे को पसंद करते है?

शीला की बात सुन शोभा ने एक अपने पास ही खड़ी कमला को देखा और फिर बोली अगर करते है तो इसमे कुछ अनुचित भी नही है दोनो बड़े है समझदार है एक दूसरे को जानते है इतने समय तक एक घर में रहे हैं तो एक दूसरे को समझते भी होंगे।और फिर अर्पिता मुझे तो समझदार लगी कहते हुए शोभा ने अपनी बात खत्म करती है।

उसकी बात सुन शीला हल्का सा गुस्साते हुए बोली :- जीजी अगर ये रिश्ता है भी तो जुड़ नही पायेगा क्योंकि बहु तो मैं अपनी पसंद की ही लाऊंगी।नही तो मुझे फिर बेटे की शादी ही नही करनी।

"ये शादी हो जाये फिर मैं प्रशांत से फाइनल बात कर लूंगी और देखती हूँ कि इस बार वो कैसे मना करता है"।शीला ने कहा और वो उठकर कमरे में चली जाती है।शीला के जाने के बाद शोभा कमला से कहती है "बहुत मुश्किल है शीला की सोच बदलना"।

"लेकिन बच्चो के लिए कोशिश तो करनी ही होगी शोभा" कमला बोली।

"हां जीजी एक कोशिश तो करनी ही होगी।बाकी सब ठाकुर जी जाने"शोभा ने कहा और दोनो वहां से उठकर कमरो में चली जाती है।

अर्पिता बाथरूम से बाहर आकर अपने कमरे की ओर जाने के लिए आगे बढ़ती है।लेकिन कमरे में न जा ऊपर छत पर चली जाती है जहां प्रेम और राधु दोनो अभी भी छत पर मौजूद होते है।

राधु :- प्रेम जी! अब तो हमारी और आपकी भी पदोन्नति हो जायेगी नई!

प्रेम :- हम्म।हो तो जायेगी।अब तो घर में मुझे खान्स कर आना पड़ा करेगा।

प्रेम की बात सुन राधिका हंसी और बोली, "अच्छा जरा एक बार अभिनय कर के बताओ न किस तरह आएंगे आप खांस कर" जरा कर के तो दिखाइये।

राधिका की बात सुन प्रेम जी बोले :-तुम सच में देखना चाहती हो।

राधु :- हां।
प्रेम :- ठीक है कहते हुए वो खड़ा हुआ और दरवाजे की ओर बढ़ने के लिए जैसे ही उसने कदम बढ़ाया कि अर्पिता को देख वो रुक जाते है और फिर वापस आ कर वहीं बैठ जाते है।

"क्या हुआ प्रेम जी आप रुक क्यों गये!कोई आया है क्या" कहते हुए राधिका ने दरवाजे की ओर देखा तो अर्पिता को खड़ा देख मुस्कुराते हुए उससे बोली "अरे आप कब आईं।आओ यहां ऊपर आओ! हमारे पास बैठो जब से आई हो तबसे बात हो ही नही पाई आपसे "।

अर्पिता आगे बढ़ कर आई और बोली :- हां दी वो सब जल्दी जल्दी में जो हुआ कहां समय मिल पाया है।

वो आगे आ वही राधु के पास बैठ जाती है ।
प्रेम जी :- अब आप अकेली नही है राधु तो मैं अभी नीचे जाता हूँ थोड़े बहुत कार्य देख लेता हूँ।अगर कोई कार्य नही होगा तो फिर सबको ही ऊपर बुला लाऊंगा।सब बैठ कर आपस में बातचीत करेंगे।

ठीक है प्रेम जी।राधिका ने कहा तो प्रेम जी उठकर नीचे चले आते है और नीचे आकर शान को ढूंढने लगते हैं।उनकी नजर कमरे में लैपी पर कार्य कर रहे शान पर पड़ती है तो वो उसके पास आकर पूछते हैं , " क्या कार्य कर रहे हो प्रशांत"?

