chahat - 11 in Hindi Fiction Stories by sajal singh books and stories PDF | चाहत - 11

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चाहत - 11

पार्ट -11

मैं लाल साड़ी में लिपटी हुई ,पैरों में पायल छनकाती हुई एक कमरे की तरफ बढ़ रही हूँ। कमरे में जाकर खुद को आईने में निहारती हूँ। साड़ी से मैचिंग चूड़ियां ,झुमके ,माथे पे छोटी सी बिंदी ,और मांग में सिन्दूर मेरे रूप को और निखार रहा है। मैं अपनी ही सुंदरता पर मोहित हो रही थी तभी पीछे से किसी ने मुझे अपनी बाहों में भरकर गुड मॉर्निंग विश किया। मैंने सामने आईने में देखा तो सलिल ने मुझे अपनी बाहों में जकड रखा है। आज मैं सलिल की पकड़ से आज़ाद नहीं होना चाहती बल्कि मुस्कुरा रही हूँ। लेकिन कोई तो मुझे सलिल से दूर खींच रहा है। अचानक से सलिल मेरी आँखों से ओझल हो गया और मैं बेचैन होकर उसे आवाज़ दे रही हूँ - सलिल ,सलिल । (तभी मुझे अपने चेहरे पर पानी गिरता हुआ महसूस हुआ ,एकदम से आँख खुली तो नेहा सामने मौजूद थी। )

मैं -(खुद से -थैंक गॉड ! सिर्फ सपना था। )

नेहा -हे चाहत ! तू ठीक है ना ? कब से तुझे उठा रही हूँ ?

मैं -हाँ, मैं ठीक हूँ।

नेहा -तू एक बात बता ? तू सोते हुए स्माइल क्यों कर रही थी ? और सलिल का नाम क्यों ले रही थी ?

मैं -(बेड से उठ कर अपने बालों को बांधते हुए ) मैं क्यों लेने लगी सलिल का नाम।

नेहा -नहीं ,तूने लिया उसका नाम। मैंने सुना। और मैं तुझे कितनी देर से खींच रही थी और तू मुस्कुराये जा रही थी।

मैं -मुझे कुछ नहीं पता तू क्या कह रही है। मुझे नहाना है अभी, बाद में बात करते हैं। (इतना कहकर मैं वाशरूम में घुस जाती हूँ। )

मैं जल्दी से नहा कर तैयार हो गयी और चेयर पर बैठ कर सोचने लगी। ये हो क्या रहा है मेरे साथ ? कैसे -कैसे सपने आने लगे हैं मुझे। मैं और सलिल के साथ ? अभी तो मैंने नेहा को टाल दिया है दोबारा पूछेगी तो क्या कहूँगी ? मुझे लगता है ये सलिल मेरे दिमाग पे हावी हो रहा है। जब लास्ट टाइम सपने में दिखा था तो उसने मुझे परपोज़ कर दिया था। इस बार क्या करेगा वो ? वो कुछ करे उससे पहले मैं ही कुछ करती हूँ। (मैंने तुरंत सलिल को फ़ोन मिलाया। )

मैं -हेलो !

सलिल -हेलो !

मैं -मुझे आपसे बात करनी है।

सलिल -खुसनसीबी है मेरी। जो आज तुमने मुझे खुद फ़ोन किया। वो भी बात करने के लिए। आज का दिन मैं कभी नहीं भूल सकता।

मैं -मुझे आपसे मिलना है। वो भी आज।

सलिल -क्या कहा ? मिलना है वो भी मुझसे। लगता है आज तो भगवान् मुझ पर पूरी तरह से मेहरबान है।

मैं -आप समय और जगह बताइये। मैं आपसे मिलने आती हूँ।

सलिल -मैं आधे घंटे में बैडमिंटन क्लब के लिए निकल रहा हूँ। मैं एड्रेस तुम्हे टेक्स्ट कर दूंगा। आराम से आना और देरी से जाना।

मैं -आज आपका ऑफिस नहीं है क्या ?

सलिल -नहीं ,वैसे आज संडे है। अगर तुम चाहती हो तो मैं आज भी ऑफिस चला जाऊंगा।

मैं - ऑफिस जाना ना जाना आपका अपना मसला है मेरा नहीं। मैं थोड़ी देर में आपसे मिलूंगी। (इतना कहकर मैंने फ़ोन काट दिया। )

मैंने जैसे ही फ़ोन रखा तो सलिल ने टेक्स्ट भेज दिया था। क्लब ज्यादा दूर नहीं है। अब मैं जल्दी से नाश्ते के लिए निचे आयी।

भाभी -चीनू ,कहीं जा रही हो ?

मैं -हाँ ,भाभी। सुमन से मिलने जाना है। उसे कुछ हेल्प चाहिए।

नेहा -कैसी हेल्प ?

मैं -उसका कल कोई इंटरव्यू है किसी स्कूल में। बस इसी सिलसिले में मिलना है।

भैया -ठीक है। गुड़िया ,मैं छोड़ देता हूँ तुम्हे सुमन के घर।

मैं -भैया ,मैं चली जाउंगी। आप आज अपना संडे सावी और फॅमिली के साथ एन्जॉय कीजिये।

नेहा -हाँ भैया। चाहत चली जाएगी। हम सब घर पर ढेर सारी मस्ती करेंगे।

मैं जूस पीकर अपनी स्कूटी लेकर निकल गयी। थोड़ी देर में मैं क्लब में पहुँच गयी। सलिल कोर्ट में अपने पार्टनर के साथ बैडमिंटन प्रैक्टिस कर रहा था। जैसे ही सलिल ने मुझे देखा उसने अपने पार्टनर को जाने का इशारा किया। अब बैडमिंटन कोर्ट में हम दोनों थे।

सलिल -(मेरे पास आकर ) बताइये। कैसे आज इस गरीब की याद आयी तुम्हें।

मैं -मुझे घुमा -फिरा कर बात करने की आदत नहीं है। सीधे ही बता देती हूँ।

सलिल -क्या बताना है ?

