Kuchh chitra mann ke kainvas se - 6 in Hindi Travel stories by Sudha Adesh books and stories PDF | कुछ चित्र मन के कैनवास से - 6 - वाशिंगटन डी. सी.

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कुछ चित्र मन के कैनवास से - 6 - वाशिंगटन डी. सी.

वाशिंगटन डी.सी.

वाशिंगटन के समय के अनुसार लगभग 11:00 बजे हम वाशिंगटन डी.सी. के बाल्टीमोर एम.डी. (बीडब्ल्यू. आई. ) एयरपोर्ट पर उतरे । सामान अपने साथ ही रखने के कारण हमें सामान आने का इंतजार नहीं करना पड़ा । हम सीधे ही एयरपोर्ट से बाहर निकल आए । एयरपोर्ट से होटल जाने के लिए हमने पहले से ही शटल वैन बुक करा रखी थी । बाहर खड़ी शटल टैक्सी को हमने अपनी बुकिंग बताई तो उसके ड्राइवर ने कहा, 'आपने इंटरनेट से बुकिंग की है इसलिए टिकट और टैक्सी नंबर आपको अंदर बुकिंग काउंटर से लेना पड़ेगा ।'

टिकट और टैक्सी नंबर के लिए आदेश जी को फिर से अंदर जाना पड़ा इस प्रक्रिया में भी लगभग आधा घंटा और लग गया । लगभग 45 मिनट की ड्राइव के पश्चात हम अपने लिए पहले से ही बुक होटल चर्चिल पहुंचे । $ 55 किराया हमें एयरपोर्ट से होटल पहुंचने में देना पड़ा ।

चर्चिल होटल तथा होटल का कमरा अच्छा था । रेंट भी $ 100 था । समय कम था अतः हम सामान अपने कमरे में रखकर, जल्दी से फ्रेश होकर रिसेप्शन में आए । रिसेप्शन में बैठे व्यक्ति को अपने कम समय की समस्या बताते हुए वाशिंगटन कैसे घुमा जाए के संदर्भ में हमने उससे सारी जानकारियां प्राप्त कीं । उसने हमें पहले कैनेडी साइंस एंड स्पेस सेंटर जाने की सलाह दी तथा उसी ने नाइट टूर की हमारी बुकिंग भी करा दी जो शाम 6:00 बजे से प्रारंभ होना था । हमारे आग्रह पर उसने टैक्सी का भी अरेंजमेंट कर दिया।

हमारे पास 4 घंटे थे । रिसेप्शन से वाशिंगटन टूर बुक लेकर टैक्सी वाले को कैनेडी स्पेस सेंटर ले चलने का निर्देश दिया । टैक्सी चल पड़ी । टैक्सी ड्राइवर ने रास्ते में टैक्सी एक जगह खड़ी की तथा हमसे कहा कि यह वाइट हाउस है अर्थात प्रेसिडेंट हाउस... हम थोड़ा कंफ्यूज हुए क्योंकि हमारे मनमस्तिष्क में व्हाइट हाउस की एक दूसरी तस्वीर अंकित थी । फिर भी हमने वहां खड़े होकर फोटो खिंचवाई तथा कंफ्यूज माइंड के साथ टैक्सी में बैठकर अपने गंतव्य स्थल की ओर चल दिए । लगभग 10 मिनट की ड्राइव के पश्चात हम कैनेडी साइंस एवं स्पेस सेंटर पहुंचे । टैक्सी वाले ने हमसे $12 टैक्सी का किराया लिया ।

कैनेडी स्पेस सेंटर में अच्छी खासी भीड़ थी । यहां रॉकेट के कई मॉडल थे । अपोलो 15 की बेसलेट तथा लैंडिंग साइट का चिन्ह संजोकर रखा था वहीं अपोलो 16 के द्वारा लाया राक यानी चट्टान का एक टुकड़ा (एंथ्रोसिस्ट) जो पुरानी ल्युनर क्रस्ट (चंद्रमा का टुकड़ा) से बना था तथा जिसकी उम्र डेटिंग की आर्गन विधि द्वारा 4.19 बिलियन पुरानी बताई गई है, वह भी दर्शकों के दर्शनार्थ रखा हुआ था । इसके साथ ही अपोलो 17 द्वारा लाई मिट्टी जो विभिन्न साइज के पार्टीकल के द्वारा बनी थी, का सैंपल भी वहां था । कुछ एस्ट्रोनेट तथा चंद्रयानों के बारे में जानकारी के अलावा उनके कपड़े तथा मॉडल भी वहां रखे हुए थे । सबसे पहले चंद्रमा पर उतरने वाली चार पहिया वाली गाड़ी ( रोवर ) का मॉडल अलग आकर्षण पैदा कर रहा था । सबसे अच्छी बात तो यह थी कि कुछ वृद्धजन भी व्हीलचेयर पर बैठकर इस स्पेस सेंटर को देख रहे थे ।