शान ने लैपटॉप से नजर उठाई और प्रेम जी की ओर देखते हुए बोले "कार्य तो मैं कोई खास नही कर रहा था भाई!बस हॉल वालो को थीम देनी है डेकोरेट के लिए तो वही देख रहा था।जिसे रिसेप्शन वाले दिन उपयोग की जायेगी"।

प्रेम जी :- ठीक है।आज सभी फ्री है फिर कल से सभी बिजी हो जाने,फिर रस्मे शुरू हो जानी है तो मैं सोच रहा था क्यों न आज सभी लोग मिलकर इन रस्मो में मचाई जाने वाली धमा चौकड़ी के बारे में सलाह मशविरा कर ले।अब लड़के वालो का भी अपना स्वैग होता है तो उसको बरकरार रखने के लिए भी तो कोई प्लानिंग करनी होगी कि नही।

हां भाई बात तो सही है आपकी।तो बताओ कहां पहुंचना है मुझे।शान ने लैपटॉप बंद करते हुए कहा।

"छत पर।राधु और अर्पिता वहीं है तुम भी पहुंचो मैं सुमित भाई और भाभी को बोलकर आता हूँ" प्रेम ने कहा।

ठीक है।तो मैं ताईजी और मां को भी बोल देता हूँ।
शान ने कहा।दोनो बाहर निकलते हैं।प्रेम जी सुमित और स्नेहा के कमरे की ओर जाते है तो प्रशांत शोभा और कमला की ओर बढ़ते है

प्रशांत :- ताईजी आप दोनो अभी छत पर चलिये सभा का आयोजन किया जा रहा है।

शोभा हंसते हुए कहती है :- और इस सभा की सूत्रधार है कौन?

शान :- सूत्रधार नही ताइ जी आयोजक कहिये।और आयोजक है प्रेम भाई।उन्होंने ही मुझे और सबको छत पर आने के लिए कहा है।

शान की बात सुन कर शोभा कहती है "अहो तो।इस बार प्रेम और राधिका कुछ प्लान कर रहे हैं।तुमने शीला से कहा छत पर आने को"।

शान :- उन्ही के पास जा रहा हूँ ताईजी।

शोभा :- ठीक है फिर जाओ।हम दोनो छत पर पहुंचती है।

शान वहां से शीला के पास चले जाते है।वो शीला के कमरे का दरवाजा खुला देखते है अंदर आकर कहते है 'मां कहां है आप'!

शीला :- इधर उधर कहां देख रहा है यहां देख सामने खिड़की के पास।

शान :- मां!मैं।आपसे कहने आया था कि छत पर चलिये सभी सदस्य वहीं छत पर ही मौजूद हैं।छोटे की शादी के लिए कुछ प्लान कर रहे हैं आप भी चलिये और आप भी अपनी राय दीजिये।

शान की बात सुन कर शीला बोली, "तो तुम्हे मेरी राय की वैल्यू है अच्छा लगा जानकर"।

"ओह हो मां हम सभी को आपकी राय की वैल्यू है।आप न जाने क्यों ये अनर्गल बातें सोचती रहती हैं।
अब चलिये" शान ने शीला से बड़े प्यार से कहा और अपनी मां को अपने साथ छत पर ले गये।शान को अपने इतने पास देख शीला जी आंसुओ से मुस्कुराने लगी।

सभी सदस्य छत पर पहुंच जाते हैं।तो प्रेम राधिका अपनी बात कहना शुरू करते हैं।

प्रेम :- मां!अब घर में शादी है और कोई धमाल न हो ऐसा कैसे कुछ तो धमाल होना ही चाहिए।अब हमारी शादी में धमाल करने के हमारे सारे अरमान रह गये।शादी ही इतने सस्पेंस से हुई कि जब हम वरमाला के लिए खड़े है तब हमे पता चलता है कि हमारी शादी है।बताओ भला इतनी अनोखी शादी किसकी हुई होगी सारी रस्मे एक साथ हुई सब कुछ आंखों के सामने हुआ और दूल्हा दुल्हन को पता तक नही कि उनकी शादी उनके घरवालो की मर्जी के साथ साथ उनकी मर्जी से भी हो रही है।

प्रेम की बात सुन राधु कहती है :- शुक्र है की हो गयी हम इतने किस्मत के धनी है प्रेम जी कि हमारे रिश्ते के लिए कैसे हमारे परिवार वाले एकजुट हो गये थे।

प्रेम :- ये बात तो शत प्रतिशत सही है तुम्हारी राधु।हमारा परिवार है ही इतना प्यारा।

