रघुवन की छोटी पहाड़ी पर जो फूलों की बगिया है, उस पर पेड़ोंपर अंगूर के रसीले गुच्छे लगे हुए थे।अंगूर खाने के लालच में उधर कई जानवरों का आना जाना लगा रहता था। नीलगाओं का झुण्ड भी आया हुआ था। ज़ेब्रा का झुण्ड भी उधर ही मौजूद था। नीलम नीलगाय ने पेड़ पर एक पका हुआ बड़ा सा अंगूर का गुच्छा देखा, जोकि उसकी पहुँच में था। वही अंगूर का गुच्छा जेबा ज़ेब्रा ने भी देखा। दोनों ही उसे खाने के लिए बढ़े और दोनों साथ में ही उस गुच्छे के पास पहुंचे। दोनों एक दूसरे को देख कर रुक गईं और मुस्कुराईं।
नीलम अपना लालच छिपाते हुए शालीनता से बोली - “ओह जेबा, पहले तुम खा लो यह बहुत ही उत्तम अंगूर दिख रहा है।” अंदर से डर रही थी कि कहीं जेबा सही में ना वो खाले।
जेबा भी नकली शालीनता दिखाती हुई बोली “अरे बहन यह तुम खा लो, मैं दूसरा खा लुंगी।” उसके मन में भी यही डर कि कहीं नीलम सच में वो अंगूर का गुच्छा ना खा ले।
नीलम और ज़ेबा दोनों एक दूसरे को संकोच और शालीनता वश आग्रह करते रहे और दोनों ही आगे बढ़ कर उसे खाने को नहीं गए। कुछ देर तक यही नकली शालीनता और संकोच का क्रम चलता रहा |
तभी अचानक पीछे से आवाज़ आई “आज्ञा हो तो मैं आगेआऊं।” दोनों ने पीछे मुड़ कर देखा उधर छोटा हाथी चेम्पो खड़ा हुआ था| दोनों कुछ बोलते उससे पहले ही वो आगे बढ़ा | उसने अंगूर का वो पका हुआ वो रसीला गुच्छा अपनी सूंड से तोड़ा और खा लिया। नीलम और जेबा देखते ही रह गए।
नीलम थोड़ा झेंप कर बोली “अरे चेम्पो, वो मीठा गुच्छा हम देख रहे थे, वो हम खाने वाले थे। तुम्हें वो नहीं खाना चाहिए था। “
चेम्पो बोला “पर आपकी बातों से तो मुझे लगा आप दोनों ही उसे नहीं खाना चाहते थे। इसलिए मैंने खा लिया। आपको पता भी नहीं था कि वो मीठे अंगूर हैं। मैंने हिम्मत करके उनके खट्टे और मीठे होने का खतरा उठाया|”
नीलम निरुत्तर हो गई।
फिर ज़ेबा अपना गुस्सा छिपाते हुई बोली “अरे बेटा तुमने खा लिया तो कोई बात नहीं। पर अगर मैं तुम्हारी जगह होती और मुझे कोई चीज लेने के प्रथम अवसर मिलता तो कोई छोटा गुच्छा ही लेती, सर्वोत्तम नहीं। उसे बाकि लोगों को पहले लेने का पहले अवसर देती। यही शिष्टाचार है। “
चेम्पो बोला “ फिर तो आपका कुछ भी नहीं बिगड़ा, छोटे गुच्छे खाने का अवसर तो अभी भी है आपके पास, आप तो वैसे भी मीठा अंगूर का गुच्छा नहीं खातीं।”
जेबा भी आगे कुछ ना बोल सकी, दोनों को ही अंगूर से हाथ धोना पड़ा| चेम्पो ने दोनों को ही निरुत्तर कर दिया। दोनों अपने नकली शिष्टाचार पर पछता रहीं थीं।
तभी चेम्पो की माँ पीछे से आईं और बोलीं “ शिष्टचारिओं आगे चलो, आगे बहुत सारे पके हुए मीठे अंगूर हैं। एक ही जगह खड़े रहोगे तो खट्टे अंगूर भी मिलने बंद हो जायेंगे। “
ऐसा सुनते ही सब जल्दी जल्दी आगे को गए उधर बहुत सारे पके हुए अंगूर थे। सबने जम कर अंगूर खाए। चेम्पो की बातों का भी सबने खूब आनंद लिया। सब बहुत प्रसन्न हुए।
फिर सबने मिलकर पार्टी करी।