लगभग एक घंटा यहां व्यतीत करने के बाद हम बाहर निकले । दोपहर के 2:00 बज रहे थे । सुबह से कुछ खाया नहीं था । अब भूख लगने लगी थी । बाहर निकले तो बाहर एक बड़े से मैदान में एक ओपन एयर रेस्टोरेंट नजर आया जहाँ कुछ टेबिल कुर्सियां भी थीं । चाय तो मिली नहीं , आदेश जी कॉफ़ी और बर्गर लेकर आ गए । कॉफ़ी बड़े ग्लास में थी जिसके ऊपर कवर था । उसके साथ ही स्ट्रॉ भी थी । इतने बड़े कप में कॉफी देखकर लगा अगर एक ही कप कॉफी लेते तो ज्यादा अच्छा था । हम जहां बैठे थे वहां से वाइट हाउस तथा एक कुतुब मीनार जैसी संरचना नजर आ रही थी जिसे वॉर मेमोरियल शहीदों की याद में बना स्मृति स्थल बताया गया । उसे देखकर हमें हमारे देश की राजधानी दिल्ली में स्थित 'अमर जवान ज्योति' की याद आ गई । अंतर सिर्फ इतना था कि हमारे भारत में वीर सैनिकों की याद में अमर जवान ज्योति सदैव जलती रहती है पर यहां ऐसा कुछ नहीं था । कॉफी पीते-पीते होटल चर्चिल से प्राप्त वाशिंगटन डी.सी. का टूरिस्ट लिटरेचर पढ़ने लगी । तब पता चला जिसे मैं अभी तक वाइट हाउस समझ रही थी वह वास्तव में यू.एस. कैपिटल अर्थात अमेरिकी संसद है । मन ही मन टैक्सी वाले को मैंने धन्यवाद दिया जिसने हमें व्हाइट हाउस के सामने रोककर उसके बारे में बताया था ।

लिटरेचर पढ़ते-पढ़ते मन में विचार आया कि वाशिंगटन को वाशिंगटन डी.सी. क्यों कहा जाता है इसका उत्तर भी तुरंत ही मिल गया । अमेरिकी कांग्रेस ने सन 1790 में रेजिडेंस एक्ट पास किया था, उसके अनुसार प्रेसिडेंट जॉर्ज वाशिंगटन ने एक एरिया (जगह ) का चुनाव किया था जो पोटमैक रिवर के पास था जिसे अब यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका की राजधानी कहा जाता है । संविधान ने उसे फेडरल डिस्ट्रिक्ट (अनेक स्वतंत्र राज्यों का जिला) के रूप में स्थापित किया है । फेडरल डिस्ट्रिक्ट को पहले जॉर्ज वाशिंगटन के सम्मान में वाशिंगटन सिटी कहा गया और उसके चारों ओर के भूभाग को अमेरिका की खोज करने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस के सम्मान में टेरिटरी ऑफ़ कोलंबिया... कोलंबिया का भूभाग कहा गया । सन 1871 में कांग्रेस ने एक एक्ट पास किया जिसके अनुसार वाशिंगटन सिटी और टेरिटरी ऑफ़ कोलंबिया को एक कर दिया गया तथा एक नया नाम डिस्ट्रिक्ट ऑफ कोलंबिया (कोलंबिया का जिला) दिया गया क्योंकि उस समय तक वाशिंगटन सिटी को अमेरिका की कैपिटल के रूप में जाना जाने लगा था अतः दोनों को एक करने के कारण इसको वाशिंगटन डी.सी. कहा जाने लगा डी.सी. का अर्थ है डिस्ट्रिक्ट आफ कोलंबिया ।

अभी हमारे पास समय था । शाम को तो हमारी बुकिंग थी ही, हम केनेडी स्पेस सेंटर के पास स्थित नेशनल आर्ट गैलरी चले गए क्योंकि वह सिर्फ 5:00 बजे तक ही खुली रहती है । उसमें कई दीर्घाएं थीं । किसी में पेंटिंग तो किसी में स्टैचू... एक जगह तो लिंकन मेमोरियल का पूरा मॉडल ही बना हुआ था । आर्ट गैलरी काफी विस्तृत क्षेत्र में फैली होने के कारण पूरी देख पाना तो हमारे लिए संभव नहीं था पर फिर भी हमने कई गैलरी देखी तथा कुछ फोटोस भी खींचे । 5 कैसे बज गए पता ही नहीं चला । समय की पाबंदी के कारण हमें बाहर निकलना पड़ा ।