शोभा :- अब परिवार की तारीफ हो गयी हो तो कुछ आगे बात की जाये प्रेम राधिका।

प्रेम :- हां मां! तो मैं ये कह रहा था कि इस शादी में हम दोनो ही खूब एन्जॉय करना चाहते है वो सारी ख्वाहिशे पूरी करना चाहते हैं तो पिछले दो साल और पांच महीने बारह दिन पहले नही कर पाये थे।

प्रेम की इस बात पर राधु एक बार फिर स्नेहा के पीछे छिप जाती है।जिसे देख स्नेहा राधु से कहती है अब भी शर्माना नही गया तुम्हारा राधु।

राधु धीमी आवाज में कहती है :- दी!अब ये बात ही ऐसी कर रहे हैं सब यही सोचेंगे न कि हमने कहा होगा इनसे ऐसा कहने को।

शोभा राधिका को देख चेहरे पर हल्की सी मुस्कान और आवाज में नटखट पन रख कहती है राधु,सब जानते है ये चारो भाई थोड़े से नटखट है।तुम्हे छिपने की जरूरत नही है।

शोभा की बात सुन सभी राधिका की ओर देखने लगते है जो अभी भी स्नेहा के पीछे ही होती है।

प्रेम राधु को देखता है मुस्कुराते हुए शोभा से कहता है हां सीखा भी आपसे ही है मां।सब देख रहे है कैसे आप अपनी बहू को तंग कर रही हो।

शोभा :- हां तो बहू है वो मेरी तंग कर सकती हूँ।खैर हमारा तो ये चलता ही रहेगा फिलहाल तो आगे बात करते है तो तुम्हारा तय हो रहा तुम जो करोगे अपनी मर्जी से करोगे।अब बारी सुमित स्नेहा की तो बताओ क्या सोचा है दोनो ने।

सुमित और स्नेहा ने एक दूसरे की ओर देखा और स्नेहा बोली, हम क्या करेंगे, हम करेंगे सबका सहयोग, और छोटे देवर (परम) जी की थोड़ी खिंचाई।बाकी ये (सुमित)देंगे इन सब में हमारा साथ।

स्नेहा की बात सुन सुमित ने सवालिया निगाहों से उसे देखा जिसे देख स्नेहा फुसफुसाई "भूल गये बीवी हूँ तुम्हारी,सवाल मैं करूँगी और जवाब आप देंगे समझ गये कि नही"।

स्नेहा की बात सुन सुमित हंसते हुए बोले "समझ गया।बीवियों से भला कौन जीत पाया है"।सुमित ने इतनी जोर से कहा कि सबके चेहरो पर हंसी आ जाती है जिसे देख शर्माने की बारी अब स्नेहा की होती है।वो तुरंत ही मुड़ कर राधु की ओर देख दांतो से जीभ दबा लेती है और फिर बोलती है दोनो भाई एक जैसे है।

शोभा :- चलिये इन दोनो का भी तय हो गया अब बचे परम प्रशांत चित्रा अर्पिता।तो एक एक कर तुम सब भी बता दो क्या करने का सोचा है।

अर्पिता और शान एकदम से कहते है, कुछ नही,!और आवाज सुन चौंक कर एक दूजे की ओर देखते हैं।अर्पिता चुप हो जाती है और शान से आगे बोलने का इशारा करती है।शान कहते हैं "कुछ विशेष नही सोचा बस सबको देख कर एन्जॉय करने का सोचा है। सबकी परफॉर्मन्स के बाद जो भी करने को बचेगा वो मै करूंगा" बोल कर शान चुप हुए और अर्पिता की ओर देख बोलने का इशारा किया।

अर्पिता बोली :- अगर सभी सब कुछ करने लगेंगे तो देखेगा कौन!और एन्जॉय कौन करेगा।हम तो एन्जॉय करने पर ही रहेंगे।

शोभा :- ठीक और चित्रा तुम?
चित्रा :- मै सारे के सारे गेम अरेंज करूंगी।और इसमें मेरा साथ देगी अर्पिता।अब सब कोई कुछ न कुछ कर रहा है तो केवल वही फ्री होगी बाकी सब तो थके हुए होंगे।क्यूं अर्पिता कोई प्रॉब्लम तो नहीं है तुम्हे इससे।चित्रा ने अर्पिता की ओर देख पूछा।

