sweetheart in Hindi Moral Stories by Bhupendra Singh chauhan books and stories PDF | जानेमन

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जानेमन

उर्मि के कदमों में आज तेजी थी।हर दिन से आज 10 मिनट देर से थी वह।सुबह वह भूल ही गयी थी कि आज शुक्रवार है और स्टेशन पर कोई उसका इंतजार कर रहा होगा।कैंट स्टेशन जाने वाली सड़क हर रोज की तरह गुलजार थी।स्टेशन और शहर को जोड़ने वाली यह इकलौती सड़क थी इसीलिए यह सड़क दिन-रात में भेद नही करती थी।उर्मि भीड़ को चीरते हुए फल वाले ठेले के पास आकर रुकी।ठेले वाले ने नजर उठाकर उसे देखा, एक पल को मन में चंचलता आई और वह जल्दी-जल्दी बाकी ग्राहक निपटाने लगा।वह जानता था यह सामने जो लड़की खड़ी है,अगले 15 मिनट इसी से बहस करने में जाया हो जाएंगे।यह उनका हर बार का नियम था।बिना दोनों की बहस के सौदा पूरा ही नही होता था।अब दोनों ही इसके आदी हो चुके थे।उर्मि ने हर बार की तरह सेब के भाव पूछकर शुरुआत की और तब तक मोल-तोल रूपी जिरह करती रही जब तक कि फल वाले ने 100 के सेब 60 में न लगा दिए।यही क्रम 500 ग्राम अंगूर खरीदने में भी दोहराया गया।
खैर उर्मि ने फल लिए और फल विक्रेता को पसीना पोंछते छोड़कर कैंट स्टेशन की ओर बढ़ गयी।
बमुश्किल 23 बसन्त देख चुकी उर्मि को इस जगह से कोई डर नही था।वह यहीं बड़ी हुई।सब कुछ उसका देखा-सुना-जिया है।
दोनों हाथों में फल लिए वह स्टेशन की सीढ़ियां उतरते हुए प्लेटफार्म नंबर-1 पर आई।यही उसकी मंजिल है।यही उसका मंदिर है।वह यहां पिछले 2 वर्षों से हर शुक्रवार आती है। अपनी जानेमन से मिलने।
प्लेटफार्म पर उसने एक सरसरी नजर दौड़ाई।भीड़ हमेशा की तरह कहीं पहुंचने की जल्दी में पानी की तरह बही जा रही थी।उसकी निगाह एक जगह जाकर रुक गयी।सामने उसकी जानेमन बैठी थी और शायद उसी की राह देख रही थी।
"अहा, किसका इंतजार हो रहा है?"उर्मि ने बैठते हुए पूछा।
"तुम्हारे ही इंतजार में थी बेटा, पिछली बार के फल कल शाम को ही खत्म हो गए।"बूढ़ी जानेमन ने कहा।
"तब से कुछ नही खाया !!"उर्मि ने चकित होकर पूछा।उसे अफसोस हुआ कि आज उसने इतनी देर क्यों कर दी थी।
"नही बेटा!!"जानेमन ने कहा और उसकी आंखें भीग गयीं।
70 साला जानेमन अपाहिज है, चल-फिर नही सकती।पिछले 3 वर्षों से वह यहीं बैठकर माला फेरती रहती है।नही,भीख नही मांगती वह।बस बैठी रहती है।कोई कुछ दे जाता है तो ले लेती है।मांगती किसी से नही है।
आज उसकी आँखों मे आंसू थे।शायद गुजरा वक्त याद आ गया था।अभी 3 साल पहले की ही तो बात थी जब उसका अपना परिवार था,घर था,पति था,बच्चे,बहू,पोते सब कुछ था।जब तक आदमी जिंदा था सब कुछ ठीक था।आदमी मरा तो घर के बेटे-बहुओं को बुढ़िया जननी नहीं बल्कि बोझ लगने लगी।और फिर तो एक दिन हद हो गयी।बड़ा बेटा तीर्थयात्रा करवाने लाया।हरिद्वार जाने वाली गाड़ी में बूढ़ी जानेमन बैठी तो फिर बैठी ही रही।हजारों कष्ट झेलकर पाल पोसकर बड़ा किया गया लड़का पढ़ लिखकर इतना बड़ा हो गया कि अपाहिज मां को छोड़कर बीच रास्ते में ही कहीं उतर गया।बुढ़िया राह देखती रही लेकिन न उसे आना था न ही आया।भूल से भटके लोग भले ही वापस आ जाएं जानबूझकर भटके हुए लोग वापस नही आते।बूढ़ी जानेमन 2 दिन तक भूखी-प्यासी ट्रेन में पड़ी रही।गाड़ी चलती रही।पुराने यात्री उतरे उनकी जगह नए यात्रियों ने ली।चेहरे बदलते रहे, लोग आते जाते रहे बस वही नही आया जिसका बूढ़ी मां को इंतजार था।इंतज़ार की कोई तय उम्र नही होती और मां के लिए तो यह अनन्तकाल तक चलने वाली प्रक्रिया है।वह ट्रेन में बैठी ही रहती यदि एक सज्जन का ध्यान उस पर नही जाता।उन सज्जन ने वृद्धा से बात की,स्थिति समझी और उसे इसी कैंट स्टेशन पर उतार दिया। बूढ़ी जानेमन अब भी विश्वास नही कर पा रही थी कि उसका बेटा उसे बोझ समझकर छोड़ गया है।वह प्लेटफार्म की सीढ़ियों पर बैठी हजारों आते-जाते चेहरों में अपने बेटे का चेहरा तलाशती,उनके पहनावे,चाल-ढाल,रूप-रंग का अपने बेटे से मिलान करती।अरे,वह सफेद शर्ट में गमछा डाले जो आदमी खड़ा है वही तो उसका बेटा है, हां वह उसे ढूंढ रहा होगा।बेचारा बहुत परेशान होगा।अभी वह इधर देखेगा, दौड़ते हुए अम्मा के पास आएगा और गोद में उठाकर घर ले जाएगा।वह भी तो ऐसा ही करती थी जब उसका बेटा बचपन में खेलते हुए घर से दूर चला जाता था।वह ढूंढते हुए उसके पास आती,दुलारती और गोद मे लेकर घर आ जाती।वह बेटे का नाम लेकर पुकारती है।कोई नही बोलता।भीड़ में कुछ चेहरे एक नजर उसे देखते हैं और भिखारन समझ मुंह फेर लेते हैं।वह कई बार बेटे का नाम लेकर बुलाती है।भीड़ में उसकी आवाज गुम हो जाती है।वह उसी सफेद शर्ट और गमछे वाले व्यक्ति को देखती रहती है।वह उसे अपनी नजरों से गुम नही होने देती।मानो यदि वह भी गुम हो गया तो वह क्या करेगी,कहाँ जाएगी,क्या खाएगी। बूढ़ी जानेमन की सारी आशाएं इकट्ठी होकर उसी व्यक्ति पे अवलम्बित हो गयी हैं।वह व्यक्ति मुड़ता है, बूढ़ी जानेमन अपनी बूढ़ी आंखों से भर नजर उसे देखती है,पहचानने की नाकाम कोशिश करने के बाद अंततः थकी हुई गर्दन झुका लेती है।अब और नही देखा जाता।आंखों से आंसू बहकर कई दफे सूख चुके हैं। जानेमन दाएं हाथ में मैली साड़ी का पल्लू लेकर माथे पे आये पसीने को पोंछती है और फिर उसी पल्लू में आंखे छिपा कर,फफककर रो पड़ती है।हाय री किस्मत!! ये भी दिन देखना था उसे!!
उसके कई दिन उसी जगह पर बैठे,भीड़ में अपने बेटों की शक्ल को पहचानने की कोशिश में बीत गए।भीड़ में से कोई अपाहिज समझकर रुपये उसके पल्लू में फेंक जाता तो उन्ही रुपयों से वह पास में पान मसाला बेचने वाले लड़के से खाने को कुछ मंगा लेती।इन्ही दिनों जब वह घर की मालकिन से प्लेटफार्म की भिखारन में तब्दील हो रही थी,उर्मि से मुलाकात हुई।तब से उर्मि हर शुक्रवार उससे मिलने आती है।
"कहाँ खो गयीं?" उर्मि ने उसकी आँखों के सामने हाथ लहराते हुए पूछा।
"नही,कहीं तो नहीं।"जानेमन ने यादों से निकलकर जबरन मुस्कराते हुए कहा।
उर्मि उसकी हालत जानती है।वह उसके अतीत से भी परिचित है।उसने जानेमन के घर,बेटों को खोजने की कोशिश की थी लेकिन सफल नही हो पाई।उर्मि जानती है कि जानेमन इस प्लेटफार्म में पड़ी रहकर भूखों मर जाएगी।वह हर दिन उसे देखने नही आ सकती।यही सोचकर उसने पिछले सप्ताह आसपास किसी वृद्धाश्रम की खोज की थी।एक सामाजिक संस्था के माध्यम से करीब 40 km दूर एक वृद्धाश्रम की जानकारी उसे हुई थी।बात करने पर वह लोग बूढ़ी जानेमन को रखने के लिए तैयार हो गए थे।
"बस 1 सप्ताह और यहां रुक लो,फिर हम तुम्हे तुम्हारे नए घर ले चलेंगे।जहां तुम अपनों के साथ रहोगी" उर्मि ने कहा।

