एपीसोड - 12
एक सेवक ने उन्हें सीधे ही डाइनिंग हॉल में चलने का आग्रह किया। डाइनिंग हॉल में पचास लोगों की खाने की मेज़ पर पंद्रह सोलह मेहमान बैठ चुके थे। महारानी कुर्सी पर बैठी अपने राजसी भारी भरकम गहनों में व बनारसी सिल्क साड़ी में शानदार लग रही थीं। उन्हें देखते ही उन्होंने कहा, "वेलकम टु ऑल। प्लीज़ हैव अ सीट। "
महाराजा छोटा उदेपुर ने भी उनका सिर हिलाकर अभिवादन किया। महाराज भी घर की पूजा के कारण पारम्परिक राजसी पोषक में थे। सिर पर कलंगी वाली पगड़ी थी व कमर में कटार। मेज़ पर डोंगों का अम्बार लगा हुआ था.
वह छोटा उदेपुर के राजमहल के डाइनिंग हॉल का जायज़ा लेने लगी। चारों दीवारों पर मृत शेर के, जंगली भैंसे के या चीते के सिर भूसे भरे संरक्षित किये टाँगे हुए थे। उसने सोचा ज़माना कितना बदल गया है -पहले दीवारों पर जानवरों के कटे सिर लगाना शान समझी जाती थी. आज की दुनियाँ इन्हीं के संरक्षण में लगी हुई है। यहाँ तक कि बहुत से विदशी चमड़े से बने पर्स, कोट, बैल्ट, जूते पहनना छोड़ते जा रहे हैं, और तो और मीट मटन छोड़कर शाकाहारी बने जा रहे हैं।
छोटा उदेपुर की महारानी ने उसकी तरफ़ राज़मा का डोंगा बढ़ाया था, "हमने खासतौर पर एक पंजाबी कुक रखा है जो पंजाबी डिशेज़ अच्छे बना सके। "
एक चम्मच राज़मा चखकर उसका ज़ायका खराब हो गया था, इससे अच्छा राज़मा तो वह अपने घर बना लेती है। लंच के बाद महाराजा ने सबसे कहा था, "हम लोग ऊपर चलते हैं। आपको दरबार हॉल भी दिखा देंगे। उसे हमने म्यूज़ियम बना दिया है। "
दूसरी मंज़िल पर दरबार हॉल के बरामदे की तरफ़ खुलने वाले सभी विशालकाय दरवाज़े खुले हुए थे लेकिन उनके बीच में एक रस्सी लगाई हुई थी। उन लोगों को देखते ही वहां खड़े दरबान ने वह रस्सी खोल दी। महारानी अंदर घूमते हुये बताने लगीं, " यहाँ जो मेहमान आते हैं उन्हें अंदर नहीं जाने देते। अब आप तो पढ़ी लिखी हैं समझतीं हैं ऐसे बड़े महल की मेन्टेन्स में कितना रुपया ख़र्च होता है। मेहमान लोग हर चीज़ को छू छू कर देखने लगते हैं। बच्चे इन सोफ़ों पर उछल कूद करते हैं इसलिए सबको अंदर नहीं जाने देते लेकिन आप अंदर जाकर फ़ोटोज़ ले सकतीं हैं। "
दरबार हॉल के विशालकाय सिंहासननुमा सोफ़े या दरबारियों के दोनों तरह लगी नक्काशीदार कुर्सियों या भव्य मूर्तियों दीवार पर जड़ी फ़्रेंच पेंटिंग्स, चीन के फूलदानों को देखकर उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस किस की फ़ोटो ले। उसने फ़ोटो लेना बंद कर दिया तो सब लोगों को वे खुली छत पर ले गये, "यहाँ से सारा छोटा उदेपुर दिखाई देता है। "
बाद में सभी मेहमानों को कंगूरेदार झरोखे वाले पीछे वाले बड़े दालान में बिठा दिया था, जहाँ से बहुत सुन्दर प्राकृतिक दृश्य दिखाई दे रहा था, हरे भरे जंगल के बीच बीच बहती नदी की सफ़ेद धारा और सरसराती हवा । महाराजा व महारानी खूबसूरत संखेड़ा के गुजराती झूले पर झूलते से बैठ गए थे। एक सेवक वहीं खीर की प्यालियाँ सर्व करने आ गया था। महाराजा उन्हें बताने लगे, "प्रिवी पर्स बंद होने से पैलेस का मेंटेनेंस करना बहुत मुश्किल होता जा रहा है। हम लोग इसे हेरिटेज होटल में बदलना चाह रहे हैं। सर्वे करवा रहे हैं। "
