मां संतोषी की महिमा बड़ी अपरम्पार है। मां संतोषी व्रत
हमने जब शुरू किया , उस समय हम पढ़ रहे थे। मुझे
इच्छा हुई कि मैं संतोषी माता का व्रत करुं । मैंने मां से
कहा कि मैं व्रत शुरू कर लूं। मां ने कहा हां कर लो।
परन्तु हमारा परिवार तो बहुत बड़ा है। उसके लिए तुम्हें
नियम से घर साफ सफाई करके करना होगा। ये व्रत
कठिन है। मेरे मन में एक बात आई कि मेरी सखि तो ये
व्रत करती है उसे हमने स्कूल से आते-जाते हुए देखा था।
चूंकि मेरा घर उसके बिल्कुल पास था तो किसी तरह की
दिक्कत का सवाल नहीं था। मेरी सखि से हमने पूछा कि
तेरे यहां मैं संतोषी माता का व्रत कर लूं तो उसने कहा हां
कर लो। इस तरह हम दोनों एक साथ संतोषी माता का
व्रत करने लगे। मैं गुड़ और चना तथा और भी पूजा की
सामग्री लेकर सखि के यहां पूजा करने चली जाती थी।
चूंकि हमने गर्मी के दिनों से व्रत शुरू किया था तो दिन
बड़ा होता था। मेरी सखि करीब एक बजे के आस पास
पूजा शुरू करती । वो मुझे आवाज दे देती कि आ जा पूजा
कर लेते हैं । मैं उसके यहां पूजा करती रही कुछ दिनों तक
अब चूंकि ये व्रत निर्जला रहकर ही किया जाता था।
कहने का तात्पर्य यह है कि पूजा से पहले हम दोनों को
एक बूंद भी पानी नहीं पीना होता। मुझे याद है कि पूजा
के पश्चात् गाय माता को प्रसाद खिलाकर फिर कुंए से जल
खींचकर दोनों कुंए के पास ही पत्थर पर बैठकर पानी पीते।
चूंकि खाली पेट रहते थे तो हम दोनों पानी के साथ गुड़
लेते थे। मेरा लोटा करीब सवा किलो का था । तो पीतल
के लोटे से मैं करीब एक लोटा पानी पी जाती थी। पानी
कुंए का था तो इतना ठंडा और इतना मीठा कि वर्णन नहीं
कर सकती हूं। आज तक गुड़ के साथ पीया गया पानी
इतना मधुर और अद्भुत कभी नहीं लगा। ये संतोषी माता
की ही कृपा है जो हम आज तक याद करते हैं। मैं ये कभी
नहीं भूल सकती। पूजा के पश्चात् इतना शीतल मधुर जल
गुड़ के साथ। ये मेरे लिए अमृत है और मुझे जब-तक मैं
जिंदा हूं माता संतोषी जी की महिमा की याद दिलाता
रहेगा। ये बात उन दिनों की है जब मैं पढ़ती थी। तो कोई
फ़िक्र नहीं रहती थी। पूजा के तुरंत बाद घर जाती और
घर के काम करती फिर ट्यूशन पढ़ाती थी। फिर शाम
को चाय पीती थी। मेरी सखि का हदय से आभार व्यक्त
करती हूं कि उसने इतना साथ दिया कि जवाब नहीं।
कुछ दिनो बाद हमने दूसरा घर बदल लिया तो घर में ही
व्रत करने लगी। एक या डेढ़ साल व्रत करते हुए मुझे
नौकरी मिल गई और मेरी नौकरी का ज्वायनिंग लेटर
भी शुक्रवार को आया था। तो हमने सोचा कि अब जल्दी
ही उद्यापन करना चाहिए। चूंकि हमलोग नये घर में आए थे
तो अग्रवाल भाभी और राठौर भाभी की सहायता से बच्चों
का जुगाड हो गया। राठौर दादी और गुजराती भाभी तथा
और लोगों ने मुझे बड़े बड़े बर्तन भंडारे के लिए दिया।
मैंने अप्रैल में ही उद्यापन की तारीख तय की।
मां संतोषी जी की कृपा से करीब सौ बच्चे जुट गये।
भव्य उद्यापन हुआ। संतोषी मां की जय।