कहानी - तीन बत्ती चार रास्ता
कमला ने अपने पति से पूछा “ ये सुखिया दो दिन से काम पर नहीं आ रही है ? उसका पति मंगरू तो आपकी दुकान पर काम करता है न , कुछ बताया है आपको ? “
“ अरे हाँ , मंगरू ने कहा था . मैं तुम्हें बोलना भूल गया . आज दो घंटे पहले ही वह छुट्टी ले कर चला गया है . बोल कर गया कि धनेशी की माँ की तबियत ठीक नहीं है , डॉक्टर के पास जाना है . “ पति रमाकांत ने कहा
“ आप भी न , घर गृहस्थी की कोई चिंता नहीं रहती है . दो दिन से सारे बर्तन जूठे पड़े हैं , घर में झाड़ू पोंछा नहीं हुआ है . सुखिया अगर खुद न आ सकती थी तो कम से कम बेटी धनेशी को ही कुछ देर के लिए भेज दिया होता . “
“ धनेशी की परीक्षा चल रही है , तुम्हें पता है न . इसीलिए वह नहीं आ सकी होगी . “
“ उँह , पढ़ लिख कर कौन सा उसे कलक्टर बनना है . “
मंगरू सेठ रमाकांत की दुकान पर काम करता था . एक औद्योगिक नगर की कॉलोनी में सेठ की स्कूटर की डीलरशिप थी . सेठ को एक ही बेटा था अमोल . अमोल दसवीं कक्षा में शहर के मंहगे प्राइवेट स्कूल में पढ़ रहा था . मंगरू की बीबी सुखिया सेठ के घर का काम करती थी . उसकी एक बेटी थी धनेशी . वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी . धनेशी कंपनी की सामाजिक जिम्मेदारी के अंतर्गत चलाये जा रहे स्कूल में पढ़ती थी . वह पढ़ने में काफी तेज थी , अपनी कक्षा में प्रथम या द्वितीय स्थान तो उसका पक्का होता था . मंगरू और सुखिया दोनों बेटी पर काफी आस लगाए बैठे थे .
दूसरे दिन शाम को कमला ने अमोल से कहा “ तुम जरा सुखिया के घर जा कर बोल दो कि धनेशी को थोड़ी देर के लिए ही सही भेज दे , कुछ काम तो निपटा देगी . “
“ माँ , मैंने उसका घर नहीं देखा है . बस इतना जानता हूँ कि झोपड़ पट्टी में रहती है . “
“ तो कौन सा मुंबई या कलकत्ता है कि उसे ढूंढ नहीं पायेगा . बस्ती में 25 -30 झुग्गियां हैं , किसी से मंगरू की झुग्गी का पता पूछ लेना . जा अब देर न कर . “
अमोल अपनी साइकिल से मंगरू का घर खोजने निकला .शाम हो चली थी . कॉलोनी के क्वार्टर्स जहाँ खत्म होते थे , उससे थोड़ी ही दूरी पर एक नाला था जिसके ऊपर लकड़ी का पुल बना था . पुल को पार करते ही झुग्गी बस्ती थी . अमोल को मंगरू का घर खोजने में अधिक परेशानी नहीं हुई . उसने मंगरू की झुग्गी के टीन के दरवाजे पर दस्तक दी . घर में उस समय सिर्फ सुखिया ही थी . उसने पूछा “ कौन ? “
“ मैं अमोल . “
सुखिया ने हाथ में ढिबरी लिए दरवाजा खोला . ढिबरी भी क्या एक शीशी में तेल था . उसकी ढक्कन में छेद कर कपड़े की एक बाती बाहर तक निकली थी , वही जल रही थी .
