Kuchh chitra mann ke kainvas se - 4 in Hindi Travel stories by Sudha Adesh books and stories PDF | कुछ चित्र मन के कैनवास से - 4 - बोट शो

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कुछ चित्र मन के कैनवास से - 4 - बोट शो

बोट शो
कुछ समय मिलेनियम पार्क में व्यतीत करने के पश्चात अब हम बी.पी. पैदल पुल के द्वारा बाहर आए तथा मिशीगन लेक में होने वाले बोट शो के लिए चल दिए । भीड़ इतनी अधिक थी कि देख कर लग रहा था जैसे कोई मेला लगा हो । हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि ट्रैफिक पुलिस वाले घोड़ों पर चढ़कर ट्रैफिक कंट्रोल कर रहे हैं । जैसे तैसे हम गंतव्य स्थल पर पहुंचे । मिशिगन लेक के किनारे पहले से ही लोग अपनी दरी, चादर या कुर्सियां लेकर अपनी जगह घेर कर बैठे हुए थे । साथ ही खाना पीना भी चल रहा था। यह देखकर अच्छा लगा कि जिस देश के बारे में कहा जाता है सब अपने आप में मस्त रहते हैं , किसी को यह भी पता नहीं रहता कि उनके पड़ोस में कौन रहता है, ऐसे अवसरों पर बहुत थी इनफॉर्मल (अनौपचारिक )हो जाते हैं । हमारे यहां तो एक आम भारतीय परिवार कहीं भी जाएगा तो प्रेस के अच्छे कपड़े पहनकर निकलना चाहता है पर यह लोग जींस और टीशर्ट में कहीं भी चले जाते हैं । जूते चप्पल भी सामान्य ही रहते हैं ।

कहीं कोई खाली स्थान नजर नहीं आ रहा था इधर-उधर घूम कर आखिर प्रभा ने उस भीड़ भाड़ वाली जगह में बैठने के लिए थोड़ी सी जगह ढूंढ ही निकाली तथा अपने साथ लाई चादर वहां बिछाकर उस जगह को अपने नाम कर लिया । हम सब भी यह देखकर संतुष्ट थे कि अब हम इस शो का आनंद ले पाएंगे ।

उद्घोषक ने शो प्रारंभ होने की घोषणा की । इसके साथ ही एक के बाद एक नाव सामने से निकलने लगी । किसी में माइकल जैक्सन का शो चल रहा था तो किसी में हॉलीवुड की हस्तियां नाचती गाती नजर आ रही थीं, किसी में हैरी पॉटर के कारनामे थे तो एक बोट में लिखा था 2016 ओलंपिक स्टार्टिंग शिकागो ... वहीं वेलमोंट yachat क्लब (सी स्काउट) की बोट में लिखा था अरर...आई एम सी सिक ...। हर वोट का स्वागत वहां उपस्थित लोग जोर शोर से आवाजें निकालकर हर्ष के साथ कर रहे थे । अपने देश में 26 जनवरी पर विभिन्न प्रदेशों की झांकियां निकलती हैं । अंतर बस इतना था कि हमारे देश में झांकियां ट्रकों पर सजाई जातीं हैं तथा यहां इस वोट शो में झांकियां वोट पर सजी थीं ।

बोट शो के बाद लगभग 15 मिनट का क्रेकर (पटाखा) शो होना था । एक के बाद एक छूटते पटाखे आकाश में एक अद्भुत नजारा पेश कर रहे थे । लोग इस शो का खूब आनंद ले रहे थे पर एक बात बार-बार मन में आ रही थी कि क्या इस शो से प्रदूषण नहीं हो रहा है ? विशेषतया उस देश में जो स्वयं को प्रदूषण मुक्त करने का दावा करता है ।