कुछ देर हम बाहर पड़ी बेंच पर बैठकर नजारा देखते रहे फिर सोचा वहाँ चलना चाहिए जहां से हमें टूरिस्ट बस पकड़नी है । बस को यूनियन स्टेशन से जाना था । टैक्सी पकड़कर हम लगभग 10 मिनट में स्टेशन पहुंच गए । बस जाने में अभी देरी थी । वाशिंगटन से न्यूयार्क जाने के लिए हमने ट्रेन में रिजर्वेशन कराया था क्योंकि हम वहां के विभिन्न मोड ऑफ ट्रांसपोर्ट के बारे में जानना और समझना चाहते थे । यूनियन स्टेशन से ही हमारी ट्रेन को चलना था ।

यहाँ ट्रेन सर्विस को आर्मट्रेक कहा जाता है । हमारे पास ई टिकट था । हमें बताया गया था कि हमें वह टिकट दिखा कर दूसरी टिकट लेनी है । हमारी ट्रेन सुबह की थी फिर भी हम वहां का सिस्टम जाने के लिए अंदर गए । यहां हमारे देश की तरह प्लेटफार्म टिकट लेने की आवश्यकता नहीं पड़ी । हम अंदर गए तो बड़े-बड़े रेस्टोरेंट तथा दुकानें नजर आईं जहां विभिन्न तरह का सामान मिल रहा था । स्नेक से लेकर कपड़ों तक की विभिन्न दुकानें थी पर ट्रेन की पटरी कहीं नजर नहीं आ रही थी । हम रिजर्वेशन काउंटर में लगी लाइन में लग गए । हमारा नंबर आने पर काउंटर पर खड़े व्यक्ति ने हमारा ई टिकट देखकर प्लेन के बोर्डिंग पास जैसा टिकट हमें दिया । उसमें गेट नंबर भी लिखा हुआ था । पूछने पर उसने हमसे आधे घंटे पहले पहुंचने के लिए कहा । समय अभी भी बाकी था । सामने मैकडोनाल्ड दिखाई दिया । हम उसमें यह सोच कर चले गए कि चलो कुछ स्नेक ले लिया जाए जिससे रात को डिनर की आवश्यकता ही न पड़े । आदेश जी फ्रेंच फ्राई तथा दो बड़े गिलास स्प्राउट लेकर आ गए । मुझे कोल्ड ड्रिंक ज्यादा पसंद नहीं है । अपने भारत में अगर कोई ऑफर करता है तो या तो मैं मना कर देती हूँ या बहुत थोड़ी लेती हूँ । इतना बड़ा ग्लास देखकर मैंने लेने से मना किया तो आदेश जी ने कहा,' ले लो 2:30 डॉलर की मिनरल वाटर की 1 लीटर की बोतल है । लगभग इतने की ही यह है ।सादे पानी की जगह यही ठीक लगा इसलिए ले आया ।'

बाहर निकले तो एक दो जगह नल दिखे जिनकी टोटी ऊपर की ओर थी । अर्थात पानी ऊपर से नीचे की ओर आ रहा था तथा लोग उसकी धार के आगे मुंह लगाकर पी रहे थे । हमारा इस तरह से पानी पीने का मन नहीं किया । खा पीकर बाहर निकले तो बस का समय हो गया था ।

हमारी बस सामने ही खड़ी थी । हम उस में बैठ गए। बस बहुत ही सामान्य थी। सभी सवारियों के बैठते ही बस चल पड़ी । बस एक मेक्सिकन महिला चला रही थी ।वही कंडक्टर तथा गाइड का काम भी कर रही थी । उसके शब्द ठीक से समझ में न आने के कारण हम उसकी पूरी बात समझ नहीं पा रहे थे पर फिर भी काम चल रहा था । वहां के दर्शनीय स्थलों व्हाइट हाउस , यू.एस. कैपिटल, वाशिंगटन मॉन्यूमेंट ,सुप्रीम कोर्ट, बोटैनिकल गार्डन दिखाते हुए उसने बस अमेरिका के पूर्व प्रेसिडेंट रुजवेल्ट के नाम पर निर्मित रूजवेल्ट मेमोरियल में रोकी । यहां घूमने के लिए हमें लगभग 1 घंटे का समय दिया । पार्क नुमा रुजवेल्ट मेमोरियल काफी बड़े हिस्से में फैला हुआ है । इसमें अमेरिका के प्रेसिडेंट रूजवेल्ट की मूर्ति के अलावा कई जगह फाउंटेन बने हुए हैं तथा जगह-जगह पत्थरों पर उनके उपदेश खुदे हुए हैं । पोटो मैक रिवर के किनारे बनाया मेमोरियल देखने लायक है ।

