Me and chef - 17 in Hindi Drama by Veena books and stories PDF | मे और महाराज - ( एक तोहफा) 17

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मे और महाराज - ( एक तोहफा) 17

" हम भी उनके मनसूबे समझ नही पा रहे। हमे लगा वो मुआवजे मे राजमुद्रा मांगेगी। लेकिन आखिर उस बिस्तर मे ऐसा क्या है ???" सिराज अभी भी भ्रम मे था। " रिहान क्या तुम्हे राजकुमारी की हरकते अजीब नही लगती। उनका बोलने से लेकर चलने तक का ढंग। कभी वो बिलकुल एक नाजुक, बड़े घर की बेटी जैसा बर्ताव करती है। तो कभी बिलकुल अलग मानो वो इस दुनिया की नही हो। उनके कपड़े भी उनके मन मुताबिक बदलते है।"

" राजकूमार कही लोगो का कहना सच तो नही है। की राजकुमारी पागल हो चुकीं हैं।" रिहान ने नजरे झुकाएं कहा।

" हमे नही लगता। या तो वो नाटक कर रही या फिर कुछ है जिसे वो छुपाना चाहती है। जिस वजह से उन्हे ऐसा बर्ताव करना पड़ रहा है।" सिराज ने वीर की ओर देखते हुए कहा।

सिराज, वीर और रिहान तीनो एक साथ महल की ओर महाराज से मिलने निकल पड़े।
महाराज के अध्ययन कक्ष मे, राजकुमार अमन , राजकुमार सिराज और वीर खड़े थे। रिहान हाथ जोड़े सर झुकाए एक कोने मे था।

सिराज ने राजमुद्रा हाथ मे लिए महाराज से कहा, " हम इसे आपको लौटाना चाहते है। पिताजी।"

" ये तुम्हारे दादाजी का तुम्हे दिया हुवा तोहफा है राज। तोहफा लौटाते नही है।" महाराज।

" पिताजी , ये राजमुद्रा हमारी सारी सेनाएं नियंत्रित कर सकती है। इस मे साम्राज्य बदलने की ताकद है। हमे नही लगता इसे फिलहाल हमारे पास होना चाहिए।" सिराज।

" पिताजी, भाई परिवार के बारे मे सोच आपको पूरी बात नही बता रहे। कल रात भाई के कमरे मे भाभी और उन पर जानलेवा हमला हुवा। हमलावर मुद्रा ढूंढ रहे थे। जहा तक हमे लगता है, किसी भी आम इंसान को इस मुद्रा के बारे मे नही पता। मतलब जिसने भी हमला करवाया वो राज परिवार मे से कोई है।" वीर ने बीच मे बोलते हुए कहा।

" पिताजी हम अपने परिवार पर शक नहीं करना चाहते। इसलिए हम आपसे विनती करेंगे की मुद्रा आप महाराज के हिस्से मे ले लीजिए।" सिराज ने सर झुकाए अपने पिता से कहा।

" हमे तुम पर गर्व है राज। पर जिस किसी ने हमारे बेटे पर हमला किया हम उसे छोड़ेंगे नहीं। इस मामले की पूरी तैकिकात होगी। राजमुद्रा तुम्हारी भेट है, तुम्हारे पास रहेगी। अब तुम लोग जाओ यहां से।" महाराज ने आज्ञा दी।

महाराज से मिलकर जैसे ही तीनो भाई बाहर निकले।
" अच्छा तमाशा था। हमे लगा था, हमे यहां बस इंजाम लगाने के लिए बुलाया गया है। पर अफसोस आपने हमे निराश किया।" राजकुमार अमन ने सिराज की ओर देखते हुए कहा।

" जिन मे शर्म का कतरा भी नही, उन पर इंजाम भी क्या लगाना। आपको क्या लगा हम आपके मनसूबे समझ नही पाएंगे भाई। आप अभी भी समझ नहीं रहे पहले आपने लालच में प्यार गवाया, कल उस प्यार की जान ले लेते।" सिराज।

" तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हम पर इतना घिनौना इंजाम लगाने की?????" राजकुमार अमन ने अपनी तलवार बाहर निकाली और सिराज की तरफ बढ़ाई। वीर अपनी तलवार लेकर सिराज के सामने खड़ा हो गया। राजकुमार अमन का किया हुवा वार वीर की तलवार ने उड़ेल दिया। राजकुमार अमन गुस्से मे वहा से चले गए। जाते वक्त उनकी कमर पर बंधा एक बटवा नीचे गिर गया। सिराज ने उसे उठाया। नीले रंग के मखमली कपड़े से बना हुवा एक खूबसूरत बटवा, जिस पर गुलाबी धागे से हंसो का एक जोड़ा बना हुवा था। और एक नाम लिखा था शायरा। सिराज को याद आया, उनकी सुहागरात पर जब राजकुमारी बेहोश हुई थी तब उनकी कमर पर से भी एक बटवा गिरा था। गुलाबी रंग का जिस पर यही नक्षिकाम था। उस पर सिराज नाम नहीं देख पाया। पर यकीनन उसे अब पता था की किस का नाम हो सकता है। अब तक अपने गुस्से पर काबू रखे हुए सिराज का सब्र जमीन पर गिर उस एक बटवे ने तोड़ दिया।

वही सिराज के महल मे समायरा कमरे मे उस बिस्तर को सजाने मे लगी हुई थी।

" आखिरकार मौली। बिस्तर मेरा हुवा।" समायरा ने खुशी के मारे उछलते हुए कहा।

" बिस्तर तो मिल गया। अब आगे क्या करेंगे सैम।" मौली ने पूछा।

" अब , मुझे घर वापस जाने का रास्ता ढूंढना होगा और क्या ????" समायरा ने कहा तभी सिराज ने कमरे मे कदम रखा। जिस तरह गुस्से मे लाल हुए वो कमरे मे आया, एक पल के लिए समायरा और मौली चौक गए।

" एकांत।" वो सब पर चिल्लाया।

जैसे ही मौली कमरे से बाहर जाने लगी समायरा ने उसे रोका, " मतलब क्या करना है ?"