अर्पिता :- नहीं तो कोई समस्या नहीं है।

चित्रा :- ठीक है फिर हमारा भी तय रहा।

चित्रा की बात खत्म होने के बाद शोभा जी शीला की ओर मुखातिब हुई और बोली, "शीला तुम क्या करना पसंद करोगी"? शीला बोली - तांडव जीजी।।

शीला की बात सुन शोभा के साथ साथ बाकी सभी हैरानी से उनकी ओर देखने लगे जिसे महसूस कर शीला दोबारा बोली, " अरे जीजी मजाक कर रही थी मै, इस उम्र में तांडव भला मुझसे कैसे हो पायेगा। मैं तो आप सभी के साथ ही भागीदारी करूँगी।जो आप और बड़ी जीजी करेंगी वही मैं भी कर लूंगी"।

"ओह ऐसा है" शोभा हंसते हुए बोली।"सभी कुछ प्लान हो चुका है तो अब सभी अपने अपने कमरे में जा सकते है" प्रेम जी बोले और वो शान के साथ जाकर झूले पर बैठ जाते हैं।

"ठीक है " सभी ने कहा।शीला,कमला,शोभा, चित्रा स्नेहा सुमित सभी नीचे चले आते है अर्पिता राधु के पास ही रुक जाती है एवं उनसे सबकी पसंद नापसंद के बारे में पूछने लगती है।शान झूले पर बैठे हुए शांति से उसे देख मुस्कुराने लगते हैं।अर्पिता भी कनखियों से झांक कर उसे देख मन ही मन मुस्कुरा लेती है।प्रेम कभी अर्पिता को तो कभी शान को देखते हैं।दोनो को देख वो सब समझते हुए शान से कहते है,"प्रशांत, मौका भी है, माहौल भी है तो क्यों न एक साथ दो दो बारातें इस घर से निकाली जाएं"।

प्रेम की बातों का अर्थ समझते हुए शान मुस्कुराये और बोले, "बारात तो एक ही निकलेगी भाई, लेकिन दूल्हे दो होंगे"।

"तो बात पक्की" इस बार तुम्हारी हां है न।प्रेम ने उत्साहित होकर कहा तो शान कुछ सोचते हुए थोड़ी तेज आवाज बोले , " आप मेरी बात कर रहे थे या अपनी"

शान की जरूरत से ज्यादा तेज आवाज सुन कर प्रेम उसे गुस्से से घूरते हुए बोले,"मरवाएगा क्या राधु यहीं बैठी है अगर पूछ बैठी किस बारे में बात चल रही थी तो मैं क्या बोलूंगा"?

आप मुझे घूर रहे है," तो अब देखो मैं क्या करता हूँ"?शान ने और तेज आवाज में कहा जिसे सुन अर्पिता ने पीछे मुड़कर देखा। जिसे देख राधिका बोली "तुम इन दोनो पर ध्यान मत दो कोई भी कम नही है व्यर्थ में झगड़ने में लगे होंगे"।

"ठीक है दी" अर्पिता ने कहा।वहीं राधिका को कोई रिएक्ट न करते देख शान प्रेम जी से बोले,"भाई राधिका भाभी कोई रिएक्ट क्यों नही कर रही है वैसे तो हर बात तुरंत सुन लेती है अभी क्या हो गया है इन्हें"?

क्योंकि वो समझदार है,मुझे और तुम्हे अच्छे से जानती है।वो कुछ न कहेगी प्रेम ने मुस्कुराते हुए कहा तो शान शिकायती लहजे में बोले "ये तो गलत बात है भाई अब मैं आपकी शिकायत कैसे करूँगा भला"।

"चुप कर बड़ा आया शिकायत करने वाला।आपस का मसला है आपस में मिल बैठ कर दोनो भाई सुलझाते है न"प्रेम ने डपटते हुए कहा।तो प्रेम की इस बात पर शान मुस्कुराते हुए बोले "सो तो है भाई"।
प्रेम (प्रशांत से):- तो बता "बात पक्की करा दे"।
भाई अभी भांडा मत फोड़ना!मां का तो आपको पता ही है न।न जाने कैसा रिएक्ट कर बैठे?पहले उन्हें अर्पिता को जानने का एक मौका तो दो, तभी तो उसे यहां लेकर आया हूँ?वो सबको और सब उसको समझ ले।
प्रेम (शरारती लहजे में) :- अच्छा।बड़े भइया को ज्ञान दिया जा रहा है क्यों?

