Meghna - Kusum Goswami in Hindi Book Reviews by राजीव तनेजा books and stories PDF | मेघना- कुसुम गोस्वामी

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मेघना- कुसुम गोस्वामी


मीडिया और मनोरंजन के तमाम जनसुलभ साधनों की सहज उपलब्धता से पहले एक समय ऐसा था जब हमारे यहाँ लुगदी साहित्य की तूती बोलती थी। रेलवे स्टेशनों, बस अड्डों और मोहल्ले की पत्र पत्रिकाओं की दुकानों तक..हर जगह इनका जलवा सर चढ़ कर बोलता था। बुज़ुर्गों के डर..शर्म और लिहाज़ के बावजूद जवानी की दहलीज चढ़ते युवाओं, विवाहितों एवं अधेड़ हाथों में या फिर उनके तकियों के नीचे चोरी छिपे इनका लुकाछिपी खेलते हुए मौजूद रहना एक आम बात थी।

इनमें मुख्यतः प्रेम, बिछोह या किसी सामाजिक बुराई जैसे तमाम मसालों का इस प्रकार से घोटा लगा..फॉर्म्युला तैयार किया जाता था कि हर कोई इन्हीं का दीवाना हुआ जाता था। उस समय उन पर बहुत सी ब्लॉक बस्टर फिल्में जैसे कटी पतंग, दाग़, आराधना इत्यादि बनी। जिनमें मुख्यतः राजेश खन्ना, शर्मिला टैगोर और आशा पारेख सरीखे दिग्गज अभिनय किया करते थे और उनके कामयाब रचनाकारों में से एक गुलशन नंदा को तो एक स्टार राइटर तक का दर्जा प्राप्त था।

ऐसी ही मन को मोहने वाली कहानी अगर आपको आज के दौर में पढ़ने को मिल जाए तो ज़ाहिर सी बात है कि आप थोड़े नॉस्टैल्जिक तो हो ही जाएँगे। दोस्तों..आज मैं बात कर रहा हूँ नवोदित लेखिका कुसुम गोस्वामी के पहले उपन्यास 'मेघना' की। जिसमें उन्होंने बलात्कार जैसे ज्वलंत मुद्दे को उठाया है।

इस उपन्यास में मुख्यतः कहानी है बेहद खूबसूरत..स्वाभिमानी मेघना और उसकी नटखट.. चुलबुली छोटी बहन नैना की जो अपने पिता की मृत्य के बाद अपनी माँ योगिता के साथ रह रहीं हैं। तमाम तरह की आशांका और सावधानी के बावजूद एक दिन धोखे से नशा पिला कर मेघना का बॉस अपने साथी के साथ मिल कर उसका बलात्कार करता है।

बुरी तरह आहत हो..टूट चुकी मेघना अपनी छोटी बहन की जल्द होने वाली शादी, धमकी, ब्लैकमेल, बैंक लोन और नौकरी छूटने जैसी अनेक समस्याओं के डर से उस वक्त चुप तो रह जाती है मगर अन्दर ही अन्दर घुटने के बाद एक दिन विद्रोह कर उठती है।

तमाम तरह के लटके झटकों से सुसज्जित मैलोड्रामा एक तरफ सशक्त कोर्टरूम सीन्स हैं तो दूसरी तरफ़ शनै शनै पनपना प्यार भी है। इसमें एक तरफ़ छोटी बहन नैना की शोखी भरी चुहलबाज़ीयाँ एवं शरारतें हैं तो दूसरी तरफ़ बड़ी बहन की धीर गंभीर सोच का फ़लसफ़ा भी है। तमाम तरह के चक्रों..कुचक्रों और साजिशों के बीच क्या मेघना अंत में सफल हो पाती है अथवा नहीं? यह सब जानने के लिए तो आपको उपन्यास पढ़ना होगा।

पाठकीय नज़रिए से अगर देखूँ तो शुरुआती शिथिलता के बाद सरल भाषा में लिखा गया बॉलीवुडीय शैली का यह रोचक उपन्यास अपनी पकड़ को मज़बूत बनाता हुआ आसानी से पाठकों को उसके अंत याने के क्लाइमेक्स तक पहुँचाने में सफल हो जाता है।

बतौर लेखक मुझे इसमें कुछ छोटी छोटी कमियाँ भी दिखाई दी। जिन पर आने वाली रचनाओं में ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है।

*साहित्यिक नज़रिए से प्रवाह में लिखे गए लंबे संवाद या वाक्य, लेखक की दक्षता को पाठकों के सामने परिलक्षित करते हैं। ऐसे ही कुछ प्रयास इस उपन्यास में भी दिखाई दिए मगर उनमें सहज एवं सरल प्रवाह की कमी दिखी। साथ ही कुछ जगहों को जबरन संवादों को लंबा खींचा गया सा भी प्रतीत हुआ।

*वर्तनी की त्रुटियों के अलावा कुछ जगहों पर
प्रचलित/मानक हिंदी से इतर वाक्य दिखाई दिए जैसे कि..