मैं -यही बताना है कि आपका बार -बार मेरे पास आना मुझे पसंद नहीं है। आप मेरा इंतज़ार ना करें। मेरा जवाब हमेशा यही रहेगा।

सलिल -तुम मुझे तुम्हारा इंतज़ार करने से नहीं रोक सकती।

मैं -जानती हूँ कि बगैर रिश्ते के कोई किसी से कुछ उम्मीद रखे या मांगे ये सही नहीं है। और ना ही मेरा कोई हक है आपसे कुछ मांगने का। बस आपसे रिक्वेस्ट कर रही हूँ जिस रास्ते पर आप चल रहे हैं उस राह में आपको कुछ हासिल नहीं होगा सिवाय तकलीफ के।

सलिल -(मेरी आँखों में देखते हुए )किस ने कहा कि तुम्हारा कोई हक नहीं है मुझ पर । बंदा तुम्हारे प्यार में तुम्हारे हुकुम का गुलाम है।

मैं -(एक पल के लिए मानों उसकी आँखों में खो ही गयी ) मैं बिना किसी रिश्ते के किसी से ना ही कुछ मांगती हूँ और ना ही आपसे मांगूंगी।

सलिल -एक रास्ता है।

मैं -क्या ?

सलिल -तुमने बैडमिंटन खेला है कभी ?

मैं -हाँ ,अच्छे से आता है बैडमिंटन खेलना मुझे।

सलिल -तो ठीक है एक मैच हो जाये। जो जीतेगा उसकी बात मानी जाएगी।

मैं -मैं पूरी कोशिस करूंगी कि आप जीत ना पाएं।

सलिल -क्या तुम सूट में खेल पाओगी ?

मैं -बिलकुल। मैं comfortable हूँ इन कपड़ों में।

सलिल -ओके ! आल the बेस्ट मेरी चाहत !

मैं -same to you !

मुझे बैडमिंटन खेलना अच्छा लगता है। स्कूल -कॉलेज में खेला भी है। पर मैं इस बात से अनजान थी कि सलिल बैडमिंटन कितने अच्छे से खेलता है। फिर भी मैंने यह सोच कर खेलने के लिए हाँ बोल दिया कि मैं मैच जीत जाऊं तो उससे हमेशा के लिए पीछा छुड़ा लूँ।

पहला राउंड मैंने 21 -19 से जीत लिया। दूसरा राउंड सलिल ने 21 -17 से जीता। अब मुझे डर लग रहा था। अगर सलिल जीत गया तो वो कहीं मेरा हमेशा के लिए साथ ना मांग ले। फाइनल राउंड में हमारी कांटे की टक्कर हुई। आख़िरकार मैंने 21 -20 से लास्ट राउंड जीत लिया। मैं खुश थी जीतकर। पर जब मैंने सलिल की और देखा तो वो उदास नहीं था। मुझे लगा कि वो उदास होगा लेकिन वो तो मुस्कुरा रहा था। उसे मुस्कुराता देखकर ना जाने मुझे अपनी जीत हार लग रही थी।

सलिल -(मेरे पास आकर ) तुम जीती मैं हारा। तुम जो कहोगी मैं मानूंगा।

मैं -मैं बस यही चाहती हूँ कि आप अपने जीवन में आगे बढ जाएँ। और मुझे बार -बार अपने प्यार से रूबरू ना कराएं। मैं आपके प्यार को स्वीकार नहीं कर सकती।

सलिल -(मुस्कुराते हुए ) ठीक है। आज के बाद मैं तुम्हें तंग नहीं करूंगा।

मैं -अगर आप जीतते तो क्या मांगते ?

सलिल -मैं जीतता तो तुमसे तुम्हारे लिए इंतज़ार का हक मांगता।

मैं -(उसकी इस बात ने मानों एक पल में मुझे अपना बना लिया हो ) आप ने काफी बड़ी बात बोल दी है।

सलिल -जानता हूँ।

मैं -अच्छा। मुझे अब चलना चाहिए।

सलिल -मैं तुम्हें घर छोड़ दूँ ?

मैं -मैं स्कूटी से आयी हूँ। चली जाउंगी। (अपना हाथ सलिल की तरफ बढ़ाते हुए ) bye !

सलिल -(हाथ मिलाते हुए ) bye !

तुरंत मैं सलिल के पास से निकल कर अपनी स्कूटी लेकर घर पहुंची। घर आकर मैंने फ्रेश होकर चेंज कर लिया। अब मैं अपने रूम में बैठकर सलिल के बारे में सोच रही हूँ। सलिल ने जो कहा वो मुझे अंदर तक छू गया था। मैं ना जाने खुश होने की बजाय असमजंस में थी। क्या मैंने सही किया है सलिल के साथ ? (नेहा कमरे में आते हुए )

नेहा -चाहत , तुम कहाँ गयी थी ?

मैं -बताया तो था। सुमन के घर।

नेहा -तू वहां नहीं थी। सुमन ने मुझे कॉल किया था। और वो तेरे बारे में पूछ रही थी।

मैं -(मैं पकड़ी गयी थी और निरुत्तर थी ) तूने घर पर तो नहीं बता दिया किसी को।

नेहा -नहीं बताया। पर तू बता। तू क्या छिपा रही है ?

मैं -नेहा , मैं सही समय आने पर तुझे बता दूंगी। बस अभी मत पूछ।

नेहा -ठीक है।