“ अरे , मुन्ना बाबू . बोलो बाबू क्या बात है ? “ घर में मुन्ना अमोल के पुकार का नाम था
“ मम्मी ने कहा है कि अगर तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है तो धनेशी को ही कुछ देर के लिए भेज देने के लिए . “
“ मैं एक दो दिन और नहीं आ सकूँगी , अभी बुखार ठीक से उतरा नहीं है . धनेशी अभी घर पर नहीं है . उसकी भी परीक्षा चल रही है , फिर भी मैं उसे एक घंटे के लिए तुम्हारे यहाँ जाने को कहूँगी . “
“ ठीक है , मैं चलता हूँ . “
“ मुन्ना बाबू , तुम लौटने समय चौराहे पर जो गोलचक्कर है , जिसके ऊपर तीन बत्ती वाला लैंप पोस्ट है , उसके नीचे धनेशी अभी पढ़ रही होगी . उसका बापू लौटते वक़्त साथ ले कर आता है . “
अमोल उस चौराहे के गोलचक्कर पर रुका . गोलचक्कर पर एक फुट ऊँची स्टील रॉड की फेंसिंग थी . उसी के बीच में एक ऊँचा लैंप पोस्ट था जिस पर तीन हाई पावर सोडियम वैपर बल्ब जल रहे थे . वहीँ एक बोरा बिछा कर धनेशी पढ़ रही थी . अमोल ने रुक कर उसे सुखिया का संदेश दिया और वह अपने घर चल पड़ा .
दूसरे दिन सुबह सुबह धनेशी सेठ के घर गयी . सेठ ने उसके परीक्षा के बारे में पूछा तो बोली “ आज मेरा पेपर नहीं है , इसलिए थोड़ी देर के लिए माँ ने आपके घर का काम देख लेने को कहा है . “
लगभग एक घंटे में काम निपटा कर धनेशी चली गयी . सेठ अपने परिवार के साथ नाश्ते पर बैठा था . अमोल ने धनेशी की झुग्गी के बारे में बताई और चौराहे पर बत्ती के नीचे उसके पढ़ने की बात भी कही .
एक दिन धनेशी पढ़ने के लिए चौराहे की तरफ जा ही रही थी तभी गोलचक्कर के पास एक लड़की ने अपनी साइकिल से उसको जोर से टक्कर मार दी . वह लड़की रॉन्ग साइड पर साइकिल चला रही थी . धनेशी गिर पड़ी . जल्द ही वह उठ कर खड़ी हुई और उसने एक जोर का थप्पड़ साइकिल वाली लड़की के गाल पर जड़ा और कहा “ अंधी हो क्या ? “
लड़की ने इंग्लिश में उसे इडियट कहा और चुपचाप अपना गाल सहलाते हुए चली गयी . पर गिरने से लगी चोट के कारण धनेशी की कलाई में मोच आ गयी जिसकी वजह से तीन दिनों तक उसे दर्द और सूजन रहा था .
मंगरू ने दुकान पर सेठ से यह बात बताई . सेठ ने घर आ कर पत्नी कमला से कहा “ घर बनाते समय अहाते के कोने में एक स्टोर रूम बनवाया था , वह खाली ही पड़ा है . उसमें कुछ पुराने टूटे फूटे फर्नीचर पड़े हैं . तुम कहो तो मंगरू को यहीं रहने को बोल दूँ . तुम्हारा भी काम आसान हो जायेगा . सुखिया या धनेशी कोई न कोई समय निकाल कर घर का काम कर दिया करेगी . “
“ हाँ , यह सही रहेगा . वहीँ पर कंस्ट्रक्शन के समय का हैंड पंप भी है , अभी तक काम करता है . पीने का पानी हमारे घर से ले लेगी . “
मंगरू सपरिवार सेठ रमाकांत के अहाते में रहने लगा . एक बार सेठ ने धनेशी का परीक्षाफल देखा तो उन्हें बहुत ख़ुशी हुई , वह अव्वल आयी थी . अमोल बोला “ पर उसके स्कूल में तो सिर्फ लेबर और दिहाड़ी मजदूर के बच्चे ही पढ़ते हैं . उनके बीच टॉप करने से उसकी बुद्धि का सही आकलन नहीं हो सकता है . “
सेठ ने अपनी रसूख के बल पर धनेशी का एडमिशन कॉलोनी के सेंट्रल स्कूल में करा दिया . अमोल का इंग्लिश मीडियम स्कूल अलग था , उस स्कूल में भी सेंट्रल बोर्ड का सिलेबस पढ़ाया जाता था . अमोल की पुस्तकें धनेशी को मिल जाती थीं . वहां भी धनेशी अपनी कक्षा में टॉप थ्री में रहती .