प्रेम की बात सुन शान बोले :- नही भाई,ज्ञान नही बस उसे वहां लखनऊ में अकेला नही छोड़ना चाहता था।बहुत कुछ सहा है पिछले कुछ दिनों में इसने।

शान की बातों को समझ प्रेम भी गंभीर हो जाते है और शान से कहते है :- मैं जानता हूँ,और मैं तुम्हारे हर निर्णय में तुम्हारे साथ हूँ।हम सब कोशिश करेंगे।जिससे चाची जी अर्पिता के बारे में अच्छी राय ही बनाये।

"हम्म जानता हूँ मैं" शान ने कहा तो दोनो भाई हल्का सा मुस्कुरा देते हैं।

बाते करते हुए राधु को बैठे बैठे थकान का अनुभव होने लगता है तो वो प्रेम जी से कहती है ,"प्रेम जी आप दोनो की नोकझोंक खत्म हो गयी हो तो अब नीचे चले"।

"हम्म चलो" प्रेम ने झूले से उठ कर राधिका के पास आते हुए कहा।उन्होंने राधु को उठाया और दोनो हौले हौले सीढियो से उतरते हुए नीचे चले आते हैं।वही अर्पिता की नजर छत पर सूख रहे पौधों पर पड़ती है तो वो पानी का पाइप उठा कर पौधों को पानी पिलाने लगती है।शान छत पर बिछी चटाई उठा उसे घड़ी कर उसकी जगह पर रख देते है और वहां से नीचे चले आते हैं।कुछ देर बाद अर्पिता भी अपना कार्य खत्म कर नीचे चली आती है।

शाम हो जाती है और घर के सभी सदस्य अपने कमरो से निकल हॉल में इकट्ठे हो जाते हैं।

शोभा सबसे कहती है ,"कल कोई रस्म नही होनी है तो कल एक कार्य करना सभी अपने बचे हुए बाहर के सभी कार्य पूरे कर लेना।परसों से रस्मे शुरू हो जाएंगी और कुछ एक गेस्ट भी आना शुरू हो जाएंगे तो फिर मौका नही मिलेगा"।

"जी ताइ जी',हां मां!प्रेम जी और प्रशांत दोनो एक साथ बोले।

ठीक है और परम तुम अगर तुम्हारी भी कुछ खरीद फरोख्त बाकी हो तो तुम भी खरीद लेना।एक बार रस्में शुरू हो गयी फिर नही निकलने देंगे।समझ गये।

ये सुन परम बोला, मुझे,कोई जरूरत नही है राधु भाभी हैं न वो सब मैनेज कर लेंगी"।

हम समझ गयी,"तुम और तुम्हारी भाभी"!कहते हुए शोभा मुस्कुराई और स्नेहा से शाम के खाने की विषय बातचीत करने लगी।

वहीं शान अर्पिता की ओर देखते हैं, और शोभा से कहते हैं "ताइ जी मैं छत पर जा रहा हूं कोई कार्य हो तो आवाज लगा दीजियेगा"।

शोभा जी:-ठीक है।

शान अर्पिता की ओर देख छत की ओर निकल जाते हैं। शीला शान को ही देख रही होती है उसकी नजरो को अर्पिता की ओर देख शीला को बिल्कुल अच्छा नही लगता है।शान के छत पर जाने के बाद सभी सदस्य अपने अपने कार्य पर लग जाते हैं तो शीला अर्पिता के पास जाती है और उससे कहती हैं अर्पिता मुझे तुमसे कुछ बात करनी है क्या तुम अभी मेरे साथ चल सकती हो।शोभा और कमला जो अपने हाथो में सब्जियों की टोकरी ले वहीं चली आ रही होती है ये देख एक दूसरे की ओर देखती है और शीला को टालने के उददेश्य से कहती है, " छोटी कहां बातों में लगी हुई हो आओ हमारे साथ बैठो हम लोग अपनी चर्चा शुरू करते हैं"..

क्रमशः....