बोट शो देखने के बाद हम चले । बीच रास्ते में ही बकिंघम फाउंटेन पड़ता है । समय था अतः हम वहां चले गए । बकिंघम फाउंटेन गोलाकार था तथा बहुत बड़े एरिया में फैला हुआ था । ठंडी- ठंडी हवाएं चल रही थीं । वहीं लय के साथ पानी छोड़ते विभिन्न प्रकार के फव्वारे के ऊपर विभिन्न समय में विभिन्न रंग गिरकर एक अनोखे रहस्यमय वातावरण का निर्माण कर , इस फाउंटेन की खूबसूरती को दुगणित कर रहे थे । इस फाउंटेन को देखकर हमें मैसूर के वृंदावन गार्डन के उस म्यूजिकल फाउंटेन का ध्यान आ गया जिसे हमने 80 के दशक में देखा था । संगीत की लहरों के साथ नाचती पानी की फुहारें... जितना उस समय उसे देख कर मन आनंदित हुआ था वैसा ही कुछ बकिंघम फाउंटेन को देखकर महसूस हो रहा था । मन कर रहा था कि एक 2 घंटे यहीं रुककर इसकी खूबसूरती को निहारते हुए कुछ समय बिताएं पर रात ज्यादा हो गई थी तथा हम सभी थक भी गए थे अतः न चाहते हुए भी हमें लौटना पड़ा ।

आदेश जी और पंकज जी तो घर पहुंचते ही सोने चले गए पर मैं और प्रभा कुछ समय बात करने के इरादे से रुक गए हमने इंडिया अपने माँ-पापा तथा बच्चों सेबात की । सब ठीक थे । संतुष्ट मन से
शुभरात्रि कहकर एक दूसरे से विदा ली ।

…….

दूसरे दिन रविवार था । सब आराम के मूड में थे और देर से उठे । सुबह की चाय हमने बाहर बनी कोटेज में पड़ी कुर्सियों पर बैठकर पी । आदेश और पंकज जी बैठकर बातें करने लगे तथा हम दोनों उठकर नाश्ते की तैयारी में लग गए । वहां साधारणतया रविवार को ब्रंच करने का रिवाज है यानि हैवी ब्रेकफास्ट तथा लंच गोल...पर उस दिन दोपहर में हमें एक सरप्राइज पार्टी में जाना था अब ब्रेकफास्ट सामान्य ही किया ।

ब्रेकफास्ट के पश्चात प्रभा ने कहा ' दीदी, कुछ सामान लाना है तुम्हें और जीजा जी को चलना हो तो चलो '

हमने सोचा जब घूमने आए हैं तो जितना घूम सकें, घूम लें । अतः प्रभा के साथ शॉपिंग सेंटर चले गए। पार्किंग प्लेस ने आकर्षित किया । पार्किंग प्लेस काफी बड़ा था । गाड़ियां भी बहुत ही व्यवस्थित ढंग से लगी हुई थीं । उस शॉपिंग सेंटर में दस बारह दुकानें थीं । गाड़ी पार्क करने के पश्चात हम एक दुकान में जा रहे थे कि तभी एक गाड़ी आई... हमें सड़क पार करते देखकर रुक गई जबकि वहां कोई गार्ड वगैरह भी नहीं था न ही कोई अन्य पैदल यात्री ...। हमारे सड़क पार करने के पश्चात वह गाड़ी आगे बढ़ी ।

हमें आश्चर्य में पड़ा देखकर प्रभा ने कहा, ' यहां पैदल चलने वालों का विशेष ध्यान रखा जाता है ।'

प्रभा की बात सुनकर अच्छा लगा जबकि हमारे भारत में सड़क पार करना बड़े जोखिम का काम होता है गाड़ीवाले स्वयं तो रुकते नहीं हैं, हाथ देखकर रोकना पड़ता है इस पर भी दाएं बाएं से गाड़ियां तेजी से निकलती ही जातीं हैं । ज़ेबरा क्रॉसिंग जगह जगह तो बनाए गए हैं पर ट्रैफिक रूल कोई फॉलो नहीं करता है ।