समय का चक्र अपनी नियत गति से घूम रहा था .दस वर्ष बीत गए . सेठ काल कवलित हो गए . अमोल बी ए करने के बाद अपने पिता का बिजनेस संभाल रहा था . उसकी शादी हो चुकी थी , उसे एक बेटा भी था . उधर धनेशी पढ़ाई लिखाई में काफी अच्छी थी ऊपर से उसे जाति के आधार पर आरक्षण की सुविधा भी प्राप्त थी . धनेशी को मेडिकल कॉलेज में एडमिशन मिला . एम बी बी एस करने के बाद वह लखनऊ के मेडिकल कॉलेज से पी जी कर रही थी . हालांकि धनेशी को सरकार से स्कॉलरशिप मिल रही थी फिर भी अन्य खर्चों के लिए सेठ परिवार ने समय समय पर उसकी काफी सहायता की थी . मंगरू और सुखिया दोनों तन मन से सेठ परिवार की सेवा करते और उनके प्रति बहुत आभारी थे .
एक बार अमोल अपनी पत्नी के साथ एक नजदीकी दोस्त के यहाँ शादी में गया हुआ था . दोस्त के कहने पर उसने मंगरू को शादी के कामकाज में मदद के लिए चार पांच दिनों के लिए उसके घर भेज दिया था . शादी के बाद वह अपनी कार से लौट रहा था . अमोल ड्राइव कर रहा था , पत्नी बगल की सीट पर बैठी थी .
अमोल के कार के आगे एक ट्रक था जिस पर लोहे की छड़ें लदी थीं . छड़ें ट्रक के काफी बाहर तक निकली थीं . अचानक ट्रक वाले ने ब्रेक लिया . अमोल ने भी ब्रेक लिया , पर कार के रुकते रुकते लोहे की छड़ें विंड स्क्रीन को और अमोल के चश्मे को तोड़ते हुए आँखों के अंदर छू गयी थीं . दूसरी ओर की एक छड़ उसकी पत्नी के हृदय
को भेद चुकी थी . मंगरू अमोल के दो साल के बेटे के साथ पीछे की सीट पर था . उन दोनों को कोई हानि नहीं हुई थी . अमोल की पत्नी ने अस्पताल पहुँचने के पहले ही रास्ते में दम तोड़ दिया .
अमोल को घायल अवस्था में लखनऊ की अस्पताल में लाया गया . इत्तफाक से धनेशी भी उसी अस्पताल में थी . अमोल की दोनों आँखों की रौशनी चली गयी थी . डॉक्टर ने कहा कि उसकी एक आँख तो बिलकुल बेकार हो चुकी है दूसरी में आँख प्रत्यर्पण किया जा सकता था . खबर मिलते ही उसकी माँ अस्पताल पहुंची . उसका दोस्त भी आ गया था . बेटे बहू के हाल पर वे खुद रोते रोते बेहोश हो जाती थीं . 24 घंटे बाद उन्होंने अपने को संभाला . बहू की अंतिम क्रिया सम्पन्न हुई . लगभग तीन सप्ताह बाद अमोल को अस्पताल से छुट्टी मिली . अमोल जब तक अस्पताल में रहा , धनेशी रोज उसकी देखभाल करती .