1. पेज नम्बर 23 पर लिखा दिखाई दिया..

"दी, तेरी रेड गाउन प्रेस करा दी है, वही पहननी है।"

यह वाक्य सही नहीं है। सही वाक्य इस प्रकार होगा..

"दी, तेरा रेड गाउन प्रैस करा दिया है, वही पहनना है।"

साथ ही आगे यह भी लिखा दिखाई दिया कि..

"अरे! अभी यहीं हो। मेघु! तुझे बाल भी धुलने है ना! जल्दी कर गीजर ऑन है।

यह वाक्य भी सही नहीं है। सही वाक्य इस प्रकार होगा..

"अरे! अभी यहीं हो? मेघु.. तुझे बाल भी तो धोने हैं ना? जल्दी कर..गीज़र ऑन है।"

2. कई बार किसी वाक्य में अगर भूलवश भी किसी एक शब्द का हेरफेर हो जाए तो उसका अर्थ बदलते देर नहीं लगती। ऐसा ही कुछ इस उपन्यास के पेज नम्बर 36 पर लिखा दिखाई दिया..

"एक्सक्यूज मी सर! मैम कहाँ हैं? मेघना ने भाटिया का ध्यान बाँटते हुए पूछा।

मेरे हिसाब से यह वाक्य सही नहीं बना। इसे इस प्रकार होना चाहिए था..

"एक्सक्यूज मी सर, मैम कहाँ हैं?" मेघना ने भाटिया का ध्यान बँटाने की गर्ज़ से पूछा।

या फिर..

मेघना ने भाटिया का ध्यान बँटाते हुए पूछा।

आगे लिखा दिखाई दिया..

"आर यू श्योर! मेघना।" भाटिया चौंककर नाटक करते हुए बोला।

यह वाक्य भी मेरे हिसाब से इस प्रकार होना चाहिए..

"आर यू श्योर! मेघना?" भाटिया चौंकने का नाटक करता हुआ बोला।


3. पेज नंबर 76 पर एक जगह पंजाबी टोन वाले संवाद के तौर पर दिखाई दिया कि..

"अकेले जाएगा मुंड़ें! मुझे संग नहीं ले जाएगा?"

इसमें 'मुंड़ें' कोई शब्द नहीं है। यहाँ 'मुंडे' अर्थात लड़के आएगा।

मेरे हिसाब से जब तक कहानी की माँग या किरदार के हिसाब खास ज़रूरत ना हो, स्थानीय भाषा के संवादों से बचा जाना चाहिए। साथ ही शुद्ध रूप में अंत तक उनका सफलतापूर्वक निर्वाह होना भी बेहद ज़रूरी है।

4. इसी तरह पेज नंबर 80 पर लिखा दिखाई दिया कि..

"जैसे ही उसे अंदेशा हुआ कि मयंक के दिल में दोस्ती ने प्यार की जगह लेनी शुरू कर दी है, वो उससे कतराने लगी।"

यहाँ पर कहानी के सिचुएशन के हिसाब से 'दोस्ती ने प्यार की जगह' नहीं बल्कि 'प्यार ने दोस्ती की जगह' होना चाहिए था।

5. लगभग तीन चौथाई उपन्यास खत्म होने के बाद अचानक पेज नंबर 133 पर एक महत्वपूर्ण किरदार का सरकारी वकील के बहाने प्रकट हो जाना थोड़ा अजीब लगा। इस ज़रुरी किरदार या इसकी कहानी को फ्लैशबैक में आने के बजाय कहानी के साथ चलना चाहिए था।

197 पृष्ठीय इस रोचक उपन्यास के पेपरबैक संस्करण को छापा है हिन्दयुग्म ने और इसका मूल्य रखा गया है 150/- जो कि क्वालिटी एवं कंटैंट के हिसाब से जायज़ है। आने वाले उज्जवल भविष्य के लिए लेखिका तथा प्रकाशक को अनेकों अनेक शुभकामनाएं।