रघुवन में नदी किनारे दो पदयात्री,अपना भोजन करने के लिए बैठे थे| उनके पास भोजन से भरा हुआ एक डिब्बा था| जैसे ही उनमें से एक ने वो डिब्बा खोला, भोजन की सुगंध आसपास फ़ैल गई| अवश्य ही भोजन बहुत स्वादिष्ट रहा होगा भोजन की सुगंध डग्गु बंदर तक भी पहुंची जो की पास में ही एक पेड़ पर था| डग्गु का मन भी वो भोजन पाने के लिए ललचा गया| उसने उन लोगों को देखा वो बिना किसी डर के बैठे थे और भोजन करते हुए बातें कर रहे थे| डग्गु ने मौका देखा, छलांग लगाई और सीधा भोजन को अपने हाथ में उठा लिया| कुछ भोजन उसने अपने मुंह में डाला और कुछ हाथ में लिया| फिर छलांगे लगाता हुआ रघुवन के अंदर चला गया| वो पदयात्री कुछ दूर तक तो उसका पीछा किए परन्तु रघुवन के ज्यादा अंदर जाने का उनका साहस नहीं हुआ| वो नदी का पानी पी कर आगे बढ़ गए|
डग्गु सीधा अपनी माँ के पास पहुंचा और उन्हें अपने साथ लाया हुआ भोजन दिखाया| डग्गु लगातार भोजन खाये जा रहा था | माँ ने भोजन नहीं खाया और डग्गु के पास आकर बैठ गई|
उसने अपनी माँ से बोला “यह भोजन हमारे भोजन से अलग है| इसका स्वाद मीठा नहीं है| मुझे यह बहुत पसंद आ रहा है| तुम भी खाओ माँ|”
डग्गु की माँ बोली “हाँ यह भोजन हमारे फल - पत्ती - कंद - मूल वाले भोजन से अलग होगा| इसमें नमक होगा| इसीलिए यह हमारे भोजन से अलग है। परन्तु मैं इन्हें दो कारणों से नहीं खाउंगी|”
डग्गु ने भी खाना बंद कर दिया और माँ से पूछा “क्या दो कारण माँ?”
उसकी माँ बोली “पहला तो यह भोजन चोरी किया हुआ है, चोरी किया हुआ भोजन खाके, मैं तुम्हारी चोरी में भागीदार नहीं बनना चाहती| मुझे बहुत दुःख हुआ कि मेरा बेटा चोरी करके भोजन लाया|”
डग्गु अब दुखी हो गया, उसको अपनी गलती पता चली, उसने माँ से पूछा “ माँ मुझे माफ़ कर दो मैंने चोरी करी, अब मैं आगे से कभी चोरी नहीं करूँगा, मैं भी यह चोरी किया हुआ भोजन नहीं करूँगा| और माँ दूसरा कारण?”
माँ बोली “बेटा दूसरा कारण है नमक का, यह नमक का स्वाद है शायद जो जीव को प्रकृति से अलग कर देता है| जब तक मनुष्य नमक नहीं खाता था वो हमारी ही तरह प्रकृति प्रेमी था| वो प्राकृतिक तरह से भोजन खोजता और खाता था| मैंने सुना है उस समय उसका शरीर बहुत विशाल और शक्तिशाली हुआ करता था| उसकी आयु बहुत लम्बी हुआ करती थी| परन्तु जब से उसने नमक का स्वाद चखा तब से उसका व्यवहार और शरीर बदल गया| वो स्वयं को प्रकृति का स्वामी समझने लगे| धीरे धीरे वो प्रकृति से भी दूर भी हो गया| ऐसा कहा जाता है जो कभी एक बार नमक खाले तो वो हमेशा नमक की ही तलाश में रहता है| तूने उन लोगों का नमक खाया है| इससे तू उनके नमक का कर्ज़दार भी बन गया| तुझे वो क़र्ज़ उतरना होगा| नहीं तो परिणाम अच्छा नहीं होगा|”
डग्गु बोला “ मैं समझ गया माँ| अभी वो लोग रघुवन से बाहर नहीं गए होंगे| मैं जल्दी ही उनका क़र्ज़ उतार कर वापिस आता हूँ|”
पदयात्री भूखे ही सड़क पे चले जा रहे थे | तभी सड़क के किनारे बंदरों का झुण्ड उनके सामने आया| वो दोनों डर गए| बंदरों के हाथ मैं बहुत सारे फल थे| बंदरों ने सारे फल नीचे रख दिए और पदयात्रियों को देख कर चले गए| पदयात्री फलों के पास पहुंचे| बहुत सारे पके हुए रसीले फल थे| कुछ फल उन्होंने खाकर अपनी भूख शांत करी और बचे हुए फल अपनी पोटली में भर कर अपने रास्ते निकल दिए| डग्गु पीछे से देख रहा था| वो बहुत खुश था| उसका नमक का क़र्ज़ उतर गया था| उसने जाकर यह बात अपनी माँ को बताई। उसकी माँ भी बहुत खुश हुई।
फिर सबने मिलकर पार्टी करी|