अनचाहे विचारों को झटक कर हम दुकान के अंदर गए …. उस मॉल नुमा दुकान में एक ही रूफ़ के नीचे विभिन्न तरह की वस्तुएं क्रोकरी, गारमेंट, खिलौने इत्यादि थे पर उस मॉल में भारत की तरह भीड़ भाड़ नहीं थी अतः आराम से घूम -घूम कर हमने हर चीज को देखा एवं परखा । आज से 10 वर्ष पूर्व अगर वहां जाते तो शायद हैरानी होती पर इंडिया में भी 'मॉल कल्चर ' आ जाने के पश्चात अब हमें कुछ नया या अनोखा नहीं लगा । जो सामान वहां डिस्प्ले हो रहा था उस तरह का हर सामान अब भारत में भी उपलब्ध है । मॉल में अधिकतर सामान चाइना का था । कुछ कपड़ों की डिजाइनें जानी पहचानी लगीं । उन्हें उठाकर देखा तो 'मेड इन इंडिया' देखकर सुखद आश्चर्य के साथएक अजीब सुकून का अहसास हुआ । वहां रखा हर सामान डॉलर में तो बहुत सस्ता लग रहा था पर जब उसे भारतीय रुपए में कन्वर्ट किया तो लगा इस रेट में तो हमारे भारत में भी यह सामान मिल जाएगा ।

प्रभा ने गिफ्ट में देने के लिए एक शर्ट खरीदी तथा शीघ्र ही घर लौट आए क्योंकि दोपहर में हमें पार्टी में जाना था । यह पार्टी प्रभा व पंकज जी के मित्र के द्वारा उनके पुत्र सुजय के ग्रेजुएट होने पर दी जा रही थी । पार्टी का मकसद सुन मुझे आश्चर्य में पड़ा देखकर प्रभा ने कहा, ' दीदी यहां बहुत कम बच्चे ही ग्रेजुएशन कर पाते हैं अतः यहां बच्चों के ग्रेजुएट होने पर पार्टी देने का यह प्रचलन है । वस्तुतः कुछ लोग तो यहां अपने बच्चों के हर क्लास में पास होने के बाद पार्टी देते हैं ,इसे ग्रेडेशन पार्टी कहा जाता है । दरअसल व्यस्तता के इस युग में लोग पार्टी देने के अवसर ढूंढते हैं जिससे न केवल उनकी नीरस दिनचर्या में बदलाव आता है वरन आपसी मेल मिलाप के साथ मित्रता में भी प्रगाढ़ता आती है । सरप्राइज पर उसने कहा कि ऐसा करने से बच्चे की खुशी दुगनी हो जाती है । वैसे सरप्राइज पार्टी का प्रचलन तो अब हमारे भारत में भी चल पड़ा है पर बच्चों के ग्रैजुएट होने पर किसी ने पार्टी दी हो ऐसा अभी तक नहीं सुना था... अगर बच्चा किसी प्रोफेशनल कोर्स में सलेक्ट हो जाता है या कंपटीट कर लेता है तब तब पार्टी दी या ली जाती है ।

नियत समय पर हम पार्टी में पहुंच गए । कुछ ही समय में सुजय ने अपने मित्रों के साथ हॉल में प्रवेश किया । वहां अपने ममा पापा तथा अन्य लोगों को देखकर उसके चेहरे पर आश्चर्य के भाव आ गए । जब तक वह कुछ कहता उसके ममा- पापा ने उसे गले से लगाकर बधाई दी । उसके बाद अन्य लोगों ने उसे बधाई दी ।

इसके पश्चात खाने-पीने का दौर प्रारंभ हो गया । खाना बिल्कुल भारतीय अंदाज में था । गोलगप्पे, टिकिया ,मूंग की दाल के चीले, छोले भटूरे के अलावा दोसा डोसा इडली भी थे... खाने में पनीर बटर मसाला, मिक्स वेज बूंदी रायता, मिस्सी रोटी, नान तंदूरी के साथ पुलाव, पापड़ ,अचार भी था । डेजर्ट में आइसक्रीम नहीं कुल्फी थी । कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि हम भारत में नहीं है सिर्फ पहनावा तथा वहां उपस्थित एक दो लोगों को छोड़कर सभी लोगों का अंग्रेजी में बात करना ही इस बात का एहसास करा रहा था कि हम भारत में नहीं किसी अन्य देश में हैं ।

सुधा आदेश
क्रमशः