जानेमन "घर" शब्द सुनते ही शंकालु नजरों से उर्मि को देखने लगी मानो "घर" और "अपने"शब्द पर अब उसका विश्वास न रहा हो।
"बेटा,यहीं पड़ी रहने दो।बस कुछ दिन की बात है। अब तो बस एक ही घर है जहां जाना है।पता नही क्यों वो भी रूठ गया है।"जानेमन ने ऊपर देखते हुए कहा।
"अरे मेरी प्यारी जानेमन!तुम्हे अभी बहुत जीना है।नए घर मे रहोगी तो सब भूल जाओगी।"
जानेमन जानती है कि वह सब कुछ कभी नहीं भूल पाएगी ।अब भी उसे अपने घर की याद आती है।वह घर जिसे उसने एक-एक पैसे जोड़कर ,पेट काटकर अपने पति के साथ मिलकर बनाया था,आज उसी घर में उसके रहने के लिए जगह नही थी।

एक महीने बाद
★★
आज उर्मि वृद्धाश्रम में अपनी जानेमन से मिलने आयी है।
जानेमन अपने कमरे में बैठी टोकरियाँ बुन रही है।वह दिनभर में कई टोकरियाँ बना लेती है।जानेमन अब यहां स्वस्थ और आराम से है। उसने उर्मि को देखा और मुस्कुरा दी।यह मुस्कुराहट उर्मि ने जानेमन के चेहरे पर पहली बार देखी है।जानेमन ने अपनी बनाई हुई टोकरियाँ उर्मि को दिखाईं।उर्मि ने जानेमन का हाथ अपने हाथों में ले लिया।एक गर्म आंसू का कतरा दोनों में से किसी एक की आंखों से चुपचाप निकलकर उर्मि के हाथों पे आ गिरा।

~ Bhupendra Singh