किसी मेहमान ने कहा, "गुड आइडिया। "
उसके बेटे की उत्सुकता कुछ और थी, ", "आप अपने पूर्वज महाराजा पृथ्वीराज चौहान के बारे में कुछ बताइये। मैंने कहीं पढ़ा है कि मुहम्मद ग़ज़नवी ने पृथ्वीराज चौहान जी को अफ़ग़ानिस्तान के गज़नी शहर के बाहर दफ़नवा दिया था।वहां से जो गुज़रता है उनके टॉम्ब को जूता मारकर अपमानित करता जाता है। इट इज़ वेरी डिस्गस्टिंग। "
महाराज जैसे अतीत में खो गये थे, " यस, शहाबुद्दीन गौरी को महाराज ने अनेक बार युद्ध में शिकस्त दी थी लेकिन बाद में एक युद्ध के बाद अंधे हो गए थे। गौरी पृथ्वीराज जी को कैद करके गजनी ले गया था और उनके गले में मनों भारी तोप बाँध दी क्योंकि उन्हें डर था कि वे कहीं भाग ना जाये। उनका मुंह लगा दोस्त चंद्र बारोट वहां पहुँच गया व गौरी को उन्होंने चढ़ाया कि आप महाराजा की धनुर्विद्द्या देखकर अपना मनोरंजन क्यों नहीं करते क्योंकि सौ सौ मन के सात तवे एक साथ रक्खे जाएँ इनका बाण उन्हें बेधता निकल जाएगा। और सच ही गौरी ने एक मैदान में जनता को आमंत्रित कर डाला और सात तवे भी एक साथ लटकवा दिए। वह उन्हें चुनौती देने लगा था, " पृथ्वीराज ---बाण चलाओ --हम भी तो देखें तुम्हारे मित्र का झूठ । "
चंद्र बारोट पृथ्वीराज के पास ही ख़ड़े थे। वे गुनगुनाने लगे, "चार बांस, चौबीस गज़, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुलतान है, मत चूके चौहान। "
------- चंद्र बारोट की कविता में इशारों से बताई गौरी के सिंहासन की स्थिति जानकार -- जो तीर लोहे के भारी तवों की तरफ़ तना हुआ था अचानक घूमा और सनसनाता गौरी की छाती में जा धंसा। गौरी आश्चर्यचकित आँखें लिए चल बसा लेकिन सारे सैनिकों ने इन्हें घेर लिया। दुश्मन से दुर्गति करवाने से बेहतर इन शूरवीरों ने एक दूसरे को तलवार मारकर अपना जीवन समाप्त कर लिया। उन दोनों का अफ़ग़ानिस्तान में कहीं क्रियाकर्म कर दिया गया था। "
इस घटना को सुनकर वातावरण बोझिल हो गया। शायद इससे उबरने के लिए वहां बैठी एक भारी बनारसी साड़ी पहने महिला ने बात बदली व उसकी तरफ़ मुख़ातिब होकर बोली, "आपका महारानियों रानियों वाला सर्वे मैंने पढ़ा था. "
वह ख़ुश हो गई क्योंकि बरसों में कोई इक्का दुक्का इस अहिंदीप्रदेश में कहता है कि आपका लेख या कहानी पढ़ी थी तो उसके कानों में घण्टियाँ बजने लगतीं हैं। उसने धीरे से कहा, " थैंक्स, मेरा सौभाग्य है कि महारानियों व रानियों से मिलने का मौक़ा मिला। ऐसी विभावरी देवी से मिलने का मौक़ा मिला जिन्होंने अपना परिवार छोड़कर एक अंधे राजा की देखभाल की। "
"वॉट ?देखभाल माई फ़ुट। "
"क्यों क्या हुआ, ये ग़लत बात है ?"