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद धनेशी अमोल को घर तक छोड़ने आयी थी . कमला को बेटे और पोते की चिंता सता रही थी . अमोल का बिजनेस उसकी अनुपस्थिति में उसके मामा और मैनेजर देख रहे थे . अमोल को एक आई डोनर का इंतजार था . सुखिया और मंगरू दोनों ने तय किया कि जिसकी भी मृत्यु पहले होगी , वह अपनी आँख मुन्ना बाबू को डोनेट करेगा .
एक दिन कमला ने सुखिया से कहा “ तेरी नजर में कोई लड़की हो तो बता , जो मुन्ना का जीवन भर साथ दे सके . मुझे ऊँच नीच , जात -पात किसी से फर्क नहीं पड़ने वाला है . बस वह मुन्ने और उसके बेटे की देखभाल करे . “
सुखिया ने अपने पति मंगरु से इसकी चर्चा की . वह बोला “ अपनी बेटी तो है , पर वह डॉक्टर बन गयी है . उससे पूछना सही नहीं होगा अमोल के लिए ? “
“ नहीं , बात सिर्फ उसके डॉक्टर होने की नहीं है . उसने मुझे बता रखा है कि वह अस्पताल के ही एक डॉक्टर रूप कमल बाबू से प्यार करती है . दोनों शादी के लिए भी तैयार हैं “
धनेशी भी उनकी बातें सुन रही थी . उसने कहा “ मैं भी अमोल बाबू के लिए चिंतित हूँ . मैं खुद उनके बारे में नहीं सोच सकती हूँ . मैं रूप कमल से भी बात कर के देखती हूँ . उसकी एक बहन है गुंजन , जिसकी एक आँख में बचपन से भेंगापन है . इसके अतिरिक्त उसके दोनों हाथों में छः छः अंगुलियां हैं , जिसके चलते उसकी शादी नहीं हो रही है . रूप भी उसके लिए लड़के की तलाश में है . “
दो महीने के बाद धनेशी और रूप कमल की शादी होने जा रही थी . रूप ने अपनी बहन से अमोल के बारे में बात की . उसने गुंजन को अमोल से मिलवाया . शुरू में गुंजन को हिचकिचाहट हुई तब रूप ने उसे समझाया और कहा “ अमोल को आई डोनर मिलते ही उसकी एक आँख की रौशनी वापस मिल जाएगी . “
गुंजन अमोल से शादी के लिए तैयार हो गयी . पहले रूप और धनेशी की शादी हो रही थी . गुंजन भी शादी में आई थी . धनेशी ने गुंजन को देखते ही पहचान लिया . उसके हाथों की अंगुलियां और आँख देख कर उसे पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई . उसने कहा “ तुम ? “
“ तुम दोनों एक दूसरे को जानती हो ? “ रूप ने बहन से पूछा
“ हाँ , भैया यह तो वही तीन बत्ती चार रास्ते वाली लड़की है जिसने मुझे इतने जोर से चांटा मारा था कि अभी . “ तक नहीं भूल सकी हूँ . भाभी को देख कर अभी भी मेरे गालों में झनझनाहट होने लगी है . “ बोल कर वह जोर से हँसने लगी .
फिर गुंजन ने धनेशी को गले लगाते हुए कहा “ माय डियर भाभी , मैं यूँ ही मजाक कर रही थी . उस दिन गलती मेरी ही थी . “
वहां मौजूद सभी लोग हँसने लगे . इसके कुछ ही दिनों बाद गुंजन और अमोल की भी शादी हुई . इस घटना के तीन महीने बाद सुखिया का देहांत हो गया . सुखिया ने अपनी आँख अमोल को डोनेट किया था . उसकी एक आँख अमोल को प्राप्त हुई . आई ट्रांसप्लांट के बाद अमोल अब देख सकता था . रूप और धनेशी भी आये हुए थे . मंगरू को अंदर से संतोष था कि उसकी पत्नी मर कर भी सेठ परिवार के चिराग को रौशनी दे गयी .
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समाप्त
नोट - यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है .
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