" उसका मतलब हमे बाहर जाना है।" मौली समायरा से अपना हाथ छुड़वाते हुए बाहर भागी।

उसके पीछे पीछे समायरा भी बाहर जाने लगी। सिराज ने उसका हाथ पकड़ उसे रोका।

" आ........। छोड़ो मुझे।" अपने हाथ को उस से छुड़वाते हुए समायरा ने कहा, " ऐसे भला कौन लड़की का हाथ पकड़ता है। तुम्हे तो इतना भी नही आता।"

सिराज ने उसे अपनी तरफ खींचा और गले लगा लिया " नही आता तो आप सीखा दीजिए। हम सीखेंगे। लेकिन आज जो हमने देखा वो भविष्य मे नही होगा बस इतना जानने आए है।"

खुद को उस की बाहों से छुड़ाते हुए समायरा, " अब क्या हुवा ? फिर किसीने कुछ कहा क्या मेरे बारे में ?"

" नही। हम बस आपसे कुछ मांगना चाहते है ? " सिराज।

"अब ये मत कहना की तुम्हे बिस्तर वापस चाहिए ? में नही दूंगी।" समायरा बिस्तर के सामने जाकर खड़ी रह गई।

" आपके लिए इस बिस्तर से ज्यादा कीमती कुछ नही है क्या ? आप के लिए ये इतना जरूरी क्यों है ? " सिराज।

" क्योंकि मुझे ये पसंद आया। जो चीज मुझे एक बार पसंद आ जाती है, में उसे नही छोड़ती कभी भी।" समायरा।

" क्या आपकी ये बात इंसानों पर भी लागू होती है ?" सिराज।

" इंसान वक्त के साथ बदलते है पर चीजे नही। तो मेरी बात इंसानों पर लागू नहीं होती। अब खुद को ही लेलो जब तुम मेरे साथ अच्छा बर्ताव करते हो में भी तुम्हारे साथ अच्छे से पेश आती हू। बुरा बनोगे तो मुझे भी बुरा बना दोगे। ऐसे।" समायरा अभी भी बिस्तर के आस पास ही फेरे लगा रही थी।

सिराज धीरे से उसकी तरफ आगे बढ़ा। उसने उसे पकड़ा और बिस्तर पर लेटा दिया। खुद भी उसके पास लेट गया।

" ये क्या कर रहे हो ?" समायरा ने पूछा।

" आपको ये इतना क्यों पसंद है, देख रहा हु। तो हम कुछ मांगे आप से।" सिराज।

" मौली और बिस्तर दोनो तुम्हे नही मिलेंगे।" समायरा।

" हम आप को चाहते है।" सिराज।

" क्या तुम ???" समायरा गुस्से मे कुछ और कहे उस से पहले।

" हमारा मतलब। आपका बटवा। हमे वो नक्षी बोहोत पसंद आई। हमे बनाकर देंगी।" सिराज।

" ओ। तुमने तो डरा ही दिया। बना कर क्यो देना, तुम्हे ये पसंद आया ना, इसे रख लो।" समायरा बिस्तर पर बैठ गई उसने अपने कमर से वो बटवा निकाला और सिराज को सौप दिया।

" आप अपने पहले प्यार की निशानी हमे देना चाहती है।" सिराज ने उस बटवे पर लिखा अमन का नाम उसे दिखाते हुए कहा।

" ये कौन है ? " समायरा।

" आप बड़े राजकुमार को भूल गई।" सिराज।

" ओ। तो बड़े राजकुमार का नाम अमन है। काफी अच्छा नाम है।" समायरा।

" आप ये दिखावा कब बंद करेंगी। उनके नाम का बटवा लेकर घूम रही है। पर वो आपको याद नही।" सिराज।

" क्या फर्क पड़ता है। यहां से बाहर तो में जाती नही हु। ऐसे में मैने तो उस बटवे को देखा तक नहीं। मौली मुझे तैयार करती है। में हो जाती हु। कैसे पता चलेगा किस का बटवा है। पर खैर वो सब जाने दो आज तुमने मुझे कुछ दिया बदले में मैने भी तुम्हें कुछ दिया । अब हम बराबर है।" समायरा।

" बराबर कैसे। इस पर राजकुमार अमन का नाम है। हम इसे इस्तेमाल नहीं कर सकते।" सिराज।

" इसे में ठीक कर के कल तुम्हे दे दूंगी। फिक्र मत करो।" समायरा।

सिराज बटवा उसे थमा कर वापस कमरे से बाहर चला गया। राजकुमारी की हरकतें उन्हे हर शक के दायरे से दूर रख रही थी। पर सिराज के दिलो दिमाग मे जंग छिड़ गई थी। दिल राजकुमारी की तरफ उसे ले जा रहा था। पर दिमाग उसे पूरी तरह उनके पास जाने नही दे रहा था। ऐसे मे राजकुमारी को कुछ और तकलीफों से गुजरना जरूरी था।