उस महिला ने अपने बालों में लगा सफ़ेद गजरा ठीक किया तो उनके हीरे के कंगन खनक उठे, "महारानी जी ! आपने इन्हें सच नहीं बताया ?"
उदेपुर की महारानी रहस्यमय मुस्कान मुस्करा दीं, "मैं क्या बताती ? पर्दे की बात पर्दे में ही रहे तो अच्छा है। "
वह महिला मुंह बिचकाते हुए बोली थी, "आप मीडिया पर्सन हैं आपको उन्होंने अंधे कर्नल साहब से मिलने की अपनी ड्रेमेटिक कहानी अवश्य बताई होगी व ज़ोर भी दिया होगा कि इसे प्रकाशित करें ."
"जी हाँ, बताई तो थी लेकिन ये नहीं कहा था कि इसे प्रकाशित भी`करवाएँ . जब मैं उन्हें पत्रिका देने गई थी तो वे कुछ बुरा सा मुंह बना रहीं थीं। मुझे समझ नहीं आया था कि किस बात पर नाराज़ हैं। "
"उन्हें गलतफ़हमी होगी कि आप उनका इंटर्व्यू लेने आईं हैं तो इस प्रमुख बात को तो लिखेंगी ही। अगर कोई लोकल रिपोर्टर होता तो वह भारी भरकम उपहार भी दे देतीं। "
उसका धीरज जवाब देने लगा था, "प्लीज़! बताइये ना क्या हुआ था ? "
"वो कर्नल साहब कुछ वर्ष बाद ही एक सुबह अपने कमरे में मृत पाए गए थे। कारण बताया गया था कि उन्हें हार्ट अटैक हुआ था लेकिन नज़दीकी रिश्तेदारों का शक यही था------- ."
महारानी उदेपुर किंचित क्रोध से बोली, "प्लीज़ ! सोनल देवी जी अब बस भी कीजिये। "
एक भयानक काला सन्नाटा फ़ैल गया था उसके मन में यहां से वहां तक। क्यों वह विभावरी देवी के महल में बैठी पर्दों व खिड़की व दरवाज़े से अंदर आने को आतुर उस सरसराते इतिहास की धड़कनें गिन नहीं पाई थी ? उसी समय ज़रा एकाग्र होकर ध्यान देती तो अपने आप कड़ियाँ जुड़ती चलीं जातीं, इतिहास जैसे अपनी सलवटें खोलता उसके सामने अपने यथार्थ में झिलमिला रहा होता।
प्राचीन राजा महाराजाओं के राजपुरोहितों के कारनामे जानने वाली वह, चाणक्य, धीरेन्द्र ब्रह्मचारी, चन्द्रास्वामी, आचार्य रजनीश के देश की वह --लेकिन उसकी जड़बुद्धि तब भी कुछ सोच नहीं पाई थी. बेटों के कैरियर मेकिंग सालों की अफ़रा तफ़री में ना उसे सोचने का समय था और ना पूछने की उत्सुकता कि गुजरात की राजकुमारी विभावरी देवी हिमाचल प्रदेश की किस स्टेट की रानी बनीं ? अकबर के विस्तारवाद से घबराकर कुछ राजपूत राजा या रजवाड़े के शासक जैसे जाड़ेजा, गोहिल, चौहान, वाघेला, सोलंकी, जेथवा, झाला उत्तर भारत से आकर गुजरात में आ बसे थे तो क्या कोई गुजराती शासक हिमाचल प्रदेश में चार सौ, पाँच सौ वर्ष पूर्व बस गया था ? पता नहीं। अब वह बेबस उस भोले चेहरे को वितृष्णा से याद कर रही है जिसने अंधे राजा के महल व जायदाद पर अपने पति के साथ कुटिलता से कब्ज़ा करके बेहद मासूमियत भरी नौटंकी से उससे कहा था, " मुझे छोटे छोटे घरों में रहने का शौक है. जिसमें रहकर लोग आपस में अपने दुःख सुख बांटा करते हैं।"
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श्रीमती नीलम कुलश्रेष्ठ