अब अंधेरा हो चला था ।यहां अंधेरा भारत की तुलना में देर से होता है लगभग आठ, 8:30 बजे ...हमारी यात्रा पुनः प्रारंभ हुई । इस समय बस ने हमें लिंकन मेमोरियल के सामने उतारा । यह भी काफी बड़ा स्मारक है पर इस समय तक हम काफी थक गए थे अतः ऊपर चढ़कर नहीं गए । नीचे से ही हमने फोटोग्राफी की । इसके बाद हमारी बस उस जगह रुकी जो वियतनाम में हुए शहीदों के नाम पर बनाया गया है । यहां फोटोग्राफी करते हुए हम सोच रहे थे कि व्यर्थ ही यह प्रचारित किया जाता है कि इन पाश्चत्य देशों के व्यक्तियों के मन में भावनाओं और संवेदनाओं के लिए कोई स्थान नहीं होता है । अगर यह सच होता तो व्यक्ति विशेष की याद में बनाए रूजवेल्ट और लिंकन मेमोरियल के साथ वार मेमोरियल और वियतनाम में शहीद हुए शहीदों के नाम पर बने इन मेमोरियलों का अस्तित्व ही नहीं होता ।

इन स्थानों के बाद कुछ अन्य स्थानों को बस में बैठे- बैठे ही घुमाया और अंततः हमें यूनियन स्टेशन छोड़ दिया ।

हमें दुख था तो इस बात का कि कहां तो हम सोच रहे थे कि बस के टूर के जरिए हमें वाइट हाउस, वाशिंगटन मोनुमेंट, यू. एस. कैपिटल के नजदीक जाने का अवसर मिलेगा या कुछ देर तो बस वहां रुकेगी पर ऐसा कुछ नहीं हुआ । अगर ऐसा पता होता तो जब हम कैनेडी स्पेस सेंटर गए थे तभी यू.एस. कैपिटल और वाशिंगटन मोनुमेंट के नजदीक तक जा सकते थे क्योंकि वे दोनों ही स्थान वहां से बहुत ही पास थे पर हम यह सोचकर नहीं गए कि जब टूरिस्ट बस से टिकट बुक करा ही लिया है तब उसी समय देख लेंगे । इस समय बस से इन स्थानों को दूर से ही देख कर संतोष करना पड़ा पर अब कुछ कर भी नहीं सकते थे क्योंकि अब हमारे पास समय ही नहीं था सुबह ही हमें न्यूयॉर्क के लिए निकलना था ।

वाशिंगटन का यू.एस. कैपिटल वाला एरिया हमें काफी कुछ अपने दिल्ली के राजपथ जैसा लगा । वैसी ही शांति , वैसी ही भव्य इमारत...अंततः हमने अपने होटल की ओर जाने के लिए टैक्सी पकड़ी । कुछ दूर ही गए होंगे कि टैक्सी वाले ने हमसे पूछा , ' क्या हम भारत से आए हैं ?'

हमारे सकारात्मक उत्तर पर वह भावुक हो उठा वह दिल्ली से था । करीब 20 वर्षों से वह यहां रह रहा था पर फिर भी घर की याद उसे बेचैन कर देती थी । उसका कहना था कि अपना भारत जैसा कोई देश नहीं है । पैसा कमाने के लिए वह यहां आया था । सोचा था कुछ दिन यहां रहकर घरवालों के गरीबी दूर कर दूंगा फिर अपने देश लौट जाऊंगा पर धीरे-धीरे उसकी आवश्यकता मजबूरी बनती गई और अब वह चाह कर भी घर नहीं लौट पा रहा है। होटल पहुंचकर हमने उसे किराया देना चाहा तो वह मना करने लगा बोला, ' आप तो मेरे ही देश से हो भला अपने भाई बंधुओं से क्या लेना ।'

हमारे बहुत समझाने पर वह पैसे लेने को तैयार हुआ । उसकी भावनाओं और उसके व्यवहार ने हमें इतना भाव विभोर किया कि बरबस दिलो-दिमाग में पंकज उधास का गाना... चिट्ठी आई है वतन से चिट्ठी आई है... घूमने लगा । न जाने क्यों ऐसा महसूस होने लगा यह गाना किसी ने ऐसे ही नहीं लिख दिया वरन ऐसी ही किसी परिस्थिति ने लेखक की भावनाओं को कागज पर उतारा होगा । वैसे भी जो कथा, कहानी ,गीत दिल की गहराइयों में उतर कर लिखी जाती है, वही पाठकों के दिल में स्थान बना पाती है ।

