sazish - 2 in Hindi Fiction Stories by padma sharma books and stories PDF | साजिश - 2

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साजिश - 2

साजिश 2

थोड़ी देर बाद सीटी बजाते हुए विशाल आया और फिर नितिन के कन्धे पर हाथ मारकर बोला-हाँ यार अब बोल तेरा क्या रोग है?

फिर ऊँची आवाज में बोला-कनु, कनु जरा एक इंजेक्शन तो लगा देना इसे बुखार का। लगता है इसका बुखार पूरी तरह से उतरा नहीं है।

नितिन का मुँह फूल गया वह गुस्से में बोल उठा-देखो विशु तुम मुझे परेशान मत करो वरना.... ।

विशाल बीच में ही बोल उठा-वरना तुम मेरा क्या कर लोगे।

नितिन ने कहा-वरना मैं तुम्हारा नहीं अपना सिर फोड़ लूँगा और पट्टी बँधवाने तुम्हें ही जाना पड़ेगा।

विशाल मुस्कुरा उठा बोला-अरे मुझे अपने यार 'देवदास' की सेवा का मौका तो मिलेगा। तू कहे तो तेरी चिता की आग भी तेरे लड़के की जगह मैं ही दे दूंगा।

इतने में ही मम्मी ने आकर कहा-अरे भई किसको जला रहे हो। तुम दोनों तो रोज ही मरते हो। और रोज ही जिन्दा होते हो। मैं तो तंग आई तुम दोनों से।

विशाल झेंपकर बोला-कुछ नहीं आंटी इसके चेहरे की मुर्दानगी को मारकर मर्दानगी लाना है।

फिर विशाल ने नितिन का हाथ पकड़ा और नितिन के कमरे में आ गया और खुशामद करने वाले लहजे मेंबोला-अच्छा बाबा अब कान पकड़ता हूँ जो अब तुझसे एक शब्द भी कहूँ। अब तू भाषण शुरू कर दे।

कहकर उँगली मुंह पर रखकर पलग पर जाकर बैठ गया उसकी इस अदा पर नितिन को हँसी आ गई। उसने रात में बीती पूरी घटना उसे सुना दी और बोला-बोल अब तेरी क्या राय है?

उसने नादानों की तरह कान पकड़कर कहा कि -मैंने तो भई कसम खा रखी है कि तुझसे एक शब्द भी नहीं कहूँगा हाँ अगर तुझे कसम तुड़वानी है तो एक पिक्चर ।

फिर मुँह बनाकर बोला-मैं तो आज इसी मूड में आया था लेकिन जनाब ने दूसरा ही राग अलापना शुरू कर दिया।

नितिन ने गम्भीरता से कहा-देख विशु हँसी-मजाक छोड़। मैं एक नहीं दो पिक्चर दिखाऊँगा-एक एडवांस में दूसरी काम होने पर। पहले योजना बनाओ और फिर आज की पिक्चर !

विशाल उछल पड़ा-अरे वाह! दो पिक्चर। तब तो दिमाग दौड़ाना ही पड़ेगा । फिर विशाल ने योजना बताई कि-मैं यहीं रात को पढ़ने के बहाने से रोज आ जाया करूँगा। क्योंकि मैं भी पहले स्थिति देखना चाहूँगा।

उसी रात से विशाल ने पढ़ने के लिए आना शुरू कर दिया। साथ में आवश्यकतानुसार चीजें जोड़ना शुरू कर दिया जैसे-टेप रिकार्ड, कैमरा, दूरबीन आदि। रात दस बजे तक दोनों पढ़ते थे और दस से ग्यारह बजे तक धीमी-धीमी आवाज में अपना तुक्का भिड़ाते थे।

छठवें दिन नितिन विशाल के यहाँ गया और दोनों ने वहीं खाना खा लिया क्योंकि उन्हें विश्वास था कि बावर्ची आज जरूर खाने में नींद की गोलियाँ मिलाएगा, आज वे सब आने वाले थे ।

नितिन ने कहा था कि विशु बावर्ची या पहरेदारों से इस बारे में पूछताछ न करे। उन्होंने पहरेदारों से पूछा तो उन्होंने मना कर दिया। बावर्ची के सम्बन्ध में विशु ने कहा कि हम उन लोगों को रंगे हाथों पकड़ना चाहते हैं। बावर्ची से-पूछताछ करने पर वे सचेत हो सकते हैं या फरार हो सकते हैं।

दस बजे तक वे लोग किताबें खोलकर पढ़ते रहे थे लेकिन दोनों की ही पढ़ने की इच्छा नहीं थी। वे उस समय का बेसब्री से इन्तजार कर रहे थे।

घर के सभी सदस्यों को खाना खाने के पश्चात् नींद आ गई थी। चौकीदार पहरा दे रहे थे।

दस बजे से ग्यारह बजे तक नितिन सो गया और जब ग्यारह बज गए तब विशाल ने नितिन को जगाया और खुद सो गया। उठने के बाद नितिन को नींद की झपकी आ रही थी तब उसने चाय बनाकर पी और थोड़ी विशाल के लिए थर्मस में रखकर दरवाजे भिड़ा दिए।

वह किताब में नजरें डाले रहा जबकि उसकी नजर तो घड़ी पर टिकी थीं। वह बारह बजे का इन्तजार कर रहा था।

बारह बजने पर उसने विशाल को जगाकर चाय पिलाई और दोनों लाइट बन्द करके चुपचाप बिस्तरों पर लेट गए।