देश प्रेम की भावना देश से दूर जाने पर ही शिद्दत से महसूस होती है । अपने लोग बहुत याद आते हैं अगर ऐसा नहीं होता तो विदेशी धरती पर हम भारतीय अपनी संस्कृति को जीवित रखने के प्रेम में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे नहीं बनाते ...भारत से जुड़े रहने की कोशिश में ही भारतीयों ने विदेशी धरती पर भारतीय मार्केट या रेस्टोरेंट भी बना लिए हैं । यहां आकर कुछ देर के लिए ही सही व्यक्ति अपने देश की माटी से जुड़ाव महसूस कर प्रसन्नता पाने की कोशिश कर ही लेता है ।

भावुक मन से हमने होटल में प्रवेश किया । काफी थके थे अतः कमरे में रखे कॉफी मेकर में दो कप कॉफी बनाई तथा साथ में लाए स्नेक्स के साथ कॉफी पीकर सोने की तैयारी करने लगे । कल हमें अपने दूसरे पड़ाव के लिए निकलना था । होटल के रिसेप्शन पर हमने सुबह 5:00 बजे ही टैक्सी बुलाने के लिए कह दिया था । यद्यपि ट्रेन 7:00 बजे की थी पर शिकागो में प्लेन छूट जाने के कारण हमने समय से पहले पहुंचने का मन बना लिया था । सुबह फ्रेश होकर कॉफी पी ही रहे थे कि रिसेप्शन से टैक्सी आने की सूचना आ गई । हम शीघ्रता से नीचे आए तथा चेक आउट करके लगभग 1 घंटे पहले ही हम यूनियन स्टेशन पर पहुंच गए । हम टिकट में दिए गेट पर पहुंचे तो देखा कुछ यात्री हमारी तरह ही वहां बैठे हुए हैं । यहां की व्यवस्था तथा माहौल अपने देश के स्टेशन से एकदम अलग था । यहां भीड़ भाड़ का नामोनिशान नहीं था । सच तो यह है कि यहां रेलवे स्टेशन को भी एयरपोर्ट की तरह विकसित किया गया है तथा उसी तरह की व्यवस्था है । एयरपोर्ट की तरह ही लगभग 20 मिनट पहले गेट खुला । गेट पर उपस्थित व्यक्ति हर व्यक्ति की टिकट चेक करके ही अंदर जाने दे रहा था । हम भी औरों की तरह गेट के अंदर प्रविष्ट हुए तथा अन्य सहयात्रियों का अनुसरण करते हुए आगे बढ़े । एलिवेटर से नीचे उतरते ही हम प्लेटफार्म पर आ गए । ट्रेन खड़ी थी कोई सीट नंबर नहीं था अतः जो भी डिब्बा सामने पड़ा हम उसमें बैठ गए । ट्रेन हमारे देश में चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस जैसी थी । वैसा ही सीटिंग अरेंजमेंट था । अंतर था तो सिर्फ इतना कि इसमें नाश्ते एवं खाने की व्यवस्था नहीं थी । अगर किसी को कुछ लेना हो तो वह ट्रेन में उपस्थित पैंट्री कार से ला सकता है ।

धीरे-धीरे एक के बाद एक स्टेशन गुजरते जा रहे थे । भारत जैसे ही प्लेटफार्म , वैसे ही बैनर... हां यह अवश्य है कि यहां प्लेटफार्मो में साफ-सफाई भारत की तुलना में अधिक थी तथा भीड़ भाड़ भी हमारे देश के स्टेशनों जितनी नहीं थी । ट्रेन की खिड़की से निहारते निहारते हुए ऐसा लगा कि चाहे हम दुनिया के किसी भी हिस्से में क्यों न चले जाएं प्राकृतिक संपदा तो प्रत्येक स्थान में एक जैसी ही रहेगी । यह अवश्य है प्रकृति विभिन्न समय और जलवायु के अनुसार विभिन्न स्थानों में विभिन्न सौंदर्य बिखेरेगी । नदी, नाले ,तालाब तथा पहाड़ इत्यादि हर जगह एक जैसी ही सुंदरता या कुरूपता प्रदान करेंगे । यही कारण था कि यहां भी भारत जैसे ही खेत, छोटे बड़े घर, कहीं कहीं गंदगी भी दिख रही थी । इसी बीच टिकट चेकर आकर टिकट चेक कर गया ।

सुधा आदेश

क्रमशः